मकर संक्रांति : लंबी रातों की विदाई / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :14 जनवरी 2017
भीष्म पितामह कुरुक्षेत्र के युद्ध के परिणाम को कौरवों के पक्ष में करने की शक्ति रखते थे और दुर्योधन द्वारा अनिच्छा से लड़ने के आरोप के बाद उन्होंने पांडव सेना का जमकर संहार किया। श्रीकृष्ण के परामर्श पर शिखंडी को आगे लाकर भीष्म पितामह को गंभीर रूप से घायल कर दिया गया परंतु इच्छा मृत्यु के वर के सहारे उन्होंने कुछ दिन तीरों की शय्या पर काटे और मकर संक्रांति के दिन ही अपने प्राण त्यागे। इस दिन से रातें छोटी होने लगती हैं। जब भीष्म पितामह शय्या पर लेटे थे तब युधिष्ठिर सारी रात उनके निकट रहकर ज्ञान अर्जित करते थे।
क्या यह संभव है कि उन्हीं दिनों में कभी अम्बा ने आकर भीष्म पितामह से प्रार्थना की हो कि अगले जन्म में वे उससे विवाह करें। ज्ञातव्य है कि भीष्म स्वयंवर से अम्बा को ले गए थे। अत: मन ही मन तो अम्बा उन्हें वर चुकी थी। गौरतलब यह है कि अगर भीष्म अगले जन्म में अम्बा से विवाह का वचन दें तो उस जन्म में उनसे आजन्म विवाह नहीं करने की प्रतिज्ञा भंग मानी जा सकती है, क्योंकि कुंआरेपन को समर्पित मन में विवाह का विचार भी नहीं आना चाहिए। उनके हृदय में इच्छा का प्रवेश भी वंचित था। कोई भी व्यक्ति अपने मन के सारे लोहकपाट बंद कर ले परंतु जाने किस आधी बंद खिड़की से इच्छा हृदय में प्रवेश कर ही लेती है। याद आता है, सत्यम् शिवम् संुदरम्' का गीत 'सैया निकस गए मैं ना लड़ी थी, सर को झुकाए मैं तो चुपके खड़ी थी..ना जाने कौन-सी खिड़की खुली थी।'
हर मनुष्य के हृदय में ताउम्र डिज़ायर और डिनायल का युद्ध जारी रहता है। गोर्डन थॉमस का उपन्यास 'डिजाइयर एंड डिनायल' पादरियों और नन्स के भीतरी युद्ध को प्रस्तुत करता है। शारीरिक मिलन की इच्छा स्वाभाविक है और उस पर नियंत्रण रखने का प्रयास कठोर तपस्या की तरह है परंतु नियंत्रण का प्रयास ही मनुष्य होने की प्रथम शर्त है। इच्छा के बेलगाम घोड़े तो आपको पटकनी देते रहते हैं। उन पर सवारी ही सबसे बड़ी साधना है। गांधीजी जैसा संत यह कहता है कि विवाह दो आत्माओं का मिलन है तथा शरीर मात्र माध्यम है या वह स्वयं साधन होते हुए साध्य भी है। जीवन के अधिकतर प्रश्नों का उत्तर मानव शरीर से प्राप्त हो सकता है। पृथ्वी पर आग लगते ही पानी उसे बुझा देता है परंतु मनुष्य के उदर में ही भूख लगते ही पाचक द्रव्य का निर्माण होता है गोयाकि केवल मनुष्य शरीर में ही आग और पानी साथ रहते हैं। शरीर की कुंजी से ही अध्यात्म की तिजोरी खुलती है। फिल्मकार ब्रिज की मजेदार फिल्म 'विक्टोरिया नंबर 203' में प्रमुख पात्र अशोक कुमार को एक चाबी मिलती है और अब उसे ताले की तलाश है। इस घनघोर व्यावसायिक फिल्म की मीमांसा आत्मा और शरीर के रहस्य पर प्रकाश डालती है परंतु फिल्मकार ब्रिज के अवचेतन में ऐसा कुछ नहीं था। ब्रिज ने ही क्रोध और शराब की कॉकटेल के प्रभाव में अपनी पत्नी और स्वयं को गोली मार दी थी। क्या चाबी के ताले की तलाश की यह क्रूर अभिव्यक्ति थी?
क्या कुरुक्षेत्र का संहारक युद्ध टाला जा सकता था? स्वयं श्रीकृष्ण के प्रयत्न भी सफल नहीं हुए। कुरुक्षेत्र के रहस्य में यह संभव है कि जिन व्यापारियों ने युद्ध की संभावना को देखकर प्रचुर युद्ध सामग्री का निर्माण कर लिया था, उन्होंने शांति के प्रयासों को सफल नहीं होने दिया अन्यथा उनका आर्थिक दीवाला निकल जाता। स्वयं सांवरिया सेठ भी कुछ नहीं कर पाए और संभवत: इसी कारण एक वर्ग श्रीकृष्ण को सांवरिया सेठ कहकर संबोधित करता है। आज तक महाभारत के किसी भी संस्करण या टीका में उन व्यापारियों का जिक्र नहीं है, जिन्होंने लाभ के लिए युद्ध सामग्री का निर्माण किया था। संभवत: इन्हीं व्यापारियों के वंश ने अमेरिका और पूंजीवाद की रचना की है। आज के हुक्मरान वस्तु के निर्माण नहीं, उसके प्रचार पर ध्यान देते हैं और नोटबंदी के कहर को भी वरदान साबित करने पर तुले हैं।
सत्तासीन होते ही उन्होंने देश की संपत्ति की आकलन विधि में परिवर्तन किया और निर्माण के आंकड़े को ही शुद्ध लाभ बता दिया परंतु इस चतुराई के बावजूद ग्रोथ रेट पांच पर जाकर टिकती नजर रही है। उनके प्रचार तंत्र ने मनमोहन सिंह को आलसी राजा करार दिया है परंतु उनके जमाने में ग्रोथ रेट नौ से अधिक थी।