मनचले / मनोज चौहान
लॉन्ग रूट की बस सर्पीली पहाड़ी सड़क से गुजर रही थीl कंडक्टर की सीटी के साथ ही बस सवारियों को चढ़ाने के लिए एकाएक रुकीl अन्य सवारियों के साथ दो किशोरियां भी बस में चढ़ीl दो मनचले लड़के भी उनका पीछा करते बस में चढ़ गए थेl बस की सभी सीटों पर सवारियां बैठी थी, इसीलिए दोनों लड़के बस की बीच वाली गैलरी नुमा जगह पर खड़े हो गएl दोनों किशोरियों को सीट पर बैठी सवारियों ने आगे–पीछे, जैसे–तैसे एडजस्ट करके बिठा दियाl एक मनचले ने आगे वाली सीट पर बैठी किशोरी के साथ बुदबुदाहट के साथ छेड़खानी शुरू कर दी और दुसरा मनचला पीछे वाली सीट पर बैठी किशोरी के साथ अपनी टांग सटाकर खड़ा हो गयाl यही क्रम काफी देर तक चलता रहाl पीछे वाली किशोरी के सामने की सीट पर सिद्धांत अपनी 5 साल की बेटी और पत्नी के साथ बैठा थाl किशोरी की नज़र सिद्धांत पर पड़ी तो वह लज्जा से झेंप-सी गई थीl मानो, सहायता के लिए कहना चाहती हो मगर संकोचवश कह न पा रही होl
बस में भीड़ ज़्यादा होने के कारण किसी का भी ध्यान उन मनचलों की हरकतों पर नहीं गयाl सिद्धांत ने जैसे ही पीछे वाली किशोरी से कहा कि "अगर आपको बैठने में कोई परेशानी हो रही है तो आप मेरी सीट पर बैठ जाइयेl" इससे पहले कि वह किशोरी कुछ प्रतिक्रिया देती, पीछे वाला मनचला सचेत हो गयाl सिद्धांत ने उस मनचले को उग्र भावों के साथ घूर कर देखा तो उसके माथे पर बल पढ़ने लगेl सहारे का अहसास पाकर, आगे बैठी किशोरी ने भी हिम्मत जुटाकर ऊँचे स्वर में विरोध कर दियाl सभी सवारियों की नज़र अब उन मनचलों पर थीl दो–तीन सवारियों ने उन्हें हड़का भी दिया थाl ये देखकर दोनों मनचलों पसीने-2 हो गए थेl उनकी टांगों में पैदा हो चुकी कंपकपी से उनका बस में खड़ा रहना अब मुश्किल हो गया थाl सवारियों को उतारने के लिए जैसे ही बस रुकी तो वह मनचले तेजी से बस से नीचे उतर गएl
दोनों किशोरियों के चेहरों पर अब मुस्कान तैर रही थीl शायद वे समझ चुकीं थी कि निडरता और आत्मविश्वास से हर मुसीबत का सामना किया जा सकता हैl कुछ ही देर में उनका स्टॉपेज आ गयाl उन्होंने निश्चल नेत्रों से सिद्धांत को एक नज़र देखा और धन्यवाद करते हुए बस से उतर गईl सिद्धांत ने भी मुस्कुरा कर संतोष की सांस लीl उसका सफ़र लम्बा था, इसीलिए उसने आँखे मूंद ली थीl बस अब पुनः पहाड़ी-सर्पीली सड़क पर निर्बाध दौड़ रही थीl