भेड़ें / सुषमा गुप्ता
Gadya Kosh से
"चल कम्मो"
"कहाँ?"
"बाबा जी के डेरे"
"क्यों?"
"माथा टेकना है"
"क्यों?"
"अरे सब टेक रहे हैं"
"क्यों?"
"अरे इतने लोग टेक रहे हैं। बाबा जी बहुत पहुँचे हुए होंगे तभी तो न।" शानो बोली
"अरी हाँ कम्मो। बाबा जी के चरण छू के मेरी नंद के इस साल लड़का हुआ।" शान्ता बोली
"अरे! मेरे तो जेठ का लकवा ठीक हो गया उनके दर्शन से" रजनी ने भी खूब जोर देते हुए कहा।
"हैं! ! सही में! खूब तेज होगा बाबा जी में फिर तो। चलो-चलो मैं भी चलती हूँ।"
यूँ ही पचास औरतें और पीछे हो ली, डेरे के पब्लिसिटी डिपार्टमैंट से अपनी-अपनी पेमैंट ले कर शानो, शान्ता, रजनी तीनों चलती बनी।
बाबा जी की जय-जयकार दूर तक गूँज रही थी।