मददगार / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'

Gadya Kosh से
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किसी गाँव में, सहदेव चा जैसे व्यक्ति करीब आठ-दस पीढ़ियों के अंतराल में आविर्भूत होते हैं। ख़ुशमिजाज चेहरा, काला रंग, अधनंगा बदन, पतला-दुबला शरीर और शरीर का गठन भी ऐसा कि हंसी का स्फुरण स्वतः हो जाय। वह हमेशा लोगों को हंसाने के फिराक में रहते थे। उनकी बोली और क्रियाकलाप से लोग हंस-हंस कर लोटपोट हो जाते थे।

सहदेव चा भीतर से तंदुरुस्त थे। उन्हें कोई बीमारी नहीं थी,सिवाय ग़रीबी के। पर न जाने किधर से एक हल्की-सी खांसी आई और उन्हें ऐसा जकड़ा कि उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। उनके बेटों ने अपने रिश्तेदारों और गाँव के सुहृदों से मदद की गुहार लगाई। पर उन्हें कोई ख़ास मदद नहीं मिली और अंततः एक दिन सहदेव चा का अंत हो गया।

सहदेव चा के श्राद्ध-भोज में लोगों ने दिल खोलकर सहयोग किया। विशाल भोज का आयोजन हुआ। दस गाँव के लोग भोज खाने आए। मैं भी भोज खा रहा था। तभी मुझे सहदेव चा दिखाई दिए। जिंदा। बिल्कुल जिंदा। वह पंडाल में घूम-घूमकर मुआयना कर रहे थे और मददगार लोगों के पास जाकर खिलखिलाकर हंस रहे थे। ख़ुद न हंसकर दूसरों को हंसाने वाले सहदेव चा आख़िर आज ठहाका मार-मार कर क्यों हंस रहे थे,यह माजरा मैं समझ नहीं पा रहा था।

पता नहीं, यह केवल मेरा भ्रम था या कुछ और... !