भूख / पद्मजा शर्मा
कल मीता की स्कूल में स्पोर्ट्स मीट है। उसने बास्केट बॉल में भाग लिया है। कह रही थी-'मौसी आपको आना है। मैदान में पाँच छह घंटे बैठना पड़ेगा।'
मैंने इन्कार में गर्दन हिलाते हुए कहा 'मैं गई तो मैदान में ही बैठे-बैठे भूख के मारे बेहोश हो जाऊँगी। तुझे आसपास बैठे लोगों को कहना पड़ेगा कि कोई मेरी मौसी को घर पहुँचाओ.'
'ऐसा क्यों?' उसने अचरज से कहा।
'मैं इतनी देर भूखी नहीं रह सकती।'
'पर मौसी नानी तो कहती हैं कि भूख बरदाश्त करनी आनी चाहिए. भूख आदमी केा मजबूत बनाती है। ताकत देती है। इसलिए वे व्रत-उपवास करती हैं और करवाती भी हैं।'
'बच्ची, भूख आदमी को कमजोर बनाती है। उसकी ताकत को तोड़ती है। अपने देश के लाखों लोग भूख से मर रहे हैं। पैसे की भूख बड़ी, तन की भूख उससे बड़ी, पर पेट की भूख सबसे बड़ी होती है। यह भूख इतनी भूखी होती है कि जीते जागते आदमी को कच्चा ही निगल जाए. हाँ, ताकत देती है पर सिर्फ़ उन्हें ही जिन्हें सामने विभिन्न व्यंजनों से पुर्सी थाली दिख रही होती है।'