भोज / धनन्जय मिश्र
पिता जी रोॅ गुजरला केॅ बाद इंगलेंड से पन्द्रह-सोलह बरस डाक्टरी करी केॅ डाॅ नरेन्द्र मिसर अपनोॅ गाँव ओड़हारा, बांका लौटलो छेलै। मंदारोॅ रोॅ गोदी में बसलो है गाँव ओड़हारा जहाँ बारह आना दरों सें यानी कि सौ में सत्तर प्रतिशत बराहमन जाति रोॅ लोग बसै छै। बांकी जातोॅ में कादर, जुलाहा, तेली, यादव, हरिजन, कहार, कुम्हार यानी कि मुसलमान छोड़ी के दू-चार-दस घोॅर सब जाति रोॅ लोग। पक्की सड़को (भागलपुर-दुमका) सें एक-डेढ़ किॉमीॉ पुरब कादोॅ-कीच्चर, धूल-धूरा सें भरलो-सनलो गाँव में जबेॅ डाॅक्टर साहेब ऐलोॅ रहे तेॅ सौसे गाँव के बच्चा-बूढ़ोॅ, जनानी-मरदाना हुनका देखेॅ लेली उमड़ी पड़लो रहै।
दुआरी पर चाचा-भतीजा में बहस छिड़लोॅ रहै। चाचा जी इलाका रोॅ पढ़लोेॅ-लिखलोॅ खन्नास किसान रहै। इलाका में हुनको इज्जतो रहै। हुनी जबेॅ अंग्रेज़ी में बोलय छेलै तेॅ अंग्रेजों भी हुनका आगु माँत। मतुर ताज्जुब रोॅ बात है छेलै कि कोनोॅ बातो पर चाचा गोस्सा में आबी के अंग्रेज़ी में झाड़ी रहलो छेलै आरू भतीजा बेटा जे अंग्रेजों के बीचों सें लम्बा समय तांय रहि के ऐलो रहेॅ, अपनोॅ माय रोॅ गोदी के भाषा अंगिका में ही बोली रहलोॅ छेलै।
भीड़ोॅ के बीचों में सुकरा कादरे खनतर साव से कहलकै-"देखै छौ हो खनतर भाय, एक युग तांय नरेनदर बाबु इंगलेन्डो में रहलै। अंगरेज मेम साथै वहाँ हुनि तेॅ टनटन अंग्रेज़ी बोलते होतै, मतुर आपनोॅ देश आवी केॅ हिनी आपने देश रोॅ भाषा, माय गोदी में जे बोललोॅ छेलै, उ भाषा केॅ नै भूललोॅ छै। की हो खनतर भाय कहीं इंगलेन्डो में हिनको रहै के बात झूट्ठे तेॅ नै छै।"
खनतर साव लिखलोॅ-पढ़लोॅ छेलै। शुकरा कादरोॅ केॅ धोपी केॅ कहलकै-"बड़ों लोगोॅ के बड़ो बात, चुप रहें नेॅ बें। सूने-समझें की कहै छै।"
मतुर सुुकरा कहाँ मानै बाला छैलै। मेट्रीक फेल करी केॅ हरबाही करै के मतलब ई तेॅ नै छेलै कि ऊ मुरूख, ना समझ छै। वें चटपट तुरत कहलकै-"गैनी झा रोॅ बेटा मणियाँ साले भर बंगाल कमाय के ऐलोॅ छेलै। बंगला आरू अंगरेजिये में खाली बोलै छेलै। कहै छेलै कि छा, छी, बोलै मेें हमरोॅ जीहेॅ नै उलटै छै। मतुर हिनी तेॅ फटाफट अंगिका छीका, छीकी में ही बोलै छै।"
अबकी खनतर साव ने जोरोॅ से शुकरा के धोपलकै-"मणियाँ अक्षर कटुओ बरजात छेलै। तोहेॅ होकरो बंगला भाषा आरू अंग्रेज़ी मंे बोलबो के की बुझबै। वैं तेॅ दोनों भाषा रो हाथ गोड़ तोड़ी केॅ बोलय छैलै। तहुँ होकरा से कम नै छै। अम्हक, माय गोदी रोॅ भाषा भी कोय भूलै छै रे।"
यै दाफी शुकरा पर असर होलै आरो चाचा-भतीजा रोॅ बीचोॅ के बहस पूरे धियान सें सूनै लागलोॅ छेलै। तखनी चाचा भी अंगिका भाषा में बोलै छेलै।
"तबे नरेन्द्र तोहे आपनो जीवन आरू इंगलेन्ड जाय से विषय में की सोचै छौ-चाचा बोललै। हम्में तेॅ कहभौ आवेॅ तोहे आपनो दायित्व के समझोॅ आरू होकरे अनुसार काज करोॅ।" है सुनि के डाॅक्टर साहेब बोललोॅ छेलै-"चाचा जी हम्में आपनो जीवन आरू इंगलेन्ड जाय रोॅ विषय में सोची लेने छिहै। जहाँ तक दायित्व के बात छै तेॅ हौ दायित्व के हम्में निभैवै। चाचा जी इंगलेन्ड में पैसा तेॅ खुब छै, मतरकि वहाँ आदमी-आदमी नै रहि गेलो छै। सिरिफ पैसा कमाय बाला मशीन होय गेलोॅ छै। वहाँ कोय केकरो नाय। सम्बंध वहाँ अर्थहीन होय गेलोॅ छै। माय, भाय, बहिन, बाप-बेटा सब रो सम्बंध बेरथ। जहाँ आदमियते नै छै वहाँ जाय केॅ की होतै। चाचा जी हमरा याद छै हमरो बाबु जी पं0 मेवालाल मिसर जे इलाका रोॅ शायद पहिलो स्नातक रहै। सौसे इलाका हुनका 'गुरूजी' कहीं के प्रणाम करै छेलै। हुनि हमरा इंगलेन्ड जाय बक्ती कहने रहै कि" नरेन्द्र जब ताँय तोरो इच्छा छौ, वहाँ डाक्टरी करिहो, मतरकि जबेॅ वहाँ से घुरबोॅ तेॅ याद रखियो, तोहे अपनोॅ माँटी के नै छोड़ियो। आपनो माँटी के ऋण चुकाय लेली वहाँ समय रहतौ। हम्में जे तोरा डाक्टरी पढ़ैने छिहौ, होकरो मान करी केॅ सफल करिहोॅ। "हम्में बाबु जी के सपना पुरा करवै। चाचा जी आवेॅ हम्में घुरी के इंगलेन्ड नै जैबै आरू पुनसिया में ही आपनो डिसपेन्सरी खोली केॅ ज़रूरत मंदो रोॅ सेवा करबै। आपनो आदमी के बीचोॅ में रही केॅ आपनो इलाका के लोगों केॅ इलाज करवै।"
"डिसपेन्सरी रो खर्चा केना चलथौ?" चाचा जी हाँसी के कहने रहै।
डाक्टर नरेन्द्र ने चाचा के कहै रोॅ अर्थ आरो हँसी में छिपलों व्यंग्य के संकेत समझी केॅ हँसिये के कहलकै-"घरोॅ से एक्को पैसा नै लेभोॅ चाचा जी. इलाज आरो डिसपेन्सरी चलाय रोॅ खरचा मरीजोॅ से लेबै। आय डाक्टरे लूटै छै। मरीजोॅ के चुसी के केतारी रोॅ सिट्ठी बनाय केॅ छोड़ी दै छै। हौ काम हम्में नै करबै। कम दवाय लिखबै। एकदम कम दाम के बढ़ियाँ दवाय देबै। जहाँ पचास टाका से सौ टाका तक दोसरोॅ डाक्टरे फीस लै छै, वहाँ हम्में दस टाका सें बेसी नै लेबै।"
"अच्छा है बोलोॅ नरेन्द्र-ई छी, छा बोली में तोरोॅ डाक्टरी केना चलथौ?" चाचा जी अंतिम प्रश्न करलकै। "चलतै चाचा जी, चलबे नै करतै, मतुर दौड़तै भी। आपने खाली आशीर्वाद दियै। अपनो भाषा में ही काम करना चाहियोॅ। आपनो माय रो भाषा गुड़ो से मिट्ठो होय छै। संसार रोॅ सब देश आपनोॅ भाषा लेली जियै मरै छै। हम्में बिदेशों में रही के यही सिखने छियै। आगू दिनों में देखियोह चाचा जी, सभ्भे डाक्टरेॅ हमरे अनुकरण करतै।"
दोसरे दिन! डाक्टर साहेब जबै घरोॅ से निकललै ते देखवैया के दिकासोॅ छूटी गेलै। साधारण सूत्ती कपड़ा रोॅ वाँह भरी के कुरता आरो धोती पहनी केॅ, आरोॅ पुनसिया आबी के आपने पुस्तैनी मकान में मरीज देखै लाॅ बैठी गेलै।
बिना कोनो डाक्टरी जाँच के अत्तेॅ बढ़ियाँ सटीक इलाज के कारण हुनका जमतें देर नै लागलै। आधो रोग तेॅ हुनका देखतै आरो मिट्ठो बोली सुनी के ही दूर होय जाय छेलै।
जाड़ा रोॅ दिन छेलै। डाक्टर साहेब आपनो डिसपेन्सरी से रोजे रोगी के इलाज करी केॅ आपनो घोॅर आबी जाय छेलै। आय रोगी बेसी रहै के चलतें हुनका घोॅर आबै मंे कुच्छु देरी होय गेलोॅ रहै आरू अन्धारोॅ घिरी गेलो छेलै। हुनि आपनो बंगला रोॅ कमरा में आबी के शाम के क्रिया-कलापोॅ से निवृत होय के चाय पीबी रहलो रहै। तखनिये हुनका गंध सें लागलै कि आय बंगला के पीछु गुहाली में कुच्छु अलग हटी केॅ भोजन बनी रहलो छै आरू तखनिये हुनि योहो सुनलकै कि भैया रोॅ आय भोज रो नेतो छै। डाक्टर साहेब के आपनो घरोॅ से है रंग इज्जत रहै कि हुनको आगु कम्में घरोॅ रोॅ लोग आबै छेलै। हौ विशेष भोजन बनाय लेली प्रायः सब नौकर चाकर व्यस्त रहै। डाक्टर साहेब ते है जानिये गेलो रहै कि आय राती मंे भोज छै मतुर केकरा कन भोज छै है या तेॅ हुनि सुनलै नै पारलकै या सोचलकै कि देर सबेर है मालुम होबे करतै।
हौ दिन हुनको परिवारो भी कहीं बाहर गेलो रहै। यहीं बीचों में डाक्टर साहेब आपनोॅ कमरा में जाय केॅ कुच्छू ज़रूरी डाक्टरी लेख पढै़ लागलै। पढ़तेॅ-पढ़तेॅ हुनि कखनी सुती गेलै है बात केकरोॅ मालुम नै होलै। नीन्देॅ सें ही कखनी बिजय होलै जानैलेॅ नै पारलकै। घरोॅ के आरू लोग है जानी के निश्चित छेलै कि भैया भोज खाय केॅ आराम करी रहलो छै। सब खाय पीबी के सुती गेलै।
जबेॅ डाक्टर साहेब रोॅ नीन्द खुललै तेॅ हुनि धड़पड़ाय के उठी गेलै आरू हुनि है महसूस करलकै कि हम्में बेसी सुती गेलियै। घड़ी देखलकै रात केॅ ग्यारह बजी रहलो रहै। चारोॅ तरफ अन्धारे-अन्धार फैललोॅ रहै। आबे हुनका भूखो लागी रहलोॅ रहै। आवेॅ हुनि भोजोॅ रोॅ बारे में पुछतै तेॅ केकरा से पुछतै। है सोची के हुनि घरोॅ में एक दू आवाजोॅ देलकै मतरकि भीतर सें कोनों जवाब नै मिललै।
आबेॅ डाक्टर साहेब साहस करी केॅ हाथोॅ में टाॅर्च लै केॅ ई सोची केॅ बाहर निकललै कि भोज वाला घरोॅ मंे कुछ न कुछ तेॅ चहल-पहल अखनियों होवे करतै, जेकरा से है मालुम होय जैतै कि केकरा यहाँ भोज छै। सड़कोॅ पर आगु बड़तै हुनि दू-चार कुत्ता केॅ आपस में लड़ै केॅ आवाज सुनलकै। नजदीक गेला पर हुनि देखलकै कि कत्तेनी कुत्ता भोजोॅ के पत्तल चाटै लेली अपनै में कुहराम मचैने रहै। हुनि सोचलकै होय ना होय यही घरोॅ में भोज छै। यहाँ सोचिये रहलो छेलै कि तखनिये घरोॅ के मालिक रोॅ नजर हटाठ हुनका पर पड़ी गेलै। ई भोज वाला रोॅ घोॅर नै छेलै। बात है छेलै कि हौ भोज वाला घोॅर सड़को के किनारे रहै। कुत्ता सिनि के भयंकर चिचयैबोॅ सुनि केॅ होकरा मारी के भगाय लेली हाथों में डंटा लैके गृहस्वामी बाहर निकललो छेलै कि डाक्टर साहेब पर नजर पड़ी गेलै। डाक्टर साहेब केॅ देखी के हुनि बोली उठलै-"आवोॅ-आवोॅ डाक्टर साहेब, एतना राती के कन्है बाहर निकल्लो छौ, आरू जबे निकलले छौ तेॅ आबी केॅ प्रसाद खाय लाॅ।" हुनि डाक्टर साहेब रोॅ मित्र लक्ष्मी कान्त झा जी रहै। हुनका यहाँ आय श्री सत्नारायण स्वामी के पूजा रहै। पूजा-पाटोॅ में देरी होना त स्वाभाविके छै। है सुनि के डाक्टर साहेब कुच्छु नै बोललै। तबे हुनको मित्रा फेरू बोललै-" प्रसादो रोॅ बाद भोजनों करी ला। हम्मु सिनि अभी ताँय भोजन नै करने छियै। आय हमरो किस्मत छै कि तोरा साथे हम्में दोनो प्राणी भोजन करबै। दोस्तैनियों ने हुनका खाय लेली बहुत्ते निहोरा करलकेॅ। मतरकि डाक्टर साहेब खाली पूजा रोॅ प्रसाद खाय केॅ आपनो कमरा में आबी केॅ एक ग्लास पानी पीबी केॅ सुती रहलै।
सुबह हुनि आपनोॅ दुआरी पर राधा माय केॅ चिल्लैते सुनलकै-"होॅ जी, है गरीबोॅ के यहाँ भोज खाय लेॅ कथी लेॅ ऐभौ। तोरा सिनि बड़ोॅ आदमी छोॅ। आय तोरा से हम्में कमर कसी केॅ झगड़ा करी केॅ रहभौं।" है सुनि केॅ डाक्टर साहेब के मौन भारी होय गेलै। हुनि मने-मन कहलकै... "राधा माय तोरो की होलौ, रात भर भुखलो तेॅ हम्मी नी रहलियै।" गाँव घरोॅ में ऐन्होॅ होय छै कि भोज वाला घरोॅ के भूल-चूक से कोय नै कोय छुटीयो जाय छै, मतरकि योहो सच छै कि आय भी गाँव देहात में है रंग नांकी सीधा सरल इन्सान जिन्दा छै जेकरा मनो में कोय भी शिकवा आरू शिकायत नै छै।