मकार चुद्रा / मक्सीम गोरिकी / नरोत्तम नागर

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समुद्र की ठण्डी नम हवा साहिल पर लहरों के छितराने के उदास संगीत और सूखी झाड़ियों की सरसराहट के साथ घास के सुविस्तृत मैदानों के ऊपर से गुज़र रही थी। रह-रहकर हवा का झोंका आता और हमारे पड़ाव की अग्नि में चुरमुर हुए पीले पत्तों की आहुति डाल देता, जिससे लपटें लपलपा उठतीं, और तब शरद्-रात्रि का अँधेरा काँपकर भय से पीछे हट जाता, बायीं ओर सीमाहीन स्तेपी और दाहिनी ओर सीमाहीन समुद्र की एक झलक दिखायी देती और सामने की दिशा में एक वृद्ध जिप्सी मकर चुद्रा का आकार उभर आता, जो पचास एक डग दूर अपने कैम्प के घोड़ों की निगरानी कर रहा था।

ठण्डी हवा के झोंकों ने उसके कौकशी कोट के पल्लों को उघार दिया था और उसकी बालदार नंगी छाती पर बेरहमी से थपेड़े मार रहे थे, लेकिन वह इस सबसे बेख़बर मेरी ओर मुँह किये सौम्य और सशक्त मुद्रा में लेटा हुआ, अपने भीमाकार पाइप से बराबर कश खींचता, अपनी नाक और मुँह से धुएँ के बादल छोड़ रहा था। उसकी एकटक दृष्टि मेरे सिर पर से होती हुई सुविस्तृत स्तेपी के निस्स्तब्ध अन्धकार पर जमी थी, और वह हवा के कुत्सित थपेड़ों से अपने आपको बचाने का ज़रा भी प्रयत्न न करते हुए बिना रुके बतिया रहा था —

“सो तुम दुनिया की धूल छानते घूमते हो, क्यों? बहुत ख़ूब! बहुत अच्छा रास्ता पकड़ा है तुमने, मेरे नन्हे बाज़! एकमात्र सही तरीक़ा। दुनिया में घूम-घूमकर चीज़ें देखो, जब ख़ूब मन भर जाये तो पड़े रहो और सदा के लिए आँखें मूँद लो!” उसकी “एकमात्र सही तरीक़ा” वाली बात मुझे जँची नहीं। मेरी आपत्ति सुन सवालिया अन्दाज़ में बोला —

“जीवन? साथी मानव? — इस सबके लिए दुबला होने की क्या ज़रूरत है? क्या तुम्हारा अपना जीवन नहीं है? और जहाँ वसूल लेते हैं, जो बुद्धू हैं, वे टापते रह जाते हैं। लेकिन यह सब हर कोई अपने आप ही सीखता है।

“अजीब चीज़ हैं ये लोग-बाग भी — उनका सारा रेवड़ एक ही जगह जमा होगा, घिचपिच, एक-दूसरे को कुचलते हुए, जबकि इतनी जगह यहाँ मौजूद है कि समेटे न सिमटे,” हाथ के सपाटे से मैदान की ओर इशारा करते हुए वह कहता गया, “और सबके सब काम में जुते रहते हैं। किसलिए ? यह कोई नहीं जानता। जब कभी मैं किसी आदमी को खेत जोतते देखता हूँ तो मन ही मन सोचता हूँ — यह देखो, वह अपनी शक्ति और अपना पसीना बूँद-बूँद करके धरती में खपाये दे रहा है, केवल इसीलिए न कि अन्त में इसी धरती में उसे सोना और गल-सड़कर ख़त्म हो जाना है। जितना निपट मूर्ख वह पैदा हुआ था, वैसा ही मर जाएगा। कुछ भी अपने पीछे नहीं छोड़ जायेगा। अपने खेतों के सिवा और कुछ भी तो वह नहीं देख पाता।

“क्‍या इसीलिए उसने जन्म लिया था कि धरती को खोदता रहे और ख़ुद अपने लिए एक क़ब्र तक खोदने का प्रबन्ध किये बिना इस दुनिया से कूच कर जाये? क्या उसने कभी आज़ादी का स्वाद चखा कि वह कैसी होती है? क्या उसने कभी इन मैदानी विस्तारों की ओर नज़र उठाकर देखा? समुद्र के मर्मर-संगीत को सुनकर उसके हृदय का कमल क्या कभी खिला? वह एक ग़ुलाम है — और अपने जन्म के दिन से लेकर मृत्यु के दिन तक ग़ुलाम रहता है। इसके लिए क्या वह कुछ कर सकता है ? नहीं, कुछ नहीं, सिवा इसके कि अपने गले में फन्दा डालकर लटक जाए — अगर उसमें इतनी भी समझ हो तो !

“अब रही मेरी बात, अट्ठावन साल की उम्र में इतना कुछ मैंने देखा है कि अगर उसे काग़ज़ पर उतारा जाये तो वह, जैसा थैला तुम लिये हो न, वैसे हज़ार थैलों में भी नहीं आयेगा। भला तुम नाम तो लो किसी ऐसी जगह का, जो मैंने न देखी हो। नहीं, तुम ऐसी एक भी जगह का नाम नहीं ले सकते। नाम लेना तो दूर, मैं ऐसी-ऐसी जगह गया हूँ जिनके बारे में तुमने कभी सुना तक न होगा। केवल यही तरीक़ा है जीवन बिताने का — आज यहाँ तो कल वहाँ। बस, घूमते रहो। किसी भी जगह ज़्यादा दिनों तक नहीं टिको - और कोई टिके भी क्यों? तुम्हीं देखो, दिन और रात किस प्रकार सदा चलते और एक-दूसरे का पीछा करते हुए धरती का चक्कर लगाते रहते हैं। ठीक वैसे ही, अगर तुम जीने की अपनी उमंग गँवाना नहीं चाहते हो तो, तुम्हें अपने विचारों को हाँकते रहना है। यह निश्चित समझो, जीवन का उल्लास वहीं समाप्त हो जाता है जहाँ आदमी जीवन के बारे में अत्यधिक सोचने लगता है। मैं भी कभी ऐसा ही करता था। सच, मेरे नन्हे बाज़, मैं भी इस मर्ज़ का शिकार रह चुका हूँ।

“यह उन दिनों की बात है, जब मैं गालीसिया की जेल में था। ‘आखि़र मैंने जन्म ही क्यों लिया?’ त्रस्त होकर मैं सोचता। जेल में बन्द होना भी कितनी बड़ी मुसीबत है — सच, बहुत ही भारी मुसीबत! हर बार, जब भी मैं खिड़की से बाहर खेतों की ओर देखता, तो ऐसा मालूम होता, जैसे कोई शैतान मेरे हृदय को नोच रहा हो। कौन कह सकता है कि आखि़र मैंने जन्म क्यों लिया? कोई नहीं ! और अपने आपसे ऐसा सवाल कभी करना भी नहीं चाहिए। जियो और जीवित रहने के लिए अपने भाग्य को सराहो। धरती पर घूमो और जो कुछ देखा जा सकता है वह सब देखो। तब दुख तुम पर कभी हावी नहीं होगा। ओह, एक बार तो अपनी पेटी का फन्दा गले में डालकर मैं झूल ही गया होता !

“एक बार एक आदमी से मेरी ख़ूब झड़प हुई। वह कड़ा आदमी था और रूसी था, तुम्हारी ही भाँति। कहने लगा — ‘जैसे मन में आए, वैसे ही आदमी को नहीं जीना है, बल्कि ख़ुदा की किताब में जैसे लिखा है, वैसे चलना है। अगर आदमी ख़ुदा का कहना मानकर चलता है,’ वह बोला — ‘तो ख़ुदा उसकी हर मुराद पूरी करता है।’ वह ख़ुद चिथड़े पहने था। मैंने कहा — ‘ख़ुदा से एक नया सूट क्यों नहीं माँग लेते?’ इस पर वह बुरी तरह बिगड़ खड़ा हुआ और गालियाँ देते हुए मुझे भगा दिया। लेकिन, कुछ ही क्षण पहले, वह उपदेश झाड़ रहा था कि मानव को अपने पड़ोसियों से प्रेम करना चाहिए, उनके प्रति उसके हृदय में क्षमा होनी चाहिए। लेकिन अगर मैंने उसे नाराज़ कर दिया था, तो उसने मुझे क्यों नहीं क्षमा किया? देखा, ऐसे होते हैं तुम्हारे ये उपदेशक! लोगों को तो सीख देते हैं कि कम खाओ, जबकि अपना दोज़ख़ वे दिन में दस बार भरते हैं।”

उसने आग में थूका और चुपचाप अपने पाइप को फिर से ताज़ा करने लगा। हवा धीमे स्वर में कराह रही थी, अँधेरे में घोड़े हिनहिना रहे थे और जिप्सियों के कैम्प से एक गीत के कोमल अनुराग भरे स्वर वातावरण में तैर रहे थे। यह मकर की सुन्दर लड़की नोन्का थी, जो गा रही थी। कण्ठ की गहराई से निकली उसकी आवाज़ मैं पहचानता था, जिसमें — चाहे वह कोई गीत गा रही हो अथवा केवल दुआ-सलाम के शब्द मुँह से निकाल रही हो — हमेशा एक असन्तोष और आदेश का पुट मिला रहता था। तपे ताँबे-से उसके चेहरे पर रानी ऐसी अहम्मन्यता का भाव चस्पा हो गया था और उसकी काली आँखों की परछाइयों में उसके अपने असीम सौन्दर्य की चेतना और अपने से भिन्न हर चीज़ के प्रति घृणा की एक भावना थिरकती रहती थी।

मकर ने अपना पाइप मेरे हाथ में थमा दिया।

“यह लो, पियो। वह ख़ूब गाती है, क्यों, अच्छा गाती है न? क्या तुम चाहोगे उस जैसी कोई कुँवारी कन्या तुमसे प्रेम करने लगे? नहीं? बहुत ठीक। स्त्रियों पर कभी भरोसा नहीं रखना और उनसे दूर ही रहना। लड़कियों को पुरुष का मुँह चूमने में जितना आनन्द आता है, उतना मुझे अपना पाइप पीने में भी नहीं आता। लेकिन एक बार भी जहाँ तुमने किसी लड़की का मुँह चूमा कि समझ लो, तुम्हारी आज़ादी सदा के लिए ख़त्म हो गयी। ऐसे अदृश्य बन्धनों में वह तुम्हें जकड़ लेगी, जो तोड़े नहीं टूटेंगे, और तुम हृदय और आत्मा से उसके पाँव की धूल बनकर रह जाओगे। यह एकदम सच बात है। लड़कियों से ख़बरदार रहना। झूठ तो सदा उनके होंठों पर नाचता रहता है। वे क़समें खायेंगी कि तुम पर ही वे सबसे ज़्यादा जान देती हैं, लेकिन अगर कहीं तुमने ज़रा भी उन्हें नाराज़ कर दिया तो पहली बार में ही तुम्हारा हृदय नोच डालेंगी। मैं यों ही कुछ नहीं कहता। मैंने बहुत कुछ देखा-जाना है। अगर तुम चाहो तो एक सच्ची कहानी तुम्हें सुनाऊँ। इसे तुम अपने हृदय में गाँठ बाँध कर रखना। अगर तुमने ऐसा किया तो जीवन-भर पक्षियों की भाँति आज़ाद रहोगे।

“बहुत दिनों की बात है। जोबार — लोइको जोबार — नाम का एक युवक जिप्सी था। भय उसे छू तक नहीं गया था और हंगरी और बोहेमिया और स्लावोनिया और समुद्र के इर्द-गिर्द सभी देशों में दूर-दूर तक उसकी ख्याति फैली थी। उन इलाक़ों में एक भी गाँव ऐसा नहीं था, जिसमें चार या पाँच लोग जोबार की जान के दुश्मन न हों, लेकिन उसका कभी एक बाल तक बाँका नहीं हुआ। अगर कोई घोड़ा उसकी नज़र में चढ़ जाता तो फौजियों की पलटन भी उसे न रोक पाती और वह उसकी पीठ पर सवार हो हवा हो जाता। क्या वह किसी से डरता था? नहीं ! डर से जोबार का कोई वास्ता नहीं था। वह ख़ुद शैतान और उसके समूचे दल-बल को - अगर वह उस पर धावा बोलता तो - छुरे की धार पर उतारकर रख देता या फिर कम से कम इतना तो निश्चित ही समझो कि वह उन्हें ख़ूब आड़े हाथों लेता और जमकर उनकी मरम्मत करता।

“जिप्सियों का कोई कैम्प ऐसा नहीं था जो जोबार को न जानता हो या जिसने उसके बारे में नहीं सुना हो। केवल एक ही चीज़ से उसे प्यार था - घोड़े से, सो भी अधिक दिनों के लिए नहीं। जब वह उस पर सवारी गाँठते-गाँठते उकता जाता तो उसे बेच डालता और उससे मिला धन, जो भी हाथ फैलाता, उसे ही दे डालता। उसे किसी चीज़ का मोह नहीं था। अगर किसी को ज़रूरत होती तो वह अपना हृदय तक चीरकर दे देता। सच, वह ऐसा ही आदमी था।

“उस समय, जिसका कि मैं जिक्र कर रहा हूँ — कोई दस साल पहले — हमारा काफ़िला बुकोविना में घूम रहा था। बसन्त के दिन थे। एक रात हम आदमियों की एक टुकड़ी जमा थी — उसमें एक सैनिक दनिला था, जो कोशूत की कमान में लड़ चुका था, और वृद्ध नूर, दनिला की लड़की राद्दा तथा अन्य कई थे।

“क्‍या तुमने मेरी नोन्का को देखा है? वह सौन्दर्य की रानी है। लेकिन राद्दा से उसकी तुलना करना उसे आसमान पर चढ़ाना होगा। राद्दा इतनी सुन्दर थी कि बयान से बाहर। शायद वायलिन का संगीत उसके सौन्दर्य को व्यक्त कर सके। लेकिन यह तभी हो सकता है, जब कि वायलिन-वादक अपनी आत्मा को पूर्णरूपेण उसमें उड़ेलकर रख दे।

“राद्दा के प्रेम में न जाने कितने लोग घुल-घुलकर ख़त्म हो गए। एक बार मोराविया के एक धनिक वृद्ध ने उसे देखा और स्तब्ध रह गया। वह अपने घोड़े पर बैठा बस उसे ताकता ही रहा। उसका समूचा बदन इस तरह हिल रहा था मानो उसे जूड़ी आ गई हो। वह इतना सजा-धजा था कि लगता था जैसे शैतान जश्न मनाने निकला हो। उसका उक्रअइनी कोट जरी के काम से अटा था, बग़ल से लटकती उसकी तलवार बहुमूल्य रत्नों से जड़ी थी, जिनसे घोड़े के ज़रा-सा भी हिलने पर बिजली की भाँति चमक निकलती थी, नीले रंग की उसकी मख़मली टोपी ऐसी मालूम होती थी मानो नीले आकाश का एक टुकड़ा नीचे उतरकर उसके सिर पर आ बिराजा हो। बहुत ही बड़ा आदमी था वह खूसट। बस, घोड़े पर बैठा राद्दा को देखता रहा, देखता रहा। अन्त में उससे बोला — ‘एक चुम्बन के लिए सोने की यह थैली न्योछावर कर दूँगा!’ राद्दा ने अपना मुँह फेर लिया, और बस। खूसट धनिक ने अब अपना स्वर बदला — ‘अगर मैंने तुम्हारा अपमान किया हो तो माफ़ी चाहता हूँ। लेकिन कम से कम एक मुस्कुराहट तो तुम मुझे दे ही सकती हो।’ और यह कहते हुए उसने अपनी थैली उसके पाँवों के पास फेंक दी। थैली काफ़ी भारी थी। लेकिन उसने, मानो अनजान में ही पाँव से ठुकराकर उसे धूल में धकेल दिया, इस तरह जैसे उसने उसे देखा तक न हो।

“उफ़, पूरी फ़ितना है !” उसने भभकारा भरा और घोड़े के पुट्ठे पर चाबुक फटकार सड़क पर धूल का बादल उड़ाता चला गया।

“अगले दिन वह फिर आया। ‘इसका बाप कौन है?’ उसने पूछा, इतनी तेज़ आवाज़ में कि समूचा कैम्प गूँज उठा। दानिलो आगे बढ़ आया। ‘अपनी लड़की मुझे बेच दो। मुँह-माँगे दाम दूँगा।’ दनिला ने जवाब दिया — ‘बेचने का काम तो बड़े लोग करते हैं — सूअरों से लेकर उनकी अपनी आत्मा तक, चाहे जो ख़रीद लो। जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है, मैं कोशूत की कमान में लड़ चुका हूँ और बेचने का धन्धा नहीं करता।’ धनिक ख़ूब गरजा और अपनी तलवार पर उसका हाथ जा पहुँचा। लेकिन तभी किसी ने एक जलते हुई छेपटी घोड़े के कान से छुआ दी — जानवर बिदका और मय अपने मालिक के हवा हो गया। हमने भी अपना डण्डा-डेरा उठाया और सड़क की राह ली। जब हमें सड़क पर चलते पूरे दो दिन हो गए तो एकाएक हमने उसे अपने पीछे आते हुए देखा। ‘अरे! सुनो तो,’ — वह चिल्लाकर बोला — ‘मैं क़सम खाकर कहता हूँ कि मेरी नीयत में बदी नहीं है। मैं इस लड़की को अपनी बीवी बनाना चाहता हूँ। मेरी हर चीज़ में तुम्हारा हिस्सा होगा, और यह तुम जानते ही हो कि मैं बहुत धनी हूँ।’ उसका अंग-अंग तमतमा रहा था और वह इस तरह हिल रहा था जैसे हवा में सूखी घास की पत्तियाँ।

“उसने जो कुछ कहा था, उस पर हमने विचार किया।

“‘बोल बेटी — दनिला’ अपनी दाढ़ी के भीतर से बुदबुदाया — ‘तेरी मन्शा क्या है?’

“राद्दा ने जवाब दिया —

“‘अगर बाज़ की संगिनी ख़ुद अपनी मर्जी से किसी कौवे के घोंसले को आबाद करने चली जाए तो तुम्हें कैसा लगेगा?’

“दनिला हँसा, और हम सब भी हँस पड़े।

“‘ख़ूब जवाब दिया, बेटी ! कुछ सुना, श्रीमान? आपकी दाल यहाँ ग़लती नज़र नहीं आती। अच्छा हो, काबुक में रहने वाली किसी कबूतरी पर डोरे डालो, वह सहज ही पकड़ में आ जायेगी।’ और हम अपने रास्ते पर आगे बढ़ चले।

“इस पर उस धनी ने अपनी टोपी सिर से खींचकर ज़मीन पर पटक दी और इतनी तेज़ गति से नौ दो ग्यारह हो गया कि उसके घोड़ों की टापों से धरती हिल उठी। देखा, मेरे नन्हे बाज़, ऐसी थी वह राद्दा।

“इसके बाद एक रात, जब कि हम कैम्प में बैठे थे, एकाएक मैदानों की ओर से संगीत की आवाज़ आती सुनाई दी। अद्भुत संगीत था वह। ऐसा कि रगों में रक्त थिरकने लगा, और ऐसा मालूम हुआ जैसे किसी अज्ञात लोक की ओर वह हमें खींचे लिए जा रहा हो। एक ऐसी प्रचण्ड आकांक्षा से उसने हमें भर दिया कि उसके बाद जैसे जीवन का चरम सुख हमें मिल जाएगा और फिर जीने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाएगी, और अगर ज़िन्दा रहे भी तो हम समूचे दुनिया के मालिक बनकर ज़िन्दा रहेंगे।

“तभी अन्धकार में से एक घोड़ा प्रकट हुआ, और इस घोड़े पर एक आदमी बैठा हुआ चिकारा बजा रहा था। हमारे कैम्प के अलाव के पास आकर वह रुक गया, चिकारा बजाना उसने बन्द कर दिया और मुस्कुराता हुआ हमारी ओर देखने लगा।

“‘अरे जोबार, तुम हो!’ दनिला ने उछाह से चिल्लाकर कहा।

“हां, तो वह लोइका जोबार था। उसकी मूँछों के छोर उसके कन्धों को छूते हुए उसके घुँघराले बालों के साथ घुल-मिल गये थे। उसकी आँखें दो उजले तारों की भाँति चमक रही थीं, और उसकी मुस्कान में तो जैसे सूरज की धूप खिली थी। वह और उसका घोड़ा — ऐसा मालूम होता था मानो — एक ही धातु-खण्ड से काटकर बनाए गए हों। सामने ही वह मौजूद था — अलाव की रोशनी में रक्त की भाँति लाल, जब हँसता था तो उसके दाँत चमक उठते थे। सच, मुझसे अभागा कोई न होता अगर मेरे हृदय में उतना ही प्यार न जगता, जितना कि मैं ख़ुद अपने को प्यार करता हूँ, लेकिन वह था कि उसने एक भी शब्द मुझसे नहीं कहा या कहिए कि मेरे अस्तित्व तक की ओर उसने ध्यान नहीं दिया। “देखा, मेरे नन्हे बाज़, इस दुनिया में ऐसे लोग भी हैं। उसने तुम्हारी आँखों में देखा नहीं कि तुम, मय अपनी आत्मा के, उसके ग़ुलाम हो गये और, बजाय इसके कि तुम इस पर लज्जा का अनुभव करो, तुम एक गर्व से भर जाते हो। लगता है जैसे उसकी मौजूदगी ने तुम्हें ऊँचा उठा दिया हो। ऐसे लोगों की संख्या अधिक नहीं है। शायद यह अच्छा भी है। अगर दुनिया में अच्छी चीज़ों की भरमार होती, तो उनकी अच्छों में गिनती न होती। लेकिन अब आगे की बात सुनो। “राद्दा ने उससे कहा — ‘जोबार, तुम बहुत अच्छा चिकारा बजाते हो। इतनी सुरीली आवाज़ वाला चिकारा तुम्हें किसने बनाकर दिया है? वह हँसा। बोला — ‘ख़ुद मैंने बनाया है, और लकड़ी से नहीं, उस युवती के हृदय से मैंने इसका निर्माण किया है, जिसे मैं जी-जान से प्यार करता था — इसके तार उसके हृदय के स्वर हैं। अब भी कभी-कभी इससे — मेरे इस चिकारे से — झूठे स्वर निकलते हैं, लेकिन कमानी को अपने इशारे के अनुसार झुकाना मैं जान गया हूँ।’

“पुरुष हमेशा इस बात का प्रयत्न करता है कि अपने प्रति चाह जगाकर लड़की की आँखों को धुँधला बनाए रखे। ऐसा करके उसके नेत्र-बाणों से वह अपने हृदय की रक्षा करता है। और जोबार ने भी ऐसा ही किया। लेकिन वह यह नहीं जानता था कि इस बार किससे उसका पाला पड़ा है। राद्दा ने उससे मुँह फेर लिया और जमुहाई लेते हुए कहा — ‘मैंने तो सुना था कि जोबार समझदार और चतुर है। एकदम ग़लत !’ और यह कहकर वह दूर चली गई।

“‘तुम्हारे दाँत बड़े पैने हैं, सुन्दर लड़की !’ जोबार ने कहा और घोड़े से उतरते समय उसकी आँखें चमक उठीं — ‘साथियो, अच्छी तरह से तो हो। सोचा, तुमसे मिलता चलूँ। सो चला आया।’

“‘अच्छा हुआ जो तुम चले आए,’ दनिला ने जवाब दिया — ‘हम बेहद ख़ुश हुए।’

“हम एक-दूसरे के गले लगे, कुछ देर बातचीत की और फिर सोने चले गए — ख़ूब गहरी नींद सोए। सुबह जब उठे तो देखा कि जोबार के सिर पर पट्टी बँधी है। यह क्यों? मालूम हुआ कि रात को सोते समय घोड़े की लात उसके सिर में लग गई।

“वाह, लेकिन हम जानते थे कि वह कौन-सा घोड़ा है जिसने उसे घायल किया है। और हम मन ही मन मुस्कुराए, और दनिला भी मुस्कुराया। तो क्या जोबार भी राद्दा से मात खाकर रहेगा? नहीं, बिल्कुल नहीं। ख़ूबसूरती में चाहे वह जितनी बड़ी-चढ़ी हो, लेकिन आत्मा उसकी छोटी है और दुनिया-भर के सोने से लद जाने पर भी छोटी ही बनी रहेगी।

“हां, तो हम उसी जगह पर पड़ाव डाले रहे। सभी कुछ मज़े से चल रहा था, और लोइका जोबार भी हमारे साथ ही टिका हुआ था। वह बहुत अच्छा साथी था — बड़े-बूढ़ों की भाँति समझदार, सभी बातों की जानकारी रखने वाला और पढ़ा-लिखा — रूसी और मगयार दोनों ही भाषाएँ वह पढ़ और लिख सकता था। और उसकी बातें — रात बीत जाए फिर भी जी न ऊबे। और जब वह चिकारा बजाता था — चलो, मैं अपनी जान की बाजी हारने को तैयार हूँ अगर कोई उसकी टक्कर का दूसरा बजाने वाला खोज लाए। वह कमानी का जैसे ही तारों से स्पर्श करता तो लगता, जैसे हृदय खिंचकर बाहर निकल आएगा। वह कमानी को फिर तारों पर खींचता — हृदय की एक-एक शिराएँ पुलकित हो सुनने लगतीं, रोम-रोम में एक तनाव-सा छा जाता, और वह उसी प्रकार बजाता और मुस्कुराता रहता। हास्य और रुदन के भाव हृदय में उमड़ते-घुमड़ते और एक साथ फूट पड़ना चाहते। कभी ऐसा मालूम होता, मानो कोई जार-जार रो रहा है और मदद की याचना कर रहा है। तब लगता, जैसे हृदय को चाकू से कुरेदा जा रहा है। कभी मालूम होता कि घास के सुविस्तृत मैदान आकाश को अपने जीवन की कथा सुना रहे हैं — ऐसी कथा, जो उदासी में डूबी है। कभी लगता कि कोई युवती अपने प्रेमी को विदा करते समय विलाप कर रही है। फिर मालूम होता कि उसका प्रेमी घास के मैदानों से उसे पुकार रहा है। इसके बाद, आकाश से उल्कापात की भाँति, आनन्दपूर्ण और अपने साथ बहा ले जाने वाला स्वर सुनाई पड़ता, और लगता, जैसे आकाश में सूर्य तक उसे सुनकर थिरकने लगा है। ऐसा चिकारा बजाता था वह मेरे नन्हे बाज़ !

“उस संगीत के स्वर रोम-रोम में समा जाते थे, और लगता था जैसे हमारा अब कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं रहा है। अगर उस समय जोबार चिल्लाकर कहता — ‘साथियो, अपने चाकू निकाल लो !’ तो हममें से प्रत्येक अपना चाकू निकाल लेता, और जिसकी ओर वह इशारा करता, उसी पर टूट पड़ता। चाहता तो वह हममें से किसी को भी अपनी कनकी उँगली के चारों ओर लपेट लेता। हम सब उसे बेहद प्यार करते थे। एक राद्दा ही ऐसी थी, जो उससे कोई वास्ता नहीं रखती थी। यों अपने आप में वैसे ही यह कुछ कम बुरी बात नहीं थी, लेकिन इसके अलावा वह उसका मज़ाक़ भी उड़ाती थी। वह उसके हृदय में घाव करती थी और बुरी तरह घाव करती थी। वह अपने दाँत भींच लेता, अपनी मूँछों के बाल खींचता, उसकी आँखें कुएँ से भी ज़्यादा गहरी हो जातीं और कभी-कभी उनमें एक ऐसी बिजली-सी कौंधती कि हृदय सहमकर रह जाता।

रात को वह दूर घास के मैदानों की गहराइयों में चला जाता और उसका चिकारा सुबह होने तक विलाप करता रहता — अपनी खोई हुई आज़ादी पर सिर धुनता। और हम, पड़े-पड़े, उसके इस विलाप को सुनते और मन ही मन सोचते — ‘हे भगवान, यह क्या होने वाला है?’ और हम जानते थे कि जब दो पत्थर एक-दूसरे की ओर लुढ़कते हैं तो उनके रास्ते में जो भी आता है, उसे कुचल डालते हैं। यह थी उस समय की स्थिति।

“एक रात अलाव के पास बैठे देर रात तक हम अपने मामलों पर बातचीत करते रहे और जब बातें करते-करते थक चले तो दनिला जोबार की ओर घूम गया और बोला — ‘जोबार, कोई ऐसा गीत सुनाओ, जिससे हमारे दिल ख़ुशी का अनुभव कर सकें।’

जोबार ने एक नज़र राद्दा पर डाली, जो कुछ ही दूर धरती पर पड़ी आसमान की ओर देख रही थी। और उसने अपनी कमानी को चिकारे के तारों पर से खींचा। चिकारे में से गीत के स्वर प्रकट हुए, इस तरह, मानो कमा्नी चिकारे के तारों को नहीं, वस्तुतः किसी युवती के हृदय के तारों को छेड़ रही हो। और उसने गाना शुरू कर दिया —

अइहो, अइहो! मेरे हृदय में प्रेम न समाए,

स्तेपी सागर की भाँति हिलोरे खाए,

और हमारे घोड़े एकदम निर्भय

हम दोनों को हवा की भाँति उड़ा ले जाएँ !

“राद्दा ने अपना सिर उसकी ओर घुमा लिया, कुहनी के बल उठी और उसके मुँह की ओर खिलखिलाकर हँसने लगी। जोबार का चेहरा तमतमाकर लाल हो गया।

अइहो, अइहो! मेरे सच्चे जीवन-साथी

निकट अँधियारी का अब अन्त,

छाई रात की परछाइयाँ अभी मैदानो पर घास के,

लेकिन इससे क्या, नापेंगे हम आकाश की ऊँचाइयों को !

दिन के स्वागत के लिए तेज़ करो घोड़ों को अपने,

जो थिरक रहा है अब सुविस्तृत मैदानों में,

लेकिन देखो, चन्द्रमा सुन्दरी को निहार

भटक न जाना तुम, और रह न जाए स्वागत रवि-किरणों का !

“कितना बढ़िया गाया ! आजकल इस तरह के गीत दुर्लभ हो गए हैं। लेकिन राद्दा दबे स्वर में फुसफुसा उठी — “‘तुम्हारी जगह मैं होती तो कभी इस तरह आकाश में घोड़े न दौड़ाती। अगर सिर के बल जोहड़ में आ गिरे तो तुम्हारी ये सुन्दर मूँछें ख़राब हो जाएँगी।’

“जोबार ने ग़ुस्से में भरकर उसकी ओर देखा, लेकिन कहा कुछ नहीं। उसने अपने आपको क़ाबू से बाहर नहीं जाने दिया और गाना जारी रखा —

अइहो, अइहो ! रवि-किरणें गर आकर

देखेंगी — हम दोनों को नींद में डूबा,

होगे लज्जा से मुँह लाल हमारे,

गर नहीं उठे, और रहे हम लम्बी ताने !

“‘कितना शानदार गीत है !’ दनिला ने कहा — ‘इससे अच्छा गीत अपने जीवन में पहले कभी नहीं सुना, अगर मैं ग़लत कहता हूँ तो शैतान मुझे आदमी से पाइप बना डाले।’

“वृद्ध नूर अपने गल-मुच्छों को सहलाकर अपने कन्धों को बिचका रहा था, जोबार के साहसपूर्ण गीत ने हम सभी के दिल खिला दिए थे। लेकिन राद्दा को वह पसन्द नहीं आया। कहने लगी —

“‘ऐसे ही एक बार बाज़ की आवाज़ की नक़ल में एक मच्छर को भनभनाते मैंने सुना था !’

“ऐसा मालूम हुआ, जैसे उसने हम सबके सिरों पर बर्फ़ का पानी उँड़ेल दिया हो। दनिला बड़बड़ा उठा — ‘कोड़े का मुँह देखे शायद बहुत दिन हो गए हैं, राद्दा !”

लेकिन जोबार ने, जिसका चेहरा धरती की भाँति काला पड़ गया था, अपनी टोपी उतारकर नीचे फेंक दी और बोला — “‘ठहरो, दनिला ! गरमाए हुए घोड़े के लिए इस्पाती लगाम की ज़रूरत होती है। अपनी लड़की की शादी तुम मेरे साथ कर दो !’

“‘क्या बात कही है तुमने,’ दनिला मुस्कुराया — ‘ले लो, अगर तुम ले सको।’

“‘अच्छी बात है,’ जोबार ने कहा और फिर राद्दा की ओर मुड़ते हुए बोला — ‘अब ज़रा अपने हवाई घोड़े से नीचे उतर आओ, लड़की, और सुनो जो मैं कहता हूँ। अपने जीवन में कई — हाँ, कई लड़कियों से मेरा पाला पड़ा है । लेकिन उनमें से एक भी तुम्हारी तरह मेरे हृदय को अपने कब्जे में नहीं कर सकीं।। आह, राद्दा, तुमने मेरी आत्मा को बन्दी बना लिया है। इसमें किसी का बस नहीं, जो होना है सो होकर रहेगा — और इस दुनिया में ऐसा घोड़ा कोई नहीं है जो मानव को ख़ुद उससे दूर कहीं ले जा सके। ख़ुदा और स्वयं अपनी आत्मा की साक्षी तथा तुम्हारे पिता और इन सब लोगों की मौजूदगी में मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाता हूँ लेकिन एक बात चेताये देता हूँ कि मेरी आज़ादी में आड़े आने की कोशिश न करना, मैं आज़ादी-पसन्द आदमी हूँ और हमेशा वैसे ही रहूँगा, जैसे मेरा जी चाहेगा।’

“दाँतों को भींचे अपनी धधकती आँखें लिए वह उसके पास जा पहुँचा। हमने उसे राद्दा की ओर हाथ बढ़ाते हुए देखा और सोचा, ‘आखि़र राद्दा ने सुविस्तृत मैदानों के इस बनैले घोड़े के मुँह में लगाम डाल ही दी।’ लेकिन तभी, एकाएक, जोबार की बाहें फैल गईं और उसका सिर धरती से जा टकराया।

“यह क्या हो गया? ऐसा मालूम होता था, जैसे गोली ने उसका सीना छलनी कर दिया हो। लेकिन यह तो राद्दा का चाबुक था, जिसने उसकी टाँगों में फन्दा डाल झटका देकर उसे गिरा दिया था।

“और वह अब फिर, पहले की भाँति, निश्चल लेट गई। उसके होंठों पर उपेक्षापूर्ण मुस्कुराहट खेल रही थी। हम सब, सकते की हालत में, यह देख रहे थे कि अब क्या होता है। जोबार उठकर बैठ गया और अपने हाथों में उसने अपना सिर पकड़ लिया, मानो उसे डर हो कि कहीं वह टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर न जाए। फिर वह चुपचाप उठा और, एक बार भी किसी की ओर देखे बिना, मैदानों की ओर चल दिया। नूर ने फुसफुसाकर मुझसे कहा — ‘अच्छा हो तुम इस पर नज़र रखो।’ सो मैं भी उसके पीछे-पीछे रात के अँधेरे में मैदानों में रेंगता हुआ चला। ज़रा ख़याल तो करो, मेरे नन्हे बाज़।’

मकार ने अपने पाइप के कटोरे में से राख झाड़-खुरचकर बाहर फेंक दी और उसे फिर भरने लगा। मैंने कोट के पल्ले खींचकर उसे अपने बदन के इर्द-गिर्द कसकर सटा लिया और धरती पर लेट गया। इस तरह धूप तथा हवा से ताँबा बना उसका वृद्ध चेहरा और भी अच्छी तरह दिखाई देता था। वह मन ही मन कुछ बड़बड़ा रहा था और अपनी बात को बल प्रदान करने के लिए गम्भीरता के साथ अपना सिर भी हिलाता जाता था। उसकी भूरी मूँछों में बल पड़ रहे थे और हवा उसके बालों को छेड़ रही थी। उसे देखकर मुझे एक पुराने ओक वृक्ष की याद हो आई, जिस पर बिजली आ गिरी थी, लेकिन जो अभी भी मज़बूत और शक्तिशाली था और अपनी इस शक्ति के गर्व में सिर ऊँचा किए खड़ा था। समुद्र की लहरें अभी भी रेत के कानों में कुछ गुनगुना रही थीं और हवा उनकी इस ध्वनि को घास के मैदानों में फैला रही थी। नोन्का ने गाना बन्द कर दिया था। आकाश में बादल घिर आए थे और शरद की रात्रि का अन्धकार और भी ज़्यादा घना हो उठा था।

“लोइका जोबार के डग बड़ी मुश्किल से उठ रहे थे। काफ़ी प्रयास के बाद वह एक के बाद दूसरा डग उठाता था। उसकी गरदन झुकी थी और बाहें चाबुक की डोरियों की भाँति बेजान-सी झूल रही थीं। एक पतली-सी धारा के तट पर पहुँच वह एक पत्थर पर बैठ गया और एक कराह भरी। उसकी कराह की आवाज़ से मेरा हृदय व्यथित हो उठा, लेकिन मैं उसके निकट नहीं गया। शब्दों से क्या मानव का दुख हल्का होता है? नहीं, उनमें इतनी सामर्थ्य नहीं। यही तो मुसीबत है। उसे वहाँ बैठे-बैठे एक घण्टा बीत गया, फिर दूसरा और इसके बाद तीसरा। बिना हिले-डुले, वह, बस, बैठा ही रहा।

“सहसा राद्दा पर मेरी नज़र पड़ी। वह कैम्प की ओर से तेज़ी से हमारी दिशा में बढ़ रही थी।

“मेरी ख़ुशी का वारपार नहीं रहा। ‘बहुत ख़ूब, राद्दा, तुम बहादुर लड़की हो!’ मैंने सोचा। वह चुपचाप, बिना किसी आहट के, जोबार के पास जाकर खड़ी हो गई। उसने अपने हाथ उसके कन्धों पर रख दिए। वह चौंक उठा, अपने हाथों को उसने मुक्त किया और सिर उठाकर देखा। अगले ही क्षण वह अपने पाँवों पर खड़ा हो गया और अपने चाकू को उसने निकाल लिया। ‘हे भगवान, क्या वह उसे मार डालेगा?’ — मैंने सोचा और उछलकर मदद के लिए पुकारना ही चाहता था कि तभी मैंने सुना — “इसे फेंक दो, नहीं तो मैं तुम्हारा सिर उड़ा दूँगी।’

“मैंने देखा कि राद्दा के हाथ में पिस्तौल है और वह लोइको के सिर का निशाना साधे है। लड़की क्या थी, शैतान की खाला थी। ‘अच्छा है,’ मैंने सोचा — ‘कम से कम ताक़त में दोनों बराबर हैं। पता नहीं, अब क्या होगा?’

“‘मैं तुम्हें मारने नहीं, बल्कि तुमसे सुलह करने आई थी,’ पिस्तौल को अपनी पेटी में खोंसते हुए राद्दा ने कहा — ‘अपना चाकू दूर फेंक दो। उसने चाकू दूर फेंक दिया और उबलती हुई नज़र से उसकी ओर देखने लगा। क्या दृश्य था वह भी ! चोट खाए जंगली पशुओं की भाँति दोनों एक-दूसरे पर नज़र गड़ाए थे, दोनों ही इतने सुन्दर और बहादुर थे। और रुपहले चाँद तथा मेरे सिवा और कोई भी उन्हें नहीं देख रहा था।

“‘सुनो, जोबार, मैं तुमसे प्यार करती हूँ,’ राद्दा ने कहा। वह केवल कन्धे बिचकाकर रह गया — उस आदमी की भाँति, जिसके हाथ और पाँव बँधे हों।

“‘अनेक आदमियों से मेरा वास्ता पड़ा है, लेकिन तुम उनमें सबसे बहादुर और सुन्दर हो।’