भूत / सुरेश सौरभ

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कई बाजो के बीच में फंसी वह निरीह चिड़िया छटपटा रही थी। फड़फड़ा रही थी। बहुत देर से बाज उसे लुटा रहे थे, उठा रहे थे, नोंच रहे थे, खसोट रहे थे। बड़ी मुश्किल से जब वह छूटी, तो सारे बाज खींसे निपोर कर बाोले-बुरा न मानो भाभी! होली है, देवरो की टोली है। पानी रंग से सराबोर वह चिडियॉ तब कातर स्वर में बोली-तुम्हारी भी बहनें किसी की भाभी हैं किसी की साली हैं, जो तुमने मेरे साथ किया वही उनके साथ भी होगा, यह एक अबला की बद्दुआ है। यह सुनकर सारे बाजो का मुंह लटक गया। वे सब शून्य में कुछ खोजने लगे और उन पर चढ़ा होली का भूत उतरने लगा।