भेड़ और बच्चा / शायक आलोक

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहते हैं उस गाँव में जो एक झील थी उस झील के अन्दर कोई गाँव था। बहुत युग पहले उस झील वाले गाँव का एक अनाथ बच्चा इस गाँव में आ गया। उस बच्चे ने अपना वेश बदला और एक भेड़ बन गया। वह झील के किनारे की नर्मघास खा रहा था जब उस बूढी औरत ने उसे देखा। वह उसे अपने घर ले आई और उसे प्यार करने लगी। वह उसका बहुत ख्याल रखती, उसे नर्म घास खिलाती। जब भी उस बच्चे का मन होता वह बूढी औरत की नजर बचाकर घर से बाहरनिकल आता और अपनी भेड़ की वेश-भूषा त्याग फिर से बच्चा बन जाता। यह सिलसिला चलता रहा और वह एक मोटा ताजा जवान भेड़ बन गया। कहते हैं उसी समय उस झील के अन्दर के गाँव में मुनादी हुई कि बाहर के गाँव में गएसभी लोग लौट आयें क्योंकि अब झील के देवता के नए कानून के अनुसार यह पारगमन बंद कर दिया गया है। बूढी के नेह में बंधे उस जवान भेड़ ने बूढी को छोड़ना ममता का उपहास समझा और यहीं रहना तय किया। वह अपने फैसले सेखुश था। बूढी औरत ने उसका चारा बढ़ा दिया था। उसके नर्म बालों पर घंटों उँगलियाँ फिराया करती। उसकी पीठ और पेट थपथपा उसपर प्यार जताती। कभी उसे गोद में उठा लेती और प्यार से हिलाती। उसे बहुत अच्छा महसूस होता। कुछमहिनों बाद सर्दियों के दिन आ गए। तभी एक रोज उसने बूढी औरत को कहते सुना - “अब वह तैयार है।। मैंने उसे हर तरह से देख लिया है। उसके बाल, उसकी खाल और उसका वजन तीनो अच्छी कीमत दिलाएंगे। “उसे बहुत दुःख हुआऔर वह फिर से एक बच्चा बन गया। बच्चों द्वारा भेड़ बने रहने से इंकार की वह पहली घटना थी।