भूकंप / प्रभा खेतान
अचानक पंखा हिलने लगा। मगर मैं ने पंखा चलाया ही महीं था लेकिन यह पंखा गोलाकर घूमने के बदले घडी क़े पेंडुलम की भांति डिंग - डांग क्यों कर रहा है, क्या हुआ है इसे? और खिडक़ियां खडख़डा क्यों रही हैं? दरवाजे पर यह किसकी दस्तक? अरे मेरे पलंग को भी कोई झूला झुला रहा है। तब तक कमरे के दरवाजे पर बाबूलाल खडा था, वही आलसी स्वर, दीदी उठेंगे नहीं, भूकंप आया है। क्या? और मैं उठकर कमरे से बाहर, फ्लैट के दरवाजे से बाहर सीढियां इतरते हुए चीख रही थी भूकंप! हाय राम भूकंप! बाबूलाल ऊपर वाली सीढियों पर खडे ख़डे कह रहा था, घबराइये मत धरती मैया तो कभी कभी डोलती ही है इ जब सेस नाग करवट बदलते हैं ना तब ऐसे ही होता है।
'अरे नहीं मुझे नहीं मरना मैं सीढियां फर्लांग रही थी। मेरी आंखों के सामने छब्बीस जनवरी का गुजरात घूम रहा था। दूरदर्शन में क्या क्या नजारे नहीं दिखलाये गये। प्रकृति क्रूर हो चली है। बहुत क्रूर नैशनल ज्योग्राफिक चैनल में देखा नहीं इंडोनेशिया के जंगल में लगी हुई आग ओह इसे ही तो बडनावल कहते हैंचारों तरफ नारंगी आग की ऊंची ऊंची लहरें थीं। काली काली धुंए की लहरें और हेलीकॉप्टरों से आग बुझाने की कोशिश। कहीं तूफानी समंदर उछाल मारता है तो कहीं बाढ और महामारी का प्रकोप। प्रकृति की अपनी स्वभावगत विशेषताएं हैं। सृजन और विनाश का क्रम चलता रहता है और आदमी? वह पहले भी प्रकृति के हाथों का खिलौना था और आज भी है। जो मुट्ठी भर प्रगति उसने की भी तो उससे क्या हुआ? मारपीट, दंगा फसाद, बढता हुआ आतंकवाद, क्या इसे उपलब्धि मानें!
अब तक मैं नीचे पहुंच गयी थी। चार तल्ले नीचे उतरने में आखिर कितना वक्त लगता ? वहाँ लोग पहले से जमा थे मुझे निचली मंजिल में रहने वाली मिसेज क़ल्याणी, उनके दोनों लडक़े श्याम और श्रीराम तथा रामा उनका हाउस मैनेजर रमण भाई। कल्याणी से मेरी अच्छी दोस्ती है उसी से पता चलता है, सारे पड़ोसियों के बारे में। अब तक दूसरे माले के कोरियन दंपत्ति अपने दोनों बच्चों के साथ पहुंच गये थे और ग्राउण्ड फ्लोर के मिस्टर गुरुमूर्ति ने मुझसे कहा,”घबराइये नहीं, भूकंप रुक चुका है।”
मिस्टर गुरुमूर्ति , वे न्यूजर्सी में रहते हैं, कल रात आये हैं। यों नीचे उतरने में जितना बडा भूकंप हम लोगों ने मचाया उससे ज्यादा गहरा धक्का भूकंप का नहीं था। बाल्टी में रखे शांत जल को किसी ने हिला कर रख दिया था। आस पडौस के भी कुछ लोग सडक़ पर थे। रात के नौ बजे हैं। ऐसी कोई रात भी नहीं हुई। पर यह पॉश इलाका है। तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष इसी मुहल्ले में रहते हैं। उनका अल्सेशियन कुत्ता भौम्क रहा था।
“यहाँ चैन्नई में कभी भूकंप नहीं आता।”कल्याणी ने कहा।
“नहीं हमारे कोरिया में भूकंप के गहरे झटके लगते हैं।”मिस्टर लिन पा ने कहा, और उस बार तो हमारी पोस्टिंग सैनफ्रान्सिस्को में हुई थी।कोरियन दम्पत्ति से आज पहली बार बातचीत हो रही थी। कल्याणी का कहना है,”कोरियन लोग अपने आप में डूबे रहते हैं। किसी से बात नहीं करते किसी और जाति के लोग इनके घर नहीं आते।”मैं ने उनकी चार साल की बेटी को देखा वह माथे पर बेला का गजरा लगाये हुए थी और उसके गोल चेहरे पर चाइनीज क़ट के बाल और बालों की कुछ लटों को गुलाबी मेरून रंग से रंग दिया था। चलती - फिरती गोल मटोल चाइना डॉल देखकर मेरे मन होने लगी, बिलकुल आस्ट्रेलियन सेव है, मन किया काट खाऊं। आस्ट्रेलियन एक सेव दस रूपए में मिलता है। “आपकी बेटी हमेशा फूल लगाना पसन्द करती है”कल्याणी ने उसकी मां से कहा।
जिस दिन मैं पहले पहल इस मकान में रहने आई थी तो दोनों बच्चे अपनी आया के साथ मुझसे मिलने आए थे, घूमघाम कर उन्होंने फ्लैट देखा, फिर लडक़ी ने मेरी आया मंजुला से कहा,”भूख लगी है”
“क्या खाओगी? मैगी?”मैं ने पूछा था।
“नो नो इडली सांभर”दोनों बच्चे मेरे साथ खाने बैठे। मंजुला ने कहा यह सांभर इडली बहुत पसन्द करती है और उसके साथ चिकन मसाला दोसा।”
“तुम्हें कैसे मालूम?”
“मेरी बहन इनके यहाँ काम करती है ना।”
“अच्छा कितनी तनखा मिलती है?”
“ढाई हजार।”
“तुम्हें तो पन्द्रह सौ देती हूँ।”
“अपनी अपनी तकदीर है। कल्याणी मैडम तो सुन्दरी को छह सौ रूपए पकडा देती है। सुन्दरी चार घरों में जाती है तब कहीं हजार बारह सौ जुटते हैं।”
बच्चों से पहली मुलाकात वाली घटना मिसेज लिन पा को बताते हुए मैं हंस पड़ी थी। लेकिन मेरी बात पर विशेष ध्यान मिसेज लिन पा कहने लगीं,”प्र्रकृति कब बदला ले क्या मालूम? मुझे याद आता है जब हम सैनफ्रान्सिस्को में थे, जरा से भूकंप से सारे अमेरिकन ऐसे घबरा गये थे कि क्या बतायें पर जो अमेरिकन जापान रह आते हैं उन्हें भूकंप की आदत पड ज़ाती है। वे नहीं घबराते।”
“क्यों नहीं घबराते याद करो लोग कैसे दहल गये थे?”मिस्टर लिन पा ने बीच में कहा।
“नहीं, नहीं भूकंप से नहीं घबराये थे, भूकंप वाली घटना के चार महीने बाद जो बारिश आई समुद्री तूफान उठा।”
“हाँहाँ अब याद आया, ओ माय गॉड, उस दिन तो मानो आकाश से पानी की चादरें उतर रही थीं, पानी की दीवार सब कुछ डूब रहा था मैं घर पहुंचता इसके पहले तो गाडी सडक़ पर बह रही थी मैं उतर कर पठारी पर चढ ग़या, कमर तक ओह कैसा कीचड सना हुआ था। दो घंटे की बरसात में ऐसी हालत कि बस पूछो मत। किसी तरह ठेलते - ठेलत सडक़ किनारे के एक मकान तक पहुंचा। जोरों से दरवाजा पीटता रहा मगर जवाब नदारद अब क्या करुं? ऐसे कैसे किसी अनजान आदमी के घर में घुस जाऊं? लेकिन तब तक एक बुढिया ने दरवाजा खोला, अन्दर आ जाओ। बांई तरफ बाथरूम है और पिछवाडे चौका।तुम्हें तीन चार घण्टे रहना पड सकता है। ज्यादा शोर शराबा नहीं करना। मैं दिल की मरीज हूँ। और जानती हैं मुझे वहाँ पूरे सार दिन रहना पडा। शैरेन ने सोचा कि मैं जरूर मर मरा गया हूँ खैर किसी तरह पानी उतरा तो मैं घर जाने लायक हुआ।”
आफत विपद में आदमी सहज हो जाता है। पर आज तक ऊपर नीचे आते जाते हुए इन लोगों ने कभी मुझसे बात करने की कोशिश नहीं की, कल्याणी का कहना है ये कोरियन बडे स्नॉब हैं। हुंडई का सेल्स मैनेजर है। पर किसी से बात नहीं करता।
“क्यों नहीं हम लोग कुछ देर साथ बैठें?”मिस्टर लिन पा का सुझाव था।
मैं कुछ कहूँ इससे पहले मिस्टर गुरुमूर्ति ने कहा,”ओके नो प्रॉब्लम।क्यों आप लोग सब मेरे फ्लैट में चलें थोडी ग़पशप हो जायेगी यों भी बिजली चली गयी है। लिफ्ट तो चल नहीं रही। भूकंप के झटके तो निकल गये पर बादल घिर आए हैं। लगता है बारिश होगी।” हॉल में बेंत की कुर्सियां थीं, मेज पर उनके नौकर ने मोमबत्ती जलाई।कमरे की दीवारों पर हमारी छायाएं गुंथ गयीं। हॉल के एक किनारे लाइन से छोटे बडे बक्से रखे थे और उनके हैण्डलों से तरह तरह के एयरलाइन टैग झूल रहे थे।
“मैं अकेला ही आया हूँ। मुझे म्यूजिक़ का बहुत शौक है। कर्नाटक संगीत के बिना कान सूखने लगते हैं आह! या रस है। मैं और मेरी दो बहनें ये सामने वाले तीनों मकान हम तीन भाई बहनों के लिये अप्पा ने बनवाये थे, पर अप्पा का सपना कहाँ पूरा हुआ, इस चैन्नई में तो कोई रहना ही नहीं चाहता। मैं न्यूजर्सी में रहता हूँ, बडी बहन सिंगापुर और छोटी टोरेन्टो रहती है। तीनों मकानों को किराये पर उठा दिया है।”
“शायद कभी लौटना हो।”कल्याणी का स्नेहासिक्त स्वर उन्हें आश्वस्त नहीं कर पाया।
“इल्ले वैन्डा, नहीं कोई नहीं आयेगा, मैं तो अब अमेरिकन हूँ। जिसकी अपनी अहमियत है। मैं घमण्ड नहीं कर रहा पर ग्यारह सितम्बर के बाद तो अमेरिका की अलगाववादी नीति के कारण कौन जाने कब किसे खामियाजा भुगतना पडे। बडी वाली ने तो सिंगापुर के चाईनीज से शादी की है और बिलकुल चाइनीज हो गई है। उसके दोनों बेटे चैन्नई में आने से रहे।”
“और छोटी वह अकेली है। अपनी बहनके पास रहेगी। यहाँ नहीं आयेगी अप्पा हम लोगों से कहते ही रह गये वापस आ जाओ, अपना देश अपना ही रहेगा ।”मिस्टर गुरुमूर्ति की आंखें थोडी असहाय लगीं आवाज क़ा गीलापन छुपा न था।”पर मैं आ न सका अप्पा को ही अपने पास बुलाता रह गया, पर अप्पा, ओल्ड फैशन्ड राष्ट्रवादी। गांधी के परमभक्त। उन्हें दुनिया का सबसे बडा स्वर्ग अपना चैन्नई लगता था। हर शाम अपने दोस्तों के साथ संगीत सभा लगाते कोई कंगाली तो थी नहीं, तन्जौर में पांच सौ एकड क़ी खेती, मैं उन्हें क्या पैसे भेजता, बाद के दिनों खेती की सारी जमीनें बेचकर रुपया उन्होंने हम तीनों भाई बहनों में बांट दिया। पर अप्पा का एक बात का आग्रह था,”गुरु इस शहर में संगीत सुनने जरूर आना।”
बारिश शुरु हो गयी थी सरवणा का नौकर कॉफी बनाकर ले आया था।
“मिस्टर गुरुमूर्ति और आप सब कितनी अच्छी अंग्रेजी बोल लेते हो।मुझे तो आप लोग जैसा होना है। मैं अपनी अंग्रेजी सुधारना चाहती हूँ।”मिसेज लिन पा ने कहा।
“आप तो अच्छी अंग्रेजी बोल रही हैं।”मैं ने कहा।
“और एक दिन की घटना, दुकान पर लगे साइनबोर्ड को पढक़र कुछ समझ नहीं पा रही थी, लिखा था,”चिल्ड्रेन कट पीसेज अवेलेबल”यानि बच्चों के कटपीस, बच्चो के टुकडे नहीं नहीं बच्चों की पोशाक बनाये जा सके ऐसे कपडों के छोटे छोटे टुकडे ज़िसे अंग्रेजी में कटपीस कहते हैं। नहीं मैं कल्याणी जैसे अंग्रेजी बोलना चाहती हूँ। यहाँ वाला एक्सेन्ट। यहाँ के लोगों का एक्सेन्ट”
हाय अम्मा, क्या कहूँ अब? भाषा की इतनी विकट समस्या तो हिन्दुस्तान में और कहीं नहीं जितनी यहाँ पर है। अभी उसी दिन मिस्टर चन्द्रन कहने लगा,”मैडम अमेरिकन्स आर बेरी चिल्ली। चिल्ली यानी मेरी आंखों में प्रश्न था, फ्रिडमैन मैडम, ऑवर बाइयर इस वेरी चिल्ली, नो फिलिंग
“ओह! होंठों से हंसी फिसलते हुए बची आंखों के सामने चैन्नई शहर की चाय - कॉफी की दुकानें घूम गयीं। लिखा रहता है,”कूल बार, हॉट एण्ड चिल्ल। यानी ठण्डा गरम दोनों। हॉट के माने हॉट कॉफी चिल्ल के माने चिल्ली कोकाकोला। कल्याणी ने ढाढस बंधाया।
' मिसेज लिन पा, आप चेष्टा कीजिये बिल्कुल हमलोगों वाली अंग्रेजी बोलने लगेंगी।
मैं चौंक कर मुस्कुरा उठी। तमिल तो बिलकुल समझ नहीं पाती, कोरियन दंपत्ति कह रहे थे। हम तो अभी और चार साल यहाँ रहेंगे।फैक्ट्री की परेशानियों के चलते मुझे भी न मालूम कितने दिन रहना पडे। क़लकत्ता बहुत याद आता है। सारी दुनिया घूमती रहती हूँ पर लौट कर कलकत्ता। कोलकाता पहुंचते ही अपने डैनों को समेट लेती हूँ, कुछ नहीं, कोलकाता जैसा आराम कहीं नहीं। मरा हुआ शहर है, बेकार होते हुए लोग हैं। पच्चीस साल से मार्क्सवाद, क्रान्ति के तमाम आश्वासनों को झुठलाता हुआ। कुंडली मारे बैठा हुआ है बिलकुल निश्चल। फिर भी मेरा कोलकाता भालो आछे। “आप लोगों को यहाँ रहने में कोई परेशानी नहीं होती मिसेज लिन पा?”
“हम तो इसी तरह सिंगापुर, टोकियो, सॉन फ्रान्सिस्को में भी रहते थे।”
पर आपका देश कोरिया, आपको अपने देश की याद तो आती होगी।”
“नहीं ऐसे है एक देश से दूसरे देश बदलतो रहे हैं। बहुनिगम कंपनियों की ट्रेनिंग ही ऐसी होती है। जहाँ रहो वहाँ के होकर रहो।”
“और इसके बाद?”मैं बार बार उनके मुंह से कोरिया सुनना चाहती थी।
“जहाँ हमारे बच्चे रहेंगे। खासकर हमारी बेटी वैसे भी हम अमेरिकन नागरिक होना चाहेंगे।”
बारिश थम गई थी और बिजली लौट आई थी, बच्चे ऊपर अपने फ्लैट में चले गये थे।
बडी अच्छी कहानी है, बाढ - भूकंप, बडनावल और प्रवासन की।देशनिकाला भोगते और घरविहीन एवं यात्रा केवल यात्रा ये शब्द पुराने पड चुके हैं, कम से कम इन शब्दों का संदर्भ आदमी है। इनके उच्चारण से आदमी का बोध होता है। पर यह आज की कहानी है - भारतीय चेहरा, अंग्रेजी उच्चारण और न्यूजर्सी के वासी। तमिल - अमेरिकन हैं। पडौसी के रूप में कल्याणी मुरली जो इकतीस की कमउम्र में विधवा हो गयी। चैन्नई शहर से बाहर कभी नहीं गई। जिसकी अपनी अकेली दुनिया है। बेटे को अमेरिका पढने भेजा है और कोरियन दंपत्ति पहली बार भारत आये हैं, विशेषरूप से तमिल लोगों की तरह अंग्रेजी बोलना चाहते हैं। मैं कलकत्ते से आई हूँ, कोलकाता लौटना चाहती हूँ, भाषा की जितनी बडी समस्या यहाँ होती है अमेरिका इंग्लैण्ड में नहीं, एशिया में नहीं 'नो हिन्दी मैडम। इंग्लिश। खाक इंग्लिश जानते हैं ये। अंग्रेजी के दो शब्द सीखते हैं तो हिन्दी क्यों नहीं सीख लेते। क्या ये लोग टीवी और सिनेमा नहीं देखते? पर मैं ही क्यों नहीं तमिल सीखना चाहती?क्या यह मेरा देश नहीं, इडली साम्भर मुझे पसन्द नहीं? बहुत पसन्द है।
आज के आदमी को दो तरह की सीमाओं को पार करने का अनुभव है।एक उत्तर आधुनिक और दूसरी तकनीक के वायरस का लेकिन देस उतना ही प्राचीन जितनी कि तमिल भाषा संस्कृति। आर्यों से भी पहले ये थे, रावण के वंसज। इनसे राम जी की सेना को डर नहीं लगता।दुनिया का एक और सच है, आज दुनिया में पुराना और नया हर पल, हर क्षण एक दूसरे का सामना करते रहते हैं। ऐसा सामना, ऐसी मुठभेड पहले नहीं हुआ करती थी। दो भिन्न दुनिया एक दूसरे से टकराती हुई फिर - फिर छिटकती हुई हवाओं के साथ चिंदी - चिंदी उडती हुई।
यह शताब्दी तो बस अभी अभी खत्म हुई है। हम सभी जानते हैं, एक गतिशील शताब्दी अपने साथ हवाईजहाजो को उडाती हुई टेलीफोन का सपंर्क और इलेक्ट्रिक बिजली से चलने वाले नये नये खिलौने, कैलक्यूलेटर, कंप्यूटर, लेसर कार्डलैस फोन, बडे बडे धाकड पुरुषों को जब मैं खिलौनों से खेलते देखती हूँ तो हंसी आ जाती है। आदमी खेलता है। सारी दुनिया में डोलता है अपने ही बनाये हुए खिलौनों की तोकरी लिये। संयुक्त राष्ट्र की 1996 में हुई हैबिटेट की कान्फ्रेन्स में सेक्रेटरी जनरल का कहना था, इतिहास में इससे बडा स्थानान्तरण कभी हुआ नहीं। मानो झुण्ड के झुण्ड लोगों को धरती एक कोने से दूसरे कोने तक फेंकती जा रही हो। देखने में जितना आकर्षक लगता है, सोचने में उतना त्रासद। शरणार्थी कैम्पों की संख्या बढती जा रही है। मध्य यूरोप के शरणार्थ्ाियों की संख्या बर्लिन और वियेना की जनसंख्या से अधिक है। ज्यादातर लोगों के लिये दुनिया एक डायस्पोरा बन गई है।इन्सान के नये नये रूप। गैस्टरबियेटर्स ताउम्र नावों में रहने वाले लोग।क्योंकि किसी देश की जमीन पर वे लोग पांव नहीं रख सकते।ऑकलैण्ड में रवाण्डा के हैं लोग और आइसलैण्ड में मोरोक्कन रहते हैं।देखने में मेलबॉर्न बिलकुल ह्यूस्टन जैसा लगने लगा है। ढेर के ढेर वियतनामी कैफे, जिसे ' फो - कैफे कहा जाता है। और कंप्यूटर का जमावडा हमें विश्वास दिलाता है कि दुनिया का कोई कोना एक दूसरे से दूर नहीं। बस बटन दबाने की देर है। सब जगह सब कुछ मिलता है।कमोबेसी हर रूप में। अभी दस दिन पहले विदेश गई थी सैनफ्रान्सिस्को के चाइना टाउन में। मैं एक व्यापारी से बातें कर रही थी, उसका नाम श्रीधर कुलकर्णी यानि महाराष्ट्रीयन था। कलकत्ता में जन्मा, मैक्सिको में रहने लगा। और फिलहाल चीन और भारत के निर्यात उद्योग की तुलना कर रहा था। बस अभी अभी उसकी पहचान की एक आइरिश औरत मिल गई है। कब से परिचय है?
जब मैं इंगलैण्ड में पढ रहा था, इसका भाई मेरा दोस्त था। श्रीधर कॉफी नहीं पीता। आजकल चायबागानों में कस कर घाटा लग रहा है।खासकर दार्जीलिंग के बगीचों में।
क्यों?”
क्योंकि पहले कीनिया में गृहयुध्द चल रहा था और अब वहाँ सांति है।श्रीलंका में शांति है और जब शांति कायम होती है ना तब असली व्यापारिक प्रतियोगिता का सामना करना पडता है। भारत इतनी सस्ती चाय उगा नहीं सकता। ऐसा बहुत कुछ है जो भारत नहीं कर सकता।
श्रीधर आपको भारतीयता की सबसे विसिय्ट पहचान क्या लगती है?
“एक दूसरे को अपने से हीन मानना। लौटकर अपने होटल की सीढियां चढते हुए रिसेप्शन पर बैठी हुई महिला फोन पर गुजराती में बातें कर रही थी। लेकिन शक्ल और पोषाक, खैर पोषाक तो यहाँ सभी की एक सी है, मैं ने चाभी के लिये हाथ बढाते हुए पूछा, गुजराती?
हाँ
गुजरात के किस हिस्से से? जिस समय वहाँ भूकंप हुआ, क्या आप वहाँ थीं?
मैं यहाँ थी अमेरिका में।
पर आप गुजरात तो गई होंगी अब तक मुझे अनुमान हो चुका था कि वह अमेरिकन गुजराती है। अं हाँ उसने सर झटकते हुए कहा नहीं नहीं। हम चार पीढी से अहमदाबाद नहीं गये। पहले नैरोबी में रहते थे, हमारा छोटा सा होटल हुआ करता था। एक दिन पापा को काले लोगों ने मार डाला। मम्मी हम बच्चों को लेकर यहाँ आ गईं।
आपका कभी गुजरात जाने का मन नहीं करता?
क्यों नहीं, कभी जाऊंगी, मेरी बडी दादी ने सती देवी की मन्नत रखी थी, पर वह पूरी नहीं हुई। अब तक हमारे परिवार में कोई सती देवी के दर्शन करने वहाँ नहीं जा सका। मेरी दादी विधवा हो गई थी, मेरी मां, बुआ भी कम उम्र मेंविधवा हो गई, घर में कोई सुहाग ही नहीं बचता है। जब तक सती देवी के दर्शन हम नहीं कर लेते यह सब तो घटेगा ही।
आप मानती हैं इन सब बातों को? उसने कंधे उचका दिये। बडी सोफियाना औरत है। पर फिर भी गुजराती, भारतीयमेरे देश की
तब क्या सती देवी में आपकी श्रध्दा है?
गलत मत समझियेगा, कुलदेवी का तो दर्शन करना चाहिये ना? वैसे मुझे अफ्रीका की बेहद याद आती है। बस अलसाई सी दुपहरिया होती थी, सब कुछ कितना फैला हुआ शांत। हिन्दुस्तान ओह नो। वहाँ तो मैं कभी गई ही नहीं। वैसे मैं कहीं भी रहूँ पेरिस, न्यूयार्क, सैनफ्रान्सिस्को मेरी मां मुझे फोन करती है।
मां कहाँ रहती हैं? नैरोबी में?”
“नहीं लंदन में। पापा के मरने के बाद उन्होंने दूसरी शादी कर ली।इसीलिये तो देवी की पूजा करने मुझे जाना होगा। यह देखो मेरा लॉकेट दादी ने मुझे दिया था। लॉकेट पर सतिया बना हुआ था, नीले रंग की मीनाकारी पर लाल रंग में। श्रीधर कुलकर्णी से मैं ने पूछा था, आप सपने में कोलकाता नहीं देखते? मैं तो चैन्नई में कभी पार्कस्ट्रीट, कभी लेक कभी गंगा का किनारा देखती रहती हूँ। मुट्ठी भर बादाम मुंह में ठूंसते हुए उसने कहा, मैं तीन तरह के सपने देखता हूँ, मेक्सिकन, अमेरिकन और हिन्दुस्तानी। हिन्दुस्तानी सपने का रंग सफेद काला होता है। सॉरी हिन्दुस्तान का कोई कलर अब याद नहीं रह गया। हिन्दुस्तान के बारे में सारे सपने भी धूसर हो गये हैं।
श्रीधर की दुखती रग मैं जानती हूँ। मैं खामोश सुनती रही थी। सबसे आश्चर्य तो मुझे अपने आप पर होता है। क्योंकि अब कोई बात कोई किस्सा मुझे आश्चर्यचकित नहीं करता। कल तक जो कुछ चौंकाया कराता था आज वह स्वीकृत है। क्या इसी को साक्षी होना कहते हैं?
दुनिया में घूमते हुए सैंतीस वर्ष हो गये, पर ये नये मिश्रण अब तैयार हुए हैं। बाईस की उम्र से दुनिया घूमने निकली थी। राउंड द वर्ल्ड की टिकट पर। कुल पांच हजार रूपए लगे थे और एक्सचेंज के नाम पर पर्स में दस डॉलर थे। हाँगकांग, टोकियो, हवाई द्वीप, लॉस एंजेल्स, सेंट लुइस, न्यूयार्क, लन्दन स्विट्जरलैण्ड। कहाँ कहाँ नहीं उडती फिरी थी।रात साढे दस बजे फ्लाइट टोकियो उतरा था। एयरपोर्ट पर मुझे लेने डॉक्टर मोमोसे आए मुझे देख कर उन्होंने कहा था, सो यंग एण्ड ऑल अलोन। कितना कुछ बदल गया। एडवर्ड सईद निष्कासन पर चिंतन करते हैं। उनसे पहले होमर और दांते ने आदमी के निष्कासन पर चिंता की थी। बनवास तो राजा राम को भी मिला था और पांडवों को भी, कोई नई बात नहीं। नया कुछ भी नहीं। पर जो घट रहा है, जिस त्वरित गति से दुनिया बदल रही है उससे आश्चर्य जरूर होता है।भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने आत्मा का वर्णन करते हुए अर्जुन से कहा था, कोई इसे आश्चर्यचकित हो देखता है, तो कोई इसका आश्चर्यवत् वर्णन करता है। कोई कोई इसका श्रवण करता है। और बहुतेरे ऐसे हैं जो श्रवण करने पर भी इसे नहीं जानते।( गीता का श्लोक द्वितीय अध्याय) क्या है यह भूमंडलीय आत्मा?
बचपन का खेल याद आ गया। दोनों हाथ फैलाये गोल गोल वर्तुल घूमती रहती थी, घूमती रहती थी जब तक सिर न चकरा जाये और धडाम से बैठ न जाऊं या छिटक कर गिर न पडूं। ऌस युग के दो महान इंजन हैं। तकनीक का निरंतर अन्वेषण और उसका बनाने, खरीदने -बेचने का उद्योग। उद्योग को असीम ऊर्जा चाहिये। दोनों एक दूसरे को संपोषित करते रहते हैं। मशीनों के लिये अधिक से अधिक गति अपने आप में उद्देश्य बन गया है और गति की अदम्य वासना।तेज और तेज ग़ति के लिये तकनीक की जरूरत। हर जगह इसका प्रभाव नजर आता है। हर मिनट, एक से डेढ मिलियन यानी पन्द्रह लाख डॉलरों का विनिमय होता है और हर साल सिलिकन चिप्स का उत्पादन डबल हो रहा है। दुनिया में छाई हुई मंदी का एक महत्वपुर्ण कारण यही है। चीजों का उत्पादन अधिक से अधिक उत्पादन और दाम का कमतर होते जाना। स्मृतियों पर निरंतर सूचनाओं का दबाव बढता जा रहा है। कभी लगता है मानो धरती बस अभी अभी अपनी नई नवेली मर्सीडीज पर सैर को निकली है - प्रति घण्टे नब्बे मील की रफ्तार से घुमावदार रास्ते पर, कभी ऊप्र कभी नीचे जाती हुई।इलेक्ट्रानिक कॉटेज की कल्पना करते हुए मार्शल मैकलुहान ने कहा था, तुम बडी ज़ल्दी गलत ठिकाने पर पहुंच जाते हो।
दो हजार साल की आखिरी शाम को मेरे घर पार्टी थी। मेरी बहन गीता खास इस दिन के लिये मान्ट्रियल से आई थी। मेरा बेटा संदीप मेरे पास था और मेरे पैरों की टूटी हड्डियों पर प्लास्टर चिपका हुआ था, डॉक्टरों को आशा नहीं थी कि मैं पहले जैसा चल पाऊंगी। खैर चल तो रही हूँ।पर उस साल मुझे दाबोस जाना था, स्टॉल केमिकल कंपनी वालों ने मीटींग रखी थी, हर साल डाबोस में यह मीटींग होती है। इस बार मुझे भी मौका मिला था। सारी दुनिया के अर्थशास्त्री, नेता, व्यापारी यहाँ जमा होते हैं विली वास्कोविच ने मुझसे कहा था कि वह जरूर मुझे ले जायेगा। पैरों की चोट की वजह से मैं जा नहीं सकी थी। विली फोन पर घंटे भर तक बातें करता रहा।बताता रहा यहाँ बर्फ पड रही है। चारों तरफ की सफेदी में क्रिसमस ट्री पर जगमगाती हुई बत्तियां गजब लग रही हैं। मैं ने पूछा, क्या इसी पहाडी ग़ांव में थॉमस मैन का दफनाया गया था?
विली को मेरे साहित्यिक प्रश्नों से बडी क़ोफ्त होती है। स्वर में छिपी बौखलाहट मुझ तक तैर आई थी, मालूम नहीं मैं पूछकर बताउंगा, पर फिलहाल यहाँ ढेरों लोग आये हैं। बडे - बडे उद्योगपति, कारपोरेट जायंट, राजनेता
यदि भूमण्डलीकरण का कोई फार्मल कॉरपोरेट चेहरा देखना है तो यहाँ आना चाहिये।
हाँ सोचा तो था, लेकिन मेरी तकदीर बिस्तर पर पड़ी हूँ।
लोग चर्चा कर रहे हैं, एक जिम्मेवार भूमंडलीकरण की हमें भूमण्डलीय कैलेण्डर मिले हैं। जिस पर एक साथ कराची, रियो और सिडनी की तारीखें समय अंकित हैं।
सुबह से क्या किया?
भगवतगीता के प्रथम अध्याय में अंधा धृतराष्ट्र पूछता है, हे संजय, मुझसे कहो वहाँ युध्द क्षेत्र में कौन कौन महारथी आए हैं?
महाराज मैं यहाँ बिलगेट, वारेन बियेटी, यासेर अराफात को एक संकरी पगडंडी पर संभल संभल कर चलते देख रहा हूँ। अर्जुन के कहने पर महाराज श्रीकृष्ण ने रथ को युध्द के बीचों बीच ले जाकर खडा कर दिया।
किस बात पर चर्चा हो रही है महाराज?
ओपनिंग सेसन में जैट लैग के नुकसान की चर्चा हुई। जैट लैग के कारण पांच सौ ऊंघते हुए श्रोताओं से एक वैज्ञानिक कह रहा था कि इन जेट यात्राओं का सबसे बडा नुकसान होता है कि आदमी की धारणा शक्ति पांच सौ पतिशत कम हो जाती है।
अच्छा ही है तब तो यहाँ होने वाली चर्चा परिचर्चा पर लोग ध्यान नहीं दे पायेंगे।
तुम और क्या देख रहे हो संजय! कौन सा नया महाभारत? मुझे बताओ, मैं अंधा धृतराष्ट्र उस युध्दक्षेत्र में जाने के काबिल नहीं।
और मैं देख रहा हूँ किसी ने बर्फ की एक विशालकाय कोकाकोला की बोतल निर्मित की है उस पर लाल चमकदार रंग की टोपी लगा दी है।
मैं फिर पूछती हूँ, विली तुम सब कितने विदेशी वहाँ जमा हुए हो?
विदेशी? प्रभा इस सब्द को भूल जाओ, बहुनिगमिय कंपनी के लिये यह एक वर्जित शब्द है हम बार बार कहते हैं। सबसे कहते हैं और अपने आप से भी कहते हैं। दुनियाभर से कहते हैं। हम सब मनुष्य एक हैं। हम जातिवाद को नहीं मानते। वह आज नहीं तो कल एक उपभोक्ता, एक संभावित खरीदार है। तुमको पता है प्रभा?
क्या?
मेरी पत्नी।
कौनसी वाली पहली या दूसरी या तीसरी?
मजाक छोडो। हाँ तो मैं रोजेट के बारे में कह रहा था जो कि सीएनएन में है, किसी ब्रॉडकास्ट में वह विदेशी शब्द का उच्चारण नहीं करती।यह शब्द ही हमारे लिये वर्जित है। आई बी एम का एकमात्र उद्देश्य है जहाँ रहो वहाँ के होकर रहो। बिलकुल स्थानीय।
हाँ हाँ यह शब्द फॉरेन आजकल बडा फॉरेन लगता है। शायद विली वास्कोविच को मेरा मजाक समझ में नहीं आया, बडी संजीदगी से उसने कहा, मैं सुबह का इंतजार कर रहा हूँ तुम्हारे यहाँ तो बस अभी अभी शाम ढली होगी
तो डाबोस का संदेश क्या है?
ध्यान से सुनो भूमण्डलवाद के अनुसार यह दुनिया बस एक बाजार है, फकत बाजार।
लेकिन इसके बावजूद अखबारों में फोरम की रिर्पोट छपी थी 1999 की- यह दुनिया छोटी है, सुन्दर है और बडी चंचल। अस्थिर, क्षणभंगुर, नाशवान। धरती के किसी एक कोने में आग लगती है तो दूसरे कोने में रहने वालों का धुंआ से दम घुटने लगता है। बारिश का पानी बाढ क़ा रूप ले लेता है। किसी की प्यास नहीं बुझाता। यदि बडनावल है तो महीनों जलता रहेगा। इस पर रोटी नहीं सेंकी जा सकती। अमेरिका के उपराष्ट्रपति अल गोर संबन्धित होने के इस अवबोध को विज़डम कहते हैं। उन्होंने ही कहा था कि किसी भी अग्निदाह को नियंत्रित करने में अमेरिका समर्थ है लेकिन 1999 तक ग्यारह सितम्बर का अग्निकांड नहीं घटा था। पर उस दिन अमेरीका महान अमेरीका कितना कमजोरलगा था। हम सब तुम्हारे साथ हैं अमेरिका, अमीर और गरीब राष्ट्र।दुख में सुख में। हम अधिक से अधिक एक दूसरे की मदद करेंगे। जॉन मेजर के साथ तीसरी दुनिया ने ताल ठोंकी थी।
हाँ इसी तरह 1999 की आखिरी साम बीत गई। शताब्दी खत्म होने पर ऐसा कोई नया अहसास नहीं हुआ बस हमलोगों ने ठूंस ठूंसकर खाया।खूब वाइन पी और देर रात गये दोस्तों के साथ पुरानी दुनिया के सपने देखते रहे। दूसरे ही दिन नये साल की शुभकामना के लिये मैं ने ही विली वास्कोविच को फोन किया। बेचारे ने तुरंत कहा, तुम फोन के पास रहो, मैं दस मिनट में वापस फोन कर रहा हूँ। मजेदार खबर है।मन किया कि विली से कहूँ इस कृष्ण अर्जुन संवाद के संदर्भ सच को कहूँ। पर चुप लगा गई। थोडी देर बाद विली वापस फोन पर था। मीटिंग अच्छी ही रही। हमने सुबह स्कीईंग की।
इस मीटिंग में जरूर एक कोने से मन में आवाज उठी होगी - होली मुबारक। अपनी स्पष्ट अंग्रेजी में बोला होगा, हमने लगी हुई आग तो बुझा दी है पर हमें मालूम नहीं कि फिर से घर कैसे बनाया जाये।कोफी अन्नान ने कहा होगा, इस धरती की एक चौथाई जनसंख्या अब भी भूखी है। और उनके किसी साथ ने स्वर मिलाया होगा, शतियुध्द के बाद एक चौथाई जनसंख्या पहले से ज्यादा गरीब है। यानी दुनिया में गरीबी बढी है।
क्यों अब बर्लिन की दीवारें टूट गयीं, सोवियत संघ का विघटन हो गया तो इस नये शीतयुध्द की जरूरत? अमेरिका को खुद अपने आप से ही डर लगता है?
नेल्सन मंडेला ने नई दुनिया के द्वारपालों से पूछा होगा, क्या बूमन्डलवाद केवल शक्तिशाली राष्ट्रों का स्वार्थ पूरा करेगा? गरीबी से उत्पीडित स्त्री बच्चों को आप कौनसा भविष्य देंगे? दुनिया के मंच पर आपस में कानाफूसी हो रही है। सभी चिंतित हैं। हालांकि भूमण्डलीय आदमी भी केवल रोटी के लिये जिन्दा नहीं रह सकता। कोई तो वैश्विक सार्विक मूल्य उसे चाहिये। ये मूल्य डालरों और पाउण्डों पर नहीं लिखे जा सकते। ये मूल्य हवाई उडानों की सस्ती मंहगी टिकटों पर नत्थी नहीं किये जा सकते। और यह भूमण्डलीय चहल पहल, आपाधापी किसी एकल मानवीय मूल्य को संस्थापित करने में असमर्थ है। मगर क्यों?आखिर क्यों अपनी अपनी पहचान के साथ भी हम एक दूसरे से जुड नहीं सकते?
यह सवाल मेरे कानों में भी फुसफुसाता रहा है। दुनिया के जिस कोने में मैं गई हूँ और जिससे भी मैं मिली हूँ। हर स्त्री हर पुरुष के पांच ज्ञानेन्द्रिय पांच कर्मेन्द्रिय तो है, वह एक दिन जन्म लेता है और फिर एक दिन मर जाता है। दुनिया इन्हीं से बनी है। पूरी की पूरी समग्र दुनिया, तब फिर यह समूचापन, समूची दुनिया अमूर्त कैसे हुई? क्या आलोचनात्मक रूप से किसी समग्र को स्थापित नहीं किया जा सकता जो कि इस धरती की समग्र शक्ति के समरूपता के साथ धडक़ता हो।सांस लेता हो। कहते हैं कि किसी वैज्ञानिक ने एक विशालकाय कंप्यूटर का निर्माण किया है जिसे वह मिलेनियम की घडी क़हता है - और प्रत्येक एक हजार साल बाद यह घडी बजेगी और दुनिया को हजार साल बीतने की सूचना देगी। यह घडी हमें जिन्दगी की धीमी गति की याद दिलायेगी। हमें समझायेगी कि हम कितना भी तेज दौडें पर समय की अपनी गति है। समय इतनी जल्दी नहीं बदलता। समय को बदलने में हजार साल लगते हैं कि हमें उस आने वाली पीढी क़ी प्रतीक्षा करनी होगी जो न केवल उच्च तकनीक की चर्चा करेगी बल्कि जिन्दा रहने की तदबीर की भी चेष्टा करेगी। सशक्त तकनीक में केवल वह चीज होती है, जबकि तदबीर से हम स्वयं होते हैं।
विली का दूसरे दिन वापस फोन फिर नहीं आया। अंधे धृतराष्ट्र को महाभारत के चुनिंदा दृश्य बताकर उसने अपना फर्ज अदा कर दिया।जो नहीं कहा। वह भी समझ में आ गया। समझ में आया कि दुनिया केवल वस्तु और डाटा का ही आयात -
निर्यात नहीं कर रही बल्कि बहुत बडी संख्या में मनुष्य का भी आयात - निर्यात हो रहा ही और उन आदमियों से कहा जा रहा है भूमंडलीय मंच पर अपने भूमण्डलीय मानस की पर्तें उधेडाे। मानस की पर्तें उधेडते हुए हम कह नहीं पाते कि इन सारे
सार्वजनिक संयुक्त उद्यम को एन्रॉन कंपनी के पीछे व्यक्तिगत साझापरस्ती का सिलसिला है। लाभ हानि का लेन देन है। और कभी कभी बिना कहे भी ये बहुत कुछ कहते हैं। खाली हमारे देश में भ्रष्टाचार नहीं। अमेरिका में भी भ्रष्टाचार है। मिलियन - बिलियन डॉलर की दवा कंपनियां केवल महंगी दवाओं को इजाद करती हैं। गरीब के लिये अब भी उसका अल्लाह है, राम, यीशू, यहोबा है। बस कोई है।कहीं बैठा है किसी के लिये कुछ करता हुआ। तुम उसे चाहे जिस नाम से पुकारो। और फिर शरणार्थियों का जत्था है। झंझरी होती हुई भूगोल की सीमाएं हैं और शायद इसी कारन यहाँ और वहाँ का विभाजन, व्यक्तिगत और सार्वजनिक भेद रेखाएं टूट रही हैं, मिट रही हैं। कभी खुद ब खुद टूटती हैं तो कभी संगीन की नोक पर मिटाई जा रही है।कभी खुले बाजार के लिये तो कभी नये स्पेस की सुविधा के लिये नई रेखाएं बन भी रही हैं तो एक इसी भूमण्डल पर न जाने कितने सद्दाम और कितने बिन लादेन जन्म ले रहे हैं। और विडम्बना तो यह हैकेवल एक क्षण में दुनिया दो विरोधी देशों में गतिशील है, ( राष्ट्र छोटे राज्यों में टूट रहे हैं और बहुराष्ट्रीय निगम कंपनियां अधिक से अधिक महाद्वीपों की सवारी गांठ रही हैं।) यह मेरी जिन्दगी का सच भी हो गया है। टेलीफोन पर मैं विली वास्कोविच(नीदरलैण्ड), जूडी रोथवेल(लन्दन) गीता गुप्ता( मान्ट्रियल) से घण्टों बतियाती हूँ। क्योंकि दूरगामी संचार बडा सस्ता हो गया है। उनके पास छुट्टियां बिताती हूँ, वे क्रिसमस, दिवाली बिताने कलकत्ता आते हैं। पर अपने पडाेसियों से अपने शहर में मेरा संपर्क मेरा संवाद निरंतर कम होता जा रहा है।
'दुनिया बहुत पास आ गई है और पडौसी दूर। कल्याणी कहा करती है। नहीं कहीं कोई विभाजन स्थायी नहीं। बाहर का आकाश मेरे कमरे का आकाश एक ही तो है। घट के भीतर घट के बाहर का आकाश एक ही तो है। हिन्दू दर्शन में किसने कहा था याद नहीं आता ब्रह्म और जीव दोनों का आकाश एक है। ओह अब याद आया अद्वैतवादियों के अनुसार, ब्रह्म: सत्यम् जगत: मिथ्याम् यानी सबकुछ माया है। भेदक रेखा कुछ भी नहीं बस एक माया है। माया महाठगिनी हमजानी। बेचारे कबीर दास।
गुरुराजगोपालाचारी भूगोल की रेखाओं को नहीं स्वीकारते। बहुतेरे लोग नहीं मानते पर नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को डाबोस वाली मीटींग के प्रसंग में शायद ज्यूरिख एयरपोर्ट पर डेढ घंटा रुकना पडा था। उनके भारतीय पासपोर्ट पर स्विस वीसा था। मुहर जो नहीं लगा था।
एक बार लन्दन से लौटते हुए प्लेन में मेरे पास एक बडा व्यापारी बैठा था। खुले बाजार और यूरो डॉलर पर अच्छी खासी बातचीत हो रही थी।परिवर्तन के उमडते हुए इस महासागर में कपिल मुनि का सागर मेला लगा हुआ था। बालू पर नंगे पांव चलते हुए कदमों के बनते मिटते निशान, न जाने कितने अनाम चरण चिन्ह, या फिर एक बडा प्राचीन बौध्दविहार, उसकी घिसी हुइ पथरीली सीढियों पर अंकित कोई चरणचिन्ह आज भी तो बरकरार है! शताब्दियों से लोग वहाँ जाते हैं और बुध्दम शरणम् गच्छामि की प्रार्थना दोहराते हैं। कहाँ कुछ भी तो नहीं बदला। एमरसन ने कहा था, हम तो केवल इस वैश्विक आत्मा के गुण हैं। इसकी अभिव्यक्ति। ओह मैं भी बात कहाँ से कहाँ ले जा रहीहूँ। बीजेपी से हाथ मिलाने के, हिन्दुत्ववादियों से हाथ मिलाने का मेरा कोई इरादा नहीं, मगर नास्तिक भी नहीं हूँ। फिर क्या हूँ, निरंतर संकुचित होती दुनिया मुझे अहसास दिलाती हैकि हम सबमें कुछ है जो एक है। हम उस समूचेपन में हैं। हम ऐसी जगह पर हैं जहाँ भूगोल की सीमा लागू नहीं होती।
मुझे याद आता है कि प्लेन में एक बार एक सहयात्री ने अपना विजिटिंग कार्ड दिया था, उसके पीछे लिखा था, मैं कुछ नहीं खरीदता, न कुछ बेचता। मेरे पास पैसा नहीं है। मैं व्यापार नहीं करता मैं इनमें से कुछ भी नहीं करना चाहता। और मेरे मुंह से अनायास ही निकला था बडा तकदीर वाला आदमी है। विली वास्कोविच जैसे लोगों का कहना है हम जिसे भूमंदलीय रकता का नाम देते हैं वह और कुछ नहीं बस साझे का बाजार है। सूचनाओं का जंजाल है, डॉलर की खरीद बेच, उतार चढाव है। ऐसी बहुतेरी सुविधाएं हैं भोग और ऐशोआराम हैं जो हमारे पूर्वजों को नसीब नहीं था । मगर अब कोई केन्द्र नहीं क्योंकि हर परिधि अपने आप में केन्द हो चुकी है।
जब मैं स्कूल में पढती थी तो हिन्दी की जितनी क्लासें होती थीं, मुझे बेहद अच्छी लगतीं- प्रसाद, महादेवी, पंत, निराला, भगवती चरण वर्मा की कविता हम दीवानों की क्या हस्ती है, आज यहाँ कल वहाँ चले, मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उडाते कहाँ चले। पढ क़र हम विभोर हो उठते। अंग्रेजी की कविताओं के नाम से मुझे बुखार हो जाता पहले तो अंग्रेजी के शब्द ही समझ नहीं आये, शब्दकोष उलटने में ही घण्टों बीत जायें और उसके बाद किसी तरह शब्द समझ लें तो भाव को समझने में माथा पच्ची। सर लैन्सलाट की घुडसवारी तो समझ आती थी कि एक शूरवीर योध्दा बढा चला जा रहा है कि गुंबद में कैद लेडी शार्लोट कपडे बुन रही है। पर देखने में लेडी शार्लोट कैसी होगी? मैं कल्पना करने लगती। क्या देवी दुर्गा की तरह, रानी पद्मावती की तरह नरगिस या मीना कुमारी की तरह। बचपन में मैं ने जिन अंग्रेज महिलाओं को देखा था उनमें तो मुझे एक भी सुन्दर नहीं लगी थी।ब्रिजेट बार्दो, सोफिया लॉरेन कोई नहीं निर्लज्ज कहीं की। होंठ लाल किये रहती हैं। उन्हीं की तरह तो हमारे मोहल्ले वाली पैम क्रेन थी, ट्रिंकास में रोज शाम को नाचती हुई, चाचा चा - चा । और फिर वर्डसवर्थ, शेली, कीट्स की कविताओं में अब पता नहीं किन किन फूलों का वर्णन रहता। पीले डैफोडिल्स। बेला बहनजी से पूछा था। पर डैफोडिल्स तो यहाँ होते ही नहीं। उसके बदले निराला की जूही की कली कितनी अपनी लगती थी। एक बार मैं ने पूछ ही लिया था,”क्यों नहीं हम डैफोडिल्स के बदले रजनीगंधा की कल्पना करें।”बेला बहनजी नराज हो गई थीं। तुम कब समझोगी वर्डसवर्थ के विदेशी मानस को।'
नहीं कभी नहीं समझ पाई। आज भी मेरी दुनिया संतरे की भांति कई भागों में बंटी हुई है। उन दिनों स्वाधीन भारत के स्वतन्त्रता बोध से हम आकंठ डूबे हुए थे। शेक्सपियर नाटक और प्रसाद के नाटकों में मैं किसे श्रेष्ठ मानूं? वेस्टिडिमाना और तिष्यरक्षिता में कौन ज्यादा सेक्सी थी?मैं ने अपनी डायरी में लिखा था जो श्रेष्ठ हो जरूरी नहीं कि हृदय के करीब हो। प्रसाद मेरे भारतीय हृदय के करीब हैं और इन बातों को बडे फ़ख्र से कॉलेज में मैं ने अपने अंग्रेजी के प्राद्यापक तारकबाबू के सामने दोहराया। पर मेरे शिक्षक अंग्रेजियत के गुलाम थे” क्या प्रभा, शेक्सपियर की तुलना भी तुमने किससे की। प्रसाद से? रवीन्द्रनाथ से करती तब भी मैं कुछ विचार करता। समझी लडक़ी थोडा और गहराई से सोचो। उस दिन मैं समझ नहीं पाई थी। मैं ने फिर कहा, ' सर क्या प्रिय और श्रेष्ठ में फर्क नहीं होता? मैं हिन्दी स्कूल से आई हूँ। मैं ने प्रसाद को पढा है। वे मुझे प्रिय हैं।
"इसलिये तो तुम्हारे दिमाग में यह सब कूडा भरा है। भूल जाओ भूल जाओ हिन्दी साहित्य को। अंग्रेजी पढो। अंग्रेजी। शेक्सपियर, महान शेक्सप्रियर को पढो। मैं मन ही मन भुनभुना कर रह गई। लडक़े लडक़ियों का एक दल मुस्कुरा कर रह गया।
मैं ने अपनी डायरी में उस दिन लिखा, मेरा जन्म 1942 में हुआ, पराधीन भारत में, मुझे पढाने वाले शिक्षक औपनिवेशिक पूर्वाग्रह का शिकार हैं। उनके दो चेहरे हैं। द्वैत में बंटा हुआ इनका मानस है।स्वतन्त्रता से पहले और स्वतन्त्रता के बाद , नवजागरण की पहल अंग्रेजी सरकार ने की थी, उसकी लहर बंगाल से उठी थी और अंग्रेजी से अच्छी तरह परिचित हो, हमें पढाने वाले प्रोफेसर तारकनाथ आक्सफोर्ड के छात्र थे। पर उस औपनिवेशिक मानसिकता से मुझे उबरना होगा, उसके विकल्प में मुझे मेरी भारतीय पहचान दिन पर दिन और स्थापित करनी होगी। गांधीजी को मालूम था कि असली दुश्मन कौन है, उनके स्वदेशी आन्दोलन के सामने कोई ठहर नहीं पायेगा। पर आज तो मैं द्वैत में नहीं सोच रही, हम भारतीय और वे पश्चिमी ऐसा नहीं मेरी अपनी पहचान पूरे भूमंडल पर चिंदियों में बिखरी है। किसी स्थायी केन्द्र के अभाव में हम सब लोग समन्दर में डुबकियां लगा रहे हैं। आज बाटा का द बेस्ट इंडियन जूता के विज्ञापन की जगह प्लैनेट रिबॉक के गीत गाये जाते हैं। अंतराष्ट्रीय स्तर की बात की जाती है। विली वास्कोविच कहता है, एक दुनिया, एक कंपनी हम कितने करीब हैं। कितने पास।पर क्या सच में हम एक हैं? ग्यारह सितम्बर को जो घटा वह हमारी अन्तर्राष्ट्रीय एकता का इम्तहान तो नहीं था। फिर गुजरात का भूकंप, गोधराकांड, स्वामीनारायण मंदिर पर आतंकी हमला।
खैर छोडिये इन बातों पर वक्त जाया करके क्या होगा? हो सकता है कि एक नये तरह का भूमण्डलीय आदमी जन्म ले जो सारी भिन्नताओं को स्वीकार कर चले। जिसके जीवन में विलयन हो उलझन नहीं। जो श्रीकृष्ण के विराटत्व के प्रतीक स्वरूप, एक ही साथ कई कई संस्कृतियों को समेटने का प्रयास करता हो।कल्याणी की बडी बहन ललिता की नतिनी के नामकरण उत्सव पर मैं निमंत्रित थी। उसका नाम रखा गया डोका, बडी वाली बहन का नाम था मीका।
लल्ली, अरे इस बच्ची का नाम यह क्या अजीबोगरीब नाम रखा है?कुछ तो सोचा होता। मंतव्य दिये बिना मैं न रह सकी।
बात यह है कि मेरी बेटी जवाई नहीं चाहते कि जल्दी से कोई इसकी राष्ट्रीयता समझ पाये। हिन्दू है या मुसलमान यह भी नहीं मालूम पडना चाहिये और उसका व्यक्तित्व स्पंज की तरह सहाज छिद्रों वाला होना चाहिये। सभी तरह के प्रभावों को पचाने में, आत्मसात करने में सक्षम।
हाँ ठीक ही तो कह रही है रेणुका। जब इनका स्वर्गवास हो तब हो सकता है कि बेटी दक्षिणी ध्रुव के किसी कोने में रहती हो और हिन्दुस्तान आने की वह जरूरत ही न समझे। लेकिन पंडितों द्वारा अंत्येष्टि क्रिया - कलाप तो करना चाहेगी।
ठीक है नहीं आयेगी तो अपने कंप्यूटर पर वह सब कुछ देख सकेगी।पंडित के साथ मंत्रोच्चार करेगी और बस एक बटन दबायेगी वैसे अस्थि का विसर्जन कहीं भी किसी भी नदी में किया जा सकता है। नदी - नदी है चाहे वह गंगा हो या मिसीसिपी।
यह भूमंडलीय मानुष शायद अपने जन्म स्थान पर कभी रहे ही नहीं।मि गुरुमूर्ति का कहाना है कि उनके पास हवाईउडानों की इतनी अधिक माइलेज है कि रिटायर होने के बाद बिना पैसा खर्च किये घूम सकते हैं।वे चाहें तो हर शनिवार - रविवार को चैन्नई आ सकते हैं। पुराने प्रश्नों के हमें उत्तर नहीं देने हैं। बल्कि ये तो नये नये प्रस्न उठ खडे हुए हैं जिनका हमारे पास समाधान नहीं है।भूमंडलीय आदमी की कर्तव्य परायणता अपने गांव, अपने शहर अपने लोगों के प्रति कहाँ से पैदा होगी, क्या जनम लेने से लगाव पैदा हो जाता है? क्या पासपोर्ट में भारतीय लिखा हो तो आप भारतीय हो गये। मिस्टर गुरुमूर्ति ने पूछा।
एक देश काफी नहीं हमारी कंपनी के लिये। मिस्टर लिन पा ने मिनमिनाते हुए कहा।
मेरे लिये भी एक देश कम पडता है। मिस्टर गुरुमूर्ति ने कहा।
मिसेज लिन पा वापस अपनी खराब अंग्रेजी की चर्चा करने लगी।
बाहर बिजली चमकती है भीतर कुछ कौंधता है, हाँ भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में हम जब चाहें अपना पुराना केंचुल उतार फेंक सकते हैं। चेहरा इस चेहरे को भी आप बदल सकते हैं पोसाक, चश्मा, मेकअप बालों के स्टायल और किसी भी स्थायी लगाव से, उस परंपरा से जो स्थायी घर, देशज भाषा और संस्कृति सबसे परहेज रख सकते हैं। एक ऐसा उपन्यास लिखा जाना चाहिये जिसके पात्रों को नाइट मेयर ऑफ डिसओरियेन्टेसन एण्ड डिसकनेक्शन हो। समाज में वे कहाँ किस वर्ग किस जाति के हैं कोई नहीं बता सके। स्वजन, परिजनों की कोई स्मृति उसके पास न हो। किसी भी स्थानीय आदत को वह न अपनाये।
बडे ख़ुले और आत्मीय स्तर पर मिसेज लिन पा मुझसे वापस अपनी खराब अंग्रेजी की चर्चा करने लगी।