भ्रष्टाचार के तीन स्रोत / सत्य शील अग्रवाल
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात करने से पूर्व भ्रष्टाचार की उत्पत्ति के कारण अथवा भ्रष्टाचार के स्रोतों का अध्ययन करना भी आवश्यक है। ताकि उन स्रोतों पर कुठाराघात किया जा सके और देश को भ्रष्टाचार मुक्त किया जा सके। सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाकर ही इस बुराई से लड़ना संभव होगा। भ्रष्टाचार के निम्नलिखित तीन मुख्य स्रोत हैं ।
प्रथम: सरकारी कर्मी, सरकारी अधिकारी अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए, उसे मिली निर्णय शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए, आपके सही काम को भी गलत सिद्ध करने की धमकी देता है, और उसके बदले में रिश्वत की मांग करता है, या फिर आपके काम को अनावश्यक रूप से देर करने बात करता है , जल्दी काम करवाने के लिए सेवा पानी की जरूरत बताता है। इस प्रकार के भ्रष्टाचार में सरकारी खाजने को कोई हानि तो नहीं पहुँचती परन्तु आपकी जेब पर डाका पड़ता है और सही काम के लिए घूस देना आपके लिए कुछ ज्यादा ही कष्ट दायक होता है। क्योंकि आपको कानून सम्मत काम के लिए भी जेब ढीली करने की मजबूरी जो है।
द्वितीय: इस स्रोत द्वारा आपकी जेब पर तो डाका डाला ही जाता है, परन्तु सरकारी राजकोष को भी क्षति पहुंचाईजाती है, अर्थात या राजस्व को आने से रोका जाता है या फिर राजस्व को आवश्यकता से अधिक खर्च कर राजकोष को नुकसान पहुँचाया जाता है। लाभान्वित होते हैं आप या सरकारी कर्मी। इस प्रकार के भ्रष्टाचार में सरकारी अधिकारी, सत्ताधारी नेता राजकोष को चूना लगाकर अपने खजाने भरते हैं। जनता की गाढ़ी कमाई से प्राप्त टेक्स को चंद लोग चाट कर जाते हैं। और जनता को विकास के नाम पर मिलता है सिर्फ आश्वासन । भ्रष्टाचार के इस स्रोत को विशालतम स्रोत कहा जा सकता है जिसके द्वारा हजारों करोड़ का फटका लगता है । जैसे किसी टैक्स की बसूली करते समय ताक्स्दाता को लाभ पहुँचाना, किसी अपराध में दंड की राशी को घटा दें या फिर ख़त्म कर देना, किसी प्रकार की खरीदारी , किसी कार्य करने की निविदा जारी करते समय सेवा प्रदाता या बिक्रेता को लाभ पहुंचा कर अपना लाभ प्राप्त करना इत्यादि मुख्य स्रोतहै।
तृतीय: इस स्रोत से जनित भ्रष्टाचार का कारण सरकारी कर्मचारी नहीं बल्कि जनता स्वयं जिम्मेवार होती है। जब कोई व्यक्ति सरकारी कार्यालय में जाकर अपनी आवश्यकतानुसार कार्य कराने , या अपने पक्ष में गैर कानूनी कार्यों को कराने के लिए सरकारी कर्मी को लालच देता है, उससे सौदेबाजी करता है, कभी कभी अपनी ताकत की धमकी देता है यहाँ तक की जान से मारने की चेतावनी भी दे देता है। ऐसी परिस्थिति में अक्सर सरकारी कर्मी अपने लालच में नहीं अपनी सुरक्षा से चिंतित होते हुए भ्रष्टाचार को गले लगाता है। सभी प्रकार के भ्रष्टाचार इन्ही स्रोतों से उत्पन्न होते है। अतः यदि भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना है तो उपरोक्त माध्यमो को समझना होगा और उसी के अनुरूप पारदर्शिता को बढ़ाना होगा।