मधुबाला : दिल में आती है, समझ में नहीं आती / जयप्रकाश चौकसे

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मधुबाला : दिल में आती है, समझ में नहीं आती
प्रकाशन तिथि : 13 जुलाई 2018


मधुबाला की मृत्यु को लगभग पचास वर्ष हो चुके हैं परन्तु आज भी वह चर्चा में बनी हुई है। कुछ लोग मधुबाला बायोपिक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। संजू बायोपिक की बॉक्स ऑफिस पर सफलता के बाद अधिकांश निर्माता बायोपिक की तलाश में हैं। कुछ समय पूर्व बनी फिल्म 'हैप्पी भाग जाएगी' का एक संवाद है कि सभी लोग मधुबाला से प्रेम करते थे परन्तु यह ज्ञात नहीं है कि मधुबाला किसे चाहती थी? दरअसल इस सवाल का जवाब तो मुंबई की अदालत में स्वयं दिलीप कुमार हलफिया बयान के द्वारा दे चुके हैं कि वे मधुबाला से प्रेम करते हैं। फिल्मकार बलदेव राज चोपड़ा ने मुकदमा दायर किया था कि उन्होंने मधुबाला को अपनी फिल्म 'नया दौर' के लिए अनुबंधित किया था और स्टूडियो में दस दिन की शूटिंग में वे भाग भी ले चुकी हैं परन्तु होशंगाबाद के निकट ग्राम बुदनी में ऑउटडोर शूटिंग पर जाने से इन्कार कर रही हैं। दरअसल मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान देहलवी की अनुभवी नजरों ने यह पढ़ लिया था कि उनकी पुत्री दिलीप कुमार से प्रेम करने लगी है और चालीस दिन की ऑउटडोर शूटिंग में वे एक-दूसरे के और निकट आ सकते हैं। सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को वे हाथ से कैसे निकल जाने देते। उनके बड़े परिवार में एकमात्र कमाने वाली मधुबाला थी। बलदेव राज चोपड़ा ने मधुबाला के साथ दस दिन की शूटिंग के रशप्रिंट को नष्ट कर दिया।

मधुबाला का सौंदर्य जादू असर रखता था। राजा से रंक तक लोग उसे मन ही मन चाहते थे। पाकिस्तान के जुल्फीकार अली भुट्टो ने अपनी मुंबई यात्रा में इच्छा जाहिर की कि वे मधुबाला को देखना चाहते हैं। उन्हें स्टूडियो ले जाकर मधुबाला से मिलाया भी गया। मधुबाला को शिद्दत से अपने सौंदर्य का एहसास था और उसने कभी कभी इसका लाभ भी उठाया। मसलन फिल्मकार केदार शर्मा मधुबाला के इश्क में लगभग पागल हो गए थे। ज्ञातव्य है कि मधुबाला और राजकपूर ने केदार शर्मा की 'नील कमल' में अभिनय किया था। मधुबाला ने इकहत्तर फिल्मों में अभिनय किया जिनमें बाल कलाकार के रूप में अभिनय करने वाली आधा दर्जन फिल्में शामिल हैं। उनकी पहली और आखरी फिल्म 'चालाक' में भी उनके नायक राज कपूर थे परन्तु 'चालाक' पूरी नहीं हो पाई।

मधुबाला 'मशीन्स मरमर' नामक दिल के रोग के कारण मात्र चौंतीस वर्ष की आयु में स्वर्गवासी हो गईं। उनकी मृत्यु के कुछ समय बाद ही शल्यक्रिया द्वारा इस रोग का इलाज होने लगा। मेरी अपनी भतीजी सोनू की यह शल्यक्रिया दशकों पूर्व चंडीगढ़ मे हुई और वह आज भी सक्रिय है। मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान को इस बात का एहसास हो गया था कि उनकी सुपुत्री दिलीप कुमार को बेहद प्रेम करती है। उन्होंने दिलीप कुमार के सामने यह प्रस्ताव रखा था कि वे इस शर्त पर निकाह की इजाजत दे सकते हैं कि निकाह के बाद दिलीप व मधुबाला अभिनीत फिल्मों का सारा मुनाफा उन्हें प्राप्त होगा। दिलीप कुमार इसके लिए राजी थे कि विवाह के बाद मधुबाला का पारिश्रमिक उनके पिता को मिले परन्तु वे केवल इन्हीं फिल्मों में अभिनय करें, यह बात उन्हें अस्वीकार थी। वे अपने काम से कोई समझौता नहीं करना चाहते थे। दिलीप के पिता पठान थे और उन्हें अभिनय सख्त नापसंद था। इसलिए एक बार वे दिलीप को लेकर अपने मित्र अब्दुल कलाम आजाद से मिलाने ले गए कि आजाद उसे रोकें परन्तु सारी बात जानने के पश्चित आजाद साहब ने दिलीप से कहा कि जो भी काम करो, उसे इबादत की तरह निष्ठा से करना। दिलीप ने यही किया।

सर्वकालिक महान हास्य फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' के निर्माण के समय किशोर कुमार और मधुबाला के बीच प्रेम हुआ और किशोर कुमार ने विवाह के लिए इस्लाम कबूल किया। विवाह के चंद दिन बाद ही किशोर कुमार और मधुबाला के बीच अनबन शुरू हो गई। 'चलती का नाम गाड़ी' का मजरूह का लिखा गीत 'एक लड़की भीगी भागी सी, मिली एक अजनबी से…' मधुबाला के यथार्थ जीवन की बेचैनी को इस तरह अभिव्यक्त करता है कि किसी भी रात वह चैन से सो नहीं पाई। वह अपने रोग के बारे में जानती थी। मृत्यु उसकी परछाई की तरह उसके पीछे चलती थी। सब कुछ जानते हुए भी मधुबाला खूब ठहाके लगाती थीं। किशोर कुमार से प्रेम का सेतु भी दोनों की ठहाके लगाने की आदत था परन्तु किशोर का एक चेहरा और भी था जिसके कारण मधुबाला विवाह के कुछ दिन बाद ही अपने बंगले 'अरेबियन विला' में रहने चली गईं। इसी बंगले की तल मंजिल पर उसने एक छोटा सा सिनेमाघर भी बनाया था जिसमें वह प्राय: 'मुगले आज़म' की कुछ रीलें देखती थी। मधुबाला पर फिल्माया गीत था 'बेकस पे करम कीजिए सरकारे मदीना'। उन पर करम अता नहीं हुआ और कम उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गई। वह मनहूस दिन था तेइस फरवरी 1969। जब मधुबाला परिवार के साथ देहली रहती थी, तब उनका पड़ोसी उनसे एकतरफा प्रेम करता था। वह कई वर्षों तक 23 फरवरी को कब्रिस्तान आकर एक गुलाब का फूल अनारकली मधुबाला की कब्र पर रख देता था।

मधुबाला का सौंदर्य ही उसका सबसे बड़ा शत्रु भी रहा। उससे प्रेम करने वालों की फेहरिस्त मतदाता सूची की तरह लंबी रही है। भारत भूषण और प्रदीप कुमार जैसे नाम भी उसमें शामिल हैं। मधुबाला का मनपसंद शेर फानी द्वारा रचित है और वही उसका असल परिचय भी है 'इक मुअम्मा है समझने का ना समझाने का, ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब दीवाने का'।