भारत के खुरदरे बनाम चिकने / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :16 जून 2015
इरफान खान 'जूरासिक पार्क' की नई कड़ी में महत्वपूर्ण भूमिका कर चुके हैं और अमेरिका के सुपर सितारे टॉम हैंक्स के साथ भव्य बजट की 'इनफर्नो' कर रहे हैं। उनकी 'लाइफ ऑफ पाई' भी अत्यंत सफल रही थी। इसके साथ ही उसकी पीकू भी सफल रही है। इरफान खान ओमपुरी की परंपरा के महान कलाकार हैं। ज्ञातव्य है कि ओमपुरी ने भी ढाई दर्जन अंतरराष्ट्रीय फिल्में अभिनीत की हैं और उनके सखा तथा हमजोली नसीरूद्दीन शाह ने भी कुछ विदेशी फिल्में की हैं। समानांतर सिनेमा के कई अभिनेता और अभिनेत्रियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना के पात्र बने हैं। कई कलाकारों को विदेश में मौके मिले हैं।
दशकों पूर्व साबू नामक भारतीय स्टंट फिल्मों के कलाकार को लेकर हॉलीवुड ने 'एलीफेंट बॉय' बनाई थी परंतु वहां साबू का कॅरिअर नहीं बना। भारत के कुछ कलाकारों ने छोटी भूमिकाएं हॉलीवुड फिल्मों में अभिनीत की हैं परंतु प्रमुख भूमिकाएं केवल ओमपुरी और इरफान ने की हैं। आज इरफान खान को वहां एक सितारे का आदर दिया जाता है। यह गौरतलब है कि भारत के किसी चिकने-चुपड़े, चाकलेटी छवि वाले कलाकार को वहां अवसर नहीं मिले परंतु हमारे अपने 'खुरदरे' माने जाने वाले ओमपुरी और इरफान खान को वहां खूब सराहा जा रहा है, जिसका अर्थ यह नहीं कि चिकना या गोरा चिट्टा होना कोई दोष है और 'खुरदरापन' गुण है परंतु प्रतिभाशाली अभिनय को ही सराहा जा रहा है और सितारा छवि से मुक्त होने की प्रशंसा की जा रही है। हमारे सारे करोड़ों रुपए का पारिश्रमिक पाने वाले सितारे अपनी छवि में जकड़े हुए हैं और उन्हें इसीलिए इतना पारिश्रमिक भी मिल रहा है, अत: वे स्वयं के टकसाली स्वरूप को तोड़ना नहीं चाहते। शायद इसीलिए वे विदेश में अपनी प्रतिभा दिखाने के प्रति उदासीन हैं। कोई तीन चार दशक पूर्व महान फिल्मकार डेविड लीन ने दिलीप कुमार को लारेंस ऑफ अरेबिया के लिए निमंत्रित किया था और पटकथा भी प्रेषित की थी परंतु दिलीप अपने स्वभाव के अनुरूप 'करूं या न करूं' की जद्दोज़हद में बहुत समय ले रहे थे, अत: डेविड लीन ने वही भूमिका नए ओमार शरीफ को दी और वे सितारा बन गए। डेविड लीन का भारत के प्रति भावनात्मक लगाव रहा है, क्योंकि उनकी दूसरी पत्नी भारतीय थी और उन्होंने ई-एम फॉस्टर के उपन्यास 'ए पैसेज टू इंडिया' पर फिल्म बनाई है। डेविड लीन ने 'डॉ. जिवागो' की शूटिंग स्पेन मेें की, क्योंकि रूस ने उन्हें अनुमति नहीं दी। यह डेविड लीन का ही कमाल है कि उन्होंने स्टुडियो में रूस का विश्वसनीय प्रस्तुतिकरण किया। बहरहाल, आईएस जौहर को 'लारेंस ऑफ अरेबिया' में छोटी भूमिका मिली थी।
मौजूदा भारतीय सरकार विदेशी फिल्मों की शूटिंग भारत में हो, इसलिए उसका मंत्रालय सुविधाजनक नियम बना रहा है। सरकार को जानकर आश्चर्य होगा कि कई देशों में शूटिंग के लिए कोई सरकारी इजाजत नहीं लेनी पड़ती, केवल सड़क पर शूटिंग के लिए अग्रिम सूचना देनी होती है ताकि वे अपनी जनता को सूचित कर सकें कि इतने समय उस स़ड़क से दूर रहें। अधिकांश देशों में विदेशी निर्माता को उसके द्वारा व्यय की गई राशि का चालीस प्रतिशत वापस दिया जाता है। मुंबई में सड़क पर शूटिंग के लिए एक लाख रुपए की फीस देनी पड़ती है। आप पहले अपने देश के निर्माताओं को सहूलियतें दें तो बेहतर होगा। इस कार्य में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि भारत में अधिकारी पटकथा देने की बात करते हैं। कोई भी निर्माता प्रदर्शन के पूर्व किसी गैर-यूनिट सदस्य को पटकथा नहीं देता। सेंसर की हमारी नीति घातक है। आप अपनी रूढ़ियों के अनुसार कला के काम को सेंसर करना चाहते हैं। हम किताबें भी प्रतिबंधित करते हैं। ये सारी कड़वी सच्चाई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ साजिश है। कौन हमारे देश में कितना स्वतंत्र है, यह विचारणीय है। कला की मुक्त अभिव्यक्ति के लिए वैचारिक व अन्य तरह की स्वतंत्रता जरूरी है।