भोजन चयन, पकाने में नई शोध / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 21 मार्च 2021
भोजन के विषय पर कभी तर्क सम्मत विचार नहीं किया गया। इस क्षेत्र में जानकारियों का अभाव रहा है। सभी भौगोलिक क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार के भोजन किए जाते हैं। कोई एक विश्व पकवान नहीं हो सकता। विगत कुछ समय से इस विषय पर शोध चल रहा है। कैथरीन शहनहान की किताब ‘डीप न्यूट्रिशन और जेसन फंग की किताब ‘कंप्लीट गाइड टू फास्टिंग’ महत्वपूर्ण मानी जा रही है। कोई आश्चर्य नहीं है कि उपवास, निर्जल उपवास और रोजे पारंपरिक माने जाते हैं। परोसे गए सलाद में विभिन्न रंगों की गाजर, मूली, प्याज, मिर्च इत्यादि रखने की बात संकेत देती है कि स्वाद के साथ रंग का संबंध है। आदर्श सलाद तश्तरी में इंद्रधनुष परोसना हो सकता है। अधपके अंडे और सब्जियां महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। सबसे सशक्त दही को माना जाता है। हमारी जानकारियों का क्षेत्र सीमित है और अभाव व्यापक है। जानकारियों को ज्ञान नहीं कहा जा सकता। जानकारियों को तर्क सम्मत जांच करने के बाद प्राप्त हुए बूंद दो बूंद को ज्ञान कहते हैं। टेलीविजन पर प्रसारित जानकारियों के कार्यक्रम को ज्ञान का कार्यक्रम कहकर प्रचारित किया जाता है। कुछ लोग भोजन करने के लिए जीते हैं, और कुछ लोग जीने के लिए आवश्यक न्यूनतम खाते हैं। टेलीविजन संसार के सुपर सितारे राम कपूर ने दिन में 16 घंटे उपवास करके अपना वजन घटाया। शरीर से चर्बी हटाने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ता है। शरीर में शक्कर की मात्रा बढ़ने पर डायबिटीज रोग हो जाता है। इंसुलिन इत्यादि कई इलाज हैं। सही भोजन सही मात्रा में ग्रहण करने से लाइलाज कहे जाने वाले रोग भी मिट जाते हैं। धरती पर कई बार अकाल की दशा आई है। अकाल के अनुभव ने हमारे डीएनए में भी सहने की क्षमता बढ़ा दी है। बांग्ला भाषा में विगत सदी के पांचवें दशक में आए अकाल पर किताबें लिखी गई हैं। उस पर फिल्में भी बनी हैं।
यह सिद्ध किया गया है कि वह अकाल प्राकृतिक नहीं होते हुए मनुष्य के लोभ-लालच का परिणाम था। इस विषय पर अमर्त्य सेन का शोध महत्वपूर्ण माना गया है। भोजन पकाने के तरीके पर बहुत कुछ निर्भर करता है। बहुत अधिक तलने से विटामिन और मिनरल्स का लोप हो जाता है। लोहे की कढ़ाही में पकाने से लोहे के कुछ अंश भोजन में शामिल हो सकते हैं। मिर्च में मिनरल होते हैं। मिर्च के तीखेपन को नापने के भी मानदंड हैं। भारत के उत्तर पूर्व में एक छोटी सी मिर्ची होती है, जिसे पकती हुई दाल में केवल हल्का सा स्पर्श देने मात्र से तीखापन आ जाता है। स्पेनिश मिर्च भी अत्यंत तीखी होती है। महान संगीत संयोजक जुबिन मेहता अपने साथ स्पेनिश मिर्च लिए दावत में आते थे। जीवन के लंबे संघर्ष में इंदौर के सरोज कुमार जमकर मिर्च खाते हैं। मानव शरीर में अम्ल की अधिकता के पारंपरिक कारण हरी, वरी और करी को बताया गया है। हमेशा जल्दबाजी में रहना, मिर्च खाना और चिंता करने को कारण माना गया है। दरअसल इसकी जड़ स्वाभाव में निरंतर बेचैनी का बना रहना है। चिंता करना स्वाभाविक है परंतु कारण अत्यधिक चिंता करना रोग है। एक ऐसे ही व्यक्ति की शल्य क्रिया द्वारा मस्तिष्क में स्थित चिंता सेल्स को हटा दिया गया। प्रीफ्रंटल लोबोटॉमी की शल्य क्रिया के बाद उस व्यक्ति ने चिंता करना छोड़ दिया परंतु साथ ही उसका विवेक भी चला गया। उस पढ़े लिखे व्यक्ति को दरबान बनना पड़ा। उसका भाई के द्वारा दायर मुकदमे के कारण इस शल्य क्रिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
सही भोजन सही ढंग से पकाया जाए तो रोगों को जड़ से मिटाया जा सकता है। बाजार की ताकतों ने प्राकृतिक रॉक सॉल्ट का लोप कर दिया है। रिफाइंड नमक बाजार में छाया हुआ है। कुछ लोगों की त्वचा नमकीन होती है। यह दौर नमक हरामी का है। ज्ञातव्य है कि गांधी जी ने नमक बनाने के अधिकार की समानता के लिए द्वंद किया था। एक दौर में भोजन भट्ट भरपूर खाने के बाद गले में उंगली करके वमन करते थे ताकि पुनः भोजन ग्रहण कर सकें। भोजन प्रेम और भोजन भकोसने में भारी अंतर है।