मजदूर औरत / मनोज चौहान

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पीठ पर शाल में लिपटे हुए अढाई साल के बच्चे को लेकर जैसे ही वह मजदूर औरत प्रोजैक्ट साईट की डिस्पैसरी में प्रवेश हुई तो अनायास ही सबका ध्यान उसकी ओर चला गया। पसीने से तर-बतर और हांफते हुए वह बोली मेरे बच्चे को चोट लग गई है बाबू जी, ज़रा पट्टी कर दीजिये। वहाँ बैठे प्राथमिक चिकित्सा सहायक ने रौबीले स्वर में उससे पूछा '"कैसे चोट लग गई" तो वह रूआंसे से स्वर में बोली "कमरे में अपने पांच साल के भाई के साथ खेल रहा था, बाबू जी। दरबाजे की चौखट और पल्ले के बीच बांये हाथ का अगुंठा आ गया। तुम कहाँ थी उस वक्त, प्राथमिक चिकित्सा सहायक ने जैसे सवालों की झड़ी ही लगा दी थी। मैं और मेरा आदमी तो रोज यहाँ काम पर आ जाते हैं, साहब। दोनों बच्चे कमरे में ही रहते हैं। अच्छा दिखाओ, इस बार प्राथमिक चिकित्सा सहायक की आवाज में नरमी थी। उसने अपने बच्चे को पीठ से उतारकर गोद में लिया, जो दर्द से कराह रहा था।

जैसे ही प्राथमिक चिकित्सा सहायक ने बच्चे की उंगली पकड़ी तो वह जोर-जोर से रोने लग गया। बच्चे की चीखों से डिस्पैसरी के उस कमरे में मौजूद चार-पांच लोगों सहित रौबीले से दिखने वाले चिकित्सा सहायक का दिल जैसे पसीज-सा गया था। उसने बच्चे का जख्म साफ किया और उसकी मरहम पटटी की और पेन किल्लर का इंजेक्शन लगा दिया। फिर उसने उस औरत को कुछ दवाई दी और एक कागज पर कुछ लिखते हुए बोला कि ये लो, ये दवाई बाज़ार से ले लेना। कागज को हाथ में लेते हुए वह मजदूर औरत कुछ सोचने लगी। क्या हुआ...अब क्या सोच रही हो...? चिकित्सा सहायक के स्वर दोबारा से तल्ख हो उठे थे।

तभी वहाँ पर बैठे साईट इन्जीनियर शेखर (जो अभी तक एक ज़रूरी फोन कॉल अटैन्ड कर रहा था) ने उस औरत को सहज भाव से कहा कि आपके बच्चे की मरहम पट्रटी कर दी है, अब आप घर जाइए और बाज़ार से दवाई ले लीजिए. इतना सुनते ही उस औरत की आंखों में आंसू आ गए। दवा-दारू कहाँ से करेगें, हम गरीब लोग हैं बाबू जी...! मैं और मेरा आदमी तो दिन भर यहाँ काम करते हैं। हमारे गांव में पिछले साल बाढ आई थी, जिसमें खेत-खलिहान, मकान सब बह गए. घर में और लोग भी हैं जिन्हे हर महीने रूपये भेजने पडते हैं, इसीलिए यहाँ दूर परदेश में मर-खप रहे हैं। इतना सुनते ही शेखर ने जेब से 500 रूपये निकाले और उस औरत के हाथ में थमा दिए और भावुकता के आवेष में बिना कुछ कहे ही कमरे से बाहर निकल गया। वह औरत निश्चल नेत्रों से हाथ जोड उसे जाते देखती रही। चिकित्सा सहायक और अन्य लोग बिना कुछ कहे अब भी उस औरत को देख रहे थे। बच्चे की चीखें शांत हो गई थी, शायद पेन किल्लर ने अपना असर दिखा दिया था।