भारत में हॉलीवुड और हॉलीवुड में भारत / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :30 अप्रैल 2016
प्रियंका चोपड़ा अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ रात्रि भोज कर रही हैं। यह उनके माध्यम से भारत और भारतीय फिल्म उद्योग का सम्मान है। प्रियंका ने सीरियल 'क्वांटिको' और फिल्म 'बे वॉच' में भूमिकाओं का निर्वाह किया है और अब दीपिका पादुकोण भी हॉलीवुड की फिल्म में अभिनय करने जा रही हैं। इनके लिए कुछ हद तक अमेरिका में बसे भारतीय लोगों को श्रेय है। हमारे हापुस आम की तरह कुछ लोग भी विदेश में अपनी मांग बनाए हुए हैं। इस तरह 'मेड इन इंडिया' लोग एक्सपोर्ट मटेरियल बन चुके हैं।
आशुतोष गवारीकर इस मुद्दे पर 'स्वदेश' फिल्म बना चुके हैं और यह अभिनेता फिल्मकार मनोज कुमार की भारत कुमार छवि से अलग है, जिसे उन्होंने 'पूरब पश्चिम' में प्रस्तुत किया था। उनकी नारेबाजी और नेताओं की दीवार पर फ्रेम में जड़ी तस्वीरों को दिखाने के छद्म देशप्रेम की फिल्मों से अलग ढंग की फिल्में बनाई है राकेश मेहरा ने जिनकी 'रंग दे बसंती' महान फिल्म है। नसीरुद्दीन शाह अभिनीत 'वेडनेस डे' भी अलग किस्म की फिल्म है। देशप्रेम की 'पानसिंह तोमर' भी महान फिल्म है। राकेश मेहरा ने 'दिल्ली 6' के फीके स्वागत के बाद लखनऊ की नवाब पृष्ठभूमि पर अनिल कपूर के सुपुत्र हर्षवर्द्धन को लेकर फिल्म बनाई है। सुना है कि अब वे आमिर खान के साथ 'रंग दे बसंती' की अगली कड़ी की संभावनाएं टटोल रहे हैं। प्रतिभाशाली राकेश मेहरा नवीनता के प्रति आकर्षित हैं। दशकों पूर्व साबू को 'एलिफेंट बॉय' में अवसर मिला था। 'स्लमडॉग मिलिनेयर' में भारतीय बाल कलाकारों को अवसर मिला था। चार्ली चैपलिन के 'किड' से लेकर आज तक बचपन में ख्याति अर्जित करने वाले कलाकार बाद में गुमनामी में कहीं खो गए। राज कपूर की 'बूट पॉलिश' के बाल कलाकार बेबी नाज़ और रतन कुमार भी जाने कहां चले गए। मेहबूब खान ने 'सन ऑफ इंडिया' के बाल कलाकार को गोद लेने की पहल की थी। बाद में इस 'सन' का कुछ पता नहीं चला। बाल उम्र में प्राप्त ख्याति ने उन्हें सामान्य जीवन जीने ही नहीं दिया। ख्याति नामक घोड़े की सवारी घातक सिद्ध होती है। बेचारे राजेश खन्ना अपने सुपर स्टारडम से कभी उबर ही नहीं पाए।
किशोर वय में ऋषि कपूर ने 'जोकर' में अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया और 'बॉबी' में स्टारडम प्राप्त किया परंतु वे अभिनय क्षेत्र में मिट्टी पकड़ अभिनेता सिद्ध हुए। आश्चर्य की बात है कि इतनी लंबी पारी खेलते हुए भी उन्हें कभी दादा फालके पुरस्कार से नहीं नवाज़ा गया। पुरस्कारों के लिए योजनाबद्ध प्रयास करने पड़ते हंै परंतु उनकी इसमें रुचि नहीं है। उन्होंने सबसे अधिक नायिका केंद्रित फिल्मों में अभिनय किया और पटकथा में अवसर की कमियों के बावजूद अपनी जमीन नहीं छोड़ी। चाहे वह 'दामिनी' हो या 'चांदनी' हो या उनकी अपनी कंपनी की 'हिना' ही क्यों न हो। हबीब फैज़ल की 'दो दूनी चार' में उन्होंने आदर्शवादी शिक्षक की भूमिका बकमाल अभिनीत की थी। सुना है कि बेस्वाद, बदमजा 'दावत-ए-इश्क' के हादसे से उबरकर हबीब फैज़ल शीघ्र ही पुन: लेखन व निर्देशन के क्षेत्र में आ रहे हैं। निर्माता आदित्य चोपड़ा को उन पर आज भी भरोसा है। आदित्य ने अमेरिका में फिल्म निर्माण दफ्तर खोला है और उनके अनुज उदय चोपड़ा कामकाज देखते हैं। हमारे कलाकार ही नहीं वरन निर्माता भी हॉलीवुड में सक्रिय हो सकें, इस दिशा में यह एक प्रयास है।
दशकों पूर्व मर्चेंट आइवरी प्रोडक्शन संस्था यह काम करती थी। इस्माइल मर्चेंट मंुबई में मराठा मंदिर सिनेमा के निकट गली में जन्मे और उन्होंने अपने मित्र जेम्स आइवरी के साथ लंबे समय तक पश्चिम में फिल्मों का निर्माण किया। उनकी फिल्मों ने ऑस्कर सहित अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किए। उनकी फिल्म 'मुहाफिज' की पूरी शूटिंग भोपाल मंे हुई थी। अब प्रियंका चोपड़ा फिल्म निर्माण क्षेत्र में कदम रख रही हैं। वे प्रारंभ में भारतीय दर्शकों के लिए फिल्में बनाएंगी और बाद में हॉलीवुड में प्रवेश करेंगी। अनुष्का शर्मा भी 'एन.एच. 10' केबाद की फिल्म की शूटिंग पूर्व योजना बना रही हैं। उनके एक समय प्रेमी रहे विराट कोहली भी भारतीय बल्लेबाजी का मेरूदंड बने हुए हैं। अनुष्का शर्मा और उनके प्रेम तंदूर में आग अभी तक बुझी नहीं है और पुन: तंदूर दहक सकता है। मनोरंजन उद्योग सदा सुहागन उद्योग कहलाता ही इसलिए है कि उसमें संभावनाओं की खोज निरंतर जारी रहती है।