भौतिकी गुणनफल / सुधा भार्गव
-परसो भाईदौज है जीजी। मुबारक हो। परसों का आपका क्या प्रोग्राम है? भावज ने बड़ी नन्द बाई को फोन किया।
–कल छोटी बहन यशोधरा कोटा से आ रही है। मेरे पास ही ठहरेगी। हमारा प्रोग्राम तो कांता भाई के यहाँ जाने का है।
-परसो सुबह आप लोग यहीं आ जाइए। मिले भी नहीं हैं बहुत दिनों से। भईया जी को भी यहीं बुला लेंगे । टीका और लंच दोनों हो जाएंगे। शाम को मैं अपने भाइयों से मिल लूँगी।
-ठीक है। फोन करके थोड़ी देर में बता दूँगी।
शाम तक जब बड़ी जीजी का फोन नहीं आया तो राधिका अधीर हो उठी। इस परेशानी में फोन की ही शरण ली।
-हॅलो जीजी! आपने फोन नहीं किया?
-भई हमारा प्रोग्राम तो पहले ही जैसा है।
राधिका ने तुरंत निर्णय लेते हुए कहा –भाईदौज के दिन आपके भाई सुबह ही टीका करवाने आपके पास पहुँच जाएँगे। फिर मझली दीदी के घर भी उन्हें जाना होगा।
भाईदोज मनाने उसदिन राधिका का कृष्ण सबेरे ही अपनी तीनों बहनों के पास भागा। दिल्ली जैसी महनगरी में 30 -40 किलोमीटर आना , उतना ही जाना हंसी –मज़ाक नहीं। मध्यम परिवार का भाई, बस में चलने की उम्र नहीं। स्कूटर में जाना थोड़ा सस्ता है पर कोई देख लेगा तो क्या कहेगा! टैक्सी का मतलब पूरे पाँच सौ का खर्चा। फिर बहनों को भेंट और रुपए भी तो देने होंगे। 1000 के नीचे आने की बात तो है ही। पल मे हजार विचारों का संघर्षण!
राधिका को उम्मीद थी कि दोपहर के तीन बजे से पहले तो उसका पति लौटेगा नहीं पर जल्दी ही घंटी टनटना उठी –राधिका, मैं 12 बजे ही तक घर आ जाऊंगा। मझली दीदी तो यहीं आ गई हैं। अब उनके यहाँ जाने की क्या जरूरत!
तीन बहनों का भाई हरीकान्त घर लौटा तो तो मूड खराब। खाना खाते समय भी होठों पर चुप्पी।
राधा ने ही पसरे मौन को एक तरफ करते पूछा –सबको उपहार पसंद आ गए।
-हाँ! पर कोई यहाँ नहीं आना चाहता। सब बड़ी जीजी के घर आते हैं।
-कभी आपने विचारा –इसका कारण क्या है?
-कह दिया न। मुझसे किसी को लगाब नहीं।
-आप कौन ही दुनिया में हैं! आज तो प्रेम बिकाऊ है। जो उसकी जितनी ज्यादा कीमत लगाएगा प्रेम का पलड़ा उसी ओर झुक जाएगा। फिर आपके पास देने के लिए है ही क्या? न सुख न सुविधा!
-क्यों, क्या नहीं है मेरे पास।
-जीजी की तरह क्या है –कारें, चमचमाती कोठी, नौकर –चकार 1हर जगह रेंगता पैसा –कोई भी धो ले बहती गंगा में हाथ।
-तब क्या हमारे बीच भाई –बहन का प्यार नहीं।
-प्यार एक अनुभूति है जिसमें महसूस किया जाता है। अपने भावों की अनुभूति और दूसरे के भावों की अनुभूति का संगम होता है। लेकिन स्वार्थी मशीनी ज़िंदगी से अनुभूतियों को दीमक लग गई है। प्रेम मन में बहती हुई भागीरथी है पर अब उसका पानी मैला है। राधिका बोली।
-कुछ भी हो, अब मैं नहीं जाऊंगा टीका करवाने पर मेरे घर के सारे दरवाजे भाई –बहनों के लिए सदैव खुले हैं।
-भाई –बहनों के रिश्ते में नोंक –झोंक तो होती ही रहती है पर एक दूसरे के लिए पीड़ा भी होती है। यही तो प्रेम है।
-इसका मतलब हम सब आपस में प्यार करते हैं।
-करते भी हैं और नहीं भी करते हैं। जब हम भौतिकी गुणनफल में लगे रहते हैं तो सारे रिश्ते पीछे छूट जाते हैं।
मेरे दादी माँ एक कहानी सुनाया करती थी। एक घर में दौरानी –जिठानी रहती थी। भाईदौज के दिन जिठानी का भाई टीका कराने आया, बड़े कीमती उपहार लाया। दौरानी अपने भाई की याद में आँसू बहाती दरवाजे पर जा खड़ी हुई। दो वर्ष पूर्व उसका भाई कार एक्सीडेंट में मारा गया था। उसी समय एक भालू वहाँ से गुजरा। उसको बिलखता देख ठिठक गया और बोला –अरे तेरे सामने तेरा भाई खड़ा है। ले टीका कर।
बहन की खुशी का तो ठिकाना नहीं। उसने अपनी उंगली चीरकर खून निकाला और उससे भालू के माथे पर टीका कर दिया।
-बहन, अभी मेरे पास देने को कुछ नहीं है। कल आकर दूंगा।
बहन की आँखों के कोर गीले हो उठे और बोली –मुझे किसी चीज की इच्छा नहीं। तुम यहाँ आए, मुझसे बातें कीं। मुझे अकथनीय सुख मिला। बस इसी तरह कभी –कभी बहन के हालचाल पूछ जाया करो।
यहाँ भालू छोटी बहू के भावों की गहराई में उतरा और उसके दुख को महसूस करके दूर करने में लग गया। यह अपनत्व ही प्रेम की सीढ़ी है।
-सच में आज इस संवेदना का नितांत अभाव है। इसके अभाव में हम एक दूसरे से कोसों दूर होते जा रहे हैं। समझ नहीं आता क्या किया जाए। हरीकान्त के स्वर में थकान और निराशा थी।
-जो कुछ भी प्यार, मोहब्बत व अपनापन बचा है उसे मुट्ठी में कसके बंद कर लेना है ताकि बची –खुची आत्मीयता में रिश्ते कुछ तो उजले –उजले लगें।
राधिका से हरीकान्त को दिशा मिल गई और बहुत कुछ मन का भार हल्का हो गया।