भूतों द्वारा मंदिर निर्माण पर इतना भरोसा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :03 अक्तूबर 2017
उत्तरप्रदेश एक घटनाप्रधान फिल्म की तरह उजागर हो रहा है। कहा जाता है कि ऐसा कुछ घटित नहीं हो सकता, जो वेदव्यास की महाभारत में वर्णित नहीं है। यही उत्तर प्रदेश के बारे में कहा जा सकता है। दो अलग-अलग घटनाओं पर गौर किया जाना चाहिए। मेरठ के नज़दीक ग्राम दतियाना में एक मंदिर के बारे में किंवदंती है कि उसका निर्माण भूतों ने किया है। लाल ईंटों से बने इस मंदिर का ऊपरी भाग अन्य वस्तुओं से बना है। ईंटों की जुड़ाई नहीं की गई है परंतु वे मजबूती के साथ जमी (टिकी) हैं। इन्हें जोड़ने वाला कोई गोंद नज़र नहीं आता। वर्तमान में राकेश गोस्वामी पुरोहित हैं और वे इस मंदिर की सेवा करने वालों की चौथी पीढ़ी हैं। राजनीति में पीढ़ीवाद का विरोध करने वाले धर्मक्षेत्र में इसका अनुमोदन करते हैं। सिद्धांत नहीं, सुविधाओं से संचालित हैं सब लोग। कहा जा रहा है कि इस मंदिर का निर्माण गुप्त साम्राज्य के समय हुआ और इतनी सदियों से यह जस का तस खड़ा है। सामान्यत: हम जिसके रचनाकार को नहीं जानते, उसे भूतों द्वारा किया जाना प्रचारित किया जाता है। इस तरह की चीजों का श्रेय ईश्वर को भी दिया जा सकता है परंतु जाने क्यों हमें ईश्वर से अधिक भरोसा भूतों पर है।
साहित्य के क्षेत्र में भी 'घोस्ट राइटिंग' की जाती है। लेखक अपना नाम प्रगट नहीं करना चाहता, इसलिए काल्पनिक नाम का सहारा लिया जाता है। नेताओं और मंत्रियों के भी अपने घोस्ट राइटर होते हैं। जब हमारे हुक्मरान ने तक्षशिला और नालंदा के बारे में हास्यास्पद बयान दिया तो दोष उनके घोस्ट राइटर को दिया जाना चाहिए था। वह नादान तो जानता ही नहीं था कि वह क्या कह रहा है और क्या कर रहा है। सत्ता के नशे का कोई उतार नहीं होता। भांग का नशा मीठा खाने से बढ़ जाता है, अफीम का नशा टूट जाता है। नींबू का रस पीने से शराब का नशा कम हो जाता है, सत्ता का नशा केवल जनता ही उतार सकती है परंतु अवाम नशे में हो तो समझिए कि आपकी नाव में ही तूफान है। नदी तो मंथर गति से बह रही है।
दूसरी घटना यह है कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में रोयोना सिंह को प्रॉक्टर का पद दिया गया है। विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली बार एक महिला को यह महत्वपूर्ण पद दिया गया है। पद ग्रहण करते ही उनका इस आशय का बयान आया कि वे छात्र समुदाय को भरपूर स्वतंत्रता देना चाहती हैं। छात्र जो चाहे खाएं, पिएं और मनचाहे वस्त्र धारण करें। इस साहसी बयान का असर कुछ ऐसा हुआ मानो सिंहासन के नीचे रखा बम फट गया है। तथाकथित पवित्रता के हिमायती इस बयान से हिल गए। रोगी-योगी सब अवाक रह गए। उन्होंने एक महिला को यह सोचकर शिखर पर बैठाया कि वह मोम की गुड़िया की तरह आचरण करेगी। वे यह भी भूल गए कि पहले भी एक बार उन्होंने किसी को 'मोम की गुड़िया' समझा था जो बाद में दुर्गा की तरह उजागर हुई। इसी 'गुड़िया' ने पाकिस्तान की बांह काट दी और उनके ही एक सदस्य ने उसे मां दुर्गा का अवतार कह दिया तो दल की गोपनीय बैठक में उनसे कान पकड़कर उठक-बैठक कराई गई थी।
ज्ञातव्य है कि रोयोन सिंह का जन्म फ्रांस में हुआ था जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गढ़ रहा है। ज्ञातव्य है कि 'सर्पेन्ट एन्ड द रोप' के लेखक राजा राव का जन्म भी फ्रांस में हुआ था। अंधेरे में रस्सी को सांप समझने से भी मृत्यु हो जाती है। भय भी ऐसी ही रस्सी है। दक्षिण अफ्रीका से भारत आने पर महात्मा गांधी ने अपना पहला भाषण काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ही दिया था। उनका संदेश था कि हमें सबसे पहले भय मुक्त होना चाहिए। सभा में मौजूद अंग्रेज वॉयसराय से गांधीजी ने पूछा कि पूरे देश में उनकी हुकूमत चल रही है फिर भी वे इतने डरे हुए हैं कि अपने आगमन पर पूरे बनारस को फौजी छावनी बना दिया है। इसी घटना का विवरण नेहरू ने किया है कि 'फियर बिल्ड्स इट्स फेन्टम्स विच आर मोर फियरसम देन रिएलिटी इटसेल्फ'।
आज भी पूरे समाज में डर विद्यमान है। कुछ विचारकों की हत्या कर दी गई है। क्या हम भूतों से शासित हैं? हमारा समाज तो ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध कर रहा है कि वही है जो देश चला रहा है। क्या इसी तरह अयोध्या में भी मंदिर बन जाएगा और बनाने वाले अदृश्य रहेंगे। किसी रात राम स्वयं उसे बना जाएंगे ऐसा प्रचारित किया जा सकता है। 'इक रिदाए तिरगी है और इक है ख्वाे कायनात, डूबते जाते हैं तारे और भीगती जाती है रात'।