भावली की नगदी / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती
Gadya Kosh से
भावली की नगदी के जो मुकदमे हुए उनने किसानों को न घर का रखा , न घाट का। बंशी में मछली की तरह फँसा कर किसान जिबह कर डाले गए। अपीलों का सिलसिला चालू है और नगदी फैसले के बावजूद भी भावली की वसूली हो रही है। फिर भी गाँधीवादी शासकों के कानों पर जूँ नहीं रेंगती। किसान लुटते हैं तो बला से। लीडरों ने रद्दी कानून बनाए तो बला से। सरकार ने नियम-नोटिसें गलत निकालीं तो उससे क्या ? मरते तो हैं किसान। भावली की जमीनों में लाश तो उनकी जलाई-दफनाई जा रही है।