भीटा के खंडहर / रामचन्द्र शुक्ल

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[ अन्यत्र भीटा के जिन प्राचीन बौध्द चिद्दों के पता लगने का हमने उल्लेख किया है उनका ब्योरा एक महाशय ने 'लीडर' में इस प्रकार दिया है। ]

सरकारी पुरातत्व विभाग मि. मार्शल की अध्यक्षता में दिसम्बर 1909 ई में भीटा के खंडहरों को खोदने में लगा था। उसका काम गत फारवरी महीने में समाप्त हुआ।

टीलों को खोदने पर उनके भीतर एक अच्छा नगर निकला जिसमें चौड़ी चौड़ी सड़कें, गलियाँ, पक्की नहरें और नालियाँ बनी थीं।

ईंट के बने पक्के मकानों की श्रेणियाँ खोदकर निकाली गई हैं जिनमें से कोई तो 24 फुट जमीन के नीचे गड़ी थीं। ईंटें वैसी ही बड़ी बड़ी और चिपटी हैं जैसी कि झूँसी और कोसम आदि के खंडहरों में मिलती हैं। घर ठीक सीधी कतार में क्रम के साथ बने हुए हैं। दीवारें नींव के पास चौड़ी और उसके ऊपर पतली हैं। घरों की श्रेणियों के मध्य में गलियाँ बनी हैं जिनके बीचोबीच ठीक उसी तरह पक्की नहरें निकाली गई हैं जैसी कि बरेली आदि नगरों में अब तक देखने में आती हैं। इन मकानों में एक बड़ी भारी विलक्षणता है। दीवारों में आने जाने के लिए कोई मार्ग नहीं है। न दरवाजे हैं, न खिड़कियाँ। दीवारों में यदि कहीं एकाध दरवाजे आदि के चिद्द हैं भी तो ईंटों से बन्द किए हुए हैं। जान पड़ता है कि मकान खप्पंरों आदि से छाये हुए थे क्योंकि खप्पंरों के बड़े पुराने नमूने उनमें मिले हैं। यह नहीं मालूम होता कि लोग कोठरियों में कैसे आते जाते थे। कई पक्के कुएँ भी निकले हैं। वे बिलकुल दुरुस्त हैं, उनमें से कुछ तो पक्की ईंटों के बने हुए हैं और कुछ पत्थरों के। पत्थर की पटिया इस रीति से जोड़ी गई है कि जोड़ मालूम नहीं होते। इसमें से एक कुएँ में हव्यिाँ भरी मिलीं। घरों के भीतर अनाज के बख् ाार मिले। मिट्टी के बड़े बड़े कुंडे दीवारों में लगे हुए अथवा कोनों पर रखें हुए पाए गए। कोठरियों के भीतर चक्की, जाता, ओखली तथा और भी गृहस्थी की चीजें मिलीं। पत्थर की एक बड़ी खंडित मूर्ति भी एक घर में पाई गई जिसके बाहु पर आभूषण बनाए गए थे।

ध्यानी बुध्द के कई सिर तथा बुध्द और द्वारपाल की खंडित प्रतिमाएँ भी मिली हैं। कुछ थोड़ी सी पत्थर की मूतियाँ, औजार तथा शिलालेख भी निकले हैं। एक बड़ा शिलालेख है जो अभी उतारा नहीं गया है। कुछ ताम्बे के सिक्के भी निकले हैं, पर वे अभी साफ नहीं किए गए हैं। बहुत अच्छी कारीगरी के मिट्टी के बर्तन ज्यों के त्यों मिले हैं जिनके ऊपर का रोगन अभी तक चमक रहा है उनमें से कुछ बर्तन हैं-टोटीदार मिट्टी के गड़ुए जिससे लोगों का यह भ्रम दूर हो सकता है कि हम लोगों ने टोटीदार बर्तन बनाना मुसलमानों के आने पर सीखा है। हर एक प्रकार के कलशें, सुराहियाँ आदि खोदकर निकाली गई हैं। पकी हुई मिट्टी के खिलौने, बुध्द के सिर आदि पाए गए हैं। ये मिट्टी के खिलौने ठीक उसी तरह के हैं जैसे आजकल के कुम्हार लोग लड़कों के खेलने के लिए बनाते हैं। मिट्टी के कलछुले पाए गए हैं जिनका व्यवहार भोजन बनाने में होता था। त्रिशूल के आकार का एक लोहे का कटार, पूजा करने के लिए लोहे का एक सिंहासन तथा मिट्टी का एक कमंडल भी खोदकर निकाले गए हैं।

मिट्टी केर् बर्तनों और कपड़ों की जाँच करके यह अनुमान किया गया है कि वे ईसा से दो शताब्दी पूर्व से लेकर चौथी शताब्दी तक के हैं। प्रयाग के जिले में बहुत से टीले और खंडहर हैं, जिन्हें खोदने से बहुत सी काम की बातें मालूम हो सकती हैं।

(नागरीप्रचारिणी पत्रिका, 1910 ई.)

[ चिन्तामणि: भाग-4]