भेद / शुभम् श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
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भेद हम सबके साथ होता है। किसी के संग पैसे से किसी के संग रुतबे से तो किसी के साथ लिंग, जाती या रंग भेद।

मैंने नेल्सन मंडेला और गाँधी की जीवनी पढ़ी। क्या करे बचपन से ही पढ़ने का शौक था। पर क्या इनका जीवन संघर्ष लोक-न्याय दिलवा पाने में सक्षम था।

समाज की लचर प्रणाली इस भेद को खत्म कर पाने में शायद ही कामयाब हो। पेपर पेन यानी कखज़ात पर सब बराबर है। लेकिन असलियत इससे कोसों दूर है। मुझे आज भी याद है कक्षा 3 की घटना जब मुझे यह कहकर एक लड़के ने अपनी सीट पर बैठने नहीं दिया की यह तो कालिया है। हाँ, काला हूँ पर उस वक़्त इतनी समझ नहीं थी तो बहने लगे आँसू। फिर कद में छोटा था तो चाहकर भी वॉलीबॉल और क्रिकेट खेलने को नहीं मिलता। इन सबके लिए लगभग 5' 8 इंच का कद चाहिए पर अपनी 5 फुट साढ़े 5 इंच सेना में भर्ती होने के लिए भी ना मिले भले ही कितनी भी देशभक्ति खून मैं बसी हो।

इन सब ख़यालो में खोया हुआ 11वी कक्षा का छात्र नैतिक लाइब्रेरी की खिड़की से बाहर देख रहा था। ऐसे ख्याल इसलिए भी चल रहे थे क्योंकि नेल्सन मंडेला जी की मृत्यु की खबर उसने चंद मिनटों पहले अख़बार में पढ़ी थी। पीरियड ओवर हुआ तो बाहर निकला। सामने से एक सीनियर ने मुस्काया तो इन्होंने भी अपनी 32सी निपोर दी। अपने दोस्त से सीनियर ने बोला-'यार! मुझे इसकी शक्ल देखकर हँसी आती है।'

नैतिक का अंतर्मन खौलने लग गया। बस काँटों तो खून नहीं। क्या कहे किस्से कहे कैसे कहे अभी तो अपनी यादों से तरो ताज़ा हुआ था आज फिर किसी ने जले पर नमक छिड़क दिया। माथा ख़राब होने पर उसने सिर्फ़ इतना ही बोला-'क्रोध में खुद को क्यों जलाऊ ख़ुदा सब देख लेगा।'

विज्ञान तो ले लिया लेकिन कुछ खास रुचि ना होने के कारण कुछ हाथ नहीं लग रहा था। अकेले गणित से कुछ होने वाला नहीं था। बस मन में यही रहता कि कैसे वह कुछ कर गुजरे की आगे कोई उसे इस तरह प्रताड़ित न करे।

प्रतिभा होना अलग बात है और प्रतिभा को अपना व्यवसाय बनाना अलग बात है।

गणित और थोड़ा बहुत कंप्यूटर में शौक था पर इतने से काम नहीं बनेगा।

14 अप्रैल, आज कंप्यूटर के शिक्षक नहीं आए, तो सब मजे कर रहे थे। कोई नेट से मूवी डाऊनलोड कर रहा था तो कोई गाने सुन रहा था। नैतिक की नज़र प्रतीक पर पड़ी। वह शतरंज खेल रहा था।

नैतिक-'क्या, यार क्या खेल रहे हो दिमाग़ खराब नहीं होता क्या बैठें-बैठें इसमे?'

प्रतीक-'तू खेल के तो देख ये बिल्कुल पजल या पहेली सुलझाने जैसा है।'

नैतिक पूरे पीरियड प्रतीक के साथ खेला। हर बार हार हाथ लगी। अब तो फितूर चढ़ गया कि प्रतीक को हराए बिना वह शांत नहीं बैठेगा। नैतिक हर स्पोर्ट पीरियड में प्रतीक को शतरंज खेलने के लिए पकड़ लेता ताकि वह उसे हरा पाए.

लगभग 16 बार हारने के बाद उसने प्रतीक को फ्राइड लिवर तकनीक से हरा दिया। प्रतीक देखकर दंग की कोई लड़का इतनी जल्दी यह तकनीक कैसे सीख गया। जबकि उसने यह तकनीक सीखने में साल लगाए थे। ना ही नैतिक के सामने कभी ये चाल चली। उसने उसे हल्के में लिया था और वह हार गया।

प्रतीक-'कैसे दिमाग़ में आया ये चाल?'

नैतिक-'पता नहीं भाई बस हो गया।'

प्रतीक-'चलना तुक्का था ये।'

नैतिक-'क्यो तुम ही तो कहते थे ये पजल सॉल्व करने जैसा है और मुझे पजल सॉल्व करना पसंद है।'

अच्छा तो इस बार अंडर 18 हमारे गाज़ियाबाद में हैं इसमें खेलके दिखा दो अगले दो महीनों में।

नैतिक- 'मंज़ूर'

अब नैतिक दिन-रात सिर्फ़ शतरंज के 64 वर्ग में सिमट कर रह गया। उसे कुछ और नहीं सूझता।

दो महीने बाद।

मुकाबला कॉफी सरल था 6 जीत में टूर्नामेंट खत्म नॉक-आउट फॉरमेट था। पहला मुक़ाबला नैतिक ने आसानी से जीत लिया कुल 13 सेकंड लगे और मैच खत्म। प्रतीक देखकर दंग की ये कैसे हुआ। उल्टा ऐसा हुआ कि वह पहले राउंड में बाहर हो गया।

नैतिक ने प्रतीक को चिढ़ाना चालू कर दिया-'रे भाई, गुरु निगल लिए गए और चेले ने चीर दिया।'

प्रतीक-'हाँ, हाँ देखते हैं तू कहाँ तक जाता है।'

नैतिक-'चिल रे! जिगरी है तू मेरा मैंने दिल दुखाने के वास्ते नहीं बोला।'

नैतिक जीतता चला गया। अब वह क्वार्टर-फाइनल मैं पहुँच गया। इस श्रेणी में वह अपने विद्यालय में इकलौता बचा। नज़र उस पेथी सबकी की वह कैसे जीतेगा। नैतिक को काला गोट मिला। जबकि उसे सफेद का शौक था क्योंकि सफेद गोट वाले को पहले चलने को मिलता है जिस से वह गेम का पूरा कंट्रोल अपने हाथों में लेता है। मैच शुरू हुआ पहले की 4 चालो में उसे लगा कि वह जीत जाएगा उसने अपने प्रतिद्वंद्वी की आँखों में देखा और मुस्काया क्योकि उसके हिसाब से अगली 2 चालों में शय और मात हो जाती लेकिन उसके प्रतिद्वंद्वी ने उसे वापस दैत्यरूपी मुस्कान दी जिससे उसकी आत्मा सिहर जाए और बोला तुम फँस गए और अगली ही चाल में उसका वज़ीर मार गिराया अपने घोड़े से। वज़ीर के जाते ही नैतिक निहत्ता हो गया। अब प्रतिद्वंद्वी उसे धोबी पछाड़ देर रहा था अगली 3 चाल में खेल ख़त्म। बेचारा नैतिक संभाल भी नहीं पाया अपने आपको।

प्रतीक ने कहा-'कोई नई लड़के सही खेला रे तू।'

नैतिक-'सही, साले दौड़ा-दौड़ा कर मारा मुझे पानी भी नहीं मिला।'

प्रतीक हँसकर बोला-'साले, वह नेशनल लेवल का प्लेयर है। उससे जीतना तो मुश्किल होता ही इसलिए तू हार गया।'

नैतिक-'तो तूने पहले क्यों नहीं बताया?'

प्रतीक-'बता भी देता तो क्या उखाड़ लेता रे तू।'

नैतिक को ये बात अखर गई वह वहाँ से चला गया।

2 साल बाद

कॉलेज में नैतिक अपने दोस्तों से कहता है।

'यार जाकर कह दूँ उसे।'

यमन, शाकिब और देवेश सबने बोला-'हाँ, हाँ जाके बोल तो।'

शकीना दिखने में काफ़ी सुंदर थी। उसके पीछे वैसे ही काफी लोग पड़े थे। '

नैतिक जाकर बोलता है।

'यार तुमसे बात करनी है कुछ।'

शकीना- 'बोलो'

नैतिक-'हम तुम्हे पसंद करते है क्या तुम मेरी दोस्त बनोगी।'

शकीना-'सुनो, शक्ल देखी है अपनी, तुम्हारे जैसे लड़के को तो मैं फ़्रेंडजोंन में भी ना रखूं। आया बड़ा'

यमन और शाकिब हँसने लगे। नैतिक फिर यादों में जकड़ गया। एक लंबी याद्दाश्त होने का घाटा, बाते एक के बाद एक घूम-घूम कर याद आती है जैसे कल ही बीती हो। फिर वह मन ही मन में मनन करने लग गया। ' मैं अपना गुनहगार खुद ही हूँ। लोगो से मैं क्या उम्मीद रखूं। ऐसा करना मतलब खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। क्योंकि मेरी खुशियों की चाबी किसी और के पास है वह जब चाहेंगे जैसे चाहें गे वैसा घुमाएँगे। वैसे ये समय दर समय पीढ़ी द्वारा विकशित सोच है। विज्ञान की भाषा में कहें तो इसे एवोलुशनरी ट्रेट कहेंगे। उसके दिमाग में आया आखिरकार क्यों फ़रिश्ते गोरे और दैत्य काले बनाए गए.

तभी देवेश बोला-'होता है भाई मिल जाएगी कोई न कोई.'

नैतिक ने ठान लिया कि अब नहीं का मतलब नहीं कभी नही।

पाँच साल बाद नैतिक एशिया शतरंज के फाइनल में खेल रहा होता है।

इस बार फिर से ब्लैक गोट। खेल शुरू होता है सामने वाला चौथी चाल में त्योरी चढ़ाकर ताव देता है कि तुम मेरे लेवल के नहीं हो। नैतिक ने उसके हाथी को पर अपना ऊँट गवाँ दिया चेक लगने की वजह से। दोनों तरफ आँखों ही आँखों में इशारे चल रहे थे एक के बाद एक। नैतिक को अपना पिछला सब फ्लैशबैक में दिखने लगा। कैसे वह बड़े प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ काली गोट में गलती करता रहता था। उसने जाल बिछाना शुरू किया शुरुआत में पाइजन ट्रैप लगाया लेकिन बीच रास्ते में उसे बदलके क्रेच डीरेक कर दिया जिससे लगे कि वह दिक्कत मैं है लेकिन बाज़ी पलट गई जैसे ही गेम ने गति पकड़ी। सामने वाले ने मुँह हैरत वाला बनाया। 4 घण्टे तक चले इस मैच का विजेता बना नैतिक। उसका न्यूज़ में नाम आया। एफ0बी0 पर बधाई देने वालो का तांता लग जाता है। फेसबुक में वह सबके मैसेज का जवाब दे रहा था कि देखता है कि जो सीनियर थी उसके चेहरे काम ख़ौल उड़ाने वाली वह उसे शुभकामनाए भेजी है। फिर कतार में शकीना का भी मैसेज था। उसने दोनो के मैसेज का जवाब नहीं दिया। एफ0बी0 बंदकर के उसने चैन की साँस ली। तीन घंटे बाद पुरस्कारदिए जा रहे थे। उसे अपने बारे में बोलने के लिए कहा गया। उसके मुँह से सिर्फ़ 3 शब्द निकले-'ब्लैक! बोल्ड एंड ब्यूटीफुल' कई लोगो को समझ नहीं आया कि नैतिक ने ऐसा क्यों बोला पर दो इंसान बहुत अच्छे से समझ रहे थे कि नैतिक ने ऐसा क्यों बोला।