भूत-प्रेत फिल्में और शिक्षा प्रणाली / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 31 दिसम्बर 2019
फिल्मकार जोया अख्तर, दिबाकर बनर्जी, अनुराग कश्यप और करण जौहर ने अपने-अपने हिस्से की चार 'घोस्ट स्टोरीज' बनाई हैं जो आज रात नेटफ्लिक्स पर दिखाई जाएंगी। इसी तरह चारों फिल्मकारों ने 'बॉम्बे टॉकीज' नामक फिल्म भी बनाई थी। विगत वर्ष 'लस्ट स्टोरीज' बनाई गई थी। पहली शृंखला 'बॉम्बे टॉकीज' हमें याद दिलाती है हिमांशु राय, शशधर मुखर्जी, निरंजन पॉल और देविका रानी द्वारा स्थापित पहली कॉर्पोरेट फिल्म कंपनी का नाम भी 'बॉम्बे टॉकीज' था। इसी कंपनी की फिल्म लेबोरेटरी में काम करने वाले युवा अशोक कुमार ने उनकी फिल्मों में नायक की भूमिका करते हुए लंबी पारी खेली। इसी कंपनी की कमाल अमरोही द्वारा निर्देशित 'अछूत कन्या' में एक ब्राह्मण और अछूत कन्या की प्रेम कथा प्रस्तुत की गई थी। आज संकीर्णता के दौर में इस तरह की प्रेमकथा नहीं बनाई जा सकती। अब तो बात ऑनर किलिंग तक जाती है। 'घोस्ट स्टोरीज' के एक फिल्मकार करण जौहर ने कहा है कि उन्हें भूत-प्रेत की फिल्में पसंद नहीं हैं और उन्होंने कभी ऐसी फिल्म देखी तक नहीं है। इस बात से याद आता है कि खाकसार किशोर कुमार के घर पंचम के साथ गए थे। किशोर कुमार ने अपना शयनकक्ष दिखाया। जिसकी सभी आलमारियों में दुनियाभर से आयात की गई भूत-प्रेत की फिल्में थीं जो वे प्रतिदिन देखा करते थे। आश्चर्य की बात यह है कि इन हॉरर फिल्मों को देखते समय वे बेतहाशा ठहाके लगाया करते थे। भय का भाव जगाने वाली फिल्म को देखते हुए किशोर कुमार को खुशी महसूस होती थी। संभवत एक फिल्मकार होने के नाते उन्हें इन फिल्मों के बनाए जाने के तरीके की जानकारी होने के कारण हंसी आती हो। फिल्म विधा यकीन दिलाने की कला है। फिल्म देखते समय दर्शक समय और स्थान के अहसास से मुक्त हो जाता है।
बरहाल हिंदुस्तान में भूत-प्रेत की फिल्मों का निर्माण रामसे बंधुओं ने किया। सातों भाइयों में से दो भाई पटकथा लिखते थे, एक भाई निर्देशन करता था, एक भाई कैमरामैन था, एक संपादन करता था, एक भाई कला निर्देशक था और एक भाई फिल्मों के लिए पूंजी निवेश तथा वितरण का काम देखता था। बहरहाल 'घोस्ट स्टोरीज' के इन चार फिल्मकारों में से करण जौहर भूत-प्रेत फिल्म के अनिच्छुक फिल्मकार बने अपने साथियों के प्रोत्साहन के कारण। क्या करण जौहर के रचे हुए भूत-प्रेत पात्र समलैंगिक भी होंगे? उनकी फिल्मों में समलैंगिक पात्रों को प्रस्तुत किया गया था। उनकी फिल्म 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' में शिक्षा संस्थान का प्राचार्य समलैंगिक है और अपनी मृत्यु शैया पर लेटे हुए वह अपने स्पोर्ट्स टीचर से पूछता है कि क्या अगले जन्म में उन्हें उसका प्रेम मिलेगा।
वर्षों पूर्व भूत-प्रेत विषय पर एक हास्य फिल्म बनी थी। जिसमें भूत-प्रेत संसार में प्रशासन चलाने के लिए मतदान करके प्रधान का चुनाव किया जाता है। गोयाकि प्रजातंत्रीय व्यवस्था वहां भी कायम की जाती है। चुनाव के समय मेनिफेस्टो जारी किया जाता है। मेनिफेस्टों में कुछ वादे किए जाते हैं, जिनमें से एक यह है कि धरती पर जमा किया हुआ काला धन प्रेत संसार में लाया जाएगा और हर भूत के खाते में जमा होगा।
प्राय: भूत-प्रेत कहानियों पर अवाम विश्वास करता है। एक कथा में दो व्यक्ति नदी के किनारे बैठकर यही बात कर रहे हैं, उनमें से एक तर्क सम्मत वैज्ञानिक विचार का भूत-प्रेत पर अविश्वास अभिव्यक्त करता है। दूसरा व्यक्ति कहता है कि उसका विश्वास अभी समाप्त हो जाएगा और यह कहते ही वह अदृश्य हो जाता है। ज्ञातव्य है कि सिनेमा में मनुष्य की करुणा के महाकवि सत्यजीत रॉय ने भी 'मोनिहारा द लास्ट ज्वेल' बनाई है। यह गुरु रबींद्रनाथ टैगोर की कथा से प्रेरित फिल्म है। हॉलीवुड की फिल्म 'रोजमैरीज बेबी','द शाइनिंग' और 'द एक्सॉरसिस्ट' को क्लासिक फिल्म का दर्जा हासिल है। भारतीय मूल के अमेरिकन फिल्मकार की 'सिक्स्थ सेंस' भी अत्यंत लोकप्रिय फिल्म मानी जाती है। रामगोपाल वर्मा ने भी भूत-प्रेत फिल्में बनाई हैं। दरअसल सारी सामाजिक बीमारियों और कुरीतियों के लिए दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली ही जिम्मेदार है।