मदद करने वाले हाथ / महेश कुमार केशरी
बुढ़िया , बीमार तो नहीं हैl हाँ , दिनभर तो ठीक ही दिखती हैl काम धाम भी समय से कर लेती हैl हाँ , लेकिन , इधर कुछ दिनों से ज़्यादा ही खाँस रहीl रात - बिरात बुढ़िया जब ज़्यादा खाँसने लगती हैl तो चंदन की नींद उचट जाती हैl और तब उसे सारी रात नींद नहीं आतीl बुढ़िया को चंदन परोक्ष रूप में बुढ़िया कहता हैl सामने से जब भी मिलती हैl तो , वह , उनको माई ही कहकर सम्बोधित करता हैl खाँय- खाँय की आवाज़ से चंदन की नींद खराब हो जाती हैl इसके चलते वह नहीं चिढ़ताl बल्कि उसकी चिंता कुछ दूसरे क़िस्म की हैl वह , पेशे से कामगार हैl कंपनी की होर्डिंग लिखता हैl शहर - शहर घूमकरl पिछले साल राजस्थान में थाl उस समय एक ऐसी ही बुढ़िया माई उसे मिली थीl इसी बुढ़िया माई की तरहl फ़र्क़ सिर्फ़ इतना था कि वह दूसरे मज़हब की थीl मुसलमानीl लेकिन , चेहरे - मोहरे में इसी बुढ़िया माई की तरह थीl नाम था रजिया l एक दम बुढ़िया माई की तरह ही गोरी - चिट्टी और दुबली - पतली लेकिन ,काम करने में फरहर (तेज) थी l
उसे साल भर पहले की बात अच्छी तरह याद हैl जब वह बाड़मेर में फँस गया थाl तब कोविड़ की दूसरी लहर चल रही थीl बहुत ही भयंकर समय थाl आदमी - आदमी से नफ़रत करने लगा थाl तब , बुढ़िया रजिया ने उसे दसियों दिन खाना खिलाया थाl उसे भी वह रजिया चाची ही कहता थाl
चंदन ने तो मज़ाक मज़ाक में एक बार कहा भी था -"रजिया चाची , मैं दूसरे धर्म का हूँl मेरे रोटी खाने से धर्म नहीं बिगड़ जायेगाl"
तब रजिया चाची ने कहा था - "रोटी का कौनों धरम होता है क्या बेटा ? इंसान मुसीबत में हो तो वह धरम नहीं देखताl फिर , भूख का भी तो कोई धरम नहीं होताl क्या तुम्हारी और क्या मेरी भूख ? सबकी भूख तो एक जैसी ही हैl हमको तो अक्षर ज्ञान भी नहीं है बेटा ज़्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं हूँl लेकिन , धरम सियासतदानों के लिये हैl और वे हमें आपस में लड़वाने के लिये ही इसका इस्तेमाल करते हैंl"
और , अंतत: चंदन ने उसी रात ही ये तय कर लिया थाl कि कल सुबह वह बुढ़िया माई के लिये एक खाँसी का सिरप लेकर आयेगाl लेकिन , क्या वह खाँसी का सिरप उससे लेगीl इस निष्ठुर दुनिया में बुढ़िया माई का कोई नहीं थाl बच्चों ने बुढ़िया माई को घर से निकाल दिया थाl बुढ़िया माई , दूसरों के घरों में झाड़ू -बर्तन करके किसी तरह गुज़ारा करती थीl
अगले दिन वह खाँसी का सिरप लेकर आया तो मँजू चौंक पड़ीl और चंदन से पूछा - "ये खाँसी की सिरप किसके लिये लेकर आये हो ?"
"बुढ़िया माई के लियेl" चंदन कुर्सी पर सिरप रखते हुए बोलाl
"बुढ़िया माई , से क्या तुम्हारा कोई रिश्ता है ?" मँजू आश्चर्य से चंदन की ओर ताकते हुए बोलीl
अचानक से चंदन को रजिया चाची याद आ जातीl वह रजिया चाची के बारे में सोचता हैl तो ,उसे बुढ़िया माई याद आ जाती हैl क्या इन दोनों में कोई सम्बध है ?
फिर वह धरम- करम करम से ऊपर उठकर सोचता हैl तो उसे एक ही बात समझ आती हैl धरम - जाति तो इंसान अपनी कुँठा के कारण गढ़ता हैl नफ़रत करने के लियेl जब वह मूढ़ हो जाता हैl नितांत स्वार्थीl समाज और देश से परे अपना अस्तित्व समझने लगता हैl
फिर ये सियासतदानों का काम है l मदद करने वाले हाथ का कोई धरम नहीं होताl उसका तो बस एक धरम होता हैl इंसानियत का धरमl रजिया से चंदन का कोई रिश्ता था क्या ? जो रजिया ने परदेश में चंदन की मदद कीl फिर , बुढ़िया माई से उसका क्या कोई रिश्ता है ? अगर कोई रिश्ता नहीं हैl तो वह क्यों जब कोई अच्छी चीज पकाती हैl तो उसके और मँजू के लिये ले आती हैl
चंदन ने सिरप उठायाl और ,बुढ़िया माई के घर चल पड़ाl
बुढ़िया माई घर पर ही मिल गईl
"बुढ़िया माई , ये खाँसी की सिरप तुम्हारे लिये लेकर आया हूँl दो- दो चम्मच रोज़ पीनाl खाँसी जड़ से ख़त्म हो जायेगीl" चंदन मुस्कुराते हुए बोलाl
बुढ़िया माई एक अनचिन्हें और नये रिश्ते को ताक रही थीl उसके अपने बच्चों ने उसे घर से निकाल दिया थाl लेकिन , ये चंदन तो उसका अपने सगे रिश्ते से भी बड़ा निकलाl
बुढ़िया माई के हृदय से जैसे आशीर्वाद का सोता फूट पड़ा थाl