भूलना / हेमन्त शेष
Gadya Kosh से
मैं कुछ भूल गया हूँ. वह क्या है जो मुझे याद नहीं आ रहा? अगर याद ही आ जाय तो उसे भूलना थोड़े ही कहा जायेगा. यहीं आ कर मुझे मित्र मंगलेश डबराल की एक पुरानी लाइन याद आ जाती है- चीज़ें कभी नहीं खोतीं, बस हम उन्हें रखने की जगह भूल जाते हैं! मुझे उम्मीद है कवि के इस तर्क से चीज़ वहीं होगी और मुझे वह जगह याद आ जाएगी जहाँ उसे रख कर मैं भूल गया हूँ!