भोला / राजेन्द्रसिंह बेदी

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बहनें माया को पत्थर के कुल्हड़ में मक्खन रखते देखा। लस्सी की खटास को दूर करन के लिए माया ने कुल्हड़ बीच वाले मक्खन को कुएँ के साफ़ पानी के साथ कई बारी धोया था। ऐसे मक्खन जोड़ने का कोई ख़ास कारण ज़रूर था। यह बात माया के किसी प्यारे के आने की सूचक थी। हाँ! अब मुझे याद आया, दो दिनों बाद माया का भाई अपनी विधवा बहन से राखी बंधवाने आ रहा था। वैसे तो अक्सर बहनें, भाइयों के घर जा कर उन को राखी बाँधतीं ने, परन्तु माया का भाई अपनी बहन और भाँजे को मिलने के लिए ख़ुदा ही आ जाता था और राखी भी बंधवा लेता था। राखी बंधवा कर वह अपनी विधवा बहन को यही विश्वास दिलाता कि चाहे उसका सुहाग ख़त्म हो चुका है परन्तु जब तक उसका भाई जीता है, उसकी रक्षा–सुरक्षा की सारी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेता हूं।

छोटे भोले ने मेरी इस बात की तस्दीक कर दी। गन्ना चूसते हुए उसने कहा - क्यों बॉबी ! परसों मामू जी आऐंगे न?

मैं अपने पोते को प्यार के साथ गोदी उठा लिया। भोले का शरीर बड़ा नरम के पोलड़ सा था और उसकी आवाज़ बहुत सुरीली -जैसे गन्नो के पत्तों की नज़ाकत–लचक और गुलाब की लाली और बुलबुल की चहक -चहक को रला दिया गया हो। चाहे भोला मेरी लम्बी और घनी दाढ़ी से घबरा कर मुझे अपना मुँह देता नहीं था चुंबन देंदा होता, परन्तु फिर भी मैं ज़बरदस्ती उसकी फैर छूने की रस्में गाल पर अपने मोह की मोहर लगा दी थी और मुस्करा कर कहा थी -

क्यों भई भोल्या, तुम्हारा मामू जी...तेरी बीबी का क्या लगते भलें?

भोले ने कुछ देर सोच कर जवाब दिया -मामू जी... !

माया ने स्तोत्र पढ़ना छोड़ दिया और खिड़खिड़ करके हँस पड़ी। मैं अपनी बहु के ऐसे दिल खोल कर हँसने पर, मन ही मन, बड़ा खुश हुहैं। माया विधवा था और समाज में उसको अच्छे कपड़े पहनने और ख़ुशी के कामों में हिस्सा लेने की मनाही थी। परन्तु मैं कई बारी माया को अच्छे कपड़े पहनने, हँसने -खेलने और खुश रहने की तागीद करता और समाज की परवाह न करन के लिए कहता रहता था, परन्तु माया ने तो ख़ुद ही अपने आप को समाज के रूह–निचोड़ फेंकने वाले नियमों में कैद किया हुआ था। उसने अपने सभी अच्छे कपड़ों और ज़ेवरों की गठरी बाँध कर एक संदूक में फैंक दी थी और चाभी छप्पड़ में फैंक आई थी।

माया ने हँसते हुए अपना पाठ जारी रखा -

'हरी -हर, हरी -हर, हरी -हर, हरी

मेरी बार क्यों देर इतनी करी...'

फिर उसने आपने लाल को प्यार के साथ के पास बुलाते हुए कहा -

"भोले तू नन्न्ही का क्या लगते?"

"वीरजी...।" भोले ने जवाब दिया।

"ठीक ऐ, वैसे ई तुम्हारे मामू जी मेरे वीरजी लगते ऐ।"

भोला यह बात नहीं थी समझ सका कि एक ही जना, एक ही समय पर, किसी का वीरजी और किसी का मामू जी कैसे हो सकता है ! वह तो अभी तक यही समझता था कि उसका मामू जी, उसके बॉबी का भी मामू जी ही लगता है। परन्तु भोले ने इस पंगो में पड़ने की ज़रूरत नहीं समझी और उछल कर माँ की गोदी में जा बैठा और उस से गीता श्रवण की ज़िद करन लग पड़ा। वह गीता सिर्फ़ इस लिए सुनता था कि उसको कहानियाँ श्रवण का बड़ा शौक था और गीता के हरेक अध्याय के आखिर में'प्रसिद्धि'सुन कर बड़ा खुश होता होता था उह...ते फिर छप्पड़ के किनारे उगी घास की मख़मलई तलवारें के बीच बैठ कर घंटों बद्धी उन्होंने'महातमों'बारे सोचता भी रहता था। मैं दोपहर तक अपने घर से छह मील दूर अपने हिस्सेदारयाँ को हल पहुंचाउने था। बूढ़ा शरीर उपर से संस्यां–मुसीबतों का मारा हुआ -जवानी के दिनों में मैं तिन्न–तिन्न मन भार उठा कर दौड़ लेता होता था, अब बीस संतुष्ट भार नीचे धौण हिलने लग पड़ती है। लड़को की मौत ने उम्मीदों को चिंताएं में डुबा कर कमर तोड़ फेंका था मेरा। अब मैं भोले के आसरे ही जैसे रहा था, वर्ना वास्तव में तो मर–मुक्क ही उठाया हैं।

रात को थकाण कारण मैं बिस्तरे पर पड़ते ही उंघण लग पड़ा। कुछ देर बाद माया ने मुझे दूध पी लेने के लिए जगाया। मैं अपनी बहु का सेवा भाव देख कर मन ही मन बड़ा खुश हुआ और उसको सैंकड़े आशीर्वाद देते हुए कहा -

मेरी बुढ़े बंदो की इतनी फिक्र न किया कर पुत्र।

-भोला अभी तक नहीं था सोया। वह कूद मार कर मेरे पेट पर आ बैठा और बोला -

बॉबी, आज आप कहानी नहीं सुणाउणी...?

नहीं पुत्र -मैं आसमान में निकले हुए तारों की तरफ वेहन्द्यें कहा -मैं आज बड़ा थक ग्यां...कल्ल्ह दोपहे सुणावांगा।

भोले ने रुस्सद्यें हुआ जवाब दिया -फिर मैं आपका भोला नहीं बाबी...मैं बीबी का भोला हूँ -हूँ।"

भोला भी जानता था कि मैं उसका ऐसे रूठ जाना बरदाश्त नहीं कर सकूँगा। मैं हमेशा उस से ऐसे श्रवण का आदी था कि भोला बॉबी का है, बीबी का नहीं। परन्तु उस दिन हलों को कंधे ऊपर उठा कर छह मील ले जाने पर पैदल ही वापस आने करके मैं बड़ा थका हुआ था। शायद मैं इतना न थकता अगर मेरी नयी जूती ने मेरी एड़ी न काट खायी होती और उस करके मेरे साँढ न पड़ गया होता। इस हद से अधिक थकाण कारके मैं भोले की वह बात भी बरदाश्त कर ली -और आसमान में निकले तारों की तरफ देखने लग पड़ा। दक्षिण की तरफ एक तारा मिशाल की तरह जल रहा था, इकटक्क देखने साथ वह हौली–हौली धीमा पड़ने लगा -मैं उंघदा -उंघदा सो गया। सुबह होते ही मेरे मन में ख़्याल आया कि भोला सोचता होगा कि कल रात को बाबो ने मेरी बात कैसे बरदाश्त कर ली? मैं इस ख़्याल के साथ ही काँप गया कि भोले के दिल में कहीं यह ख़्याल न आया हो कि अब बाबा मेरी परवाह नहीं करता। शायद यही कारण था कि प्रातःकाल उसने मेरी गोदी में आने से इन्कार कर दिया था।

मैं नहीं आया आपके पास बॉबी !

परन्तु क्यों भई भोला सीता?

भोला बॉबी का नहीं...भोला बीबी दा–ऐ...हें।

मैं भोले को मिठाई का लालच दे कर मण्हा लिया और कुछ पलों में भोला फिर बॉबी का बन गया और मेरी गोदी में आ ग्या...ते अपनी, निक्कियां–निक्कियें टांगें आसपास मेरे ऊपर लिए हुए कंबल को लपेटने लग पड़ा। माया हरीहर स्तोत्र पढ़ रही थी। फिर उसने चौथाई सा मक्खन निकाल कर उसी कुल्हड़ में पाया और कुंआ के साफ़ पानी के साथ लस्सी की खटास धो फेंकी। अब माया ने अपने भाई के लिए संतुष्ट सा मक्खन जोड़ लिया था। मैं बहन भाई के इस प्यार के जज़बे पर दिल ही दिल में खुश था ; इतना खुश कि मेरी आँखें सिज्जल हो गई। मैं मन में सोच्या...'औरत का दिल मोहब्बत का समुद्र होता है...में पिता, भरा–बहनें, पती–बच्चे, सार को वह अंतें का मोह बाँटती है और इतना बाँटने पर भी वह ख़त्म नहीं होता। एक ही दिल होने पर भी वह सभी को अपना दिल दे देती है। भोले ने अपने दोनों हाथ मेरी गाल की झुरड़ियें पर रख कर माया की तरफ से मेरा मुँह अपने तरफ भुंआं लिया और बोला - बॉबी, आपको अपनी बात याद ऐ न?

कौन सी बात, पुत्त...?

आप आज दोपहे मुझे कहानी सुनानी ऐं...

हूँ बच्या... !मैं उसका मुँह चूमते कहा।

यह तो भोला ही जानता होगा कि उसने दोपहर के आने की कितनी कु इन्तज़ार की होगी। फिर भोले को यह भी पता था कि उसके बॉबी के पास कहानी सुनाने की फ़ुरसत तब ही होता है जब वह रोटी खा कर उस पलंग पर जा लेटते ने, जिस पर वह बॉबी या बीबी की मदद कर बिना नहीं चढ़ सकता। सो समय पर से पहले ही उसने रोटी पकाने के लिए ज़िद करनी शुरू कर दित्ती...मेरे खाने के लिए नहीं बलिके अपने कहानी श्रवण के चाव कारण।

मैं समय पर की अपेक्षा आधा घंटा पहले रोटी खा लिए। अजय आख़िरी कौर मुँह में पाई ही थी कि पटवारी ने आ कुंडा खड़कायहैं। उसके हाथ में एक छोटी सी जरीब लटक रही थी। उसने कहा कि'दरगाह वाले कुंआ के पास आपकी ज़मीन को मापने के लिए मेरे पास आज फ़ुरसत है, फिर नहीं।'मैं बड़ा कमरा की तरफ भौंह कर देखा तो भोला पलंग आसपास घुंम–घुंम कर बिस्तर बिछा रहा था। बिस्तर बिछाने के बाद उसने एक बड़ा सिरहाना भी एक तरफ़ रख दिया और आप पुआदें की तरफ से हाथ पैर फसा कर पर चढ़ने की कोशिश करन लगा। हालाँकि भोले का मुझे कह–कह कर जल्दी रोटी खिला देना और बिस्तर बिछा के मेरी इन्तज़ार करना अपने मतलब की ख़ातिर थी, परन्तु फिर भी मेरे दिल में आया -'है तो माया का सीधा पुत्र ई ना...रब्ब इसकी उम्र लम्बी करे।'

मैं पटवारी को कह दिया कि'वह दरगाह वाले कुंआ की तरफ चले, मैं उसके पीछे आ रहा हैं।'जब भोले ने देखा कि मैं बाहर जाने के लिए तैयार हो रहा हूँ तो उसका चेहरा लत्थ गया, जैसे पिछली रात आसमान में मशाल की तरह जलता हुआ तारा देखद्यां–देखद्यें ही धीमा पड़ गया था। माया ने कहा -

बापूजी, इतनी भी क्या जल्दी ऐ, दरगाह वाला कुंआ कहीं भाग तो नहीं चल्या...तुसीं ज़रा आराम तो कर लो।

ऊंहूं,मैं धीमी आवाज़ में कहा,पटवारी हाथों निकल गया तो यह काम एक महीने से पहले नहीं हो सकना।

माया चुप कर गई। भोले ने होंठ फैंक लिए, उसकी आँखें सिज्जल हो गई थीं। उस कहा,बॉबी, मेरी कहाणी...मेरी कहानी !!

भोले...मेरे बच्चे...मैं उसको टालद्यें हुआ कहा,दिन में कहानी सुनाने साथ राही रास्ता भूल जाते ऐ पुत्र।

रास्ता भूल जाते ऐ?फिर उसने सोचते हुए कहा -बॉबी आप झूठ बोलते ओ -जाओ, मैं बॉबी का भोला नहीं बनता।

अब जब कि मैं थका हुआ भी था और पंद्रह बीस मिनट आराम के लिए भी निकाल सकता सी...तें भला भोले की इस बात को इतनी आसानी के साथ कैसे बरदाश्त कर सकता था ! मैं अपने कंधे से साफ़ा उतार कर पलंग की पुआंदें की तरफ रख दिया और अपने छिलकाी गई एड़ी वाले पैर को अपनी जूती की कैद–बा–मुशक्कत से आज़ाद करवा कर पलंग पर लेट गया। भोला भी अपने बॉबी का बन गया। लेटते हुए मैं भोले को कहा - अगर अब कोई राही रास्ता भूल गया तो, उसका ज़िम्मेदार तू होगे बाई भोला सीता।और मैं भोले को दोपहर समय पर सात शहज़ादे और सात शहज़ादे की एक लम्बी कहानी सुनाई। कहानी में उनके विवाहों वाला हिस्सा आम की अपेक्षा और ज्यादा स्वादिष्ट बना कर बयान किया। भोले को हमेशा वह कहानी अच्छी लगती थी जिस के अंत में शहजादे और शहज़ादी का विवाह हो जाये। परन्तु मैं उस दिन भोले के मुँह पर ख़ुशी की कोई झलक नहीं देखी बलिके वह कमज़ोर सा मुँह बना कर किसी अनजान भय बस काँपता हुआ रहा। इन विचारधाराओं में कि पटवारी कहीं दरगाह वाले कुंआ पर प्रतीक्षा कर रहा प्रतीक्षा कर रहा ऊब कर अपनी हौली–हौली खणकण वाली जरीब जेब में डाल कर अपने गाँव नूं ही न चल जाये, मैं जल्दी जल्दी, परन्तु अपनी नयी जूती सदका छिल्ली–दुखदी हुई एड़ी के साथ लंगड़ापन मारता हुआ, दौड़ा। चाहे माया ने जूती को सरसों का तेल लगा दिया था फिर भी नरम नहीं था पड़ी वह। शाम को जब मैं वापस आया तो मैं भोले को ख़ुशी बस बड़ा कमरा से आंगन तक और आंगन से बड़ा कमरा तक उछलकूद मारते देखा। वह एक लाठी का घोड़ा बना कर उसको भगाई फिरता था और गा रहा था -

चल मामूजी के देस...यो घोड़े, मामूजी के देस...

मामूजी के देस...हें -हैं मामूजी के देश, ओ घोड़े...

जैसे ही मैं चौखट पर पैर रखा, भोले ने अपना गाना बंद कर दिया और बोला -

बॉबी, आज मामूजी आऐंगे न?

फिर क्या होगा भोले शाह?मैं पूछा।

मामूजी अगन -बोट ले कर आऐंगे, मामूजी कलयुग (कुत्ता) को भी के साथ ल्याउणगे। मामूजी के सिर पर मक्के की बालियों की गठरी होगी, अपने इस तरफ़ तो मक्के की बालियाँ होती ई अरी -हैना बॉबी? होर... ओर वह मिठाई भी ल्याउगे जो आप सपने में भी अरी देखी होणी...

मैं हैरान थी और सोच भी रहा थी कि कितनी ख़ूबी के साथ'सपने में भी अरी देखी होनी'शहज़ादे और सात शहज़ादे वाली कहानी के यह शब्द उसने याद रखे हुए थे।जीता रह, लम्बी उम्रों होने,मैं आशीष देते हुए हुए कहा,बड़ा समझदार और बुद्धिमान लड़का ऐ, बड़ा हो कर हमारा नाम रौशन करूगा।

शाम होते ही भोला दरवाज़े में जा बैठा कि मामू जी की शकल देखते ही अंदर की तरफ दौड़े और पहले अपनी बीबी और फिर मुझे अपने मामू जी के आने की ख़बर सुनाए।

दियों को तीली दिखाई गई। ज्युं–ज्युं रात का अंधेरा पक्का होता जाता, दियों का रौशनी अधिक होता जाता। फिकरमन्द आवाज़ में माया ने कहा -

बापू जी, भाई अजय तक नहीं आया !

किसी काम करके रुकावट लग गया होऊ...। हो सकता है कोई ज़रूरी काम आ पड़ा होवे...रक्खड़ी का शगुन डाक के द्वारा भेज दऊगा।

परन्तु राखी?

हूँ राखी के लिए तो उसको अब तक आ जाना चाहिए था !

मैं भोले को ज़बरदस्ती दरवाज़े की चौखट से उठाया। भोले ने अपनी माँ की अपेक्षा भी अधिक फिकरें परुच्ची आवाज़ में कहा -बीबी, मामूजी क्यों नहीं आए?

माँ ने भोले को गोदी उठा लिया और प्यार करते हुए कहा -शायद प्रातःकाल, जल्दी ई आ जाए...तेरा मामूजी, और मेरा वीरा... !

फिर भोले ने अपनी, छोटी, कोमल -नाजुक बाज़ूएँ अपनी माँ के गले में डालते कहा -मेरा मामूजी...तेरा क्या लगते बीबी?

जो तू छोटी का लग्गदैं...।

वीरजी न?

तुझे अरे पता...

'पर बंटी (भोले का दोस्त) का क्या लगते?

कुछ भी नहीं...

भाई जी भी अरी?

नहीं...

और भोला उस अजीब बात बारे सोचता हुआ सो गया। जब मैं अपने बिस्तरे पर लेटा तो आसमान की एक नुक्कढ़ में वही मशाल की तरह जलता हुआ तारा दिखाई दिया, परन्तु मेरे इकटक्क वेहन्दे रहने करके धीमा होता गया। मुझे फिर भोले का चेहरा याद आ गया जो मेरे दरगाह वाले कुंआ की तरफ जाने के लिए तैयार होने पर ऐसे ही फीका पड़ गया था। कितना शौक है भोले को कहानी श्रवण का। वह अपनी माँ को स्तोत्र भी नहीं पढ़ने देंदा। इतने बच्चे को भला गीता की क्या समझ, परन्तु सिर्फ़ इस करके कि उसके अध्याय के प्रसिद्धि में एक दिलचस्प कहानी होता है...उह बड़े ही सब्र के साथ अध्याय के ख़त्म होने पर प्रसिद्धि के शुरू होने का इन्तज़ार करता रहता है। माया का भाई अजय तक नहीं था आया -शायद न भी आए ! मैं दिल में कहा -'उसको अपनी बहन का प्यार के साथ जोड़ा मक्खन खाने के लिए तो आ जाना चाहिए था।'तारों की तरफ देखते देखते मेरी आँख लग गई। अचानक माया की आवाज़ सुन कर मेरी आँख खुली, वह दूध वाला प्याला के लिए खड़ी थी।

मैं कई बारी केहै पुत्त...तूं मेरे लिए इतनी असुविधा न किया कर।मैं कहा।

दूध बौनों मोह बस मेरे आँसू निकल आए। हद से अधिक खुश हो कर माया को यही आशीष दे सकता थी कि सुहाग वती रहे...कुझ ऐसा ही मैं कहना चाहा, परन्तु इस ख़्याल के आते ही कि उसका सुहाग तो वर्षों पहले ख़त्म हो गया था, मैं कुछ न कह कर अपने जोे को दबाउंद्यें सिर्फ़ इतना कहा -बेटी, तुझे इस सेवा का फल ज़रूर मिलू...

फिर मेरे साथ वाले खाट से भोला छोटी को परे घसीटता हुआ जो उसके साथ पड़ी हुई थी और आँखें मसलता हुआ उठा। उठता ही बोला -बॉबी, मामूजी अजय तक क्यों नहीं आए?

आ जाएंगे पुत्र, सों जाह...उह प्रातःकाल प्रातःकाल आ जाएंगे।

अपने पुत्र नूं अपने मामो के लिए इतना बेचैन देख कर माया भी बेचैन हो गई -बिल्कुल वैसे जैसे एक से दूसरा दीया बल पड़ता है। कुछ देर के बाद वह भोले को साथ डाल कर थपथपाने लग पड़ी।

माया की आँखों में भी नींद चुभने लगी। वैसे भी जवानी में नींद का आलिंगन, जैंड -आलिंगन ही होता है और साथ ही सभी दिन के काम -धंधे थका मारते ने, सो माया की नींद बहुत गहरी होती थी। मेरी नींद तो आम बुड्ढों वाली नींद सी...कदी एकाध घंटा सो लिया, फिर दो घंटे जागता रहा। फिर कुछ देर ऊंघ लिया और बाकी रात तारे गिन -गिन निकलवा दी। मैं भोले को अपने साथ पहनने के लिए कह कर माया को सो जाने के लिए कहा।

लालटेन जलती हुई रहने देईं, सिर्फ़ बत्तीस नीची कर देईं...मेले करके बड़े चोर–उचक्के भौ�ंदे फिरते हैं।मैं माया को कहा। सब से बड़ी बात यह थी कि इस बारी मेलो में जो लोग आए थे, उन में ऐसे बंदे भी सुने जाते थे जो छोटे बच्चों को उठा कर ले जाते थे। पड़ोसी गाँव में एक दो ऐसीं वारदातों हो उठाईं थीं और इसी करके मैं भोले को अपने साथ पहनने के लिए कहा था। बहनें देखा भोला जाग रहा था, उस के बाद मेरी आँख लग गई।

कुछ देर के बाद जब मेरी आँख खुली, लालटेन को दीवार पर न देख कर घबरा कर हाथ फिरा तो देखा कि भोला भी बिस्तरे पर नहीं था। मैं अंधेरो में दीवारों के साथ टकराउंद्यें और खाटों की ठोकरों खातीं हुए सभी खाटों पर देखा। माया को भी जगाया। घर के सारा अंदर -बाहर देख ल्या...भोला कहीं नहीं था।

माया, हम लूटे गए।मैं अपना सिर पिट लिया। माया माँ थी, उसके दिल पर क्या बीत रही थी कौन पूछे? अपना सुहाग उजड़ जाने पर उसने इतने बाल नहीं था पुट्टे ; जितने अब खोद लिए थे। उसके दिल को डुबा पड़ रहे थे और वह बरदाश्त के की तरह चीखी -चिल्लाई जा रही थी। चीका–रौली सुन कर आंढना -गुआंढना आ गई और भोले के लापता होने की ख़बर सुन कर रोना बैठ गई।

आज मैं एक बाज़ीगर को अपने घर के अंदर तक झाकद्यें भी देखा था, परन्तु परवाह नहीं थी की। हाय, वह समय कहाँ से हाथ आए। मैं मन्नतों माँगीं कि भोला ढूँढ जाये। अरदासें करन लगा कि किसी समय पर की तो सुनी भी जाती है। वही सभी घर का रौशनी था, उसी का मुँह देख कर मैं और माया जीते था, उसी की आशा पर हम उड़े फिरते थे। वह हमारी आँखों का नूर था और देहों में प्राण...उसदे बिना हम कुछ भी नहीं....

मैं भौंह कर देखा। माया बेहोश हो गई थी। उसके हाथ अंदर की तरफ मुड़े हुए थे, देह अकड़ी हुई थी और आँखें ठहरीं थे और कोई स्त्री उसका नाक घूँट कर चम्चे के साथ उसकी दन्दळ खोलने की कोशिश कर रही थी।

मैं सत्य कह रहा हूँ, उस पल तो मैं भोले को भी भूल गया था। मेरे पैरों निचली धरती डोल रही सी...इको समय जब घर दे दो जीव वेहन्द्यें वेहन्द्या हाथों निकल जाएँ तो दिल की क्या हालत होती है। मैं काँपता हुआ ईश्वर को माड़ा–चंगा कहने लगा कि यह दुख दिखाने से पहले उसने मेरी जान क्यों नहीं ले लई...हाए ! परन्तु जिस की आई होती है उसके बिना किसी ओर का बाल भी टेढ़ा नहीं होता। इस से पहले कि मैं भी माया की तरह ही दिल छोड़ बैठता और अचेत हो जाता, माया होश में आ गई। मैं पहले की अपेक्षा कुछ हौसलो में हुहैं। मन में सोचा कि मैं ही माया को कुछ हौसला दे सकता हैं, और अगर मैं ख़ुद ही इस तरह हौसला छोड़ द्यांगा तो माया किसी तरह नहीं बच सकेगी। मैं अपने आप को संभालद्यें हुए बोला -माया धीए...देख ! मेरा ऐसे खानाख़राब न कर -हौसला कर। बच्चे अगवाह होते ऐ परन्तु आखिर मिल भी जाते ऐ। बाज़ीगर बच्चों को मारने ख़ातिर नहीं ले जाते, पाल कर बड़ा करके किसी काम पर लाने के लिए ले जाते ऐ...भोला आ जाऊगा !

माँ के लिए इस तसल्ली के कोई अर्थ नहीं थे और मुझे भी अपने इस तरह सब्र कर लेने पर बदनामी सी हुई सी...भावें यह सोच कर चुप हो गया हैं कि माया के मुकाबले मुझे भोला कम प्यारा नहीं।...पर नहीं -मैं सोचा,'मर्द को ज़रूर कुछ हौसला दिखाना चाहिए ऐ।' उस समय आधी रात इधर, आधी उधर थी जब हमारा पड़ोसी इस घटना की ख़बर करन के लिए थाने की तरफ रवाना हुआ, जो गाँवों कोई दस कोस दूर शहर में था।

बाकी हम सभी हाथ कब्ज़ा करते हुए सुबह का इन्तज़ार करन लग पड़े ताकि दिन निकलने पर कहीं ओर भाग -भाग की जा सके। अचानक दरवाज़ा खुला और हम भोले के मामूजी को अंदर आते देखा -उसकी गोदी भोला सी...सिर पर मिठाई वाली टोकरी और हाथ में लालटेन लटक रही थी। हमें तो जैसे सारी दुनिया का ख़ज़ाना ढूँढ पड़ा हो। माया ने भाई को पानी पूछा, न परिवार का हालचाल, बस, उसकी गोदीयों भोले को खींच कर चुंबन -चाटने लग पड़ी। सभी पड़ोसियों ने बधाईयाँ दीं। भोले के मामू ने कहा -मुझे किसी काम कारके देर हो गई थी, आख़िरी बस ने ख़ास कुवेला कर दिया, देर होने कारके मैं अंधेरो में रास्ता भटक गया सी...अचानक मुझे एक के पास से रौशनी दिखाई दिया, मैं उस की तरफ चल पड़ा। इस घने अंधेरो में परसपुर से आने वाली सड़क पर भोले को लालटेन छोटी दुकान, कंटीली झाड़ियों में फंसा खडा देख कर मैं हैरान रह गया। मैं इस समय पर इसको वहाँ होने का सबब पूछा तो इसने जवाब दिया भई'बॉबी ने आज दोपहे मुझे कहानी सुनाई थी। और कहा था कि दिन में कहानी सुनाने साथ राही रास्ता भूल जाते हैं। आप देर तक नहीं आए तो मुझे यही लगा कि आप रास्ता भूल गए होवोगे...ते बॉबी ने कहा थी कि अगर कोई राही रास्ता भूल गया तो तू ज़िम्मेदार होवेंगा... !!'