भूषणा सिनूर / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
सूत्रधार:- (देश-दुनियां मेॅ दान लै औरोॅ दै के खिस्सा-कहानी एक सेॅ बढ़ी के एक प्रचलित छै। चाहे राजा हरिश्चन्द्र के रहे कि राजा परिक्षित के, दानवीर कर्ण के रहे कि सीता-सावित्री...के.एकरा मॅ अधिकांश दान के बात समय के साथ वीलीन होय जाय छै, या रहै छै ते बस इतिहास बनी के. मतर एक अजीव सिनूर दान जेकर समाज के बहू-बेटी आपनोॅ माँग में सजाय के सिनूर दान के प्रमाण प्रदर्शित करै छै। सिनूर दान के एहसानमन्द आरंभ से जिनगी के आखरी साँस तक रहै छै। दुभाग्य से पति के निधन के बाद परिजन, भरी मांग सिन्दूर लपेसी के फेरू साफ से धाय दै छै। जों पति से पहींने पत्नी के निधन होय जाय, ते दुल्हन के तरह सजाय के अर्थी उठै छै।) आय अहिने कुछ कथा-ब्यथा। ।
सीन- (चारो तरफ गहमां-गहमी छै मंडप पर कन्या दान के रश्म पूरा हो रहलो छै। शंख-नाद के बीच, मंगल-गान होय रहलोॅ छै।)
कोखिया के जनमली, बेटी लारो पारो बेटी
कानी-कानी दादा करै दान रे बरतिया।
मैया केरोॅ अखिया निहारै लक्षमिनियाँ कैॅ
सूना भेलै बाबू के मचान रे बरतिया ।
पुरोहित:-देखो जजमान, कन्या-दान के काम पूरा होय गेलै। आबै कन्या के सिनूर-दान लेली तैयारी करोॅ। ... अरे भाय ओस्ता, अैंगना मेॅ गोबर के चौका लगाय के आम के लकड़ी, ... होमाद, ... धुप-अखरबत्ती सब जुटाबेॅ। जल्दी करें भाय, कहिने कि आधे घंटा तक लगन छै। नै ते।
ओसता:-तुरत होय जैतै पंडिजी! खाली आपनेॅ फटा-फट घीचने चलो नी।
दादी:-अहो पड़िजी ओत्ते ओकतैभो ते केना होतै।
पुरोहित:-ले हम्में कथी ले ओकतैबै दाय, हम्में ते सही बात कहलिहौन। आबै तोरो घोर, तोरोॅ जूत। आखिर लगन के की मतलब होय छै। बाद मेॅ कुच्छू, अच्छा बेजाय होतै तैॅ कहभो कि बबजिये के चलतेॅ इस सब होलै।
दादी :-नै! नै हमरो कहै के मतलब छै पडिजी कि आभी ते चिलका कैॅ दान बाला काम से फुर्सत मिललोॅ छै। तन्टा बिहौती साड़ी सनी पीन्है-ओढ।ै मेॅ ते देरी लागबे न करतै हो।
पुरोहित:-वाह! देखो हमरोॅ ओस्ता कत्ते तेजगरो नाकी सब काम सोड़ियाय देलकै। गोंगों छै कि ... छै होशियार।
दादी:-अच्छा तेॅ ठीक छै, कलेॅ-कलेॅ हम्हूँ जाय छी। हे-गे पूजा देखियौ हमरोॅ बगुलिया लाठी, ठेहुनोॅ पकड़ी लेने छो बेटी. हेबे बाजा-गाजा भी आबी गेलै। हे गे कैली, मालती, अंजनिया चल सब आपनो जेरोॅ के जुटाव आरोॅ बीहा के गीत-नादशुरू कर।
सीन:- (हौला-हौला ढोल-बाजा के आवाज।)
पुरोहित:-हे हो नोकलिया जी! दुल्हा बाबू के हिन्ने पूरब मूं करी के बैठाबो। हाँ, आरोॅ तनटा हटी के, वैन्ठा कन्या (पारो) बैठतै। बस-बस आबै ठीक छै। चलो कन्या के बैठाबोॅ।
(सहेली सनी पारो के सजाय के रसें-रसें अैंगना मेॅ आबी के बेठी गेलै, कुछ देर बाद।) ।
आबे योग पीसै वाली के बैठाबोॅ आरोॅ लाबा छीटै के लेली लड़की के भाय के बोलाबोॅ। ... अरे ... आबिये तेॅ गेलै। बर-कन्या के तैयार करोॅ।
(गीत) -
गलती के भस्म करिहो, हो पून्य अग्नि देवा
सब साथ लेकेॅ बढ़िहोॅ, हो पून्य अग्नि देवा।
जीवन के देहरी पर, अरमान खूबसूरत
सपना रंगीन गढ़िहोॅ हो पण्य अग्नि देवा।
आबे अग्नि के सात फेरा पूरा होय गेलै। कोय सबासिन सिनूरदान के काम मेॅ आगू आबोॅ
(हॅसी-मजाक के बीच पुरोहित सिन्दूर-दान के रश्म पूरा करै के सोर-सार करै लागलै। तखनीये पारो के सहरूआ सहेली 'रचना' गल्ला में ओढ़नी लपेटी के खाड़ी होय गेलै आरों कहलकै) -
रचना:-सिन्दूर दान ते होबै करतै पंड़ित जी मतर इ बीचोॅ मेॅ हम्में कुच्छू कहै ले चाहै छीयै।
पुरोहित:-हों ... हों बोलोॅ इच्छा भर बोलोॅ
रचना:-है बतैयै पंडिजी कि सिन्दूर दान के करतै?
पुरोहित:-है कि बोलै छो नूनू? एतना टा तेॅ सब जानै छै कि सिनूर दान दुल्हा, माने संदीप बाबू करतै!
रचना:-केकरा सिनूर दान करतै?
पुरोहित:-अरे कन्या के, मतलब कि पारो केॅ।
रचना:-कथिलैॅ करतै आरो हेकरा से की होतै?
बराती:-है कहॉ से महा पंडित अैलो छै हो पेड़िजी! के करतै? केकरा करतै? कहिने करतै? है सब कोय सवाल छीकै। तोरोॅ मोन छै बोलोॅ।
दादी:-देखोॅ-देखो बराती सब एत्ते औकताबो नय। इ पारो के सहेली रचना छीकै। डागडरी पढ़ै छै। ऐकरोॅ पूछै-मतै के कोय ते कारण ज़रूर हेातै। सुन्हो नी तनटा आखिर की कहै ले चाहै छै रचना।
ओसता:-तबे कि लगन थोड़े भागलोॅ जाय छै।
कहाबत छै, जेकरोॅ उदय ओकरो अस्त।
छै कि नय पंडिजी
पुरोहित:-धौ मरदे! तोंय नाशे करभै।
ओसता:-नाशे की करबै हो। पंडिजी? तोंय पूजा-पाठ कराबै दहो ते कि हम्मूं रात-दिन बबाजिये के बीच रहै छीयै। सब घत्ता-पंजा जानै छीयै पंडिजी के.
बराती:-अच्छा छोडोॅ झगड़ा-झंझट! सुनाबो जोड़िदार सुनाबोॅ-सुनाबोॅ। अच्छा रंग गीत भी सुनैहोॅ।
रचना:-धन्यवाद! देखियै हम्में कोय संत महात्मा के चेला-चाटी नै छीकीयै। नय गीतारनी। हम्मे आय तंाय जेतना चिन्तन करै पारलियै, वहा आधार पर कुछ बात कहै लेॅ चाहै छीयै। पंडिजी आपन्हों सुनीयै।
'दुनिया के हरेक माय-बाप, बेटा-बेटी के जनम दै छै। दोनों छाती के दूध चूसी के गोदी मेॅ उमकै छै। एंगना मेॅ घुड़कै छै। दूआरी पर फुदकै छै। बड़ोॅ होय केॅ बेटा घर के मालिक बनी जाय छै आरो जबान बेटी केबीहा के नाम पर कन्या दान करी के पराया घर मेैॅ झाड़़ू, -बोहाडू, बरतन वासन, के साथें बेटी केॅ ...
सास-ससूर, ननद, देवर पति के सेविका बनाय के दे छै। एतना टा सेॅ भी कल्याण नै होय छै ते दुल्हा बाबू बाज़ार से दू टका के भूषणा सिनूर लानी के सिनूर दान के नाम पर दुल्हिन के माँग में लपेसी दै छै। बस होय गेलै सिनूर-दान'। आबै!
बराती-2:-बाप रे कत्ते बढ़ियां बोलै छै हो मीता।
बराती-1:-तबे कुछ बिचार छै कि ...
रचना:-तनी टा बुक बॉन्हीं के रहो! बराती भाय!
रचना:-हो! तेॅ तहिया सेे बेटी रोज सिनूर-दान करै बाला केॅ पति परमेश्वर मानी के चलै छै। दान करलो सिनूर केॅ माँग में लगाय केॅ जिनगी भर एहबाती रहै के प्रमाण प्रस्तुत करतेॅ रहै छै। पचास साल बाद भी मनेमन कहै छै कि देखोॅ आपनेॅ के सिनूर हमरा माँग मेॅ सुरक्षित छै। जहिनों सिनूर दान मेॅ देनेॅ रहोॅ, ओकरा से कहीं टूह-टूह सिनूर हम्में जोगी के राखने छीयै। काल चक्र में जों एहबाती से पहिनें पति के निधन होय जाय तेॅ भर माँथा सिनूर लपेसी के कोय दोसर माय बहिन, पानी सेॅ धोय केॅ पति के अर्पित करी देछै। लौटाय दे छै हुनका, जिनका साक्षी मानी कैॅ सिनूर दान करने रहै। जों पति केॅ रहतेंॅ पत्नी के निधन होय जाय ते पति के सामने दुल्हन के रूप मेॅ सजी के भर माँथोॅ सिनूर लगाय के लाल चुनरी ओढ़ी केॅ सदा के लेली जुदा होय जाय छै।
पुरोहित:-बेटा! तोहे सही कहै छो! देखों तोरोॅ बात के प्रभाव सीधे-सीधे सब के दिल मेॅ समाय गलै। सबके आँख लोरियाय गेलै। तोरोॅ सोच विराट छौन बेटा।
रचना:-अगर सोच विराट छै..., तेॅ एकरा पर हमरा सब केॅ विचार करै के ज़रूरत छै। ज़रूरत छै साचै के कि सबकुछ दान करै वाला सबदिन दासी बनी रहै छै, आरोॅ दान लै बाला देवता।
एकरा भी ठीक मानलोॅ जाय तेॅ सिन्दूर दान करै वाजा दासी बनें अरो सिन्दूर ग्रहण करै वाली देवी बनी के रहे।
बराती:-आरोॅ छै कुच्छू कहै ले बंाकी कि रचना जी.
रचना:-हों! ... अभी हम्में सनी ओहिनेॅ सिनूर दान के रश्म निभाबै ले एन्ठा जौरोॅ होलोॅ छीयै। एकरा से पहिनेॅ बाबू जी लोटा, थाली, कटोरी, गिलास छीपली, कपड़ा-लत्ता, के साथें मंगल-गान के बीच कन्या दान के साथ रश्म भी पूरा होय गेलै। इ सब दान दुल्हा बाबू आरो हुनको परिजन के करलोॅ गलै। आबे आय से हिनी हमरा लेली देवता आरो हम्में दान करी केॅ भी आभारी होलियै। दुल्हा बाबू हमरा देहरी पर अैतै ते देवता से जादे सतकार करबै।
यानि दायित्व सेॅ भरलोॅ-पुरलोॅ जीवन जीयै छै अधिकतर बेटी. आरोॅ सिनूर दान करै बाला केेॅ तेॅ विधाता ही भगवान बनाय देने छै। हुकूम चलाना हुनको काम आरोॅ हर हाल मेॅ पूरा करना बेटी के मजबूरी। चाहे बीमार रहोॅ कि कोय आरोॅ समस्या, बस मरतेॅ दम तक सेवा-सेवा-सेवा। छोटोॅ-छोटोॅ गलती पर उलहना आरो यातना सही केॅ दिल दिमाग कुम्हलाय जाय छै।
बराती:- (एक बराती टोकी देलकै) तबे ते आपनें कुमारिये रहभौ।
रचना:-वाह! ... वाह! ... हँसी-मजाक के वेला छीकै, कुच्छू बोलियै सब चलतै। जहाँ तक बीहा-शादी सवाल छै ते इ सब समाज के बनैलोॅ नियम छीकै। प्रकृति के शृंगार छीकै। मतर कि समाज के लोग एकरा एकतरफा बनाय देलकै। मर्द के उच्चोॅ आसन मिललै आरो औरतके दायित्व के मशीन बनाय देलकै। एकरा मेॅ सिर्फ मर्द नय औरत समाज भी ओतने जबाबदेह छै। बेटी के लेली सुख-शान्ति के चिन्ता आरोॅ बहू के लेली आदेश पालिका के तरह ब्यवहार। तन-मन-धन सब पर एकतरफा अधिकार जताबै छै।
ससुराल के देहरी पर हर तरह सेॅ डरली सहमली रहै छै एक बाप के लाड़ली। ससुराल बाला के खुशी लेली आपनौॅ खुशी केॅ चुल्ही मेॅ हौकी दै छै। देर सेॅ सोना आरोॅ सबसेॅ पहिनेॅ जागना नीयति बनी जाय दै। दू टका के भूषणा सिनूर, सुकुमार बेटी केॅ नचैतेॅ रहै छै।
पुरोहित:-हे जजमान! ... बहुत बात होय गेलै... आबे अगला काम...
संदीप:-पंडिजी ठीक कहै छै। काम बढ़ाबोॅ
रचना:-ओकतैला से नय होतै! बूक बाँधी केॅ रहो नी।
संदीप:-हम्मेॅ बुझै छीयै रचना जी...! आपने के हर बात। सत्य के कछार पर छै ... शादी-बीहा के मतलव होय छै... एक दोसरा के ज़रूरत मेॅ इमानदारी पूर्बक सहभागिता। हम्मेॅ आपने के भावना के सम्मान करै छीयै। हमरा बहिन छै। हमरोॅ पूरा परिवार एक दोसरा के दरद केॅ बूझै छै। ज़रूरत पड़ला पर हम्मेॅ कि हमरोॅ बाबू भी ज़रूरी काम मेॅ हाथ बटाबै छै। आपने भी कुछ दिन के लेली चलियै, तबै जानबै कि के सही बोलै छै। (दोनों पक्ष से हँसी के फुहार निकललै)
रचना:-बस-बस हमरोॅ काम होय गेलै। आपने केॅ सादर प्रणाम!
संदीप:-इश्श ...!
पुरोहित:-आरो कोय कसर बचलोॅ छै।
रचना:-हों! हों आभी तेॅ सब बचले छै
पुरोहित:-से कि...
रचना:-सिनूर दान! ...
गीत:-
सिन्दूर सजाबै वाला, सिन्दूर के लाज रखिहोॅ
कछ बात राज के छै, मन-मन मेॅ राज रखिहोॅ जिनगी जहाज चढ़लै, दरिया के बीच चललै डगमग करै कभी नय, चौकस मियाज रखिहोॅ। रूप, ज्ञान, लक्ष्मी, साथी दवा, सिपाही पारो के माथ पर सब आशीश ताज रखिहोॅ। पुरोहित:- (फटाफट सिनूर-दान कराय देलकै) । केकरॉ आँखी से लोर टपकै तेॅ केरकरोॅ आँखी से खुशी के इजहार। सब के हाँथ आर्शिवाद के लेली उठी गेलै।
रचना:- (रचना पीठ थपथपाय के पारो के बधाई देलकै) । इ समय कानै कपसै के नय, दुल्हा के साथ अगला रश्म निभांबै के छै बहिन।
हिम्मत आरोॅ होशियारी सेॅ जीना दै। दुल्हा बाबू आपने दोनों केॅ शादी के खूब बधाई.
संदीप:-धन्यवाद! आबे जल्दी आपनोॅ बारे मेॅ साचियै।
रचना:-श्योर। ...! अच्छा पड़िजी प्रणाम!
पुरोहित:-मगन रहो बेटी. आय तोरा सेॅ बहुत ज्ञान के बात सीखलौं। धन्य छो तोय आरोॅ तारोॅ माय-बाप! ... ते जजमान आबे हमरोॅ काम खतम होय गेलै। आबै हमरा दान-दक्षिणा दे के विदा करोॅ।
दादी:-पहिनेॅ खाय-पी के बेटी केॅ विदा करी लेॅ पडिजी तबै आपनेॅके विदा करबै। आबै।
पुरोहित:-असल हमरा एक टा आरोॅ बीहा कराबै ले जाना छै दाय।
दादी:-आबै कहाँ मेॅ बीहा छै पड़िजी. तनटा पहिनें कहलॉ कि लगन आधे घंटा छै।
ओसता:-हम्में कहलिहौन नी दादी, पंडिजी के अलगे बथान रहै छै!
पुरोहित:-ये मेॅ अलगे बथान के की बात छै रे।
ओसता:-आपनेॅ सब बूझै पंड़िजी! खोलियै दीहौन की।
पुरोहित:-ओह! तोरा सेॅ लगना बेकार छौ भाय! आखिर कहाबत ग़लत थोड़े छै। पक्षी मेॅ कौवा ज...!
पुरोहितः-धौ जजमानी ... तौहूँ हमरा पर लागलिये छो। चलो भाग आबे पारो के विदा करिये के जैबो। ...
गीत:-
पोखरी किनारी होय के चलीहें रे कहरा
देखी लेबै बाबा के बहियार रे।
-'भगवान प्रलय'
(निर्देशक महोदय आरोॅ कुछ विदाइ गीत सामिल करे पारै)
सूत्रधारः- (रचना के प्रवचन रंग लानलकै। पारो केे दिन-महीना-साल हँसतेॅ-खेलतेॅ मगन सेॅॅ बीतलौॅ गेलै। तीन साल बाद पारो आपनो प्यारी सहेली रचना के नया डिस्पेंशरी मेॅ एक परी सन बेटी केॅ जन्म देकेॅ माय बनै के सौभाग्स प्राप्त करलकै गेलै। छट्ठी के खूब धमगज्जर भोज-भात होलै। दोनो परिवार गद्गद्। नय कोय मैल नय माँग नय शिकायत। ऐसन परिवार आरो समाज नमनीय छै। जमाना के लेली मिशाल छै)
(धन्य छै कुलबन्ती बेटी आरो धन्य छै बेटी के ससुराल। इनोर करते रहलै माँग के भूषणा सिनूर।)