भूख-2 / पद्मजा शर्मा
रेलवे प्लेटफार्म पर सफेद कुर्ता-पायजामा पहने कुछ छुट भैया नेता बेसब्री से यहाँ-वहाँ चहल-कदमी कर रहे थे। वे राज्य के मुख्यमंत्री के स्वागत में खड़े थे। कई हाथों में फूलों की मालाएँ थी तो कुछ हाथों में पन्ने फडफ़ड़ा रहे थे। कुछ के मुंह से मुख्यमंत्री जी के आने के पूर्व ही उनके स्वागत में रह-रहकर नारे लग रहे थे। वे नहीं चाहते थे कि मुख्यमंत्रीजी की चमचागिरि में किसी तरह की कोई कमी रह जाए. इसलिए यह शायद पूर्वाभ्यास चल रहा था।
मुख्यमंत्री जी जनता में खासे लोकप्रिय थे। इस क्षेत्र से दो बार चुनाव लड़ा। अब फिर चुनाव की बारी है। यह मुख्यमंत्रीजी के चुनाव लडऩे की पूर्व तैयारी है। माना कि मंत्री जी दोनों बार जीते पर यहाँ की जनता हर बार बाजी हारी है। यही तो प्रजातंत्र का कमाल है। गरीब और गरीब होता जा रहा है। अमीर और अमीर होता जा रहा है। लोग सर्दी में पाले से मर जाते हैं। गर्मी में लू से मर जाते हैं। बरसात में बाढ़ से मर जाते हैं तो सूखे में भूख से मर जाते हैं। यह क्रम किसी भी दौर में टूटा नहीं है। सरकार चाहे किसी भी पार्टी की रही हो। गरीब सदा मरा ही है। जिया भी है तो मर-मर कर।
केमरे तैयार थे। मुख्यमंत्री जी की हर अदा को कैद करना था। किसी तरह की कोई कमी न रह जाए. एक अखबार दूसरे से बाजी न मार ले जाए इसका भी ख्याल रखना था। इसलिए छोटे-बड़े सब अखबारों के प्रतिनिधि, पत्रकार और फोटोग्राफर मुस्तैदी से अपने-अपने मोर्चे पर डटे हुए थे।
गाड़ी सदा की तरह देरी से पहुंचने वाली थी। मैं खाली पड़ी एक बैंच पर बैठ गई.
फटे-पुराने गंदे कपड़ों में कुछ बच्चे रेल की पटरियों पर भाग-दौड़ कर रहे थे। प्लेटफॉर्म पर कुछ लड़के बूट-पालिश की पेटी लटकाए लोगों से मिन्नतें कर रहे थे कि पॉलिश करवा लें। एक भिखारिन तार-तार हुई साड़ी में एक खम्भे के पास बैठी यहाँ-वहाँ बिखरे कचरे में कुछ ढूंढ़ रही थी। उसे दूर पड़ा बिस्कुट का एक टुकड़ा दिखाई दिया। वह उस ओर लपकी। बिस्कुट के उस टुकड़े को तत्काल मुंह में डाल लिया। इस दृश्य को मेरे साथ ही कई पत्रकारों और नेताओं ने भी देखा। मैंने देखा कि नेताओं ने उधर से नजरें फेर लीं। फोटोग्राफरों के केमरे भी ऑन नहीं हुए. क्योंकि इस वक्त समाचारपत्र और नेताओं के लिए मुख्यमंत्री जी ज़्यादा महत्त्व के थे। फायदा तो उनसे होना है। पता नहीं अगली बार मंत्रीजी चुन कर आएँ न आएँ। भूख और गरीबी का क्या। यह तो सदा से है और सदा रहेगी।
यह औरत ही नहीं। इसके जैसी असंख्य औरतें, पुरुष और बच्चे पिछले छ: दशक से प्लेटफार्मों, फुटपाथों पर खाली पेट, रोटी की तलाश में भटक रहे हैं। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री जी सहायता दे रहे हैं। सहायता दे रहे हैं तो सहायता कहाँ जा रही है? देश में भुखमरी दिनों दिन बढ़ती क्यों जा रही है? यह किसी को दिखाई क्यों नहीं दे रही है?
गाड़ी आ गई. नारेबाजी शुरू हो गई थी। 'गरीबी हटाओ, मुख्यमंत्रीजी को फिर लाओ' , गरीबी हटाओ, मुख्यमंत्रीजी को फिर लाओ, 'देश बचाओ, मुख्यमंत्रीजी को लाओ.'
मुख्यमंत्री जी आए. बनावटी मुस्कान और कई वादे साथ लाए. स्वागत, फोटो सेशन करवाए और चले गए.
वे सब आदमी जा चुके थे। अब वह औरत थी। भूख थी और था रेलवे प्लेटफार्म। जहाँ तरह-तरह के आदमी घूम रहे थे।
क्या वे आदमी थे?