मंदिर की सीढ़ियों पर / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी
Gadya Kosh से
(अनुवाद :सुकेश साहनी)
कल शाम मैंने मंदिर की संगमरमरी सीढ़ियों पर दो आदमियों के बीच एक औरत को बैठे देखा। उस औरत का एक गाल निस्तेज था जबकि दूसरे गाल पर लाली दौड़ रही थी।