भौतिक-अभौतिक / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
Gadya Kosh से
एक औरत और एक मर्द खिड़की के सहारे बैठे थे जो वसंत की ओर खुली थी। वे एक-दूसरे से सटे बैठे थे।
औरत ने कहा, "मैं तुम्हें प्यार करती हूँ। तुम सुन्दर हो। धनी हो। हर परिस्थिति में जुझारू हो।"
मर्द बोला, "मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तुम एक खूबसूरत विचार हो। ऐसी चीज़ हो जो हाथ में थामी नहीं जा सकती। तुम मेरा स्वप्नगीत हो।"
लेकिन औरत उससे नाराज हो गई। वह बोली, "सर, प्लीज अब मेरा पीछा छोड़िए। मैं कोई विचार नहीं हूँ। और न ही मैं आपके सपनों में आने वाली कोई चीज़ हूँ। मैं एक औरत हूँ। मैं चाहूँगी कि आप मुझे अपनी पत्नी और अजन्मे बच्चों की माँ के रूप में देखें।"
दोनों अलग हो गए।
मर्द ने अपने हृदय में कहा, "धीरज रखो। अभी दूसरा सपना भी समाप्त होने वाला है।"
तथा औरत कह रही थी, "उस आदमी का क्या करना जिसने मुझे कोहरे और सपने में बदल डाला हो?"