भेद ये गहरा, बात ज़रा-सी / ममता व्यास
सड़क किनारे बने हुए हवेलीनुमा मकानों के सामने की सड़के हमेशा खूब साफ सुथरी होती हैं। उन घरों के नौकर रोज ही घरों से कचरे की बड़ी-बड़ी पन्नियाँ उठा कर पास ही बनी झोपड़ पट्टी के सामने फेंक आते है। फिर शुरू होता है उस बस्ती के बच्चों का खेल वो सब उस कचरे में से अपनी अपनी पसंद के खिलौने खोजते है। इक़ दिन ऐसा ही हुआ। बहुत-से बच्चे उस कचरे में से अपने मतलब की चीजे छांट रहे थे। लेकिन इक़ छोटे बच्चे के हिस्से कुछ भी नहीं आया। वो बड़ी देर तक रोता रहा फिर हार कर उसने उस कचरे से इक़ टूटी हुई गुड़ियां खोज ली। और बहुत ही प्यार से उससे खेलने लगा। उस बच्चे के चेहरे पर मैंने बहुत ही प्यार देखा। उस टूटे खिलौने के प्रति। वो घंटों खुद को भुला कर उस टूटे खिलौने के साथ था। कैसी शांति और कैसा प्रेम था उसके चेहरे पर। उसके गालों पर बहते आसूँ अब इतिहास बन गए थे और उसके होठों पर इक़ पवित्र मुस्कान थी। कैसे उस बच्चे ने उस टूटे हुए खिलौने में खुद को समा कर ख़ुशी खोज ली।
हम समझदार लोग खुश होने के लिए कितने जतन करते है। रात दिन इक़ करते है। इकदूजे को नीचा दिखाते हैं। गिराते हैं। झूठ बोलते है। छलते हैं। भेष बदलते है। मुखौटे लगाते हैं। कवच पहनते हैं। छवि गढ़ते है। ख़ुशी छीनते है और जब इन सबसे भी बात नहीं बनती तो वस्तुओं में ख़ुशी तलाशते हैं।
कोई अपने हवेलीनुमा मकान को देख खुश होता है। कोई अपनी लम्बी कार देख कर। कोई बैंक बेलेंस देख तो कोई फेसबुक पर अपने पांच हजार दोस्त देख कर। लेकिन ये ख़ुशी फिर भी टिकती नहीं। फूलों से खुश्बू की तरह उड़ क्यों जाती है? इतना सब पा लेने के बाद भी वो संतुष्टि नहीं दिखती वो मुस्कराहट भी नहीं खिलती। जो उस गरीब बच्चे के चेहरे पर टूटे, बेकार से खिलौने ने खिला दी थी। क्या भेद है ये?
दरअसल बच्चे ने उस खिलौने में खुद को डूबा दिया। समा दिया। खुद को भुला दिया। जब-जब भी हम खुद को भुला कर खुश होते है। वो ख़ुशी स्थायी होती है। उस ख़ुशी का अहसास जीवन भर आपके साथ चलता है। जैसे किसी बहुत सुन्दर दृश्य को देख आप खुद को भूल जाते है। या कोई लम्हा जब आपको आपसे जुदा कर जाता है। वो याद वो पल आप कभी नहीं भूलते। जिस पल आप गुम हुए थे। वो पल हमेशा आपके साथ चलते है।
अक्सर हम कहते सुनते है। सुन्दरता देखने वालो की आँख में होती है। लेकिन कैसे? इक़ दिन किसी नदी किनारे जाना हुआ। वहाँ कुछ लोग अपनी मन्नतों के दीपक सिरा रहे थे तो कुछ अपने पाप धो-धो कर नदी को मैला कर रह रहे थे। कई सारे उस पानी का इस्तेमाल अपनी जरूरतों के लिए कर रहे थे। बड़ा शोर मचा हुआ था चारों और लेकिन लेकिन लेकिन मैंने चुपके से सुना की लहरें, किनारों से बतिया रही है। ज़रा ध्यान दिया तो उनकी आवाजे भी सुनाई देने लगी। कितनी सुन्दर। कितनी आजाद थी लहरें। अपनी मर्जी से आती और जाती थी। अहंकार से अकड़े किनारे भीग भीग जाते थे लेकिन अपनी जगह से हिलते नहीं थे। वो वापस चली जाती। उस दिन मैंने ये जाना की नदी का इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए करते-करते हम कितने स्वार्थी हो गए कि कभी भी दो घड़ी बैठ कर उसकी सुन्दरता को नहीं निहार सके। उसकी बात नहीं सुन सके। कितनी नदियों ने कहा होगा मैं नदिया फिर मैं भी प्यासी। भेद ये गहरा बात ज़रा-सी।
हाँ उस दिन ये भी जाना कि सौन्दर्य आखों में ही होता है। और प्रेम मन में। जब तक आप प्रेम से लबालब नहीं होते ये दुनिया कभी भी सुन्दर नजर नहीं आती । पिछली रात बहुत कोहरा था, ओस थी। ये तो सभी कहते है लेकिन कितने लोग देख पाते है कि पिछली रात चुपके से आसमान ने धरती को इक़ प्रेम पत्र लिख भेजा है। ओस की बूंदों से लिखा हुआ। ये जो सुबह हम पत्तियों पे ओस देखते हैं ना ध्यान से देखो तो इक़ प्रेम कविता ही है। क्या आसमान सिर्फ पानी बरसाता है? या वो धरती को कोई संदेश देता है? क्या सागर सिर्फ नदियों के जुड़ने से बना है? या आसमान के आंसूओं को समेट कर चुपचाप पड़ा है। लेकिन हमें नहीं दिखता। क्योंकि हम भीतर से सूख गए हैं। अब हमारे भीतर कोई हरापन नहीं बचा। कोई गीलापन नहीं। सब बंजर कर दिया हमने। हम खोखले है भीतर से।
जब-जब हम भीतर से कंगाल होते हैं। गरीब होते हैं। खोखले होते हैं। उस कमी को पूरा करने के लिए बाहर भटकते है। अपने खालीपन को लिए लिए सौ जगह भटकते है लेकिन फिर भी खाली ही रहते है। रीते ही रहते है। जिस दिन हम खुद प्रेम से भरे होते है उस दिन पाने के लिए नहीं देने के लिए आतुर होते हैं। जिस तरह फूल की सुगंध उसकी पहचान है। उसी तरह प्रेम की भी इक़ खुश्बू है। जो आप के भीतर से निकल कर बिखरती है, बशर्ते हमारा दिमाग चालाकियों से खाली हो। मन के भीतर सौन्दर्य और प्रेम भरा होगा तभी हम बाहर भी इसे खोज सकेगे।
ख़ुशी और प्रेम पाने का भेद गहरा है। लेकिन बात ज़रा-सी ही है। खुद के प्रेम कलश को भर लेना होगा।
ओशो ने बहुत सुन्दर बात कही है,
आप खुद को हमेशा प्रेम से भरे रखिये। इक़ दिन आपका सर्वश्रेष्ठ प्रेमी खोजता हुआ आपके पास चला आएगा। तो चलिए ना... आज से खुद के भीतर महसूस करें सौन्दर्य, प्रेम और बहुत-सा प्रेम। और सबको बता दे, भेद ये गहरा पर बात ज़रा-सी!