मकान / श्याम सुन्दर अग्रवाल

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मकान को देखकर किराएदार बहुत खुश हो रहा था। उसने कभी सोचा भी न था कि इतना बढ़िया मकान किराए के लिए खाली मिल जाएगा। सब कुछ बढ़िया था-बेडरूम,ड्राइंगरूम,किचन। कहीं भी कोई कमी नहीं थी। "हाँ जी, बिल्कुल पक्की। ऊपर पानी की टंकी भी है। आप जाकर देख आओ! " किराएदार सीढ़ियाँ चढ़कर छत पर गया और कुछ देर बाद वापस आ गया। अब वह निराश था। "अच्छा जी, आपको तकलीफ दी। मकान तो बहुत बढ़िया है, पर मैं यहाँ रह नहीं सकता।" मकान-मालिक ने कहा, "आपको कोई वहम हो गया है। मकान में भूत नहीं है और न ही पुलिस-चौकी इसके आसपास है।" किराएदार ने जब पीछे पलटकर नहीं देखा तो मकान-मालिक ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया, "मकान तो चाहे आप किराए पर न लो, लेकिन यह तो बताओ कि इसमें कमी क्या है? लोग तो कहते हैं कि शहरों में मकानों का अकाल-सा पड़ गया है, पर यहाँ इतना बढ़िया मकान खाली पड़ा है।" मकान-मालिक पूरे का पूरा प्रश्नचिह्न बनकर किराएदार के सामने खड़ा था। किराएदार ने मकान-मालिक से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, "आपको पता नहीं कि आपका मकान घर के योग्य नहीं है। इसके एक तरफ गुरूद्वारा है और दूसरी तरफ मंदिर !"