भोला भंडारी / एक्वेरियम / ममता व्यास
उसे देखो तो वह एक मासूम-सा प्यारा बच्चा था। मोटे-मोटे गालों के ऊपर गोल-गोल आंखें जो अक्सर आसुंओं से भरी रहती थीं। उसे कभी भी किसी भी बात पर रूठ जाना होता था। कभी मुझसे कभी उससे कभी तो खुद से ही। बचपन में ही उसने रूठने का रोग लगा लिया था लेकिन उसका रूठना भी बस ज़रा देर का होता था। जरा-सा फुसलाने पर निर्दोष हंसी हंस पड़ता। अक्सर वह बिन बात हंसता था। उसे हंसने-हंसाने के लिए कभी कोई वजह नहीं तलाशनी पड़ी। उसे भीड़ में रहना पसंद था अकेलेपन से वह बहुत घबराता था। यही वजह थी कि आस-पड़ोस के घरों में कोई भी उत्सव हो, गाना बजाना या शादी-ब्याह हो वह सबसे पहले पहुंच जाता। सड़क से निकलने वाले हर जुलूस में, प्रभातफेरी में या कोई बारात में उसे सबसे पहले उपस्थिति दर्ज करानी होती थी।
वह इतना भोला था कि पास वाले राम मंदिर में दस दिन तक बिना नागा किये रामलीला देखने जाता, सिर्फ़ सुन्दर सीता को देखने के लिए. रामलीला खत्म होने तक वह पंडाल में खड़ा रहता कि उसकी जनकनंदिनी अभी आएगी। थोड़ी देर बाद सीता बना हुआ लड़का उसके सामने से बीड़ी पीता हुआ गुजर जाता और वह पहचान भी नहीं पाता अपनी जनकनंदिनी को। उन दिनों रामलीला में महिला किरदारों को भी पुरुष ही निभाते थे। उस भोले भंडारी के मन में तो बस सीता की सुन्दर छवि बसी हुई थी। वह हैरानी और दु: ख से स्टेज के सौ चक्कर लगाता और बार-बार खुद से पूछता "यार सीता कहाँ गयी।"
बचपन में उसके साथ हुए इस छल ने उसे बहुत अविश्वासी बना दिया। अब वह अक्सर रूठने लगा और एकदिन उसके रूठने से तंग आकर उसका बचपन खुद उससे रूठ कर चला गया। जब वह जवान हुआ तब तक समय बदल चुका था। उसे रामलीला अब भी लुभाती थी। वह अब भी दिल्ली के रामलीला मैदान में रामलीला देखने जाता है, लेकिन अब वह रामलीला के हर पात्र पर संदेह करता है। कहते हैं एक दिन सीता का किरदार निभाने वाली एक खूबसूरत लड़की जो थियेटर आर्टिस्ट थी ने उसे प्रपोज किया और उसने उस लड़की को कहा "नहीं तुम लड़की नहीं हो, तुम बीड़ी पीने वाला लड़का हो।"