मधुमक्खियां / हेमन्त शेष

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मधुमक्खियाँ पराग से शहद बनाने की कर्तव्यपरायणता में निर्द्वंद्व काल-चक्रों से अप्रभावित मौसमों से उदासीन जीवन के उजालों की स्मृति हम में जगातीं किस व्यस्त आत्मलीनता में डूबी रहती हैं?

वे कब जागती और कब सोती हैं?

वे निरन्तर उड़ती और गुनगुनाती ही क्यों दिखलाई देती हैं?

क्या वे जानती हैं- कब होगा उनका देहांत?

वे पृथ्वी पर कब आई थीं और किस दिन के लिए जीवित हैं?

वे फूलों के झुरमुट, सुगन्ध के स्रोत उपयुक्त आकार के तने कैसे खोज लेती हैं?

वे काली दाढ़ी जैसे घने छत्ते बनाती हमारी जिज्ञासाओं से निरपेक्ष रहती हैं- लोग बेरहमी से भले ही जिन्हें तोड़ डालें…. भले ही मधुमक्खियों के डंक की संरचना पर विज्ञान के छात्र शोध-लेख लिखते रहें, वे प्रकृतिशास्त्रियों का चिन्तकों और कवियों का कभी खंडन नहीं करतीं.

दुनिया की एक नायाब चीज़- शहद का आविष्कार करते हुए मधुमक्खियाँ अनजाने ही छोड़ जाती हैं भगवान जाने न जाने किस के लिए कितनी अनबूझ पहेलियाँ…