भैंसासुर का ब्लॉग बम / ललित शर्मा
यमराज ने रात को चित्रगुप्त को बुलाकर चेताया – “भैंसा को कल सुबह अच्छे से नहला धुलाकर, खिला-पिला कर तैयार रखना, कल मुझे अपने कोर्ट मे ज़ल्दी जाना है। एक विशेष मुकदमे की सुनावाई करनी है, भूलना मत।”
चित्रगुप्त ने सेवकों को बुलाकर यमराज का फ़रमान सुना दिया और सोने चले गए। सुबह हुई । यमराज कोर्ट जाने के लिए तैयार बैठे थे।
चित्रगुप्त को बुलाकर पूछा-"क्यों सब तैयार है ना?
चित्रगुप्त ने कहा-"हाँ महाराज, सब तैयार है"।
“जाओ एक बार देखकर आओ।”-यमराज ने आदेश दिया।
चित्रगुप्त यमराज के आदेश पर भैंसाकोठा में जाते हैं तो देखते हैं कि सभी सेवक मुँह लटकाए खड़े हैं, उन्होंने पूछा-“क्या हो गया? कौन मर गया जो तुम सभी लोग मुँह लटकाए खड़े हो, और रे मेहतरु, तेरे को क्या हो गया है? जो सावन की झड़ी जैसे पसीना छुट रहा है।”
भैंसा कोठा का मुक़र्दम मेहतरु था। मेहतरु ने कहा- “महाराज अभी भोर में ही मैं उठकर भैंसा को सुंदर धो-मांज कर खिला-पिला कर तैयार किया था। तभी रानी साहिबा का बुलव्वा आ गया, पानी भरने का, मैं उनकी सेवा में चला गया, अभी आकर देखा तो कोठे से भैंसा नदारत है। सभी सेवकों को उसे ढूँढने के लिए भेजा हूँ। अब क्या करना चाहिए आप ही सलाह दीजिए हुजूर।”
इतना सुनना था कि चित्रगुप्त को लगा, पैरों के नीचे की धरती खिसक रही है। चित्रगुप्त ने कहा- “जाओ ज़ल्दी ढूँढ कर लाओ, अगर यमराज महाराज को पता चल गया तो सभी को रौरव नरक में भेज देंगे। ज़ल्दी ढूँढों रे। तब तक मै महाराज का क्रोध शांत करने का उद्यम करता हूँ।”
सेवकों की फौज़ ने भैंसा को ढूँढना शुरू कर दिया, खेत-खलिहान, बाड़ी-बखरी सब जगह ढूँढा जा रहा है। खोज तीव्र गति से जारी है। उधर यमराज बार-बार चित्रगुप्त से पूछ रहे थे- “क्या हो गया? मेरी सवारी अभी तक नहीं आई है? कोर्ट जाने का समय निकला जा रहा है। ऐसा ही होता है जब मुझे कोई विशेष कार्य रहता है, तब ये सब लेट लतीफ़ी का तमाशा करते हैं। नहीं तो दिन-रात भैंसा पगुराते हुए बैठा रहता है। भेजो तो सभी को रौरव नरक में, साले वहीं पर सुधरेंगे जाकर, यहाँ तो हराम का खा-खा के मोटा गये हैं।”
चित्रगुप्त ने कोध्र शांत करने की दृष्टि से दाँत निपोरते हुए कहा- “इतना कोध्र ना करें महाराज, बस आपकी सवारी आती ही होगी। जैसे ही भैंसा को आपकी सेवा में लाया जा रहा था, उसने गोबर कर दिया, जिसमें उसकी पूँछ और पैर सन गए हैं, तो उसे धोने के लिए मैने फ़िर से वापस भेज दिया हैं। अब आप गोबर से सने हुए भैंसा की सवारी करेंगे तो अशोभनीय होगा। राह में चलते हुए लोग देखेंगे तो खिल्ली उड़ाएँगे। इसलिए यमराज के भैंसा का साफ़-सुथरा होना आवश्यक है।”
मेहतरु भैंसा को ढूँढते-ढूँढते हलाकान हो चुका था, उसका कहीं पता नहीं चल रहा था। तभी रास्ते में बरातु पहाटिया मिल गया । "राम-राम मेहतरु भैया, कहाँ निकल पड़े सुबह-सु्बह? कुछ हलाकान दिख रहे हो? सब कुशल तो है?”
मेहतरु ने कहा-"क्या बताऊँ बरातु भाई ! यमराज महाराज कोर्ट जाने के लिए तैयार बैठे हैं, इधर भैंसा को मै नहला-धुला कर, खिला-पिलाकर तैयार किया था, पता नही अचानक कहाँ खिसक दिया है, उसी को ढूँढ रहा हूँ।”
बरातु ने कहा-" अरे! अभी तो भैंसा मुझे बाज़ार के पास मिला था, मैने उसे पूछा भी था कि कहाँ जा रहा है? तो उसने लछमन के लड़के भुलाऊ की कम्प्यूटर दुकान में जाने की बात बताई थी, अब बाक़ी तुम समझो, मैंने उसका पता बता दिया है।”
मेहतरु सबसे पहले समाचार देने के लिए चित्रगुप्त के पास दौड़े-दौड़े गया और बोला-"महाराज भैंसा मिल गया है, ज़ल्दी चलिए, नहीं तो फ़िर और कहीं खिसक गया तो समझ लो आफ़त आ जाएगी, हमारी सज़ा पक्की समझो।"
चित्रगुप्त तुरंत मेहतरु के साथ चल पड़े, बाजार में पहुँचे तो भैंसा मिल गया। वह कम्प्यूटर की दुकान में बैठा-बैठा पगुरा रहा था। चित्रगुप्त और मेहतरु को देख के बोला-" आओ आओ मै तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था।"
भैंसा को देखते ही चित्रगुप्त का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ गया, भैंसे को गुस्से में में हँकड़ने लगा -"साले नमक हराम तू यहाँ पर बैठा पगुरा रहा है और वहाँ महाराज कोर्ट जाने के तेरा इंतज़ार कर रहे हैं।" "आले-साले मत बोल चित्रगुप्त, नहीं तो ठीक नहीं होगा। जैसे तुम लोग सेवक हो यमराज के वैसे मै भी हूँ। मैं यहाँ पर तुम्हारा ही भंडाफ़ोड़ करने आया हूँ।”
"क्या क्या भंडाफ़ोड़ करने आया है बे?"-चित्रगुप्त गुस्से से चीखा।
भैंसा बोला-" तुम लोग महाराज-महाराज कहके यमराज को कितना बेवकूफ़ बना रहे हो मैं सब जान गया हूँ, मुझे इसी बात का यहाँ भंडाफ़ोड़ करना है। कल ही मुझे भुलाउ ने बताया कि एक इंटरनेट नाम की एक चीज़ आई है कम्प्यूटर में। अगर तुम्हें किसी का भंडाफ़ोड़ करना है तो आना, मैं उसमें तुम्हारा ब्लॉग बना दूँगा फ़िर तुम अपनी बात वहाँ लिखकर छाप देना। सारी दुनिया जान जाएगी और पोल भी खुल जाएगी, मैं इसीलिए यहाँ पर आया हूँ।”
"हम लोगों को क्या बेवकूफ़ बना रहे हैं रे?” मेहतरु बोला। "चुप बे! (भैंसा को गुस्सा आ गया) मेरा दिमाग़ ख़राब होगा तो अभी सींग मार कर सुधार दूँगा साले तेरे को। बहुत हलाकान कर दिया है तूने मुझे। साले! मेरा खल्ली-चुनी, बिनौला को चोरी करके ले जाता है और अपनी भैंस को खिला देता है। मेरे लिए जो हरी घास आती है उसे अपने घर ले जाता है, पता नही क्या अपनी बीबी को खिलाता है या भैंसी को और मेरे को पूछ रहा है कि क्या बेवकूफ़ बनाता हूँ। मेरा नहाने का साबुन, सर्फ़ एक्सेल, पीने का दारु सब चोरी करके अपने घर ले जाता है, मेरी परेशानी की पराकाष्ठा कल हो गयी, साले! कल रात को मेरा पड़वा भूखा रह गया। उसके खाने के लिए कुछ भी नही था। मेरी आत्मा ही तड़फ़ उठी, ऐसा क्या काम करना जिससे मेरा बच्चा ही भूखा रह जाए। सारी दुनिया बच्चों का पालन पोषण करने के लिए ही काम करती है। यमराज मेरा जो खाना-ख़र्चा देते हैं उस पैसे तुम दोनों मौज़ उड़ा रहे हो और मूँछ में ताव देते घूम रहे हो और उधर पाँच मन की सवारी का बोझा ढोते-ढोते मेरी हालत ख़राब हो गयी है। ये यमराज महाराज को भैंसे की सवारी का क्या शौक़ चढा है, राजा है तो घोड़े-वोड़े पर चढना चाहिए।"
"अब चित्रगुप्त तुम्हारी सुन लो, तुम्हारा भी मज़ा चखाऊँगा। तुम क्या करते हो यमराज की नाक के नीचे, मुझे नही मालूम क्या? यमराज के कोर्ट में पूरा भ्रष्ट्राचार का खेल तुम ही खेल रहे हो। जब कोई बड़ा मुक़दमा आता है तो, पेशी बढाने का पैसा, गवाही आया है तो उससे पैसा, मुद्दई से पैसा, मुज़रिम से पैसा, सभी तरफ़ से पैसा ही पैसा सकेल रहे हो। चारों तरफ़ से खाओ बाबू। यदि यमराज ने किसी को कुम्भीपाक नरक की सज़ा सुना दी तो उसकी फ़ाइल गायब कर दो, नरक वाले जब सजा का आदेश मँगायें तो कह दो फ़ाईल नहीं मिल रही है और मुज़रिम को यहीं मज़ा कराओ, तबियत ख़राब करवा के अस्पताल में दाख़िल कर दो। तुम्हारी तो और भी बहुत ज़्यादा पोल है जिसे मुझे दुनिया के सामने खोलना है। कम से कम सभी को पता तो चल जाएगा कि मृत्यु लोक का वायरस यहाँ तक आ गया है। मेरा दाना-पानी और चारा तक तुम लोग खा जाते हो, जाओ कह दो यमराज से मैं नही आने वाला। ये मेहतरु ही अपनी पीठ पर बैठा कर ले जाएगा कोर्ट यमराज को। जाओ तुम लोग, मेरा समय ख़राब मत करो, अब मुझे ब्लाग बनाकर तुम्हारी पोल खोलनी है।”
भैंसा की बातें सुन कर दोनों को साँप सूँघ गया। पूरी दुनिया के सामने नंगे हो जाएँगे, सारी पोल खुल जाएगी सोच कर दोनों ने भैंसे के पैर पकड़ लिए और कातर स्वर में बोले-" आज के बाद ऐसी ग़लती नही होगी, भैंसा महाराज, आप क्रोध त्याग दीजिए। आपके जैसे ज्ञानी को क्रोध शोभा नहीं देता। हमें माफ़ करें और ये छापने-वापने का काम ना करें।”
"बोलो ना रे! अभी तो तुम लोग मुझे आले-साले कह रहे थे, और अभी पैर पकड़ कर माफ़ी माँग रहे हो, कैसे बे मेहतरु! छापूँ क्या?" भैंसा ने कहा।
"नहीं नहीं भैंसासुर जी, ऐसे मत कीजिए, आप जो कहेगें वो सब मान्य होगा,- मेहतरु की बजाय चित्रगुप्त ने रूआँसु होकर जवाब दिया।"
“चलो ठीक है, लेकिन मेरी कुछ शर्तें हैं, जिन्हें तुम्हें माननी पड़ेंगी, बोलो तैयार हो?”- भैंसे ने कहा।
चित्रगुप्त ने कहा-"बताईए भैंसासुर जी, आपकी सारी शर्तें मान्य होंगी।”
“तो सुनो!” भैंसासुर बोला- “पहली शर्त मेरे कोठा में दो-दो घंटे मे गोबर कचरा साफ़ होना चाहिए, दूसरी बात, कुलर और पंखे का इंतज़ाम होना चाहिए। तीसरी बात- इंटरनेट कम्प्यूटर की व्यवस्था होनी चाहिए, टीवी डिस्क का कनेक्शन होना चाहिए, राखी का स्वयंवर देखने के लिए, वो मुझे बहुत भाती है। रोज़ हरी हरी घास और खल्ली-चुनी की व्यवस्था दिन में दो बार होनी चाहिए, नहाने के लिए फ़व्वारा और बाथटब की व्यवस्था होनी चाहिए, लगाने के लिए फ़ेयर एन्ड लवली और बिल क्रीम होना चाहिए और मेहतरु मुझे दिन में दो बार डेटाल साबुन से नहलाएगा, मेरे पड़वा के लिए मेहतरु के भैंस के दुध का इंतज़ाम होना चाहिए, बोलो मंजूर है?”
चित्रगुप्त और मेहतरु ने पैर पकड़ कर भैंसा से कहा- “हमें मजूंर है भैसासुर महाराज, आप क्रोध त्यागकर हमारे साथ चलें, यमराज जी आपकी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं, नाराज़ हो रहें हैं। "यमराज नाराज होगें तु्म्हारे उपर, मुझे उससे क्या लेना देना, और मेरे को कहीं क्रोध से कु्छ कहे तो तुम्हारा सब भेद यमराज के सामने ही खोल दूँगा" - भैसा ने कहा।
चित्रगु्प्त ने पुचकारते हुए कहा -"आप चलो भैंसासुर जी, वहाँ की बात मैं संभाल लूँगा, आपको कोई कुछ नही कहेगा, पूरी मेरी ज़िम्मेदारी हैं"।
"चलो, फ़िर चलता हूँ लेकिन जान लेना कि मैं भी ब्लॉग छापना जान गया हूँ"- ऐसा कहकर भैंसासुर मस्ती में झूमते यममहल की ओर चल दिए।