मजदूर संगठन पर फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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मजदूर संगठन पर फिल्में
प्रकाशन तिथि : 11 नवम्बर 2019


इंग्लैंड की एक ऐतिहासिक घटना से प्रेरित 'बैकेट' बनी जिसमें रिचर्ड बर्टन और पीटर ओ टूल ने अभिनय किया। इसी फिल्म की प्रेरणा से ऋषिकेश मुखर्जी ने राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन अभिनीत 'नमक हराम' बनाई। इसी थीम पर टीएस इलियट ने 'मर्डर इन कैथर्डल' नामक पद्य नाटक लिखा। जिससे प्रेरित फिल्म के बनाए जाने की पुष्टि नहीं हो पाई। इंग्लैंड में राजा के पास सारे अधिकार थे परंतु महत्वपूर्ण फैसले करने का अधिकार चर्च के पास था। अतः राजकुमार हैनरी के सिंहासन पर बैठते ही उन्होंने अपने बाल सखा को चर्च का अधिकारी नियुक्त किया। उनका इरादा संपूर्ण सत्ता को हथियाने का था। चर्च के सर्वोच्च पद पर बैठते ही बैकेट ने अपने बाल सखा से कहा कि अब वह ईश्वर की चकरी कर रहा है। अतः चर्च के अधिकार कायम रखने के लिए अपने मित्र से भी युद्ध कर सकता है।

टी एस इलियट की रचना में टेंपटर दृश्य की सभी ने प्रशंसा की। राजा बैकेट के पास चार टेंपटर भेजता है। एक उसे मांगा धन देना चाहता है, दूसरा उसे सारे ऐशो आराम के साधन देना चाहता है। तीसरा उसे असीमित जमीन का मालिकाना अधिकार देना चाहता है। बैकेट तीनों प्रस्ताव अस्वीकार करता है। चौथा टेंपटर कहता है कि बैकेट जानता है कि निरंकुश राजा की बात स्वीकार नहीं करने पर राजा उसकी हत्या करा देगा। वह यही चाहता है कि उसकी हत्या कर दी जाए, क्योंकि ऐसा होने पर वहां अमर शहीद माना जाएगा। उसके जन्मदिन और निर्वाण दिवस पर उत्सव मनाया जाएगा। अत: वह यह दावा नहीं कर सकता कि वह सभी प्रलोभन से मुक्त व्यक्ति है। अमर होने की चाहत भी एक प्रलोभन ही है।

ऋषिकेश मुखर्जी ने अमिताभ बच्चन को मिल मालिक की भूमिका दी और राजेश खन्ना मिल में मजदूर हैं। मिल मालिक अपने मित्र से कहता है कि वह मजदूरों का संगठन बनाए और उस संगठन का मुखिया बन जाए। इस तरह दोनों मित्र दो संस्थाओं के मालिक बनकर अपनी मनमानी करेंगे। राजेश खन्ना मजदूर संगठन का निर्माण करता है। मजदूर के वेतन बढ़ाए जाने और उनके बोनस के अधिकार के लिए मिल मालिक से लड़ता है। बैकेट में पीटर ओ टूल के अभिनय को रिचर्ड बर्टन के अभिनय से अधिक सराहा गया। इसी तरह 'नमक हराम' में राजेश खन्ना के अभिनय को अधिक सराहा गया। पूंजीवादी अमेरिका में मजदूर संगठन के निर्माण पर लंबे समय तक कानूनी रोक लगाए रखी गई। सन 1935 में सीनेटर वैगनर ने सुझाव दिया है कि मजदूरों में असंतोष बढ़ जाने पर कारखाने चलाना मुश्किल हो जाएगा। अतः मजदूरों का संगठन बनाने की आज्ञा दी जाए । अन्य सीनेटर्स ने विरोध किया कि संगठित मजदूर अमेरिका के कारखानों को ठप कर सकते हैं और अनार्की ऑफ प्रोलिटेंटर प्रारंभ हो सकता है। सीनेटर वैगनर ने कहा कि मजदूर संगठनों में पूंजीवादी रिश्तों की रक्षा के लिए अपने व्यक्तियों को बैठा दिया जाएगा। उन्हें असीम साधन उपलब्ध कराकर चुनाव में विजय दिलाई जा सकेगी और वे मजदूरों के नेता बनकर पूंजीवादी हितों की ही रक्षा करेंगे। इस तरह मजदूर संगठन में पलीता लगा दिया जाएगा। हर किले में गुप्त सुरंगें होती हैं। मजदूर संगठन के किले में भी सुरंग बनाई जाएगी। भारत में मजदूर संगठनों को विभक्त किया गया और दो परस्पर राजनीतिक विचारधारा के नुमाइंदों को चस्पा किया गया। विभाजित करके शासन करना शाश्वत तरीका रहा है। अमेरिका में मजदूरों के संगठन बनाने के अधिकार को वैगर एक्ट कहा जाता है, जो सन 1935 में लागू किया गया। ज्ञातव्य है कि मुंबई की कपड़ा मिलों के मजदूर संगठन पर एक लोकप्रिय मजदूर नेता को मिल मालिकों ने पैसे देकर लंबी हड़ताल कराई। वे जानते थे कि लंबी चलने वाली हड़ताल के कारण अन्य प्रांतों से आए मजदूर अपने घरों को लौट जाएंगे। उनकी योजना थी कि टिके रहे मजदूर को 3 माह का वेतन दे देंगे। मिलों की जमीन बेच दी गई, जिससे मिल मालिकों को करोड़ों का लाभ मिला।

ऐसी ही एक बंद मिल की जमीन पर मुंबई का एक सिनेमाघर फीनिक्स भी बना है। संभवत: यह फीनिक्स मिल थी। यह गौरतलब है कि सभी प्रकार के संगठनों पर सत्ता की पसंद के लोग भी बैठाए जाते हैं। हमने गणतंत्र का नया मॉडल विकसित किया है। गणतंत्र विचार का जन्म फ्रांस की देन है, परंतु हमारा अपना मॉडल सबसे अलग है। इस पर मेड इन इंडिया का ठप्पा लगा है। हमारा अवाम सूरजमुखी के फूल की तरह है जो सत्ता के सूर्योदय पर ही खिलता है।