मंजिल वही है प्यार की राहें बदल गईं / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मंजिल वही है प्यार की राहें बदल गईं
प्रकाशन तिथि : 04 अप्रैल 2021


यह अनुमान लगाना मनोरंजक हो सकता है कि आजकल राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी क्या बनाने का विचार कर रहे होंगे? आज ‘थ्री ईडियट्स’ और ‘पीके’ के समान साहसी फिल्में नहीं बनाई जा सकती। सृजनकर्मी राजमार्ग बंद हो जाने पर पगडंडी खोज लेते हैं। दरअसल सहृदय जंगल स्वयं पगडंडी सामने रख देता है। हिरानी सदैव जागता रहता है। जब भी अंधेरा घना होता है तब वाल्मीकि रचित ‘रामायण’ और वेद व्यास की ‘महाभारत’ हमें रास्ता दिखाती है। इन प्राचीन ग्रंथों की महानता देखिए की व्यवस्था भी इन से डरती है, जपती है, दुरुपयोग करती है।

राजकुमार हिरानी के सामने दो रास्ते हैं, जिन्हें आम आदमी भी देख सकता है। एक तो यह कि वे ‘महाभारत’ प्रेरित विचार को वर्तमान समय के संदर्भ में प्रस्तुत करें। जैसा कि श्याम बेनेगल कर चुके है। फिल्म ‘कलयुग’ का निर्माण शशि कपूर ने किया। उन्होंने कर्ण प्रेरित पात्र अभिनय किया और रेखा ने द्रौपदी प्रेरित पात्र अभिनीत किया।

अगर हिरानी ‘रामायण’ प्रेरित फिल्म बनाएं तो संभव है कि उसके प्रदर्शन तक अयोध्या में मंदिर निर्माण पूरा हो चुका हो। ऐसा होने पर आय के नए रिकॉर्ड बन सकते हैं। यह बात भी है कि वह संसद के लिए आम चुनाव का वक्त हो। इस तरह के संयोग बनते हैं। राजकुमार हिरानी तीसरे रास्ते पर जा सकते हैं। तीसरा रास्ता काल्पनिक आकल्पन का होता है। याद आता है कि ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ का फिल्मकार गुरुदत्त काल्पनिक ‘अलीबाबा और चालीस चोर’ बनाना चाहता था। ‘बैताल पचीसी’, ‘अरेबियन नाइट्स’ और ‘पंचतंत्र’ बड़े खजाने हैं। बस ‘खुल जा सिम सिम’ मालूम करना होता है। इस मामले में उच्चारण की शुद्धता को ध्यान में रखना चाहिए। दुष्ट व्यक्ति मरा-मरा बोलते हुए अनजाने में राम-राम का उच्चारण करते हुए वैतरणी पार कर गया।

यह सभी जानते हैं कि छात्र पढ़ना नहीं चाहते। शिक्षक पढ़ाना नहीं चाहते। एक दौर में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने छात्रों को स्कूल में दलिया मिलने का क्रियान्वयन सफलता से किया। दलिया के लिए ही सही परंतु स्कूल छात्रों को आकर्षित करता रहा। कागजी दौर ने दलिया नहीं देते हुए शिक्षा का दमन कर दिया। यह आकस्मिक और अनजाने में नहीं हुआ। अशिक्षित, अर्धशिक्षित किशोर और युवा वर्ग व्यवस्था को सुविधाजनक लगा हो। द्रोणाचार्य, पांडव और कौरव बंधुओं को शिक्षा देने के लिए अपने गुरुकुल ले गए। दरअसल गुरुकुल उन्होंने बनाया ही नहीं था। यह कार्य उनकी शिक्षा नीति का केंद्र था। जंगल पहुंचकर उन्होंने अपने छात्रों को आदेश दिया कि वृक्ष काटें, बांस तोड़कर लाएं, नदी से मिट्टी के मटके में पानी लाएं, इस तरह गुरुकुल का निर्माण पूरा होते ही उन्होंने कहा कि पढ़ाने का काम संपन्न हो चुका। छात्र दीक्षित भए।

अपनी मेहनत और लगन से गुरुकुल भवन का निर्माण कार्य ही असली शिक्षा है। इसके सदियों बाद महात्मा गांधी ने कहा कि सारे शिक्षा भवन अपना अर्थ और महत्व खो देते हैं अगर वे आदर्श शिक्षा में व्यवहारिकता का समावेश नहीं कर पाते। इसे बुनियादी शिक्षा कहा गया। गुजरात के शाहदरा नामक छोटे कस्बे में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित स्कूल बनाया गया। कुछ समय पश्चात वर्धा में महात्मा गांधी विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। महाराष्ट्र स्थित वर्धा में गांधी जी ने बहुत समय व्यतीत किया था।

राजकुमार हिरानी शिक्षा से संबंधित विषय चुन सकते हैं। ‘थ्री ईडियट्स’ से प्रेरित समकालीन विषय उठा सकते हैं। यह विषय रास्ता होते हुए मंजिल भी है। हमने करेंसी नोट पर गांधी जी का चित्र अंकित करके अपना दायित्व को समाप्त होना मान लिया। हम मुतमईन है कि नैतिकता का कर्ज ब्याज सहित लौटा दिया। नैतिक मूल्य धराशायी हो गए। लाक्षणिक इलाज जारी है। कैप्सूल से दवा निकालकर उसमें शक्कर भर दी जाती है। मरीज को सेहतमंद हो जाने का भरम हो जाता है। इसे प्लेसिबो कहा जाता है। आवाम प्लेसिबो खाकर खुश है।