मछली-मछली कितना पानी / सुकेश साहनी
गाँव में घुसते ही उसे चार-पाँच युवक खड़े दिखाई दिए.
"भैया, यहाँ पास में कोेई कुआँ?" उसने उनसे पूछ लिया।
"कैसा कुआँ?" जवाब में खुश्क आँखों वाले युवक ने भी सवाल किया।
"पानी वाला कुआँ...जिसमें से गाँव वाले पानी लेते हैं।" उसने समझाया।
इस बार वे सब खिल्ली उड़ाने के अंदाज में जोर-जोर से हँसने लगे। उसको उनके हँसने की वजह समझ में नहीं आई. फिर उसने कुछ और पूछना मुनासिब नहीं समझा।
थोड़ा आगे बढ़ने पर एक घर के बाहर बूढ़ा आदमी बैैठा दिखाई दिया, जो पानीदार आँखों से उसी की ओर देख रहा था। उसे कुछ आशा बँधी। उसने किसान से कुएँ के बारे में पूछ लिया।
"बेटा, अब तो घर-घर में हैंडपंप लग गए हैं।" बूढ़े ने काँपती आवाज में कहा।
"कौन है?" तभी घर से किसी आदमी ने चिल्लाकर पूछा। आवाज किसी गहरे कुएँ से आती हुई मालूम हुई.
चहारदीवारी के उस पार अँधेरा था, उसको कुछ दिखाई नहीं दिया।
"सरकारी आदमी लगता है," अब की औरत का तीखा स्वर उभरा, "बुढ़ऊ हैंडपंप-हैंडपंप कर रहा है, जाकर देखो न! हैंडपंप कहीं अपने लाड़ले के नाम तो नहीं लिखा दिया?"
एक आदमी तमतमाया-सा बाहर आया। उसने घूरकर उसकी ओर देखा। उसकी आँखों की पुतलियों के चारों ओर का सफेद भाग फटा-फटा दिखाई दे रहा था।
"भीतर चल!" उसने चिल्लाकर अपने पिता से कहा, फिर उससे बोला, "इसका तो दिमाग खराब हो गया है, अंटशंट बकता रहता है। हैंडपंप से तुम्हारा क्या मतलब है?"
" हैडपंप नही...मैं तो कुएँ के बारे में पूछ रहा था ताकि माप सकूँ कि कहाँ कितना पानी उतर गया है।
"बुड्ढ़ा फिर किसी मुसीबत में फँसाएगा।" वह बड़बड़ाया और अपने पिता को लगभग घसीटते हुए घर में उतर गया।
वह उदास कदमों से आगे बढ़ गया। तभी उसकी नजर एक बच्चे पर पड़ी, जिसकी आँखों में पानी किसी झील-सा चमक रहा था।
"बेटा, तुम्हें कोई पानी वाला कुआँ मालूम है,"
"हाँ पता है," बच्चे ने आत्मविश्वास से कहा, "मेरे पीछे आइए!"
वह उत्साहित होकर उसके पीछे चल दिया।
गाँव के बीचोंबीच खुली जगह में एक कुआँ दूर से ही दिखाई दने लगा था। कुएँ के नजदीक जाने पर उसे निराशा ने घेर लिया। कुएँ को बड़े-बड़े पत्थरों से बंद कर दिया गया था।
"क्या बात है?" एक पढ़े-लिखे युवक ने उससे पूछा।
"कुआँ किसने बंद किया है?"
"तुमसे मतलब," वह मूँछें ऐंठते हुए बोला, "हमने इसे सेपटिक टैंक बना दिया है।"
"क्या?" अजय दंग रह गया, "इससे तो पूरे गाँव का पानी प्रदूषित हो जाएगा?"
"हमें मत पढ़ाओ...तुम लोगों के दाँव-पेंच हम खूब समझते हैं...अपना रास्ता नापो!" वह आँखें निकालकर बोेला।
वह बहुत थकान महसूस करने लगा था। इस गाँव की सर्वे रिपोर्ट उसे हैडक्वार्टर भेजनी थी। एक पेड़ के नीचे बैठकर उसने लिखा-ग्राम-कुआँ टांडा, कोई भी खुला कूप उपलब्ध नहीं है। पानी कितना उतर गया है, मापना संभव नहीं हो पा रहा है। वह कुआँ, जिससे कभी पूरा गाँव पानी लेता था और राहगीर पानी पीते थे, 'सेपटिक टैंक' में बदल दिया गया है। यदि आप इस गाँव के निरीक्षण पर आएँ तो दूर से ही दिखाई दे रहे बहुत कुओं के कारण भ्रमित न हों। वस्तुतः ये कुएँ नहीं...ऊँची चहारदीवारी में कैद घर हैं। मैं अगले गाँव की ओर प्रस्थान कर रहा हूँ। आशा है, वहाँ परिस्थिति ऐसी नहीं होगी। इस गाँव में मुझे एक बूढ़े और बच्चे की आँखों में पानी हिलोरे लेता दिखाई दिया। इसी आधार पर मैं आपको विश्वासपूर्ण लिख रहा हूँ कि आपके अपने साथ पीने का पानी लाने की आवश्यकता नहीं है।
भवदीय-अजय, भूजलविद्।