मदर...टू प्वाइंट ओ / अर्चना राय
सप्ताह में कम-से-कम चार बार फ़ोन करने वाली माँ का काफ़ी दिनों से फ़ोन नहीं आने पर हाल-चाल जानने आखिरकार विदेश में बसे बेटे ने माँ को फ़ोन लगा ही लिया।
"हैलो माँ।"
"हाँ, बेटा।" माँ की आवाज़ में एक खनक थी। सुनकर उसे झटका—सा लगा। पहले जब भी माँ से बात करता उनकी आवाज़ में दुख और उदासी साफ़ महसूस होती थी।
"आपकी तबीयत तो ठीक है न?"
"मैं तो बहुत अच्छी हूँ। तू कैसा है?" सुनकर उसे दोबारा झटका लगा। पहले तो उसके पूछने से पहले ही अपनी शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जातीं थीं। जो फ़ोन रखने तक ख़त्म ही नहीं होता था। आज उसका हालचाल पूछ रहीं थीं।
"क्या बात है माँ आजकल आप फ़ोन ही नहीं करती?"
"अरे क्या बताऊँ ये 'दीनू' है न! ये मुझे एक मिनट भी फुर्सत रहने दे, तभी न करूँ। कभी माँ नाश्ते का समय हो गया...माँ, सोने का समय हो गया... माँ, वॉक पर जाना है... तो कभी दवा लेकर खिलाने मेरे आगे-पीछे घूमता रहता है।"
"माँ, ये द... 'दीनू' कौन है?"
"अरे! वही तेरा भेजा रोबोट... मैंने उसका नाम दीनू रखा है। अच्छा है न? तेरे बचपन का नाम रखा है।"
"हूँ।"
"बेटा तूने इस रोबोट का चेहरा और आवाज़ अपनी तरह बनाकर बहुत ही अच्छा किया है। कभी-कभी तो मैं भूल ही जाती हूँ कि ये तू नहीं बल्कि एक रोबोट है।"
"अच्छा माँ! मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"
"हाँ, बोल।"
"आपको तो पता है कि राधिका की डिलेवरी डेट आने वाली है। तो मैं चाहता हूँ आप यहाँ आ जाओ।"
"बेटा, मेरा आना तो संभव नहीं है।"
"क्यों? आप तो कब से यहाँ आना चाहतीं थी और अब आप मना कर रही हैं?"
"हाँ! मैं आना चाहती थी। क्योंकि मैं अकेली थी, और बेटे के साथ रहना चाहती थी। पर अब नहीं, क्योंकि अब दीनू मेरा बेटा मेरे पास है। उसके साथ मैं बहुत खुश हूँ।"
"माँ! ... आप ये क्या बोल रहीं हैं?"
"बेटा मैं तो नहीं आ सकती हूँ, पर तेरे लिए एक सलाह ज़रूर देती हूँ।"
"क्या?"
"जिस तरह तूने अपने जैसा हू-ब-हू दिखने वाला रोबोट बनाया है। वैसे ही अपनी माँ की तरह दिखने वाला रोबोट बना ले। जो माँ वाली ज़रूरत पूरी कर दे...अच्छा! मैं फ़ोन रखती हूँ। मेरी वॉक का टाइम हो गया है। मेरा बेटा दीनू मुझे बुला रहा है।"
कहकर उन्होंने फ़ोन काट दिया।