भूपेन हजारिका की छह कविताएँ / दिनकर कुमार
1.
बिन्दु
निंदिया बिन रैना -
कोमल चांद पिघला
मुंह अंधेरे ओस की बूंदें उतरी
मेघ को चीरते हुए राजहंस
सूरज के सातों
घोड़ों की मंथर गति की आवाज
मेरी चेतना में प्रवेश करते हैं
सीने का स्पर्श करता है
एक नया गहरा सागर
लहर विहीन
जिसकी एक बिन्दु
हौले से लटक रही है
मेरे आंगन में
झड़े हुए
रातरानी की सफेद पंखुड़ी पर
शायद शरत आ गया
एक गुप्तांग
दो स्तन
कुछ अल्टरनेट सेक्स
छिप न सके, इसके लिए
डिजाइनर की तमाम कोशिश
हर आदमी एक द्वीप की तरह
एके फोर्टी सेवन जिन्दाबाद
आदिम छन्द हेड हंटर का।
बैलून/मूल्यबोध/उपभोक्तावाद
जीवन जाए
जडहीन शून्यता में।
मुमकिन हो तो टिकट कटा लें
मंगल ग्रह पर जाने के लिए
मनुष्य की खोज में
मनुष्य की खोज में
2.
मग्न
क्षण-क्षण करते हुए
क्षण का विश्लेषण
क्षण होता ध्यानमग्न
मग्न ज्योति की बेडियां तोड़कर
चमकता स्फुर्लिंग
वहीं तुमसे मिला
3.
विदेह
अदृश्य आंधी
क्षण के पश्चात् क्षण
वायु का संतरण
प्रेयसी
तुम क्या हो ?
4.
आईना
चाह की ऊंचाई पर
मन भी कैसा है
कैसा है आईना
पूरी तरह कोई
मन को ही बना देता है आईना
आईना को सौंपोगे कुछ
न इंकार करेगा न स्वीकार।
आईना से मांगोगे कुछ
लेगा नहीं कुछ, न ही देगा
फेंकेगा नहीं कुछ
कैसा है आईना
मन कैसा है
चाह की ऊंचाई पर ...
5.
बन्धु
(कैमरामैन संतोष शिवन के लिए)
बन्धु
कुछ शराब
कुछ सिगरेट
कुछ लापरवाही
कुछ धुआं
कुछ दायित्वहीनता
सोचते हो यही है सुकून
मगर बन्धु
मरोगे मरोगे
उम्र शून्य -
मृत्यु के बाद
तुम क्या
तुम रह जाओगे, बन्धु -
दृश्य अदृश्य होता है
देह सौन्दर्य पहेली बनता है
बची रहती है
आग की चमक
बन्द दुर्ग
जीवन रंगशाला है
तुम कहां हो
गजदन्त मीनार पर या
किसी बन्द दुर्ग के भीतर
मीनार को ढंक दिया है बादल ने
मीनार जीर्ण-शीर्ण हो गया है
दुर्ग धंस रहा है
टूट रहा है आदर्श का दुर्ग
और तुम
नर्सिसस, अपने-आप में
व्यस्त
झूठा
झूठा स्वर्ग।
6.
दशमी
एक सुर
दो सुर, सुर के पंछियों का झुण्ड
झुण्ड के झुण्ड सुर बसेरे बनाते हैं
मन-शिविर में
आवाजाही जारी रहती है
शब्द का पताका तूफान
कुछ लोग गीतों के जरिए
सामने आते हैं
कण्ठरुद्घ प्रकाश
कण्ठहीन कण्ठ से
अनगिनत अन्तराएं
आबद्घ होता है नाद ब्रह्म
एक सुर दो सुर
सुर के पंछियों का झुण्ड
शून्य में उड़ता है
विसर्जन की प्रतिमा की तरह
रचनाकार: दिनकर कुमार