भ्रष्टाचार की योग‌ पाठशाला / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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किसी नेता के उबाऊ"" ,दिमाग खाऊ भाषण से भी लंबा एवं आश्वासन‌ के किसी बड़े आंगन से भी चौड़ा हाल, सामने ऊंचे मंच पर महागुरु लंबी दाढ़ीवाले संत भ्रष्टाचारीजी महाराज विराजमान हैं| भ्रष्टाचरण की विद्या ग्रहण करने आये सैकड़ों विद्यार्थी अपने आसनों पर ठीक मंच के सामने अवस्थित हैं| बड़े अनुशासन एवं विपुल शांति से बैठे ये भक्तगण संअत भ्रष्टाचारी जी को शीशनत होकर नमन करते हैं| संतजी आशीर्वाद स्वरूप उठे अपने दोनो हाथों से अपने प्रिय शिष्यों का अभिवादन स्वीकार करते हैं|

यह हृदय विदारक दृष्य है भ्रष्टाचार की योग‌ पाठशाला का| "मेरे प्यारे देश के भावी भ्रष्टाचारियो ग्लोबलाइस्ड भारतमाता के उपभोक्तावादी,प्रगतिवादी अवसरवादी और तथा कथित समाजवादी संस्कारों में जीने की तीव्र आकांक्षा रखने वाले मेरे प्यारे चमचों सिलवर स्पूनों..आज हम आपको भ्रष्टाचार के शिष्टाचार के प्रथम अध्याय से अवगत करायेंगे" संतजी ने अपने ओंठों पर मधुर मुस्कान लाकर ऐसे मदहोश करने वाले वचन कहे| हां तो भक्तो सर्व प्रथम पदमासन लगाकर बैठ जायें| जो भक्त भ्रष्टासन लगाने में पहले से ही पारंगत‌ हैं वे भ्रष्टासन लगाकर बैठ सकते हैं| किंतु जो भ्रष्टाचार करने में बिल्कुल शून्य हैं वह पदमासन ही लगायें| भ्रष्टाचार के सूत्रों का ग्यान होने पर भ्रष्टासन अपने आप सिद्ध होने लगेगा| मेरे प्रिया शिष्यों अब आप लोग दोनों आंखें बंद कर लें| ध्यान दोनों आंखों के मध्य बिंदु पर रखें| अब कल्पना करें कि आपके चारों ओर भ्रष्टाचार का अथाह सागर लह लहा रहा है| आपके अगल बगल ऊपर नीचे सब तरफ भ्रष्टाचार की लहरें संव्याप्त हैं|

उन लहरों पर हरे हरे कड़क कड़क नोट सवार हैं,सौ सौ के नोट दो दो सौ के नोट तीन तीन सौ के नोट चार चार सौ के नोट और पांच पांच सौ के नोट हवा में उड़ रहे हैं| सारा वायुमंडल नोटमय है| आप यह न सोचें कि दो सौ तीन सौ और चार सौ के नोट तो होते ही नहीं है| यदि आपकी संकल्प शक्ति तीव्र होगी,इच्छा शक्ति दृढ़ होगी और नोटों को हज़म करने की शक्ति एवं उदरस्थ करने की क्षमता आपमें होगी तो सरकार को दो सौ तीन सौ और चार‌ सौ के नोट छापने ही पड़ेंगे| सरकार‌ तो क्या सरकार के पिताश्री को भी छापना पड़ेंगे| आखिर भ्रष्टाचारियों की इच्छा पूर्ण करना सरकार का ही तो दायित्व‌ है| बिना भ्रष्टाचारियों की इच्छा पूर्ण किये सरकार कितने दिन कुर्सी पर बनी रह सकती है| हां अब संकल्प शक्ति के साथ श्वांस भीतर भरें| रीढ़ की हड्डी हिंदुस्तानी वोटर की तरह सीधी रखें|

अब कल्पना करें की वायुमंडल में तैरते कड़क कड़क नोट भीतर खींची गई श्वांस के साथ नासिका में प्रवेश कर रहे हैं,गले के नीचे उतर कर आपके उदर में समा रहे हैं ऎवं नाभि चक्र पर प्रहार कर रहे हैं| नाभि केंद्र में तेजोमय प्रज्वलित अग्नि की कल्पना करें| दृढ़ इच्छा शक्ति विश्वास और श्रद्धा के आघात एवं हार्दिक कठोरता के प्रहार नाभि चक्र पर करें| अब कल्पना करें कि नाभि चक्र में अवस्थित चिंगारी दावानल बन रही है एवं प्रविष्ठ नोट उसमें जलकर भस्म हो रहे हैंआपकी हाज़मा शक्ति ब‌ढ़ रही है| हज़ारों लाखों ही नहीं करोड़ों अरबों रुपये पचा जाने में भी आप सक्षम हो रहे हैं| अब श्वांस रोककर कुंभक करें| कल्पना करंे की नाभि चक्र में हज़म किये जमा नोट एक जगह एकत्रित हो रहे हैं| आप अज़गर बनकर उनकी रखवाली कर रहे हैं| अब आप श्वांस को बाहर निकाल दें और कल्पना करें कि श्वांस के साथ आपके शरीर में उपस्थित ईमान, सत्य,प्रेम,करुणा ,दया, मानवता,न्याय,और सिद्धांत इत्यादि सभी दुर्गुण बाहर जा रहे हैं|

आपकी आत्मा में किंचित मात्र ईमान बाकी नहीं बचा है| आप केवल बेईमान हैं,भ्रष्टाचारी हैं,पदलोलुप हैं,निष्ठुर हैं,अवसरवादी हैं,स्वार्थी हैं,एवं केवल अपने और अपने लिये जी रहे हैं| सत्य को आपने ऐसे त्याग दिया है जैसे सांप केंचुली को त्याग देता है| आपके बाहुओं में बल आ गया है,आप बाहुबली हो रहे हैं| गहरी सां‍स लें लंबी सांस छोड़ें और उपरोक्त विचारों को बार बार दुहरायें| एक सप्ताह के अभ्यास से ही आपके रोम कूपों से जय भ्रष्ट जय भ्रष्ट की मधुर ध्वनि गुंजायमान‌ होने लगेगी| आपको अनुभव होने लगेगा की आपका शरीर नोटों के महासागर में तैर रहा है| उन नोटों से आप अपने परिवार की नैया पार लगा रहे हैं| आप नोट खा रहे हैं आप नोट पी रहे हैं| आपकी पत्नी नोटों का मुरब्बा डाल रही है| आपकी प्रेमिकायें नोटों का अचार डाल रहीं हैं| आपके बच्चे नोटोंकी फुटवाल खेल रहे हैं| सारा वातावरण नोटमय है|

बैड रूम,ड्राइंग रूम,टायलेट,किचिन,अलमारियां,पोर्च और आंगन नोटों से अटे पड़े हैं| यह प्रणायाम क्रिया जिसे आगे चलकर हम नोटायाम के नाम से जानेंगे आपको दिन में दो बार पांच से दस मिनिट तक करना है| जिन्हें नोट खाने की अत्यंत और गहन लालसा हो,जिन्हें एक दो करोड़ रुपये बहुत कम लगते हों और जो अरबों खरबों डालर खाना चाहते हो वह इस क्रिया को अभ्यास द्वारा दो से तीन घंटे तक कर सकते हैं| किंतु कमजोर प्रकृति वाले और डरपोंक कायर व्यक्ति इसे ज्यादा देर तक न करें क्योंकि उनके पेट फूट जाने का खतरा है,रेड पड़ सकती है,भारतीय खुफिया विभाग एवं सी बी आई वाले पेट में घुसकर नोट ज्ब्त कर सकते हैं| शास्त्रों में लिखा है कि उतना ही खाओ जितना हज़म कर सको,संतोष‌म् परम् सुखम्| सतत अभ्यास करने से और नियमित नोटायाम करने से हाज़मा शक्ति में वृद्धि होगी,विचार दृढ़ होंगे और संकल्प शक्ति लोहे की तरह ठोस हो जायेगी| धीरज रखें,धीरे धीरे खायें,एक साथ खाना कुशंकाओं को जन्म देता है| लोगों की दृष्टि पड़ती है,पड़ोसी शिकायत करने लगते हैं,उधार मांगने वालों का तांता लग जाता है और मालिकों की भृकुटी टेड़ी होने लगती है|

इसीलिये हे शिष्यो मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना| बस छ्ह माह के अभ्यास से ही आप इतने सक्षम हो जायेंगे कि जितना खाओ खा सकते हैं,पड़ोसी को खा सकते हैं मोहल्ले को खा सकते हैं,संपूर्ण शहर को खा सकते हैं,अपने जिले को खा सकते हैं,प्रदेश को खा सकते हैं,और चाहें तो सारे देश को पचा सकते हैं| बस शर्त यही है की क्रिया क्रमबद्ध हो,शालीनता से हो और नियमित हो| आज जो देश और प्रदेशों में मंत्री बने बैठे हैं वे सभी हमारे शिष्य हैं,इसी पाठशाला से निकले हैं,कठोर साधना की है,सालों नोटायाम का अभ्यास‌ किया है तब कहीं जाकर इस मुकाम पर पहुंचे हैं| उन्होंने धूप में बाल सफेद नहीं किये हैं| मेरी इसी यग्यशाला की भ्रष्टाचार की हंडी में अनवरत मुँह काला किया है इसीलिये अरबों डालर खाने के बाद भी किसी का हाज़मा नहीं बिगड़ा,सब स्वस्थ हैं तंदुरुस्त हैं| पुलिस पास में नहीं फटक सकती और सी बी आई वाले इज्जत से सेल्यूट ठोकते हैं| पुरातन शास्त्रों में,पतंजली योग में आसन एवं प्रणायाम की महिमा का बखान हुआ है और बड़ी प्रशंसा हुई है|

नोटायाम प्रणायाम की ही संवर्धित,संशोधित,परिष्क्रित वैश्वीकृत एवं आधुनिक स्वरूप है| जहां प्रणायाम में प्राणों के आने जाने मतलब श्वांसों के आवागमन पर नियंत्रण होता है नोटायाम में नोटों के आने जाने पर नियंत्रण करना करना पड़ता है| प्राचीन काल में प्राणायाम अत्यंत उपयोगी होते थे क्योंकि लोग हवा यानि शुद्ध प्राण वायु खाकर ही आलीशान वैभवपूर्ण जीवन जी लेते थे और भोजन पानी एवं एश- ओ आराम की सामग्री की उन्हें आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी| किंतु इस ग्लोब्लाइस्ड,भौतिकवादी,अर्थवादी और उत्तराधुनिक युग में मात्र हवा खाकर जीवन‌ नहीं जिया जा सकता| पेट भरने के लिये और शरीर की क्षुधा शांत करने के लिये नोट खाना अत्यंत आवश्यकता है| इसलिये आधुनिक ऋषियों ने,सियासत के संतों ने माफिया के महा मुनियों ने और तस्करी के तपस्वियों ने मिलकर अति उच्चतम विधियों द्वारा प्राणायाम को नोटायाम में परिवर्तित कर दिया है|

नोटायाम का शाब्दिक अर्थ है नोटों के आने जाने पर संपूर्ण नियंत्रण| आत्मा एवं शरीर का समग्र नियंत्रण जब नोटों के आवागमन पर हो जाता है तो ऐसे महान दिव्य एवं अलौकिक शक्ति प्राप्त साधकों को उल्लू पर सवार पुराने ढर्रे वाली आउट डेटेड लक्ष्मी की कृपा पर निर्भर नहीं रहना पड़ता| लक्ष्मी स्वयं ऐसे साधकों के समक्ष हाथ पसारकर कुछ मिलने की आशा में खड़ी रहती है| ऐसे नर श्रेष्ठ एवं साधक शिरोमणी अरब पति,खरबपति होते हैं| उन्हें लक्ष्मी पति होना आवश्यक नहीं होता| किंतु यह तथ्य ध्यान में रखना पड़ेगा की साधक को सफलता तभी मिलेगी जब उसकी संकल्प शक्ति दृढ़ हो ,ल्क्ष्य प्राप्ति के प्रति संपूर्ण एकाग्रता एवं श्रद्धा हो और समर्पण हो| इच्छा शक्ति,एकाग्रता विश्वास एवं श्रद्धा ही सफलता का सूत्र है| नोटायाम केवल शारीरिक एवं एंद्रिक क्रिया भर नहीं है,इसमें भावों और भावनाओंका संमिश्रण अत्यंत आवश्यक है| नियमित श्वांस उच्छवांस एवं लय बद्ध एवं ताल बद्ध श्वांसोंके आवागमन से नोटायाम अति शीघ्र सिद्ध होता है| नाभि चक्र पर लय बद्ध आरॊह अवरोह क्रम में नोटों के प्रहार से नाभि चक्र आनन फानन जाग्रत हो जाता है| "............मैं देख रहा हूं कुछ शिष्यों को वायुमंडल से अलग अलग वेराइटी के बिखरे नोटों को नासिका द्वारा भीतर खीचने में कष्ट हो रहा है| वे अलग अलग तरह के नोटों को कल्पना में नहीं पकड़ पा रहे हैं|

मैं उनसे आग्रह करूंगा कि वे अपनी सुविधा के अनुसार भीतर खींचे गये प्रत्येक श्वांस के साथ एक बोरा नोट पेट के भीतर जाते हुए अनुभव करें| श्वांस रोककर कुंभक करते हुये यह सोचें कि यह बोरे भर नोट पेट में खाली हो रहे हैं| श्वांस बाहर निकालते समय खाली बोरे को नाक के रास्ते बाहर जाता हुआ महसूस करें| एक बार फिर से समझ लें| श्वांस के साथ नोट भीतर खीचने की क्रिया को पूरक कहते हैं| नोट पेट में खाली करने की क्रिया को कुंभक कहते हैं एवं खाली बोरे नाक से बाहर निकालने की क्रिया को रेचक कहते हैं| नोटायाम के आधुनिक मनिषियों द्वारा लिखे गये शास्त्रों के अनुसार संशोधित परिभाषा के अंतर्गत तिजोड़ी एवं स्विस बैंकों में नोटों को भरने की क्रिया को पूरक कहते हैं| तिजोड़ी में नोटों को रोककर रखना आंतरिक कुंभक,तिजोड़ी से नोटों को निकालना रेचक एवं नोटों को अपने हित लाभ के लिये उपयोग में लाना वाह्य कुंभक कहलाता है| नेता एवं मंत्री ब्रांड के के लोग पांच साल तक पूरक एवं आंतरिक कुंभक करते हैं और चुनाव आता है तो वे एक ही बार में रेचक एवं वाह्य कुंभक करके नोटों को वोटों में तब्दील कर लेते हैं| फिर पांच साल तक वोटों की टकसाल में नोट छपते रहते हैं फिर पूरक द्वारा नेताओं की तिजोड़ी में एकत्रित होते रहते हैं| यही विधि का विधान है और यही आधुनिक भारत का संविधान भी है| आज बस इतना ही| "