भूमिका-अंश / कविता भट्ट
किसी भी साहित्य को लोकभाषा में पढ़ना आनन्दित करता है
लोकभाषाओं से ही हिन्दी भाषा का अस्तित्व सुदृढ़ है। प्रबल प्रवाहशालिनी गंगा के लिए जो महत्त्व अनेक लघु-सरिताओं का है; वही महत्त्व हिन्दी को समृद्ध करने हेतु लोकभाषाओं का है। भारत सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति, 2020 के अंतर्गत भी मातृभाषा के रूप में लोकभाषा को प्रमुख स्थान प्रदान किया गया है। इस दृष्टि से किसी भी साहित्य को अपनी भाषा में पढ़ना आनन्द और ज्ञान प्रदान करता है। वर्तमान में लोकभाषाएँ विलुप्ति की ओर अग्रसर हैं; ऐसे में हिन्दी का संरक्षण और संवर्धन तभी हो सकता है; जब लोकभाषाओं का परिपोषण हो। इसके लिए लोकभाषा का हिन्दी और हिन्दी का लोकभाषा में अनुवाद अत्यंत प्रासंगिक है। यह हमारी सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण की दिशा में एक बड़ा प्रयास सिद्ध होगा। अपने शैक्षणिक लेखन में मैंने अंग्रेजी और हिंदी के अनुवाद किए और साहित्यिक दृष्टि से मैंने लघुकथा तथा हाइकु विधाओं के अनुवाद किए। अपनी पुस्तक ‘पहाड़ी पर चन्दा (काँठा माँ जून) के अन्तर्गत विश्व भर से चयनित 5 देशों के 43 हाइकुकारों के 468 हाइकु का मैंने हिन्दी भाषा से गढ़वाली लोकभाषा में अनुवाद किया। हाइकु का यह गढ़वाली अनुवाद अनेक विद्वानों द्वारा ऐतिहासिक माना गया; क्योंकि विश्वस्तर पर हिन्दी हाइकु का इतनी बड़ी संख्या में गढ़वाली भाषा में अनुवाद एक ही पुस्तक में प्रस्तुत करना अभूतपूर्व था।
भाव की आत्मा को चैतन्य रखते हुए शब्द-चयन और भावानुवाद अति परिश्रम और सूझ-बूझ का कार्य है। हिन्दी से लोकभाषा के अनुवाद में अनुस्वार व महाप्राण का भी ध्यान रखना होता है। अनेकशः सटीक सम्प्रेषण के लिए यथार्थ शब्द मिलना अत्यंत कठिन हो जाता है; तो कई बार छोटे से अनुवाद में भी कई-कई दिन लग जाते हैं। यहाँ पर तदनुरूप अर्थपूर्ण शब्द-चयन अत्यंत कठिन होता है; इसमें बुद्धि, समय और भाषा-कौशल तीनों ही अपेक्षित हैं। लघुकथा की दृष्टि से भी अनुवाद यान्त्रिक न होकर, भावानुवाद होना चाहिए। इसका आकार छोटा होता है; इसलिए अनेकश: यथोचित शब्द व भाव को एक साथ पिरोने में कठिनाई होती है। लघुकथाकार के मूलभाव तक पहुँचे बिना अनुवाद निरर्थक है। हाइकु के पश्चात् अब ख्यातिलब्ध लघुकथाकारों की लघुकथाओं का गढ़वाली अनुवाद भी मन को आनंदित करने वाला; किन्तु श्रमसाध्य कार्य रहा। पाठकवर्ग की रुचि और विस्तृत आयाम के दृष्टिकोण से यह सर्वथा नवीन सृजन है। यथोचित निर्वाह हेतु अनुवादक का विषयस्तु को हृदयंगम करना और सम्बंधित दोनों भाषाओं पर अधिकार आवश्यक है। ‘लघुकथा डॉट कॉम’ लघुकथाओं की एकमात्र प्रसिद्ध वेबसाइट है; इसके भाषांतर (अनुवाद-स्तम्भ) में मेरे द्वारा किए गए गढ़वाली अनुवाद को निरंतर सम्पादक द्वय आदरणीय श्री सुकेश साहनी जी और श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी ने प्रकाशित किया। सृजन कि दृष्टि से लघुकथा को सर्वोच्च शिखर पर प्रतिष्ठित करने हेतु आप दोनों साधुवाद और बधाई के पात्र हैं। आप दोनों की प्रति कृतज्ञ हूँ कि आपने अनेक ख्यातिलब्ध लघुकथाकारों की लघुकथाएँ मुझे उपलब्ध कराईं। इस पुस्तक में जिनकी लघुकथाएँ हैं; उन सभी लघुकथाकारों के प्रति भी हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ। पूर्ण विश्वास है कि पूर्व की भाँति मेरे इस प्रयास को भी आत्मीय पाठकों का असीम प्रेम प्राप्त होगा। आपकी स्नेहाकांक्षिणी, डॉ. कविता भट्ट kavaypriya@gmail.com www.shailputri.in