मंगलयात्री / आइंस्टाइन के कान / सुशोभित
सुशोभित
20 जुलाई 1976 को जब पहली बार मनुष्यों के किसी अंतरिक्षयान (वाइकिंग) ने मार्स की सतह को छुआ और वहाँ से पहली तस्वीरें भेजीं तो सबकी साँसें थमी रह गईं। बात केवल मार्स के गुलाबी आकाश और लाल लैंडस्केप की ही नहीं थी, जो, बक़ौल कार्ल सैगन, हूबहू कोलोराडो, एराइज़ोना या नेवाडा जैसा दिखलाई देता था। मार्स पर एक ऐसा संकेत नज़र आया था, कि सबके दिल धक्क से रह गए। क्राइस प्लेन में एक शिला पर अंग्रेज़ी का एक अक्षर दिखलाई दे रहा था- एक बड़ा-सा 'बी'- रोमन अल्फ़ाबेट का दूसरा अक्षर। अमरीकी पल्प फ़िक्शन राइटर एडगर राइस बूरोज़ ने मार्स पर गल्पकथाओं की एक शृंखला लिखी थी, जिसमें वो इस लाल ग्रह को बरसूम कहकर पुकारते थे। तो क्या सच में ही मार्स का वास्तविक नाम बरसूम था, क्या यह केवल एक साइंस फ़ंतासी नहीं थी? और क्या मार्स इस बड़े-से 'बी' की तख़्ती के साथ पृथ्वी से आए एक यान का स्वागत कर रहा था, शायद एक रहस्यमयी मुस्कराहट लिए?
बाद में सबने राहत (जिसमें रोमांच की क्षति से होने वाली मायूसी भी शामिल थी) की साँस ली, जब यह मालूम हुआ कि वह 'बी' अक्षर वास्तव में धूप-छांह का खेल था, क्योंकि मनुष्य की आँख जाने-पहचाने पैटर्न्स को खोज निकालने में सिद्धहस्त है। इसीलिए वह बादलों में, रेगिस्तानों में, समुद्र की लहरों में, और एक्स्ट्राटैरेस्ट्रायल लैंडस्केप में भी (याद कीजिये, मार्स के साइडोनिया पर मनुष्यों जैसे मुखौटे), वो आकृतियाँ खोज निकालती है, जो वहाँ पर वास्तव में नहीं थीं।
वाइकिंग मिशन के पीछे नाकामियों की एक लम्बी शृंखला थी और इससे पहले इस रहस्यमयी रेड प्लैनेट पर लैंडिंग और ओर्बिटिंग के अनेक मिशन फ़ेल हो चुके थे या आंशिक सफलता ही पा सके थे-- वन-एम, मार्स, कोस्मोस, मरीनर, ज़ॉड। वाइकिंग को बहुत अरमानों से भेजा गया था और तय किया गया था कि अमेरिकी स्वतंत्रता की दो सौवीं सालगिरह (4 जुलाई 1976) को पहली मार्स-लैंडिंग का तोहफ़ा अमरीकावासियों को दिया जाएगा, लेकिन लॉन्चिंग डेट सोलह दिन के लिए टल गई और आख़िरकार 20 जुलाई को पहली बार मनुष्यों के द्वारा भेजा गया कोई यान मंगल ग्रह पर उतरा।
जैसे ही टचडाउन कम्प्लीट हुआ, मुबारक़बादों का दौर शुरू हुआ। फिर मार्स से पहली तस्वीरें आना शुरू हुईं। सोलर सिस्टम में जैसे मार्स पृथ्वीवासियों को सम्मोहित करता है, वैसे कोई नहीं करता, सैटर्न की रिंग्ज़ भी नहीं। आकार-प्रकार में यह बहुत कुछ पृथ्वी जैसा है। इसके पास एक एटमोस्फ़ीयर है, पोलर आइसकैप्स हैं, अतीत में यहाँ नदियां बहती थीं, ध्रुवीय बर्फ़ को पिघलाए जाने पर फिर से इसका लैंडस्केप पानी से भर सकता है, और पानी यानी जैव-विविधता की आदिम प्रयोगशाला- जिसको कि कहते हैं- द स्टफ़ ऑफ़ लाइफ़। मून पर हवा नहीं थी। वीनस का लैंडस्केप तो नर्क जैसा था, जहाँ तपती भट्टी जैसा तापमान था, तेज़ाब की बारिश होती थी और हवा ज़हरीली थी। मर्क्यूरी पर तो ख़ैर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जुपिटर और सैटर्न के पास तो धरातल तक नहीं है, वो गैस से बने हैं, जैसे नेपच्यून और यूरेनस बर्फ़ और बादलों से। इतने बड़े सोलर सिस्टम में अगर कोई लैंडस्केप धरती से मिलता-जुलता था तो वो मार्स का ही था। वहाँ पर जीवन की एक सुदूर कल्पना की जा सकती थी। साइंस फ़िक्शनों ने मार्शियंस को लेकर हमारे ज़ेहन में अनेक कल्पनाएं रोप दी थीं। क्या सच में मार्स पर जीवन है, वहाँ प्राणियों का बसेरा है? क्या सच में मार्स पर नहरें हैं, जैसा कि पर्सीवल लोवेल ने अपनी दूरबीनों से देखकर बतलाया था? और क्या सच में ही मार्स पर हम आने वाले कल में रह सकते हैं?
20 जुलाई 1976 को वाइकिंग के द्वारा मार्स से भेजी गई पहली तस्वीरें पिक्सेल-दर-पिक्सेल जुड़कर धीरे-धीरे नुमायां हुईं। नासा के वैज्ञानिक दमसाधे देखते रहे। जैसे ही मार्शियन लैंडस्केप के पूरे डिटेल्स उनके सामने उभरे, कुछ का गला रूंध गया, कुछ रोमांच से उन्मत्त हो गए। मालूम होता था, यह हमारी अपनी धरती का कोई रूखा लैंडस्केप है। कोई इक्वेटरियन डेज़र्ट, या माउंटेन टैरेन। यह मून और वीनस की तरह अजनबी धरती नहीं थी, इससे हम एक लगाव महसूस कर सकते थे। मार्स से हमें पहली नज़र में प्यार हो गया था।
आठ महीनों की लम्बी यात्रा के बाद वाइकिंग वहाँ पहुँचा था। जब उसने तस्वीरें भेजीं, तो आरम्भिक उत्साह के बाद एक 'काश!' ने वैज्ञानिकों को ग्रस लिया, क्योंकि मनुष्य के मन की यही फ़ितरत है कि वह कुछ हासिल करने के बाद कुछ और पा लेना चाहता है। वाइकिंग अंगद के पाँव की तरह एक जगह पर खड़ा था, वह हिल नहीं सकता था, वह हमेशा एक ही नज़ारा दिखलाता था। नासा के वैज्ञानिक मन मसोसकर रह गए कि ओह वाइकिंग, तुम ज़रा गर्दन क्यों नहीं घुमा सकते? तुम थोड़ा चलकर आगे क्यों नहीं जा सकते? उस लाल पहाड़ी के पीछे क्या है, हम देखना चाहते हैं? अभी हमारा जी नहीं भरा, हम और चाहते हैं।
जब वाइकिंग मिशन क़ामयाब हुआ, ऐन उसी समय कार्ल सैगन टेलीविज़न के लिए अपनी अत्यंत लोकप्रिय कॉस्मास शृंखला बना रहे थे। एक एपिसोड उन्होंने मार्स और वाइकिंग मिशन को समर्पित किया। उस 'काश!' को वो उस एपिसोड में भी ले आए। उन्होंने कहा, काश कि हम मार्स पर एक रोवर भेज पाते, जैसा कि मून पर भेजा था। रोवर- जो कि एक जगह ठहरा नहीं रहता, चलता है, फिरता है, यात्राएँ करता है, धरातल के हज़ार रंग देखता और दिखलाता है।
कल जब नासा का पर्सिवेरेंस रोवर मार्स पर उतरा तो मुझको कार्ल की बहुत याद आई। मैंने मन ही मन कहा कि अगर कार्ल होता तो आज कितना ख़ुश होता। अलबत्ता ये पहली बार नहीं था, जब मनुष्यों ने मार्स पर एक रोवर भेजा था। इससे पहले सोजोर्नर, अपॉर्चूनिटी, स्पिरिट, क्यूरोसिटी रोवर वहाँ भेजे जा चुके थे, लेकिन सभी कार्ल सैगन की मृत्यु के उपरान्त। जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी ने इस विधा में अब महारत हासिल कर ली है। वास्तव में पर्सिवेरेंस रोवर किसी भी एक्स्ट्राटैरेस्ट्रायल बॉडी पर मनुष्यों के द्वारा भेजी गई अब तक की सबसे विकसित यंत्रशाला है और मार्स के सम्बंध में अब यह बात केवल वहाँ की मालूमात हासिल करने तक ही सीमित नहीं रह गई है, मनुष्य निकट भविष्य में वहाँ जाकर बसने का मन बना चुके हैं और पर्सिवेरेंस रोवर को मनुष्यों ने वहाँ पर अपने वैसे दूत की तरह भेजा है, जो इस दिशा में आगे सर्वसम्मति के निर्माण के लिए काम करेगा। वो एक एन्शेंट रिवर-बेड (ज़ेज़ेरो क्रैटर) पर उतरा है और अतीत में किसी भी क़िस्म की बायोडायवर्सिटी के सुराग़ तलाशेगा। यह उद्यम एस्ट्रोबायोलॉजी कहलाता है। पर्सिवेरेंस अपने साथ एक ऐसी युक्ति भी लेकर गया है, जो कार्बन डायऑक्साइड से ऑक्सीजन बना सके। इसे आप मार्स पर मनुष्यों की लैंडिंग (एलोन मस्क के द्वारा दी गई डेडलाइन- वर्ष 2026) की पूर्व-तैयारी भी कह सकते हैं। आने वाले अनेक दिन अब मार्स से आने वाली ख़बरों और तफ़सीलों से भरे रहेंगे।
तब, इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है कि वहाँ किसी पत्थर पर 'बी' अक्षर लिखा मिलता है या नहीं, जो यह बतलाता हो कि मार्स उर्फ़ बरसूम पृथ्वी के बाशिंदों के द्वारा भेजी गई एक मशीन का इस्तेक़बाल करता है, शायद एक रहस्यमयी मुस्कराहट के साथ? और चूँकि, स्वयं को किसी जाति या धर्म या राष्ट्र या क्षेत्र से जोड़कर देखने के दिन अब लद चुके हैं और अब हमें प्लैनेट अर्थ को ही अपनी नैशनलिटी और सेपिएंस को ही अपनी रेशियल आइडेंटिटी मानना होगा- कम-से-कम मैं तो यही मानता हूँ- लिहाजा मार्स पर पर्सिवेरेंस रोवर की सफल आमद तमाम पृथ्वीवासियों के लिए ख़ुशी का विषय है। नासा की वेबसाइट पर द रेड प्लैनेट नाम से जो सेक्शन है, वहाँ पहले ही मार्स के फ़्यूचर को मनुष्यों की कॉलोनी के रूप में दर्शाया जाने लगा है। अगर मार्स पर सच में ही कोई जीवन नहीं है तो मनुष्य स्वयं आने वाले समय में मार्शियन कहलाएँगे- इस मंतव्य के लिए पर्सिवेरेंस रोवर धरती से मंगल पर भेजी गई किसी पताका से कम नहीं।
प्लैनेट अर्थ को इसकी मुबारक़बाद।