मंत्री जी की सड़क / कुबेर
इस सड़क का उद्घाटन पिछले महीने ही बड़े मंत्री के पवित्र और सुकोमल करकमलों से हुआ था। उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा था - “भाइयों, इस सड़क के बन जाने से अब आप भी राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ गए हैं। राष्ट्र ही नहीं, बल्कि विश्व की मुख्य धारा से जुड़ गए हैं। आपकी आर्थिक समृद्धि के मार्ग खुल गए हैं। आधुनिकता और विकास की दौड़ में अब आप पीछे नहीं रहेंगे। बहुत जल्द हमारा-आपका यह गाँव, देश ही नहीं, विश्व का सबसे विकसित गाँव होगा।”
इसी गाँव में मरहा राम नाम का एक आदमी रहता है। उसने गाँव में अब तक केवल आदमी ही देखा था। आदमी से मिलते जुलते कुछ और लोगों को भी देखा था। गाय, बैल, बकरी, आदि जानवरों को देखा था। एक बार खेत की ओर जाते वक्त उन्होंने लोमड़ी भी देखा था। बहुत पुरानी बात है, जब वह छोटा था, गाँव के मेले में एक बार सर्कस कंपनी आई थी; तब उसने वहाँ शेर भी देखा था। एकाध बार उसने पुलिस भी देखी थी। पर मंत्री किस नाक-नक्श का प्राणी होता है, उसने आज तक नहीं देखा था।
सड़क के उद्घाटन के दिन सुबह आठ बजे से ही चमचमाती हुई कई बसें आसपास के गाँवों की धूल और गड्ढों से भरी कच्ची सड़कों और रास्तों पर भांय-भांय दौड़ने लगी थी। मरहा राम को पता चला कि येे मंत्री के दर्शनार्थ लोगों को भर-भर कर ढो रहे हैं। उसके मन में भी मंत्री-दर्शन की परम इच्छा हिलोरें मार रही थी। अभागे ने गाँव के ही मंदिर के भगवान को अब तक नहीं देखा था। मरने के दिन आ रहे थे, चिंता होने लगी थी कि मोक्ष कैसे होगा? सोचा, शायद मंत्री के दर्शन से ही मोक्ष मिल जाय। इसीलिये डरते सहमते वह भी बस में चढ़ गया था।
मंत्री महोदय की बातें सुनकर, उसके साथ आए हुए देव दूत के समान अधिकारियों को देखकर, और मंत्री महोदय के दिव्य उड़न खटोले को देखकर मरहा राम का हृदय तृप्त हो गया था। उसे लगा था, मंत्री नहीं बल्कि साक्षात रामचंद्र भगवान ही, लंका से पुष्पक विमान में उड़कर आए हैं, राम राज्य लेकर।
मंत्री महोदय की मोक्षदायिनी मनमोहनी सूरत और आत्मा को तृप्त कर देने वाली बातें, मरहा राम के मन और आत्मा में आज भी रची-बसी है। इसी के सहारे उसका मोक्ष जो होने वाला है।
माह भर की इस शिशु सड़क ने राजनीति में बहुत बड़ा उबाल ला दिया है। इसकी दुर्दशा ने विपक्ष को सरकार की छाती में मूँग दलने का सुनहरा अवसर दे दिया है। अखबार वाले भी कमर कसकर मैदान में उतर आये हैं। सड़क पर से डामर की परतें गधे की सींग की तरह गायब हो र्गइं हैं और उसकी जगह बड़े-बड़े गड्ढे उभर आए हैं। चलना दूभर हो गया है। इसे लेकर वे आए दिन कुछ न कुछ रोचक कार्यक्रम करते रहते हैं। पिछली बार कीचड़-पानी से लबरेज इन गड्ढों में इन लोगों ने धान-रोपाई और मछली पालन का कार्यक्रम चलाया था। गड्ढों में बाकायदा तख्तियाँ भी लगाई र्गइं थी।
देखने के लिए मरहा राम भी चला आया था। उसने सोचा, गड्ढों में लगी इन तख्तियों में जरूर वेद-शास्त्र की वाणियाँ लिखी होगी। स्कूल से भाग कर आया एक बच्चा भी वहीं पर बस्ते को कंधे पर लादे टहल रहा था। मरहा राम को इस बच्चे में भविष्य का नेता नजर आया। धान के पौधे रोपे गए एक गड्ढे पर लगे तख्ती की ओर इशारा करते हुए उसने उस बच्चे से पूछा - “बेटा, इस तख्ती में क्या लिखा है?”
बच्चे ने मरहा राम को ऊपर से नीचे तक देखा। सोचा होगा, पता नहीं किस जमाने का आदमी है, पढ़ना भी नहीं आता। फिर तख्ती की ओर देखा। देर तक हिज्जा किया, वाक्य का हिसाब लगाया और बताया - “मत्र जी का खत।”
मरहा राम समझ गया, तख्ती पर ’मंत्री जी का खेत’ लिखा होगा। सरकारी स्कूल का बच्चा है, इसलिये ऐसा पढ़ रहा है।
दूसरे गड्ढे पर छोटी-छोटी कुछ मछलियाँ तैर रही थी, बहुत सारी मरी पड़ी थी, उस पर लगी तख्ती को भी उस बच्चे ने पढ़ा और बताया - “मत्र जी की तलब।”
मरहा राम फिर समझ गया, जरूर इस पर ’मंत्री जी का तालाब’ लिखा होगा। उसने बच्चे के कंधे पर हाथ रखकर उसे शाबासी दी और पूछा - “बेटा किस कक्षा में पढ़ते हो?”
बच्चे ने बड़े गर्व से बताया - “आठवीं।”
अखबार वालों की लेखनी-देवी के ऊपर थैलों का चढ़ावा चढ़ा कर बात को संभाल लिया गया था। पर विपक्ष का मुँह बंद नहीं हो पा रहा था। अतः मंत्री जी को जनता जनार्दन की शरण में जाना ही उचित लगा।
गाँव के बाहर बड़ा सा भांठा है। गाँव वाले बरसात भर यहाँ आँख और नाक पर रूमाल बांध कर दिशा-मैदान किया करते हैं। इस बार इसी जगह को साफ करके मंत्री जी के आगमन के लिये सजाया गया है। गाँव वाले खुश हैं। कह रहे हैं, ’जो काम सुअरों से नहीं हो पा रहा था, उसे सरकार ने कर दिखाया है।’
इस बार भी जनता के हितों का पूरा ध्यान रखा गया है। खाने-पीने की भरपूर व्यवस्था की गई है। बड़ी संख्या में लोगों को ढोया गया है। खाने-पीने की शाही दावत के लालच में मरहा राम इस बार भी चला आया है। अपने समय पर मंत्री जी पुनः उड़न खटोले सहित आसमान से उतरे। लोगों को संबोधित करते हुए उसने कहा - “भाइयों और बहनों, आपका सेवक आप सबको प्रणाम करता है। हमें अच्छी तरह पता है कि आपने हमें सेवा करने के लिये चुना है। आपकी तकलीफों का पता लगाने हमारी सरकार एक-एक व्यक्ति के पास आयेगी। हमारे पास धन की कोई कमी नहीं है। आपको मुफ्त में अनाज दिया जायेगा। मुफ्त में आपकी बीमारियों का इलाज कराया जयेगा। आपके जरूरत की सारी चीजें हमारी सरकार आपको मुफ्त में देने जा रही है। आपकी तकलीफ, आपका दुख और आपका दर्द मुझसे देखा नहीं जाता।”
तालियों की गड़गड़ाहट थमने के बाद उसने फिर कहा - “मुझे पता है, आप लोगों का मन दर्पण की तरह साफ है, हृदय गंगा की तरह पवित्र है। भले-बुरे को आप बखूबी पहचानते हैं। आप तो नेकी के रास्ते पर, सत्य के मार्ग पर चलने वाले लोग हैं। पुराणों में लिखा है, ऋषि-मुनियों ने कहा है और हमारे संत कवियों ने भी कहा है; ’सत्य का मार्ग बड़ा कठिन होता है। सत्य का मार्ग कांटों से भरा होता है।’ हमारा मार्ग सत्य का मार्ग है। विपक्ष वाले नहीं चाहते कि आप लोग सत्य के इस मार्ग पर चलें। नाहक ही वे आपके और इस मार्ग के पीछे पड़े हुए हैं। यह बात मुझसे देखी नहीं जाती। विपक्ष वाले आपके साथ जो कर रहे हैं, उसे देखकर मुझे तो रोना आता है।” इतना कहकर मंत्री जी सचमुच रोने लगे।
इस बीच उसके आस-पास खड़े, उसके अतिहितैशी लोग कई बार उसकी ओर रुमाल बढ़ा चुके थे, पर मंत्री जी इसकी तनिक भी परवाह नहीं कर रहे थे। मंत्री जी को अब तक रोना नहीं आ रहा था, यह देखकर अतिहितैशी लोगों की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। अब जाकर उनकी जान मेें जान आई। राहत की सांसें ली, ’अंत भला, सो सब भला’।
चारों ओर तालियों की गड़गड़ाहट फिर गूँज उठी। सभा समाप्त हुई।
लौटते हुए मरहा राम ने अपने साथियों से कहा - ’भाई हो, हम अनपढ़ हैं तो क्या हुआ। मुक्ति के मार्ग में और मंत्री जी के इस सड़क में क्या फरक है, नहीं जानते हैं क्या?