मंतर रो जंतर / हरीश बी. शर्मा

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‘ओम धुम फट् स्वाहा’ ‘ओम धुम फट् स्वाहा’

बोलता थकां एकाऐक नाथ बाबै रै हाथ में नींबू आयग्यो। नींबू देख‘र बाबै री आंख्या चमकी। भंवारा ऊंचा करतो आपरै च्यारूंमेर देख्यो। चेला त्यार खड़या हा, बाबै रो आगलो आदेश सुणण नै। बाबै री आंख्यां रा डोळा च्यारूंमेर फिर परा फेरूं खेजड़ै सूं बंधी लुगाई माथै थिर हुयग्या। कीं ताळ सोच्यो अर फेर जोर सूं ‘ओम धुम फट् स्वाहा’ बोलतो-बोलतो खाथो-खाथो लुगाई तांई पूग्यो। केशां नैं झाल‘र झटको दियो तो नसड़ी दूजै खांधै टकरार नीचै लटकगी। बाबो फेर चीख्यो, ‘आंख्यां खोल भूतणी, प्रेतणी, डाकण ! देख तो सरी, थारै किरियाकरम में कितरा पूग्या है।’ कैवतो बाबो लुगाई रै केशां नैं फेर जोर सूं खांच्यां। अबकी लुगाई जोर सूं अरड़ाई। थोड़ी-सी आंख्यां खोली तो तमासो देखता लोग कांपण लाग्या। केई जणां री तो ऊभा रैवण री हिम्मत नीं रैयी। जका जावण लाग्या उणां नैं देख‘र बाबो चीख्यो, ‘खबरदार ! जको कोई पग भी उठाय लीनो। इसा लोगां री कोई जिम्मेवार नीं है। .... अर पछै इण अबला सागै कोई कीं हुयग्यो तो परमातमा जाणै। है जठै ही खड़ा रैवो !’ सगळां रा पग जाणै जमीं सूं चिपग्या। सगळां नैं आपरी जगै फेर देख‘र बाबो मुळक्यो, ‘आई बात भेजै में। बस, थोड़ी-सी देर री बात है। थांनैं थांरी लाडली बैन मिल जासी। गाँव री इज्जत सज जासी। म्हांरो कांई है, म्हां तो फकीरी में खुश हां। जकी इण पर आई है, उणनैं तो जावणो ही पड़सी। ... अर जावणो पड़सी इण दुनिया सूं।’ बाबै रा भंवारा फेर चढ़ग्या। लुगाई नैं देखतो बोल्यो, ‘भूतणी ! थनैं मरणो पड़सी।’ अर उणरै माथै पर नींबू टिका‘र ऊपर हाथ धर‘र मंतर बोलण लाग्यो। मंतर खत्म करतां ही नींबू नीचै पड़ग्यौ अर ऐकै कांनी गुड़कण लाग्यो। चेला दौड़या। बाबो चिख्यो, ‘हाथ ना लगाया कोई !’ अर नींबू कांनी देखतो बोल्यो, ‘दौड़ ! थारी हदां म्हैं जाणूं।’ इणरै सागै बाबै रा मंतर फेर सरू हुयग्या। लोग देख्यो नींबू जमीं पर थिर हुयग्यो। बाबो जोर सूं हंस्यो। नींबू उठायो अर मूर्ति रै सांमी राख दीनो। चेलां कांनी देख‘र बोल्यो, ‘कटार लावो।’ ......अर चेलो झोळी मांय सूं कटार काढ़ लायो। बाबो कटारी री पूजा करी। हवा में सात दफै घुमायी अर आठवीं बार जोर सूं नींबू पर वार करयो। नींबू रो दो टुकड़ा। पण अठै दरसाव दूजो बणग्यो। नींबू में सूं खून निकळतो देख‘र सगळां नैं सांप सूंघग्यो। लोग फेरूं धूजण लाग्या। लुगाई नैं अबार बी होस नीं हो। पण बाबो घणो खुश हो। चेला जै-जैकार करै हा। लो भी करण लाग्या। झूमता-नाचता चेला बाबै रै पगां पड़ण लागग्या। एक बोल्यो, ‘थै महान हो नाथ बाबा, अबला नै भूतणी सूं बचा लीनी।’ दूजो बोल्यो, ‘...अर भूतणी नैं मुगत कराई बा पागती में।’ चेलां नैं पगां पड़तां देख लोग भी लारो कर लियो। बाबो कीं ताळ मुळकतो रैयो। थोड़ी देर बाद चेलां घोषणा करी, ‘बाबाजी रै आसण रो समै सरू हुवै है, इण वास्तै अबै सगळा आप-आपरै घरै पधारौ।’ इण दरसाव नैं देख‘र राहुल तो नाथ बाबै रो भगत बणग्यो। परसाद रै सागै बाबै रो फोटू लेय‘र घरै आयग्यो। राहुल मनोमन बाबै सूं पास हुवण री अरदास भी करली। सुरजनदेसर रै नाथ बाबै रै परचां सूं राहुल ऐकलो नीं, कनै रा गांवां रा केई दूजा लोग भी बाबै रा भगत बणग्या हा। अमावस री रात अठै दीन-दुःखी लोगां रो मेळा मंडतो। बाबो पूगतो। कोई रै झााड़ो देवतो। किणी खातर नारेळ फोड़तो अर धूंवै सागै दुःख हर लेंवतो। किणी रै खातर खुद कांच रा टुकड़ा खा लेवतो अर बोलतो, ‘जा बच्चा ! मजा कर।’ बाबै रै त्याग आगै भगतां नैं कीं नीं दीसतो। राहुल तो हर अदीतवार डेरै पूग जांवतो। बाबै रा दरसण कर परसाद लेय‘र पाछो आ जांवतो। एक दिन बाबै नैं आपरी मन री बात बताई तो बाबो हंसतो थको बोल्यो, ‘जकै विषय में कमजोर है, उण किताब में म्हारो फोटू धरलै।’ बस, राहुल नैं और कांई चाइजै हो। राहुल गणित री किताब में बाबै रो फोटू राख‘र निरवाळो हुयग्यो। एक दिन राहुल घरै आयो तो देख्यो मम्मी नैं ताव चढ़योड़ो हो। दादी बतायो, ‘दवा दे दी, पण ताव उतरै हीं कोनीं। नाथ बाबा नैं बुलाया है, उणां रै हाथ में जस है।’ थोड़ी ताळ में बाबो आय पूग्यो। बो राहुल री मम्मी नैं दूर सूं देख‘र पाछो बारै आयग्यो। जमीन सूं बेळू उठाई अर सूंघी। बेळू सूंघता ही बाबै रै चेहरै पर कीं भाव आया-गया। बाबो दादी कानीं देखतो बोल्यो, ‘डोकरी, आंनै धोळै-दोफारै कूवै कांनी क्यूं भेज्या ?’ दादी डरती बोली, ‘पोतै नैं टिफण भेजणो हो, पण हुयो कांई बाबोजी ?’ ‘समै रो तो ध्यान राखणो हो भोळी ! अबै भुगतो।’ दादोजी दादीजी नैं चुप करता बोल्या, कीं तो करो नाथजी ?।’ दादोजी आपरै चोळै री जेब में हाथ घाल्यो। हाथ बारै निकाळयो तो उणमें सौ-सौ रा कीं नोट हा। ‘इण हरियाळी नैं अबार थारै कनै राख सेठ। पैलां काम हुवण दै।’ पण दादोसा नीं मान्या। रूपिया बाबै रै हाथ में धरता बोल्या, ‘काम हुय जासी। थै तो ऐ राखो।’ बाबोजी रूपिया लेय‘र टुरग्या। दादा-दादी बाबै रै लारै दौड़या। राहुल मम्मी रै सिराणै बैठ्यो हो। बैठै-बैठै नै नींद आयगी। थोड़ी ताळ बाद राहुल नैं कीं आवाजां सुणीजी। आंख खोली तो देख्यो, मम्मी-पापा बात करै हा। राहुल उठतां ही पूछयो, ‘कियां हो मम्मी ?’ मम्मी बोली, ‘म्हैं तो ठीक हूं पण थूं पापा सागै जा अर मामा नैं फोन करदै।’ राहुल पापा कानीं देख्यो। पापा बोल्या, ‘अबार चालां।’ थोड़ी देर में दोनूं बस स्टैंड कनै बण्यै टेलीफोन बूथ सूं फोन कर‘र मामा सूं बात करी। पापा सगळी बात समझाई। मामा बोल्या, ‘दिनूंगै तांई पूंगसूं।’ राहुल बोल्यो, ‘मामा ! सागै रोहित नैं लाया।’ मामा ‘ठीक है’ कैय‘र फोन राख दियो। पापा फोन रा पइसा देय‘र बारै निकळया पण राहुल री निजर बूथ में टंग्योड़ी बाबै री फोटू पर अटकगी। बाबै री फोटू सांमी हाथ जोड़‘र बोल्यो, ‘हे नाथ बाबा ! म्हारी मम्मी नैं ठीक कर दो। अबै म्हैं हमेस टिफण सागै लेय‘र जासूं।’ दिनूंगै मामा गाँव पूग्या। सागै रोहित भी हो। मम्मी नैं देख‘र मामा चिंत्या में लाग्या। माथै पर हाथ राख‘र देख्यो। नाड़ संभाळनै रै बाद मम्मी नैं पूछयो, ‘किंयां बाई ?’ मम्मी बोली, ‘आयग्या भाई।’ रोहित नैं सागै देख‘र मम्मी रै चेहरै पर हरख दूणो हुयग्यो पण पीड़़ भी कम नीं ही। मामा, पापा सूं बात करण लाग्या। मामा नैं इचरज हुयो। बै मम्मी कांनी देख‘र बोल्या, ‘गांव में एक डाक्टर भी नीं है ?’ मम्मी कीं कैवती उणसूं पैलां ही दादीजी बोल पड़या, ‘डाॅक्टर तो है, ताव री दवा भी दे दीनी पण ओ रासो डाॅक्टर रै ताबै रो कोनीं। बीमारी कीं कोनी, बीनणी फेंट में आयगी, जकै सूं ....’ दादी री बात सुणतां ही मामा रा तौर बदळग्या तो दादी भी आपरी बात बिचाळै ही छोड़दी। कमरै में सरणाटो छायग्यो। सगळा चुप। कीं सोच‘र मामा बोल्या, ‘थांरो हुकम हुवै तो कमला नैं बीकानेर ले जांऊ। बठै चोखा डाॅक्टर है।’ दादी नैं आ बात दाय नीं आयी। बोली, ‘सगोजी, म्हैं तो थांनै असली बात बताय दीनी, आगै थांरी मरजी। भाई हो थै, बैन रो भलो ही सोचसो।’ दादी बे-मन सूं बात करी। पापा कांनी देखतो मामा पूछयो, ‘थै कांई केवौ हो कंवर साब ?’ पापा इतरा ही बोल्या, ‘ आ ठीक हुवै तो म्हनैं कांई ऐतराज ?’ मामा बोल्या, ‘तो फेर त्यार हुय जावो, थै भी चालो सागै। राहुल नैं भी लेलो। आपां दोफारै री गाड़ी में ही निकळसां। सिंझ्यां तांई बीकानेर पूग जासां जिणसूं इलाज सरू हुय जासी।’ बस में बैठया तो रोहित-राहुल नैं अलायदी सीट मिलगी। दोनूं भाई घणा हरख्या। खेतां रै बीच सूं बस निकळी तो रोहित सरसूं री फसल पर पीळा-पीळा फूल देख‘र बोल्यो, ‘थांरै ठीक है राहुल, म्हां तो सैर में सरसूं रा साग खावण नैं ही तरस जावां। भुआजी भेजै जणै साग बणै बो भी कटोरी-कटोरी पाड़ोस्यां में बंट जावै। केई बार तो म्हारै पांती ही कोनीं आवै।’ रोहित बोल्यो, ‘अरे डोफा ! पैली बोलतो। अठै इणरी कांई कमी ! अबकी बात। और बता, थनैं काकडि़या-मतीरा भावै हैं कांई ? अबकी तो बोरिया भी भांत-भांत रा लागण री बात पापा करता। थनैं भावै तो बता नीं जणैं यूं कर कै एक बार म्हारै सागै खेत चाल। म्हैं थनैं समै-समै पर ऊगण आळी चीजां दादोसां नैं पूछ‘र बता देसूं। थनैं जिकी ठीक लागै लिखवा दियै। पैलो फळ बीकानेर भेज देस्यूं।’ राहुल री बात सुण रोहित हंसण लाग्यो। दोनूं नैं बात करता-करता झपकी भी आयगी। बस आपरी रतार सूं चालै ही। अचाणचक तेज आवाज हुई अर राहुल चमक‘र उठ्यो। रोहित अबार नींदां में हो। राहुल उणनैं झिंझोड़तो बोल्यो, ‘रोहित उठ ! देख कांई हुयो, बस रूकगी।’ रोहित उठ‘र बारी सूं बारै देख‘र बोल्यो, ‘अबार इंयां कई बार बस रूकसी। स्टैंड आवण में आधो घंटो पड़यौ है, जकै नैं बीच में उतरणो है, उणां खातर बस बीच में रूकै।’ राहुल बात तो समझग्यो पण नींद जकी उचाट हुई, बा पाछी किसी आवै। फेर सैर रो रोळो-रप्पो। मोटरसाइकिल, स्कूटर, टैक्सियां, कार, जीपां कनै सूं सरणाट करती निकळती। सगळां नै आप-आपरै घरां जावण री खथावळ ही। मामा री आवाज आई, ‘दोनूं आगै आय जावो, स्टैंड आयग्यो।’ दोनूं आपरी सीट सूं खड़ा हुया। गाडी रूकी तो सगळा नीचै उतरग्या। टैक्सी करी अर थोड़ी ताळ में घर आयग्यो। मम्मी नैं देख‘र मामीजी घणी हरखी। पापा नैं ओळभो देंवतां बोली, ‘ओ कांई हाल करयो है बाईसा रो ?’ पापा कीं बोलता उणसूं पैलां ही मामा बोल पड़या, ’फालतू बात बाद में, अबार कमला नैं चैकअप करावण नैं ले जावणो है। म्हैं त्यार हुय‘र आवूं, तूं कमला नैं त्यार कर। अर कंवर साब, थै आराम करो। म्हैं कमला नैं दिखा‘र लावूं। मामा आपरी मोटरसाइकिल पर मम्मी नैं चैकअप करावण लेयग्या। पापा दूजै कमरै में जाय‘र आराम करण लाग्या। मामीजी रसोई में गया। म्हे दोनूं कम्पयूटर सूं कीं देर खेचळ करी। मन भरयां बाद दुकान पूगग्या। बाजार रै बीचोबीच नानोसा री दुकान। म्हनैं देखतां ही नानोसा हरिया हुयग्या। कनै बुलाय‘र खोळै में बैठा लियो। मम्मी रो पूछयो। दुकान मे ग्रायकी रो जोर हो। एक नैं समान तुलतो उणसूं पैली तीन त्यार हुय जांवता। थोड़ी देर तो दोनूं बैठा रैया। मन नीं लाग्यो जणै उठ‘र ऊपर गया परा। ऊपर पूग‘र रोहित बोल्यो, ‘देख राहुल ! अठै सूं पूरी दुकान भी दीसै अर कोई चावै तो आराम भी कर सकै।’ राहुल च्यारूंमेर देख‘र बोल्यो, ‘बात तो साची है। एक जगै बैठा-बैठा सैं कीं दीसै। गांव सूं कित्तो अलायदो है सैर। मानखो कीड़ीनगरै दांई बैवै। किणी नैं कोई री परवा कोनीं। सगळा भागमभाग में है।’ रोहित सूं बात करतो-करतो राहुल अधलेटो हुयो ही हो कै नानोसा री आवाज सूं उचकग्यो। नानोसा आपरै नौकर नैं बोल्या, ‘रामूड़ा ! इण रईस नैं कीं ना तोल्यै। पैली पुराणी कलम चुका, फेर रामू नैं समान बता। पइसा नीं लायो तो रस्तो नाप !’ नानोसा इत्ती जोर सूं बोल्या कै राहुल नैं भी आ जाणण री खथावळ लागी कै इस्यौ कुण है जकै नैं नानोसा इंयां बकै। रोहित बोल्यो ‘छोडैनीं, दादोसा री तो रोज री आ बात है। पइसो दादोसा रो परमेसर अर दादोसा पइसै रा दास।’ रोहित री बात सुण‘र राहुल हंसियो पण उणरी निजरां ग्रायकां पर लाग्योड़ी ही। एक आदमी पर राहुल री नीजर थिर हुयगी। धोती-चोळौ पैरयोड़ो ओ आदमी कीं जाण्यो-पिछाण्यो लाग्यो। अरे ! ओ तो नाथ बाबै जिस्यौ लागै। सांगोपांग नाथ बाबो। जे भगवा पैरायदो तो कीं फरक नीं। राहुल नैं इंयां देख‘र रोहित बोल्यो, ‘उण आदमी पर दया आयगी कांई ?’ कोई फरक नीं पड़ै। दादोसा तो माल जद ही तोलसी, जद ओ लारला पइसा जमा करासी।’ राहुल री बात साच निकळी। नाथ बाबै जिस्यो आदमी नानोसा कनै आय‘र बोल्यो, ‘आ कांई बात करो सेठजी, पइसा तो मोड़ा-बेगा चुकाय दूं हूं। ऐ लो पांच सौ रूपिया।’ नानोसा पांच सौ रूपिया हाथ में लेंवता बोल्या, ‘पण कलम तो थारी छऊ सौ रूपिया बोलै !’ ‘अगली बार सगळी कलम बरोबर।’ आदमी बोल्यो। नानोसा रामू नैं आवाज देंवता थकां बोल्या, ‘रामू इणनैं सामान तोलदै पण तीन सौ रूपिया सूं बैसी रो सामान ना तोल्यै।’ आदमी कीं नी बोल्यो। चुपचाप जाय‘र सामान लिखावण लाग्यो। राहुल तो उणनैं देख‘र सो-कीं भूलग्यो। नाथ बाबै अर इणमें की बदळाव नीं। एक जिसी कदकाठी। फगत कपड़ां रो फरक। इणरै अलावा एकाऐक बात नाथ बाबै सूं मिलै। राहुल आ बात रोहित नैं बताई। रोहित हंसतो थको बोल्यो, ‘थनैं बैम हुयग्यो है। हर आदमी नाथ बाबो लागै।’ पण राहुल नैं नेहचो नीं हो। बो बोल्यो, ‘हुय सकै नाथ बाबै रो भाई हुवै।’ रोहित साइंस रो स्टूडेंट हो। बोल्यो, ‘थारो कैवणो है फिलमां में जिंयां डबल रोल हुवै। पण जे इंयां हुवै तो भी सगळी बातां अेक जिसी नीं हुवै। कीं-न-कीं फरक रैवै ही हैं। तूं तो कैवै कै नाथ बाबा में अर इणमें कीं फरक नीं है।’ राहुल पूछयो, ‘जे दोनूं री सगळी चीजां ऐकामेक मिलै तो ?’ रोहित बोल्यो, ‘अरे तूं चिंता क्यूं करै अबार इणी सूं पूछलां।’ ‘नीं नीं, कठैई मंतर मार दियो तो ?’ राहुल डरूं-फरूं हुयग्यो। रोहित बोल्यो, ‘दादोसा सांमी मंतर चालै है कांई ?’ पण अबार आपां इणरै सामीं नीं जावां। राहुल बोल्यो, ‘जे ओ आदमी बाबो ही है तो इणनैं सबक सिखावणो जरूरी है।’ रोहित मजा लेंवतो बोल्यो, ‘कांई सल्ला है हीरो ?’ सल्ला कीं कोनीं रोहित। ओ म्हारै गांव में घर-घर पूजीजै, अर अठै कुत्तै जैड़ी ही कदर नीं। बात तो दूजी है।’ ‘जणै ठीक है, आपां इणरै जावण री बाट जोवां ...।’ दोनूं ऊपर बैठा रैया। नीचै सामान लिखांवतै आदमी नैं राहुल एकटग देखतो रैयो। रामू नैं सामान लिखा‘र आदमी आ कैंवतो निकळग्यो कै सामान तुलवा‘र राखो, म्हैं अबार पाछो आऊं। जिंयां ही आदमी गयो, रोहित हेलो कर‘र रामू नैं ऊपर बुला लियो। उण आदमी री जाणकारी ली। रामू इत्तो ही बता सक्यो कै कोई गाँव में रैवै। रामू रै हाथ में सामान री लिस्ट ही। सामान में ग्लिसरीन, नीला थोथा, फिटकरी जिसी चीजां लिख्योड़ी ही। रोहित रो माथो ठणक्यो। रामू नैं बोल्यो, ‘जा सामान तोल।’ खुद सोचण लाग्यो। उणरैं कीं बातां समझ में आवण लागी। राहुल रै कान में कीं बोल्यो अर चुपचाप नीचै सामान तुलतै ही दोनूं दादोसा कनै आयग्या अर जिद करण लाग्या, ‘आइसक्रीम मंगावो।’ नानोसा रामू नैं आइसक्रीम लावण खातर पइसा दिया। रामू बोल्यौ, ‘ओ सामान।’ ‘अरे हां’ नानोसा बोल्या, ‘उणरै सामान में केई अगड़म-बगड़म हुवै। तूं इंयां कर ऊपर धरवा दै। दुकान बढावण सूं पैली आयग्यो तो ठीक, नीं जणै ऐके कांनी पडि़यो रैसी।’ दोनूं नैं मानो मनमांगी मुराद मिलगी। सामान ऊपर गयो अर रामु आइसक्रीम लेवण नैं। दोनूं फेरूं ऊपर पूगग्या। सामान रो थैलो खोल‘र देख्यो। शीशी, पुडि़या अर ठूंगा में सामान पैक हो। रोहित सामान देख‘र समझग्यौ कै बात कांई है ? बात समझतां ही उणां रो दिमाग तेज-तेज चालण लाग्यो। लाल दवा सूं भरी शीशी ली अर दूजी शीशी में खाली कर‘र पाणी घाल‘र ढक दीनी। नीलो थोथो निकाळ‘र नील री टिकड़ी रख दीनी। कपूर री जगै पिपरमेंट री गोळी अर ग्लिसरीन री शीशी में गुलाबजळ भर दीनो। रोहित अर राहुल ओ काम निरांत सूं करियो। खाली करियोड़ै सामान नैं ठिकाणै लगायो। पाछा आ‘र नीचै बैठग्या। आइसक्रीम भी रामू ले आयो। दोनूं आइसक्रीम खांवता घरै आयग्या। सिंझ्या ढळ चुकी ही। मम्मी रो चैकअप भी हुय चुक्यो। मामा अर पापा बात करता हा कै कोई खास बात नीं ही। काल भलै ही गांव जा सको। पण पापा बोल्या, ‘अबार जावण दो। फेरूं आसां।’ डाॅक्टर साब री दवा सूं मम्मी रो ताव दूजै दिन ही उतरग्यो। डाॅक्टर साब बतायो कै गर्मी रै कारण ताव चढग्यो हो। उणां तीन दिन री दवा लिखी ही, जूस पीवणो बतायो। दोफारां री बस में पापा-मम्मी सागै राहुल गांव रवाना हुयो। मम्मी खुश लागै ही। राहुल रस्तै-भर नाथ बाबा रै बारै में सोचतो रैयो। उणनैं विश्वास नीं हुवै हो कै नाथ बाबा अर नानोसा री दुकान पर खड़यो बो आदमी एक हो। बार-बार उणनैं लागै ही कै समान बदळ‘र ठीक नीं करयौ। रोहित री बातां आधी-अधूरी समझ में आ चुकी ही। बात रो सार इत्तो ही हो कै नाथ बाबो बजार सूं रासायनिक पदार्थ लावै अर लोगां नैं धूंवो निकाळ‘र आग लगा‘र भरमावै। विज्ञान में इसा केई पदार्थ है जका एक-दूजै सूं मिलणै पर आग पैदा करै। इण सोच-विचार रै बीच गांव आयग्यो। बस स्टैंड सूं घर घणी दूर नीं हो। तीनूं घरै पूग्या तो देख्यो कै घर में धुंवाधोर है। लोग भेळा हुयोड़ा है। पापा री सांस अटकगी। मम्मी बारणै खड़ी लुगायां नैं बात पूछण नैं पग बधाया तो लुगायां चिरळाटी मारी। राहुल बात ही नीं समझ पायो। मम्मी-पापा कीं देख‘र नाथ बाबो बोल्यो, ‘आवणो पड़यो नीं पाछो अठै रो अठै ! कांई मिल्यो बोल ?’ भंवारा ऊंचा करतो नाथ बाबो गांव आळा कांनी देखतो बोल्या, ‘म्हारी तो भविष्यवाणी ही, सूरज छिपण सूं पैली गांव में आवणो पड़सी। अजै ई कीं नीं बिगड़यो है। इण नारेळ में थारी जेळ नीं बणा दी तो म्हारो नांव ही नाथ नीं। गांव रा लोगां, थै देखसो किंयां धुंवो बण‘र इण नारेळ में भूतणी कैद हुवै अर किंयां इण होम में भसम। भोळा-ढाळा लोगां सागै खूब राफड़ करी। अबकी आई है चकारियै में।’ दादीजी, दादाजी अर गांवआळा सगळा हाथ जोड़यां ऊभा थर-थर कांपै हा। पापा थोड़ो धीजो बरतता बोल्या, ‘पण अबै ठीक है, ताव हो जको....।’ ‘कूड़ी बात ...!’ नाथ बाबो अबकी रीस में भाभड़ाभूत लाग्या। ‘म्हारै सामीं लावो उणनैं !’ मम्मी आगै आई । बोली, ‘बाबाजी, म्हैं अबै ठीक हूं।’ ‘आ थूं नीं, भूतणी बोलै। नीं जणै गांव रा बडा-बुजुर्गां सामीं कोई लुगाई बोल सकै है कांई ?’ बाबै री आ बात गांवआळा रै हाडोहाड बैठगी। पापा-मम्मी परवश हा। दादाजी-दादीजी रै चेहरै सूं भी लागतो कै नाथ बाबो कैवै जको ई ठीक हो। इत्ती देर में राहुल सब समझग्यो हो। उणनैं बो थैलो भी दीखग्यो हो जकै में नानोसा री दुकान सूं सामान गयो हो। राहुल पूरी बात समझग्यो। सगळां नैं देखतो बोल्यो, ‘पापा ! म्हनैं लागै कै बाबाजी साची कैवै। मम्मी ! म्हारो मन कैवै कै आप बाबाजी कैवै ज्यूं करो।’ राहुल रै मूंडै सूं आ बात सुणतां ही बाबो राजी हुयो। बोल्यो, ‘ठीक कैवै है टाबरियो। औ टाबर थांरै घर में भगवान रो रूप है।’ राहुल बाबै री बात सुण‘र मुळक्यो अर मम्मी ने हाथ पकड़‘र होम रै आगै बण्यै आसण माथै बैठा दीनी। मम्मी राहुल सामीं आंख्यां काढी तो राहुल बोल्यो, ‘कदैई तो म्हारै कैवण सूं भी कीं करया करो। इणमें आखै गांव रो भलो है।’ मम्मी कीं समझी नीं, पण चुपचाप बैठगी। नाथ बाबो सांमलै आसण पर बैठग्यो। अेक चेलै नैं नारेळ लावण रो कैयो। चेलो नारेळ लेय आयो। बाबो नारेळ नैं होम रे आगै जचा‘र धर दियो। कनै पडि़यै थैलै मांय सूं शीशी काढी। शीशी नैं माथै सूं लगा‘र मंत्र बोल्या अर नारेळ पर शीशी ऊंधायदी। जोर सूं बोल्यो, ‘आव पिशाचणी ! आ जेळ थनैं उडीकै। धूंवो बण‘र आ, भूचाळ बण‘र आ ! आ म्हारी कैद में।’ पण कीं नीं हुयो। नारेळ आपरी जगै हो। बाबो चमक्यो। माथै पर चिंता री लकीरां उपड़ती दीखी। आगलै ही पल मन ही मन में कीं मंत्र पढिया। ‘लागै इंयां कोनीं मानै।’ रीसां बळतो बाबो थैलै मांय सूं की टिकड़यां अर गोळयां काढ़ी। हाथ में लेय‘र फूंक मारी अर दादोजी नैं देवतां बोल्या, ‘बिरमाराम ! सवा इग्यारै किला लाडू, दो बोतलां दारू, एक मुरगो अर इग्यारै सौ रूपिया । इंतजाम है तो बात कर। आज रातोरात रेल लाइण रै पार मसाण में राखणा है। डर लागै तो म्हनैं दे दियै। पण आज रो आज हुवैला। सात सहेल्यां री फेंट में है। बोल, निकाळूं या छोड़ दूं ?’ दादी बीच में बोल पड़ी, ‘सगळो इंतजाम है बाबाजी। थै थांरो काम करो।’ बाबो हंस्यो। हाथ में पड़ी टिकड़ी में फेर फूंक मारी। च्यारूंमेर देख‘र बोल्या, ‘कंवळै काळजै आळा अठै मत ठैरया ! म्हारै कळूंटी मंड जावैली।’ बाबै री आ बात सुण‘र केई लुगायां खिसकण लागी। बाबो फेर हंस्यो अर बोल्यो, ‘अबै होम री आग में सुण्या सातूं री अलायदी चिरळाटी। सात रंग री लपटां निकळसी। सात फुट ऊपर उठसी।’ आं कैवतां होम में टिकडि़यां न्हांखी। बाबो बोलतो रैयो, ‘बिरमाराम ! थारा सारा दुख दूर हुया समझ। थूं सुखी रैवै, थारो परिवार आबाद रैवै। म्हां फकीरां नैं इणसूं बैसी कांई चाइजै ?’ पण होम में कीं फरक नीं पड़यो। ना कोई चिरळाटी सुणीजी अर ना लपटां निकळी। बाबो चकरायो अर थैलै में पड़ी दूजी शीशी नैं फूंक मार‘र घाली। होम री बच्योड़ी आग भी बुझगी। धूंवै सूं लोगां री आंख्यां बळण लागी। बाबोजी चकराया। कीं नीं सूझ्यो तो थैलै में पड़ी दूजी चीजां नैं धैं-धैं होम में न्हाखण लाग्या। पण कोई सार नीं हो। आ देख‘र बाबै रा चेला-चांटी पट्टी हुयग्या। चेलां नै भागता देख‘र गांवआळा भी समझग्या। राहुल पूछयो, ‘बाबा, म्हारी मम्मी री भूतणी कद निकळसी ?’ बाबा बोल्या, ‘चिंता ना कर बेटा ! आगली अमावस नैं फेर होम करसूं। अबार म्हैं चालूं।’ इतरी देर सगळी बात सुणता दादोजी बोल्या, ‘पाखंडी ! अमावस तो आसी जद आसी, पैली तो म्हारा पांच सौ रूपिया धर अठै। मुर्गो अर दारू चाइजै ? थारै काकोजी रो कारखानो है अठै !’ चेला-चांटी कनै नीं दीसण सूं पैला ई आधो हुय चुक्यै बाबै री हालत दादोजी री बात सूं घणी खराब हुयगी। दादोजी सागै दूजा गांवआळा भी बाबै कांनी बधण लाग्या। राहुल मम्मी सूं बोल्यो, ‘चालो मम्मी ! आपांरो काम खतम हुयो। अबै गांवआळा नैं जचै ज्यूं करणदै। म्हैं कैयौ हो नीं, इणमें आखै गांव रो भलो है।’ राहुल री बात फेर भी मम्मी रै समझ में नीं आई। मम्मी नैं लेय‘र राहुल कमरै में आयो। दवा दी अर होळै-होळै माथो दबावण लाग्यो। बारै नाथ बाबै री आवाज आवै ही, पण आज मंतर नीं हा। मंतर रो जंतर होय चुक्यो हो। आज ‘अरे अबै तो छोडो रे’ बोल सुणीजै हा। राहुल कमरै रो आडो बंद कर दीनो। हतै-भर बाद नानोसा अर रोहित गांव आया जद सगळां नैं असली बात रो ठा लाग्यो। रोहित अर राहुल नैं मम्मी गळै सूं लगांवती बोली, ‘साच्याणी, थै तो आखे गांव रो भलो करियो।’ नानोसा बोल्या, ‘पण म्हारो ग्राहक तो तोड़ दीनो।’ नानोसा री बात सुण‘र सगळा हंसण लाग्या।