मंगल ग्रह पर बसने के इच्छुक लोग / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 12 मई 2014
यात्राओं के विषय में दो जानकारियां प्राप्त हुई हैं। चीन एक योजना पर काम कर रहा है जिसके तहत प्रशांत महासागर के भीतर तेरह हजार किलोमीटर की बुलेट ट्रेन चलाने का उद्देश्य। समुद्र गर्भ में बनी एक टनेल में उत्तर पूर्वी चीन से यात्रा शुरू होगी तथा साइबेरिया, अलास्का, कनाडा होते हुए अमेरिका पहुंचेगी। इसकी गति 350 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। एक कम्युनिस्ट देश दूसरे कम्युनिस्ट देश से होते हुए पूंजीवादी अमेरिका तक पहुंचेगा। जानकारों का मत है कि चीन कम्यूनिस्ट तौर-तरीकों द्वारा पूंजीवादी बनना चाहता है। लगता है कि बाजार और विज्ञापन शासित कालखंड में किसी राजनैतिक आदर्श पर कोई टिका नहीं है। यह बाजार का स्वर्ण काल है।
दूसरी यात्रा डेनमार्क में स्थापित एक कंपनी की है जो बिना लाभ-हानि के मंगल यान पर अपना यान भेजेंगे और यह एकतरफा यात्रा है अर्थात वहां जाने पर लौटने का अवसर नहीं है। अन्य ग्रहों पर मनुष्य की बस्ती विज्ञान फंतासी में वर्णित है और साहित्य में इसके पुरोधा एच.जी.वेल्स एवं जूल्स वर्न रहे हैं। सन् 1895 में पेरिस में प्रस्तुत सिनेमा के पहले प्रदर्शन के समय दर्शकों में मौजूद थे जादूगर जार्ज मेलिए और उनका विचार था कि यह नया माध्यम उनके द्वारा प्रस्तुत मायाजाल में सहायक हो सकता है और मायाजाल को शामिल करके कुछ अत्यंत कल्पनाशील फंतासी भी रची जा सकती है। जार्ज मेलिए ने अन्य ग्रहों की यात्रा पर कुछ फंतासी फिल्में भी बनाई परंतु कुछ वर्ष पश्चात उनकी दिमागी दशा अस्थिर हो गई और उन्हें पागल खाने में भर्ती करना पड़ा। स्पष्ट है कि जादू के मायाजाल और विज्ञान फंतासी के संसार में निरंतर रहने वाले व्यक्ति का यथार्थ से संपर्क टूट जाता है। उसे यह भी भान नहीं रहता कि वह यथार्थ में है या यह अपने माया-जाल का एक पात्र है। यह विभ्रम की दशा केवल सृजनशील फिल्मकारों की ही नहीं होती वरन् नेताओं की भी होती है क्योंकि दोनों ही क्षेत्रों में जनसमूह को प्रभावित करने का आग्रह प्रबल होता है। अपने ही झूठ पर यकीन होने लगता है। हिटलर ने आर्य जाति की श्रेष्ठता का झूठ रचा था और सच साबित करने के लिए विश्व-युद्ध छेड़ दिया।
आज की तीसरी खबर भी उपरोक्त बात से जुड़ी है। शिवसेना के आधिकारिक अखबार 'सामना' में गुजरातियों पर प्रहार किया गया और अभी शिव सेना ने मांग की है कि बेस्ट बसों और अन्य स्थानों से शीघ्र ही प्रकाशित होने वाले गुजराती भाषा के विज्ञापन हटाए जाएं क्योंकि विज्ञापन में यह लिखा है कि मुंबई के आर्थिक एवं बौद्धिक विकास का काम 'हम गुजरातियों' ने किया। मोदी साहब ने अपनी चुनावी रणनीति में गुजरात की श्रेष्ठता का खेल शुरू किया जो कब कैसे उन पर टूट पड़ेगा इसकी कल्पना उन्हें नहीं थी। मजे की बात यह है कि विरोध वह शिवसेना कर रही है जिसने 'मराठी मनुष्य' के श्रेष्ठता पर अपना लोकप्रिय आधार बनाया था।
बहरहाल डेनमार्क की मंगल पर रहवासी बस्ती बसाने के लिए आवेदन पत्र बुलाए गए थे। आश्चर्य यह है कि दो लाख लोगों ने आवेदन भेजे। तमाम आवेदन कथाओं की योग्यता और क्षमता के परीक्षण के बाद एक संक्षिप्त सूची में 29 भारतीय शामिल हैं जिनमें मात्र तीन की आयु पचास वर्ष है, अन्य सभी प्रत्याशी बीस और पैंतीस वय के लोग है। यह प्रस्तावित यात्रा 2025 में यथार्थ स्वरूप लेगी। सच तो यह है कि विज्ञापन के द्वारा गंजे को कंधा और शराबी को हिमालय की बर्फ बेची जा सकती है। ये 29 युवा वय के सभी लोग टेक्निकल ज्ञान प्राप्त करने वाले लोग हैं गोयाकि फंतासी में विश्वास तकनीशियनों का है। इनमें कोई कवि, पत्रकार या नेता नहीं हैं। सभी एमटेक हैं। क्या ज्ञान हमारी सहायता करता है या उसका अपना भी मायाजाल है।
अभी तक के आकलन से हमारी अपनी पृथ्वी के अतिरिक्त कहीं जल नहीं है और 'जल बिन जीवन सून' होता है। मंगल की जमीन लाल रंग की है। क्या वहां भी कभी कुरुक्षेत्र हुआ है। महाभारत के बाद वर्षों तक रक्त रंजित जमीन लाल रही थी। इसका एक पक्ष यह भी है कि मंगल ग्रह पर जाने के इच्छुक लोग शायद यह समझ गए है कि धरती के निर्भय दोहन के कारण हमने धरती से उसकी सम्पदा लूट ली है। विगत 150 वर्षों में सम्पदा का 40 प्रतिशत हमने ले लिया है जबकि उसके पहले के तीन हजार सालों में केवल दस प्रतिशत दोहन ही किया गया था। हम एक दाना बोते हैं और वह हमें दस दाने लौटाती है तो क्या हम उसका उतना भी नहीं लौटा पाते जितना हम उससे लेते हैं। दरअसल सत्तान्मुख राजनीति ने सारे महत्वपूर्ण मुद्दों को गायब कर दिया है। यह मंगल यात्रा की योजना बनाने वाले पूंजी का एक अंश ही धरती सम्पदाके संरक्षण के लिए लगा देते। हजारों करोड़ के चुनाव प्रचार का थोड़ा अंश भी धरती को हरा भरा करने के लिए नहीं लगाया गया।