भी.सी. साहब की विरासत / एस. मनोज
भी. सी. साहब के दोनों पुत्रों ने बड़े ही राजशाही ढंग से उनका श्राद्ध करवाया। श्राद्ध के भोज-भात और दान-दक्षिणा का काम ऐसे संपन्न हुआ कि भी। सी. साहब के ज्ञान से ज़्यादा भोज-भात की चर्चा होने लगी।
पिता के श्राद्ध कर्म संपन्न करवा लेने के बाद दोनों भाई गाँव से विदा लेने के पूर्व अपने पिता के दोस्त अनिल बाबू से बात कर अपना पक्ष रख लेना चाहते थे, ताकि उनके चले जाने के बाद उनके पीछे किसी तरह की कोई बाकी-बकाया सम्बंधी बात गांव में चर्चा ना हो। इसलिए भी। सी. साहब के बड़े पुत्र राम कल्याण ने अनिल बाबू को फोन पर घर आने का आग्रह किया तो वे जल्द ही उनके घर तक पहुंच गए. वहाँ दोनों भाइयों शिव कल्याण, राम कल्याण और उसके पुत्र पिंटू ने पैर छूकर प्रणाम किया और बातचीत के लिए सभी कमरे में चले गये।
चर्चा प्रारंभ करते हुए राम कल्याण ने कहा-चचा, आप तो जानते ही हैं कि शिव कल्याण सिंगापुर जाएगा और मैं पुणे। पापा गांव में थे तो गांव के कनेक्शन था और जब पापा नहीं रहे तो कनेक्शन तो घट ही जाएगा।
अनिल बाबू ने पूछा-माँ कहाँ जाएंगी?
राम कल्याण ने जवाब दिया-माँ मेरे साथ ही रहेंगी। शिव के साथ झंझट बढ़ जाएगा। अब बुढ़ापे में फिर वीजा-पासपोर्ट बनवाना और अधिक झंझट बढ़ाना मैं उचित नहीं समझता। औऱ वहाँ तो शिव के अलावा माँ से बात भी करने वाला कोई नहीं मिलेगा। यहाँ तक कि शिव की पत्नी और बच्चे भी गांव की बोली न तो बोलते हैं और ना समझते हैं। मेरे साथ रहेंगी तो कम से कम भारतीय परिवेश तो रहेगा।
अनिल बाबू ने फिर पूछा-और यहाँ की सारी संपत्ति और उसकी देखभाल?
शिव कल्याण ने अपनी राय रखते हुए कहा-यह सब भी भैया की ही जिम्मेदारी रहेगी। ऐसे इस सबके लिए लोगों से बात हो गई है। जमीन-जथा ठेका पर दे दिया गया है। जो प्रत्येक वर्ष खेत से प्राप्त होने वाले अन्न को बेचकर राशि को माँ के अकाउंट में जमा कर दिया करेगा। जमीन के अलावा गाछी और घर मकान की भी देखरेख वही करेगा।
अनिल बाबू आश्वस्त होते हुए बोले-सब कुछ की योजना तो लगभग ठीक-ठाक ही बन गई है। फिर उन्होंने पूछा-अपने पिता की किताब और उनकी पांडुलिपियों का क्या करोगे?
शिव कल्याण ने कहा-क्या करेंगे, घर में ही है ऐसे ही रखा रहेगा।
अनिल बाबू ने पूछा-हाँ राम कल्याण?
राम कल्याण ने कहा-हाँ तो उसका क्या करेंगे?
अनिल बाबू के चेहरे पर चिंता के भाव उभर आए. उन्होंने कहा-उनमें तो तुम्हारे पिता की बहुत सारी प्रकाशित और अप्रकाशित रचनाएँ हैं।
राम कल्याण ने कहा-हाँ तो क्या? सारी किताबें सुरक्षित रखी रहेंगी। सारी किताबों को अलमीरा में रख दिया गया है।
अनिल बाबू ने फिर पूछा-और अप्रकाशित किताबें?
राम कल्याण इत्मिनान से कहते रहा-अप्रकाशित किताबें भी ठीक से रख दी गई हैं।
अनिल बाबू ने पूछा-उन किताबों को छपवाने की कोई योजना?
राम कल्याण ने कहा-नहीं। उन किताबों को छपवाने की कोई योजना नहीं है। किताबों को प्रकाशित करवाकर भी क्या करूंगा? जो किताबें पहले से प्रकाशित हैं, वे कचरे का ढेर बनी हुई हैं और कचरा क्यों इकट्ठा करें।
अनिल बाबू ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा-तुम्हारे पिता की किताबें कचरे की ढेर हैं।
शिव कल्याण ने दृढ़ता से कहा-और नहीं तो क्या? अब कौन पढ़ता है दर्शनशास्त्र और तर्कशास्त्र?
अनिल बाबू कुछ व्यग्र होते हुए बोले-उनकी तो हिन्दी और संस्कृत व्याकरण की भी किताबें हैं, जो छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी हैं।
शिव कल्याण ने कहा-लेकिन उन्हें पढ़ता कौन है? और यदि कोई पढ़ता भी है तो खरीद कर नहीं पढ़ता। फिर ऐसी स्थिति में उन पुस्तकों को छपवाने का क्या औचित्य? अब या तो लोग पढ़ते नहीं हैं या गूगल पर ही पढ़ लेते हैं।
अनिल बाबू ने कहा-मतलब भी। सी. साहब की सारी विरासत...
अनिल बाबू बोल ही रहे थे कि बीच में ही पिंटू बोल उठा-अब विरासत के अर्थ बदल गए बाबा। आने वाले समय में न तो हम उनके धन को ढो कर ले जा सकेंगे और न ही किताबों को।
अनिल बाबू उन तीनों का मुंह देखते ही रह गए. गंभीर चिंतन में डूबे हुए उन्होंने कहा-हजारों सालों से चली आ रही हमारी इस ज्ञान परंपरा का क्या होगा?