भीतर और बाहर का भूगोल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 11 अप्रैल 2014
आमिर खान का जन्म मुंबई के जिस फ्लैट में हुआ, वह श्रेष्टि वर्ग के पाली हिल और यूनियन पार्क बांद्रा का इलाका है और आज वहां 35,000 रुपए फुट का भाव मिलता है परंतु दशकों पूर्व संभवत: वह चंद हजार में खरीदा गया। बहुत खूबसूरत कम्पाउंड है और उस जमाने के आर्किटेक्ट के हिसाब से छत की ऊंचाई पंद्रह फीट से अधिक है परंतु आज आसमानी दामों के कारण बिल्डर दस यह बारह फुट से अधिक ऊंचे कमरे नहीं बनाते सारांश यह कि वह आज के दड़बों नुमा कमरों से अलग है। आमिर ने समस्त रहवासियों के सामने प्रस्ताव रखा था कि री-डेव्हलपमेंट के लिए बाहरी व्यक्ति से बेहतर है कि यह दायित्व उन्हें दिया जाये। उनके प्रस्ताव में स्वयं के लिए बीस हजार फुट का स्वतंत्र बंगला और सभी सदस्यों के लिए उनकी मौजूदा रिहाइश से थोड़ी ज्यादा जगह दी जायेंगी और मजबूत तथा संपूर्ण गुणवत्ता से निर्माण किया जाएगा और सदस्य अपना फ्लैट बेचना चाहते हैं, उन्हें मौजूदा भाव से दोगुनी राशि 70,000 हजार प्रतिफुट भुगतान किया जाएगा। बहरहाल यह सब लिखने का उद्देश्य यह है कि मनुष्य अपने जन्म स्थान के प्रति भावुक होता है और गहरी संवेदना रखता है। दरअसल आमिर खान की मां को उस जगह से गहरा लगाव है जहां दशकों पूर्व वह दुल्हन बन कर आई थी और जब भी रुखसती हो, वह भी वहीं से हो।
आज राजनीति में हर वह उम्मीदवार जो जन्म स्थान या अपने शहर से दूर चुनाव लड़ रहा है, वह बार-बार उस शहर से अपने संबंध जोडऩे के झूठे सच्चे प्रयास कर रहा है। सच तो यह है कि महज भारतीय होने के नाते आप कहीं से भी चुनाव लड़ें तो उसमें क्या हर्ज है परंतु अपने चुनावी शहर से गहरे संबंध के जटिल प्रयास हास्यास्पद लगते है। यह सब नेताओं द्वारा ही क्षेत्रीयता का जुनून पैदा करने के कारण हुआ है। जवाहरलाल नेहरु तो कभी इलाहाबाद से नहीं लड़े। राजनीति हो या कोई अन्य क्षेत्र सस्ती आधारहीन लोकप्रियता का गुब्बारा ज्यादा समय नहीं उड़ता। यह जन्म स्थान पर लौटने की भावना के आधार पर बहुत साहित्य रचा गया है, बहुत फिल्में बनी हैं। यादों की डोर से बंधा आदमी जन्म स्थान की ओर खिंचा चला आता है। जन्म के समय की अम्लिकल कोर्ड (नाल) एक यथार्थ वस्तु है परंतु वहां लौटना एक भावना है। यह कितनी अजीब बात है कि कातिल भी एक बार अपने द्वारा कत्ल करने के स्थान पर लौटता है। क्या उसका अपराध बोध उसे वहां लाता है यह विकृत खुशी कि वह पकड़ा नहीं गया- इस खून की डोर का कोई संबंध अम्लिकल कोर्ड से नहीं है और जन्म स्थान पर लौटने की ललक से भी जुदा है परंतु दोनों बातों का वेग समान है।
जन्म स्थान से पलायन अवसर की तलाश में किया जाता और अनेक सामाजिक परिवर्तन पलायन के कारण होते है। रोजी रोटी देने वाले शहर या महानगर में मनुष्य अपने जन्म स्थान की यादों को संजो कर रखता है। हमारे सारे महानगरों में अनेक अंचल, और कस्बे धड़कते रहते हैं तथा पश्चिम के महानगरों की तरह विशुद्ध महानगर हमारे यहां नहीं है। इस विषय पर भी बहुत फिल्में बनी है। यही विचार विराट स्वरूप में इस तरह सामने आता है कि देश के भौगोलिक स्थानों से मनुष्य का आत्मीय तादात्मय आसानी से बनता है। हमारे लिए हिमालय सिर्फ पर्वत नहीं है, गंगा मात्र नदी नहीं है- ये सारे पर्वत, नदियां मनुष्य के हृदय के भूगोल में हमेशा, हर जगह मौजूद होते है। विदेशों में बसे भारतीय कभी अपने जन्म-स्थान को भूल नहीं पाते और जहाज के पंछी की तरह बार-बार लौटकर आते हैं। वहां उनके आलीशान घरों में आपको भारत की झलक देखने को मिल सकती है। चार्ली चैपलिन ने अपनी आत्म-कथा में लिखा है कि उनके दादा-परदादा भारत के खानाबदोश थे और यूरोप में उन्हें जिप्सी कहा जाने लगा। उनमें से कुछ लंदन आकर बसे। चैपलिन के ह्रदय में भारत के लिए भावुकता रही और अवसर मिलने पर वे महात्मा गांधी से भी जाकर मिले थे। आज आमिर जितने धन में अपने जन्म स्थान को संवारना चाहते है, उससे कम धन में उससे बेहतर जगह उन्हें कही और मिल सकती है परंतु एक भावना का मूल्य धन के मानदंड पर नहीं तोला जा सकता।