मकर संक्रांति और पतंगबाजी / जयप्रकाश चौकसे

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मकर संक्रांति और पतंगबाजी
प्रकाशन तिथि :14 जनवरी 2019


फसल काटने के प्रथम दिन को पूरे देश में अलग-अलग नामों से उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर तिल से बने विविध पकवान खाए जाते हैं और स्नान के पहले हल्दी के घोल में तिल डालकर बदन पर मालिश भी की जाती है। इस दिन पतंग उड़ाई जाती है। गुजरात में पतंग बड़े जोश से उड़ाई जाती है। संजय लीला भंसाली की सलमान खान, ऐश्वर्या राय अभिनीत 'हम दिल दे चुके सनम' में भी पतंगबाजी का एक दृश्य है। एक अन्य फिल्म 'सुल्तान' में सलमान खान अभिनीत पात्र द्वारा कटी हुई पतंग लूटने का लंबा दृश्य है। राजेंद्र कृष्ण ने एक फिल्म में पतंग पर एक गीत भी लिखा था।

वर्तमान समय में पतंग पर नेताओं की तस्वीर लगा दी जाती है और दल के सदस्य कटी हुई पतंग को लूटते हैं। इस वर्ष संभवत: पतंग को रफाल की तरह बनाया जाएगा और उसके कटने पर दल के अनुशासित सदस्य उसे लूट लेंगे। संसद में तो इसी तरह की पतंगबाजी हो रही है। पतंग उड़ाने को हम इस तरह भी देख सकते हैं कि यह पृथ्वी का आकाश के नाम भेजा हुआ प्रेम पत्र है। पृथ्वी ने फसल प्रदान की है और आकाश को वर्षा देने का धन्यवाद ज्ञापन भी पतंगबाजी को माना जा सकता है। मकानों की छत से पतंग उड़ाई जाती है परंतु फुटपाथ पर जीवन बिता देने वाले फुटपाथ से ही पतंग उड़ा सकते हैं।

सातवें दशक के सबसे अमीर पूंजी निवेशक गुणवंत लाल शाह को खाकसार ने अमृतलाल नागर के उपन्यास 'मानस के हंस' का सार सुनाया था। उनकी सिफारिश पर ही दिलीप कुमार से मुलाकात हुई। उस समय वे पतंगबाजी में लीन थे और कुछ समय उनका उचका (चकरी) भी पकड़ना पड़ा। लकड़ी की बनी इस चकरी में डोर बंधी होती है। दिलीप कुमार ने विविध शहरों से मांझा मंगवाया था। कांच को महीन पीसकर उसमें मसाले लगाकर डोर को सूता जाता है। मांझा लगी डोर से पतंग उड़ाई जाती है। पतंग के दो सिरों पर डोर त्रिकोण के आकार में पतंग पर बांधी जाती हैं। उसका बैलेंस देखा जाता है। उस शाम दिलीप कुमार ने पतंगबाजी के गुर पर लंबा भाषण दिया और यह कार्य उसी संजीदगी से किया गया, जिस संजीदगी से वे पात्र की त्वचा में प्रवेश करके विश्वसनीय अभिनय करते रहे हैं। विगत लंबे समय से उनकी याददाश्त गुम हो चुकी है। क्या मकर संक्रांति के अवसर पर उनके अवचेतन में वहीदा रहमान, वैजयंती माला, कामिनी कौशल और आसमा की पतंग उड़ती हैं? सलमान खान की वैन में पतंगबाजी का सारा साजो सामान रहता है और फुर्सत पाते ही वे पतंगबाजी करने लगते हैं। उनकी वैन में कंचे भी होते हैं और गिल्ली डंडे भी रखे होते हैं। वे अपने मूड के अनुरूप खेल खेलते हैं।

महाभारत में वर्णन है कि भीष्म पितामह तीरों की शैया पर मकर संक्रांति का इंतजार करते रहे। उन्हें इस पावन दिन प्राण तजना था। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। उस क्षण शिखंडी उन्हें अपने इस वचन की याद दिला सकती है कि अगले जन्म में वे उससे विवाह करेंगे। क्या इसी सुखी दांपत्य की आस लिए वे मकर संक्रांति का इंतजार कर रहे थे या विवाह से बचना चाहते थे ताकि अपनी ब्रह्मचर्य की शपथ का निर्वाह जन्म जन्मांतर तक कर सकें। एक लोकप्रिय कथा में एक 8 वर्षीय बालक अपनी मां के नाम पर पत्र लिखकर उसे पतंग पर बांध देता है। उसे विश्वास है कि उसका पत्र मां तक पहुंच जाएगा। युवा वर्ग पतंग के मार्फत प्रेम-पत्र भेजते हैं। मोबाइल आ जाने के कारण प्रेम-पत्र लिखने की कला का लोप हो गया है। अब तो एसएमएस ने भाषा ज्ञान की भी धज्जियां उड़ा दी है। अब भाषा में शुद्धता एक कटी पतंग की तरह है। इसी बात से याद आया कि गुलशन नंदा के उपन्यास और 'कटी पतंग' नामक फिल्म में आशा पारेख को अभिनय का पुरस्कार प्राप्त हुआ था। भारत महान में महिलाएं कटी पतंग की तरह रही हैं परन्तु उनके मांझे की धार से सभी मन ही मन भयभीत रहते हैं। बहरहाल अगले चुनाव को भी पतंगबाजी की तरह देखा जा सकता है। अफवाह तो यह है कि चुनाव में विजय मिलने पर भी प्रधानमंत्री पद किसी अन्य नेता को दिया जाएगा?