मंज़िलें लाँघता दर्द / शशि पाधा

Gadya Kosh से
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बस दो ही जन थे उस कमरे में। पाँच साल का ध्रुव और पैंसठ साल की दादी माँ। दोनों अपनी-अपनी आयु के अनुसार अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे। दादी अपने घुटनों पर दर्द मिटाने की दवा लगा रही थी और ध्रुव अपने बिल्डिंग बनाने वाले खिलौनों के ब्लाक्स जोड़-जोड़कर ऊँची बिल्डिंग तैयार कर रहा था। एक के ऊपर एक, बहुत ऊँची, शायद पाँचवी मँजिल तक पहुँच गया था। नीचे कार पार्किंग भी थी। उसमें कार के स्थान पर ट्राई साइकल खड़ी हुई थी। ये था पाँच वर्ष के बच्चे का पहला वाहन। ध्रुव अक्सर कहता था कि वह बड़ा होकर बिल्डर बनेगा और बड़े–बड़े घर बनवाएगा।

आज यही देखकर दादी माँ मुस्कुराने लगी। "' क्या बन रहा है?" उन्होंने यूँ ही पूछ लिया।

"बड़ी-सी बिल्डिंग। इसमें हम सब मिलकर रहेंगे। चाचा, मासी और मेरे सारे कज़िन्स। कितना मज़ा आएगा न दादी।" ध्रुव ने बड़े उत्साह से कहा।

"हुम्म!" दादीमाँ ने ब्लाक्स की बनी बिल्डिंग पर एक सरसरी दृष्टि डाली। आज घुटनों में कुछ ज़्यादा ही दर्द था। दवा लगाते हुए मुँह से एक कराह-सी निकल गई।

ध्रुव ने दादी की ओर देखकर बड़े भोलेपन से कहा, "दर्द हो रहा है? ऊपर से दूसरी दवा ले आइए न!"

"न बेटा! कोई बात नहीं, ठीक हो जाऊँगी कुछ देर में"-दादी ने उत्तर दिया

ध्रुव बहुत मासूमियत से दादी से बोला, "आप चिंता मत करो, मैं सब ठीक कर दूँगा।"

मासूम ध्रुव के सांत्वना के शब्द सुनकर वह मुस्कुरा दी। अब दर्द भी कुछ कम हो रहा था, शायद दवा ने असर करना शुरू कर दिया था-था या ध्रुव की सांत्वना ने। अब वह भी उसके के खेल में ध्यान लगाने लगी।

ये क्या कर रहा है ध्रुव! वह बिल्डिंग की ऊपरी मंज़िलों से ब्लाक्स क्यों निकाल रहा है? दादी माँ को उत्सुकता हुई कि क्या हो रहा है। अधिकतर दो चार दिनों के लिए बिल्डिंग को न हटाने की हिदायत रहती है। पर आज——?

आज तो बिल्डिंग की सब से नीची वाली मंज़िल पर कुछ और कमरे बन रहे थे। एक और कार पार्क भी बन गया। बाहर से लाए कुछ पत्ते–टहनियाँ सज गए। धीरे-धीरे सारी ऊपरी मंज़िलों के ब्लाक्स नीचे आ गए थे। भला आज क्या बन रहा है?

दादी अभी इसी सोच में थी कि अचानक ध्रुव ने उनकी कुर्सी के पास आकर बड़े प्यार से कहा, "दादीमाँ! देखिए न, अब मैंने केवल एक ही मंज़िल का घर बनाया है। लिफ़्ट खराब होने पर आप को सीढ़ियाँ चढ़ने में दर्द होता है न; इसीलिए यह बड़ा—सा घर बनाया है। सब यहीं रहेंगे। सभीईईईई——–।"

और दादी माँ का दर्द कई मंजिलें लाँघता हुआ कहीं दूर उड़ गया।