भैयाजी का चुनाव / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु'
सब जीवों में मनुष्य को, मनुष्यों में जनसेवक को उत्कृष्ट प्राणी माना जाता है। जनता की सेवा करना इसका जन्म सिद्ध अधिकार है, सेवा करके अपना जीवन सार्थक करना मृत्युसिद्ध अधिकार है। चुनाव की घोषणा हो गई. कोढ़ में खाज की तरह जनसेवक गली-चौराहों पर दृष्टिगत होने लगे। चाय के खोखों पर भी राजनीति की चर्चा होने लगी।
भ्रमण के लिए मैं जैसे ही सड़क पर अवतरित हुआ, श्री झम्मकलाल भैया जी नज़र आए. चूड़ीदार पाजामा तथा लगभग टखनों तक का लम्बा कुर्ता पहने हुए थे। दोनों हाथ जोड़कर तथा कुहनियाँ मिलाकर 'जै राम जी' की। भैया जी आज मुझे क्यों अभिवादन कर रहे हैं, समझ में नहीं आया। 'पच्च' से दीवार पर थूककर मेरे पास आए-"मैं चुनाव लड़ रहा हूँ मास्साब। मेरा ख्याल रखना—-" भैया जी खींसें निपोरकर बोले।
"मैं क्या ख्याल रख सकता हूँ भाई. मैं ठहरा एक अध्यापका। मेरे हाथ में कौन-सी ताकत है?"
"अरे दद्दा आपके ही तो हाथ में ताकत है इस बार। जितने लड़कों को आप पढ़ा रहे हैं, इस बार सबके सब वोट के हकदार हो गए हैं। आपकी एक आवाज़ पर हजारों लड़के तैयार मिलेंगे। आप लोग देश के गुरु हैं। आप अपनी ताकत पहचान लें, तो देश पल भर में सुधर जाए."
"लेकिन आपको टिकट कैसे मिल गया?" मैंने आश्चर्य चकित होकर पूछा।
"टिकट—-! कुछ मत पूछिए मास्साब। टिकट फोकट में कहाँ मिल सकता है। बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। कई बार छोटी-बड़ी राजधानियों की तरफ दौड़ना पड़ा। टिकट कटवाने के लिए कई लोग लगे थे। इधर आइए, आपको बताता हूँ।"-मेरा हाथ पकड़कर वे चाय की दुकान पर ले गए. झूलती हुई मेज पर अपना शांतनिकेतनी झोला टिकाया और चायवाले की तरफ मुडे़-दो स्पेशल चा, हमारे चुनाव लड़ने की खुशी में। जोर से मेरे कंधे पर हाथ मारा-"मुझे आप ही लोगों का सहारा है। मेरे हाथ मजबूत कीजिए."
मैंने अपना कंधा सहलाया-"आपने तो मेा कंधा ही तोड़ डाला। आपके हाथ मजबूत कर दिए, तो आप पूरा शरीर ही तोड़ डालेंगे।"
भैया जी ' हो-हो—करके हँसने लगे-"अरे, आप तो अपने आदमी हैं। शरीर तोड़ने की गुस्ताखी नहीं करेंगे। हाँ, तो आप पूछ रहे थे कि टिकट कैसे मिला। मंत्री जी कब्र खोदकर कब्रिस्तान का उदघाटन कर रहे हैं-" उन्होंने मंत्री के फोटो के बगल वाले धब्बे पर उँगली रखी। मुझे इस धब्बे को भैया जी का फोटो मानना पड़ा।
वे और अधिक उत्साहित हो उठे और लगभग चहकते हुए बोले-"यह फोटो अध्यक्ष जी के साथ उनके चरण छूते हुए. यह अध्यक्ष जी के कुत्ते के साथ उसका मुँह चूमते हुए. यह अध्यक्ष जी पत्नी के साथ भूखे बच्चों में भोजन बँटवाते हुए. यह महासचिव के साथ बदनाम तस्कर के यहाँ दावत के वक़्त। यह विरोधी दल के नेता को काला झण्डा दिखाते हुए. ये फोटो दंगा कराते तथा जेल जाते हुए."
वे बोले-"मैंने अध्यक्ष जी से कहा-आपको मेरी वफादारी पर यकीन नहीं है। कल के लौंडों को टिकट दिए जाओगे और हम जैसे वफादारों को कूड़े के ढेर पर डाले रहोगे।" भैया जी की कंजी आँखें आवेश से चमक उठी। चाय आ गईं। चाय का घूँट सुड़कर बोले-मैंने महासचिव को भरोसा दिया है कि फर्जी वोट डलवाना मेरी मण्डली के बाएँ हाथ का खेल है। दो-चार जगह दंगा करा सकता हूँ। विरोधी पार्ठी के नेता के खिलाफ हत्या-बलात्कार-गबन के झूठे आरोप लगवा सकता हूँ। इससे अधिक कुछ चाहिए तो बोलिए. महासचिव चुपचाप सुनते रहे। मेरी पीठ थपथपाई-"हमें ऐसे ही जनसेवक की ज़रूरत है। तुम्हारा टिकट पक्का और बस, इस तरह मुझे टिकट मिल गया।"
हफ़्ते भर बाद चुनाव जोर पकड़ने लगा। भैयाजी का नाम अखबारों की सुर्खियों में रहने लगा-मेहतर टोले में भैया जी द्वारा कुँएँ का उद्घाटन (अपने लिए पहले ही खाई खोद चुके हैं) , धोबी टोले में सबके साथ बैठकर हुक्का पिया (जीत गए तो खून पिएँगे) , भैया जी ने 101 नंगों को कम्बल दिए (चुनाव के बाद वे खुद भी नंगों में शामिल हो जाएँगे) देश लूटने वालों को नहीं बख्शेंगे (आखिर हमारा हिस्सा कहाँ गया?) । इनके विरोधी बुलाकीदास और चंदूराम का पलड़ा हल्का नजर आ रहा था।
तरह-तरह के विज्ञापन दीवारों पर लिखे जाने लगे। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-पंडित कहता, कहता लाला, जीतेगा भाई भैया जी. भैया जी को जितवाओ, देश के प्यारे देश बचाओ. जीत गया जो बुलाकीदास, देश का होगा सत्यानाश। सेठ बुलाकी पर क्या नाज, गद्दारों का वह सरताज। जो मुर्गे पर मुहर लगाएगा, वह देश के टुकड़े कराएगा। देश जो अपना बचाना है, कद्दू पर मुहर लगाना है।
बुलाकीदास का प्रचार करने वाले घर-घर जाकर मुर्गे बाँट रहे थे। हफ़्ते भर में शहर भर के मुर्गे बुलाकीदास की भेंट चढ़ गए. नुक्कड़ पर भाषण दिए जाते। भाषण के शुरू में और अन्त में छुटभैये 'कुकड़ू कूँ' ज़रूर बोलते। भैया जी कहाँ पीछे रहने वाले थे। कद्दू बाँट-बाँटकर प्रचार होने लगा। जहाँ दस लोग खड़े मिल जाते, भैया जी भाषण शुरू कर देते-"कद्दू जनसाधारण का ही प्रतीक है। कद्दू खाने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और कद्दू पर मुहर लगाने से पाँच साल तक किसी प्रकार की बीमारी नहीं हो सकती। हमारे विरोधी कद्दू नहीं खाते, मुर्गा खाते-खिलाते हैं। उनको जिता दोगे तो तुम लोगों को पाँच साल तक मुर्गा बनाकर रखेंगे। हमारे ऊपर झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं-जनता का पैसा हड़पने का। इन मूर्खो से पूछो-जनता किसकी है? अरे, हमारी ही तो है, गैर तो नहीं। इस शहर की आबादी पाँच लाख है। मैं एक-एक रुपया ले लिया, तो हमारे दुश्मन हाय-तोबा मचाने लगे। आपसे मुझे बहुत प्रेम है-इसलिए आपके पैसे से, आपके दुःखों से भी प्रेम है। आप हमारे हाथ मजबूत कीजिए, हम आपको पूरी तरह सुधार देंगे।"
जनता न तो मुर्गा थी न कद्दू। मुर्गे और कद्दू हजम किए जा चुके थे। चन्दूराम-मुझे ठीक समझें तो वोट दीजिएगा। नहीं भी देंगे, तो भी आपकी सेवा करूँगा-सिर्फ़ इतना ही कहते थे।
आज चुनाव परिणाम निकल आया। भैया जी और बुलाकीदास की जमानत ज़ब्त हो गई. चन्दूराम जी चुनाव जीत गए. लोगों के चेहरे पर आज यह बात झलक रही-रही थी कि उन्होंने ईमानदार चन्दूराम को पसन्द किया था।
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